भारत-मध्य एशिया आर्थिक संबंधों के सांचे के तहत, द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय दोनों रूपरेखाओं के भीतर भारत-अफगानिस्तान-उज्बेकिस्तान संबंधों का निर्माण करना संभवतः सबसे महत्वपूर्ण है। चाबहार बंदरगाह से गुजरते हुए भारत से मध्य एशिया (पाकिस्तान के माध्यम से गुजरने वाले पारगमन मार्ग को छोड़कर) के सबसे छोटे समुद्री-भूमि मार्ग का एक बड़ा हिस्सा इन दोनों देशों से गुजरता है, इसलिए यह कितना महत्वपूर्ण है, यह खुद ही ज़ाहिर होता है। इसके अन्य मुख्य कारण इन दोनों देशों के बीच साझा सहयोग की संभावना है।
सबसे पहले परिवहन / लॉजिस्टिक के मुद्दे को देखते हुए: यह मार्ग: चाबहार (ईरान) - ज़ारगंज (अफगानिस्तान में स्थित सीमावर्ती शहर और निम्रुज़ प्रांत की राजधानी) - देलाराम (कंधार-हेरात राजमार्ग पर निम्रुज़ प्रांत में स्थित एक परिवहन केंद्र) हेरात - मज़ार-ए-शरीफ - हेयरटन का शुष्क बंदरगाह (बल्ख प्रांत में, मज़ार-ए-शरीफ, बल्ख प्रांत की राजधानी से लगभग 76 किमी दूर स्थित), उज्बेकिस्तान में स्थित टर्मेज़ के शुष्क बंदरगाह से मध्य एशियाई क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले, हेयरटन से अमु दरिया को पार करते हुए गुजरता है। यह मार्ग ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों और ईरान-तुर्कमान सीमा पर होने वाली प्रक्रियागत देरी से बचाता है।
(स्रोत: गूगल मैप्स; स्क्रीनशॉट में मज़ार-ए-शरीफ और टर्मेज़ को दिखाया गया है)
उज्बेकिस्तान और ईरान में स्थित अग्रेषण एवं रसद कंपनियों के साथ परिवहन / पारगमन विवरण पर चर्चा करके इस मार्ग के संचालन करने की दिशा में कदम उठाया जा सकता है। यह चर्चा संस्थागत और साथ ही बी2बी स्तरों पर की जा सकती है। इन दोनों देशों में मौजूद कुछ कंपनियों के साथ किया गया शुरुआती अन्वेषण यह दर्शाता है कि ये कंपनियां संचालन हेतु तैयार हैं, लेकिन वो सुरक्षा से संबंधित मामलों और अमूमन कम इस्तेमाल होने वाले इस मार्ग से जुड़ी अनिश्चितताओं को लेकर थोड़ी चिंतित हैं, विशेष रूप से अफगानिस्तान में मौजूदा जमीनी स्थिति को देखते हुए।
हैरानी की बात यह है कि उनकी चिंता केवल इस बात को लेकर नहीं है कि मार्ग पर तालिबान के प्रभुत्व वाले क्षेत्र पड़ता है, बल्कि वो स्थानीय सरदारों और सरकारी चौकियों द्वारा वसूले जाने शुल्क को लेकर भी चिंतित हैं। उनका मानना है कि पैसे लेने के बाद तालिबान आमतौर पर सामानों की डिलीवरी की गारंटी देते हैं और उसके बाद कई चौकियों पर शुल्क नहीं देना पड़ता। एक स्वभाविक चिंता है, जिसे दूर करने के लिए समस्या-समाधान दृष्टिकोण अपनाना होगा। काबुल में जारी भारतीय मिशन के माध्यम से अफगान सरकार से बात करके टोल संग्रह / माल की आवाजाही को सरल बनाने में मदद मिल सकती है। माल की सुरक्षित डिलीवरी के लिए परिवहन कंपनियां "एक बार भुगतान" करने हेतु तैयार हैं। हालांकि, वे अफगानिस्तान से गुजरने को लेकर अनिश्चितता और कई भुगतानों (टोल और अन्यथा) से संबंधित लागतों को लेकर चिंतित हैं।
माल ढुलाई / एजेंटों के साथ ये चर्चाएं बी2बी और सरकारी दोनों स्तरों पर होनी चाहिए ताकि परिवहन एवं अग्रेषण कंपनियों के लिए टर्मेज़-हेयरटन-ज़ारंज मार्ग पर एक स्थिर माहौल बनाया जा सके। कुछ वर्षों के लिए परिवहन लागत पर थोड़ी छूट जैसे प्रोत्साहन के बारे में सोचा जा सकता है, या किसी प्रमुख बीमा कंपनी को उचित शुल्क पर मार्ग के माध्यम से गुजरने वाले खेपों को कवर करने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है।
उजबेकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर टर्मेज़ बॉर्डर पोस्ट के प्रस्तावित विस्तार में भागीदारी / निवेश, एक अन्य तरीका है, जिसपर विचार किया जा सकता है। उज्बेकिस्तान टर्मेज़ में अपनी स्थिति और सड़क-रेल कनेक्टिविटी की वजह से मध्य एशिया हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय कार्गो टर्मिनल विकसित करने की योजना बना रहा है। यह एक महत्वपूर्ण कार्गो परिवहन और लॉजिस्टिक केंद्र (उज्बेकिस्तान, यूरोप काकेशस और एशिया परिवहन गलियारे - टीआरएसीईसीए का सदस्य है) हो सकता है।
(अमु दरिया पर हेयरटन और टर्मेज़ को जोड़ने वाला मैत्री पुल; स्रोत: एलामी फोटो)
भारत, अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते के तहत, हेयरटन-टर्मेज़ सीमा पर स्थित एक विशेष आर्थिक क्षेत्र में भारत की भागीदारी पर विचार किया जा सकता है, जो तीनों देशों की आवश्यकताओं के अनुसार कृषि और फास्ट-मूविंग कंज्यूमर (एफएमसी) माल व अन्य संबंधित उत्पादों की आपूर्ति की ओर उन्मुख होगा। इसी तरह का व्यापार क्षेत्र बाद में ज़ारंज (अफगानिस्तान-ईरान बॉर्डर) पर भी बनाया जा सकता है।
मध्य एशिया में अपनी व्यापार क्षमता को सकारात्मक मानते हुए, पाकिस्तान ने, विशेषकर उजबेकिस्तान के साथ गहरे व्यापारिक संबंधों को बनाने की दिशा में अपने प्रयासों को बढ़ाया है। हाल में हुए एक बैठक (इस्लामाबाद, 10 सितंबर, 2020) में, उजबेकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और निवेश एवं विदेश व्यापार मंत्री सरदोर उमुरज़कोव और पाकिस्तान के समुद्री मामलों के मंत्री अली हैदर जैदी ने एक व्यापार गलियारे की स्थापना और मध्य एशियाई देशों को पाकिस्तानी बंदरगाह तक पहुँच प्रदान करने पर चर्चा की, इसमें मध्य एशियाई माल हेतु विशेष टर्मिनल और इन देशों से होने वाले निर्यात के लिए एक समर्पित नौवहन बेड़े पर भी चर्चा हुई। दोनों पक्षों ने अधिमान्य व्यापार समझौते हेतु बातचीत शुरू करने पर भी चर्चा की और दोनों देशों के निजी क्षेत्र के लिए एक व्यापार मंच बनाने पर सहमति जताई।
तीन पाकिस्तानी बंदरगाहों के माध्यम से कार्गो के आने और ले जाने पर सहमति बनी है, जो उज्बेकिस्तान, कराची, पोर्ट बिन कासिम और ग्वादर के लिए पारगमन बंदरगाहों का काम करेंगे। कहा जा रहा है कि इसी तरह के समझौते अन्य मध्य एशियाई देशों के साथ भी होने वाले हैं। इन मार्गों के समेकन से टर्मेज़-हेयरटन-ज़ारंज-चाबहार मार्ग का व्यवहार्य होना कठिन हो जाएगा। पहले ही, उज़्बेक कंपनियां अपने माल को पाक बंदरगाहों में से एक के माध्यम से भेजने को लेकर अपने भारतीय समकक्षों से पूछताछ शुरू कर चुकी हैं। इसलिए, इस पहल को जल्द से जल्द शुरु करना आवश्यक है, जिसमें अधिमान्य व्यापारिक व्यवस्था करना और टर्मेज़-चाबहार मार्ग का संचालन करना शामिल है। बंदरगाह के शुरु हो जाने पर चाबहार में कार्गो हैंडलिंग क्षमता को भी संवर्धित करना पड़ सकता है।
अफ़ग़ानिस्तान
(स्रोत: नेशनल ऑनलाइन प्रोजेक्ट)
दक्षिण एशियाई और मध्य एशियाई पहचान को प्रभावित करते हुए, अफगानिस्तान ज़ाहिर तौर पर मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार करने हेतु भारत (और अन्य दक्षिण एशियाई देशों - पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश) का गेटवे है। भारत ने पिछले दो दशकों में अफ़ग़ानिस्तान में सलमा बांध (अफ़गानिस्तान-भारत मैत्री बांध) परियोजना से लेकर ज़ारंज-देलाराम सड़क और कई इलेक्ट्रिक सबस्टेशनों, स्कूलों और अस्पतालों तक कई बड़ी और छोटी परियोजनाओं के माध्यम से कई महत्वपूर्ण अवसंरचना का सफलतापूर्वक निर्माण किया है। अब जरूरत आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ाने और इसे बाजार के अनुकूल बनने की है। ऐसा उदाहरण के लिए, अफगानिस्तान में उपयुक्त लघु उद्योगों की स्थापना हेतु समर्थन हो सकता है।
विशेष रूप से, आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता के न्यूनतम स्तर को प्राप्त करने का मुद्दा जारी अंतर-अफगान वार्ता का एक महत्वपूर्ण तथा सकारात्मक घटक हो सकता है। यह वह क्षेत्र है, जिसमें अफगान सरकार और तालिबान के बीच तालमेल बनने की सबसे अधिक संभावना है। स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देकर अफगानिस्तान को सकारात्मक विकास के रास्ते पर कैसे लाया जाए, इसपर चर्चा करना उपयोगी हो सकती है। यह भारत को अफगानिस्तान में आर्थिक विकास हेतु द्विपक्षीय तरीके से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने और सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाने में सक्षम बनाता रहेगा। यहां तककि तालिबान और अफगान बलों के बीच लड़ाई के दौरान भी दोनों पक्षों के बीच प्रतिष्ठानों, अवसंरचना और आर्थिक इकाइयों की सुरक्षा हेतु एक औपचारिक सहमति बन सकती है।
एफएमसी सामानों और सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थों के लिए पड़ोसी देशों पर अफगानिस्तान की निर्भरता जगजाहिर है। एफएमसी सामानों को बनाने वाली विनिर्माण इकाइयों की स्थापना और सब्जी की खेती हेतु ग्रीनहाउस के निर्माण से अफगानिस्तान को अपनी आर्थिक क्षमता का पूरी तरह से दोहन करने में मदद मिल सकती है और यह आर्थिक रूप से अधिक आत्मनिर्भर भी हो सकता है।
भारत और यूएसएआईडी भारत तथा अन्य देशों को कृषि उत्पाद निर्यात करने में अफगानिस्तान की मदद करते रहे हैं, जिससे इसके बागवानी / वृक्षारोपण क्षेत्र को विकसित करने में मदद मिली है। अफगानिस्तान से अधिक संख्या में ड्राई फ्रूट्स और औषधीय जड़ी-बूटियाँ भारत आ रही हैं। बढ़ते अफगान निर्यात की इस प्रवृत्ति को बढ़ाने हेतु, काबुल, कंधार, हेरात और मजार जैसे शहरों में पैकेजिंग इकाइयों की स्थापना करना एक अच्छा विचार हो सकता है। पैकेजिंग सामग्री के संयंत्र छोटे स्तर की परियोजनाएं हैं जिन्हें जल्दी और आसानी से स्थापित किया जा सकता है। उपरोक्त शहरों के अलावा, अफगानिस्तान में देलाराम में व्यापार और परिवहन केंद्रों की स्थापना भी की जा सकती है। 200 ग्राम से 1 किलोग्राम वजन तक के पॉलीथीन मुद्रित पैक के विभिन्न ग्रेड, कारुगेट कार्डबोर्ड बक्से और लकड़ी के बक्से आमतौर पर ड्राई फ्रूट्स और फलों की पैकेजिंग के लिए उपयोग किए जाते हैं।
रीसाइक्लिंग एक अन्य लघु उद्योग (एसएसआई) क्षेत्र है, जिसे स्थापित करने में भारत मदद कर सकता है। अभी, ज्यादातर रीसाइक्लिंग कच्चे माल को बहुत कम कीमतों पर अवैध रूप से पेशावर के माध्यम से पाकिस्तान भेजा जाता है। उदाहरण के लिए, प्रयुक्त वाहन बैटरी और अन्य बैटरी का उपयोग ग्रेड के अनुसार सीसा धातु निकालने और बैटरी में प्रयुक्त प्लास्टिक को प्लास्टिक के कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस प्लास्टिक का उपयोग फ्लैक्स बनाने में किया जा सकता है, जिससे बाद में, प्लास्टिक स्विच, बर्तन आदि बनाने हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है। इन संयत्रों से संसाधित सीसा धातु भारत द्वारा वापस खरीदा जा सकता है, या इसे विश्व स्तर पर बेचा जा सकता है। सामुदायिक कचरे के रीसाइक्लिंग के अन्य संभावित क्षेत्रों में शामिल हैं: टिशू पेपर, टॉयलेट रोल, पेपर कैरी बैग और पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए कागज / समाचार पत्र; एल्यूमीनियम के बर्तन / कोल्ड ड्रिंक के डिब्बे (पिघलने बिंदु 660 डिग्री सेंटीग्रेड); धातु की सिल्लियां बनाने के लिए धातु के स्क्रैप और बाद में रोलिंग रॉड को लोहे की छड़ बनाने के लिए स्थापित किया जा सकता है, जिसका उपयोग निर्माण सामग्री के रूप में किया जा सकता है; आसनों आदि के लिए पुराने कपड़े।
भारत अफगानिस्तान में पोल्ट्री और पशुपालन क्षेत्रों को विकसित करने में भी मदद कर सकता है। अभी, अफगानिस्तान अपनी अधिकांश घरेलू मांग को पूरा करने हेतु अंडों का आयात करता है। इसी तरह, भेड़ और बकरी प्रजनन अन्य क्षेत्र हैं जिनमें सहयोग किया जा सकता है। मेरिनो भेड़ के प्रजनन में भी सहयोग बढ़ाया जा सकता है, जिससे अच्छी गुणवत्ता वाले ऊन निकाले जा सकते हैं। मेरिनो ऊन की भारत और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक मांग है। अफगानिस्तान में पशुपालन के विकास से भारत से सोया डीओसी जैसे पशु आहार के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और जिसके बदले में भारत मेरिनो ऊन खरीद सकता है। साथ ही, भेड़ के खाल भारतीय चमड़ा उत्पाद उद्योग में निर्यात की जा सकती है या इन्हें मूल मूल्य वृद्धि के बाद 'वेट ब्लू लेदर' के रूप में निर्यात किया जा सकता है।
खाने योग्य ग्रेड पॉपी सीड्स सहयोग का एक और क्षेत्र जिसपर विचार दिया जा सकता है। अफगानिस्तान में आर्थिक संस्थाओं को खाने योग्य ग्रेड पॉपी सीड्स के उत्पादन हेतु अफगान सरकार द्वारा लाइसेंस दिया जा सकता है, जिनकी भारत में मांग है, और जिनका बेकरी, दवा क्षेत्र में और मसाले के रूप में उपयोग किया जा रहा है। अभी, भारत नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड से आयात लाइसेंस या मंजूरी मिलने के बाद इसका तुर्की, स्पेन और इटली से आयात कर रहा है। अफगानिस्तान से पॉपी सीड्स आयात करना तुर्की से आयात का विकल्प हो सकता है।
यह समय देश में लघु उद्योग को विकसित करने और बाय-बैक मार्केट बनाने में तकनीकी सहायता प्रदान करके, कृषि उत्पादों के अपने निर्यात में वृद्धि के बाद, अपने औद्योगिक आधार में विविधता लाने में अफगानिस्तान का समर्थन करने है। बाद में, भारत माइनिंग स्थापित करने, खनन से जुड़े बड़े उद्योगों में सहयोग देने पर भी विचार कर सकता है क्योंकि अफगानिस्तान खनिजों से भरपूर है।
अफगानिस्तान के साथ भारत का व्यापार दोनों देशों के लिए आशाजनक दिखाई दे रहा है और द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को बढ़ाने हेतु एक सकारात्मक आधार प्रदान करता है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर यूएन कॉमट्रेड डेटाबेस (आंकड़ा नीचे दिया गया है) के अनुसार, 2018 में अफगानिस्तान का भारत में निर्यात 359.47 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। भारत में अफगानिस्तान के निर्यात में दो श्रेणियों के उत्पादों की भारी हिस्सेदारी (88% से अधिक) है। ये हैं: (i) खाद्य फल, नट्स, खट्टे फलों का छिलका, खरबूजे; और (ii) लाक, गम्स, रेजिन।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर यूएन कॉमट्रेड डेटाबेस के अनुसार, 2018 में भारत से अफगानिस्तान का आयात 354.28 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। यानि दोनों देशों के बीच व्यापार काफी संतुलित है। भारत से अफगानिस्तान के आयात में अधिक व्यापक आधार नज़र आता है, और इसमें शामिल हैं: (i) इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण; (ii) बेस मेटल की कई वस्तुएं; (iii) ऑयल सीड, अनाज, बीज, फल; (iv) तंबाकू; (v) टेक्सटाइल फाइबर और विभिन्न प्रकार के कपड़े; और (vi) फार्मास्यूटिकल उत्पाद।
उज़्बेकिस्तान
भारत-अफगानिस्तान व्यापार के विपरीत, उजबेकिस्तान के साथ भारत का व्यापार कम हो रहा है। उज़्बेकिस्तान स्टेट स्टैटिस्टिक्स कमेटी के आंकड़ों के मुताबिक, उज़्बेकिस्तान के लिए भारतीय निर्यात 2018 में 261.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जो कि 2016 में 318.1 मिलियन अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कम रहा था। इनमें मुख्य रूप से शामिल हैं: (i) फार्मास्युटिकल उत्पाद; और (ii) मशीनरी। जबकि उज्बेकिस्तान से भारत का आयात 2018 में केवल 23.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो कि 2014 के बाद से लगातार कम (कारोबारियों का मानना है कि उज़्बेकिस्तान से आयात में इस गिरावट का कारण आंशिक रूप से उज्बेकिस्तान में बनने वाले माल का अन्य देशों में बनना दिखाया जाना है) हो रहा है। भारत-उज्बेकिस्तान व्यापार का मौजूदा स्तर दोनों देशों के बीच व्यापार की वास्तविक संभावनाओं से बहुत दूर है।
द्विपक्षीय व्यापार में गिरावट और आर्थिक व सामरिक दोनों क्षेत्रों में उज्बेकिस्तान की केंद्रीयता में गिरावट को देखते हुए, मौजूदा अड़चनों को दूर करने हेतु उपाय करना आवश्यक है, विशेष रूप से परिवहन क्षेत्र; नीतिगत निर्णयों को संरेखित करने; और सहयोग के सक्रिय उपाय करने में। उज़्बेकिस्तान सरकार ने उज़्बेक निर्यात पर परिवहन छूट देने का निर्णय लिया है। उज़्बेक सरकार की पहल के साथ भारत का आगे बढ़ना चाबहार बंदरगाह के माध्यम से व्यापार को बढ़ावा देने के साथ-साथ दोनों देशों के बीच संभावित एयर फ्रेट कॉरिडोर उपयोगी होगा, जैसा कि अफगानिस्तान के साथ अभी परिचालित हो रहा है। यह पहल दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
1990 के दशक के अंत तक, भारतीय चमड़ा उत्पाद और ऊनी / सूती वस्त्र की मांग सीआईएस देशों में अधिक थी। ताशकंद का कोई यात्री दिल्ली के पालिका बाजार या यशवंत प्लेस की किसी खुदरा दुकान से चमड़े के कई जैकेट ले जा सकता है और हवाई किराए पर हुए खर्च को कवर करने हेतु इसे ताशकंद में बेच सकता है। अभी, इस क्षेत्र में भारतीय बाजार में चीन तथा तुर्की के उत्पादों की हिस्सेदारी अधिक हो गई है। अच्छी तरह से सिलाई न होना; डिजाइन के प्रति अत्यधिक सजग बाजार में इसे अपडेट रखने में पिछड़ापन; और माल ढुलाई के कारण बढ़ते खर्च इस कमी के मुख्य कारक रहे हैं। हालांकि, उचित सिलाई, गुणवत्ता नियंत्रण और बाजार अद्यतन को अपनाने से उज़्बेकिस्तान सहित भारत से इस क्षेत्र में, चमड़े के उत्पादों और कपड़ों के निर्यात को फिर से पहले जैसा करने की क्षमता है।
पारस्परिक रूप से, भारत उज्बेकिस्तान और अन्य मध्य एशियाई देशों से चमड़े के कपड़ों के लिए कच्चे माल (कच्चे खाल के साथ-साथ रासायनिक रूप से प्रशोधित को वेट ब्लू लेदर के रूप में जाना जाता है) मंगा सकता है। वेट ब्लू लेदर के प्रसंस्करण को भारतीय प्रौद्योगिकी के साथ देश में ही उन्नत किया जा सकता है; इसके लिए संयुक्त उपक्रमों पर विचार किया जा सकता है। ऐसा व्यापार मंच, जिसमें क्षेत्र में व्यापारिक संपर्क वाले कारोबारी और संबंधित मिशनों में तैनात वाणिज्यिक अधिकारी शामिल हैं, चमड़े के उत्पादों और ऊनी / सूती कपड़ों के रिवाइवल हेतु प्रतिक्रिया देने, बाजार का पता लगाने, रणनीति बनाने और बी2बी बैठकों की व्यवस्था करने में मदद कर सकता है।
अनुकूल जलवायु परिस्थितियां और उपजाऊ भूमि उज्बेकिस्तान को बादाम, अखरोट और पिस्ता जैसे गुणवत्ता वाले ड्राई फ्रूट्स, और ब्लू बेरी, अंजीर और चिया (साल्विया हर्पेनिका) के विभिन्न ग्रेड जैसे फलों का एक बड़ा उत्पादक बनाती है। कम विकसित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के कारण, उज्बेकिस्तान अब तक तुर्की की तरह अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पादों की इस बहुतायत का लाभ नहीं उठा सका है। भारत वैश्विक बाजारों के अनुसार ड्राई फ्रूट्स के प्रसंस्करण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ताकि उज़्बेकिस्तान क्षेत्रीय तथा वैश्विक बाजारों में अपनी मौजूदगी को बढ़ा सके और भारत को होने वाला निर्यात बढ़ा सके।
कपास भी एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें उज्बेकिस्तान और भारत के बीच सहयोग की अपार संभावनाएं हैं। उज्बेकिस्तान कपास का 7वां सबसे बड़ा उत्पादक है, जबकि भारत वैश्विक रूप से कॉटन और कॉटन यार्न का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत को कॉटन यार्न के निर्माण में उसकी विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है। उज्बेकिस्तान में कई भारतीय कॉटन यार्न कारखानों में काम कर रहे हैं। राष्ट्रपति शवकत मिर्ज़ियोयेव की सरकार कपास से संबंधित उद्योगों सहित कई क्षेत्रों में अवसरों का विस्तार कर रही है, जिससे देश का विनिर्माण और निर्यात बढ़ेगा। उदाहरण के लिए, यह बिना किसी शुल्क के कपास की खेती हेतु 'लैंड बैंक' प्रदान कर रहा है। सरकार ने अपनी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग को बेहतर बनाने पर भी ध्यान दिया है।
उज़्बेक के कपास उत्पादन और निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले मुख्य कारक बीजों की खराब गुणवत्ता, जिसके कारण पैदावार कम होती है; कपास की खेती अक्सर रोग से प्रभावित हो जाती है, विशेष रूप से फंगल से; और कपास की उपज में बाल श्रम का उपयोग करने के कारण उज्बेकिस्तान से कपास के आयात का यूरोपीय संघ के बहिष्कार हैं। भारत बीटी कॉटन बीज सहित बेहतर गुणवत्ता वाले कपास के बीज उपलब्ध करके, मिट्टी प्रशोधन में अनुभव साझा करके और फंगल को फैलने से रोकने के लिए कीटनाशकों के समुचित उपयोग में मदद करके; और उच्च गुणवत्ता वाले कॉटन-पॉलिएस्टर यार्न जैसे मूल्य वर्धित उत्पादों के अनुपात को बढ़ाने हेतु कताई और बुनाई में उपलब्ध भारतीय प्रौद्योगिकी को साझा करके उज्बेकिस्तान की मदद कर सकता है। इसके बाद भारत विभिन्न ग्रेड के कॉटन-पॉलिएस्टर यार्न खरीद सकता है, जिससे चीन पर निर्भरता कम होगी। द्विपक्षीय व्यापार मंच (जिसके बारे में ऊपर बात की गई है) भारतीयों को खेतों से कपास को इक्ट्ठा करने के साथ-साथ कताई में प्रयुक्त मशीनरी के निर्यात में भी मदद कर सकता है। इसलिए, वैश्विक मानकों और अंतरराष्ट्रीय बाजार की आवश्यकताओं के अनुसार कपास तथा मिश्रित यार्न के उत्पादन हेतु इंडो-उज़्बेक संयुक्त उद्यमों के गठन की संभावनाएं मौजूद हैं।
इंजीनियरिंग डोमेन एक अन्य क्षेत्र है जिसमें सहयोग की क्षमता है। उज्बेकिस्तान में कुछ गुणवत्ता वाली इंजीनियरिंग इकाइयाँ हैं जिनके साथ भारतीय उद्योग सहयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, उज्बेकिस्तान के चिरचिक में स्थित टंगस्टन मिश्र धातु संयंत्र में उच्च गुणवत्ता के सीमेंटेड कार्बाइड टूल्स (काटने के उपकरण, सटीक उपकरण) बनता है। ऐसी कंपनियों को भारत में इसके उत्पादन हेतु संयुक्त उद्यम (जेवी) शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। ऐसे संयुक्त उद्यम इस तरह के उत्पादों के लिए चीन पर निर्भरता को कम करेंगे।
निष्कर्ष
अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान, दोनों परिवर्तन के दौर से गुज़र रहे हैं और स्थिर एवं भरोसेमंद साझेदारियां स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इस समय आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ाने पर ध्यान देकर दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करते हुए, भारत पारस्परिक रूप से लाभकारी तथा मजबूत साझेदारी बना सकता है। जैसा कि पहले ही कहा गया है कि, आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता के न्यूनतम स्तर को प्राप्त करने के मुद्दे को जारी अंतर-अफगान वार्ता का एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक घटक बनाया जा सकता है। यह न केवल भारत जैसे देश को अफगानिस्तान में आर्थिक विकास में समयोग करने और सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा, बल्कि अफगानिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्य के बीच आर्थिक संबंधों को भी बढ़ावा देगा।
- डॉ. सुनील कुमार, पंकज त्रिपाठी
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References:
Pakistan, Uzbekistan eye regional links, trade boost, Islamuddin Sajid, September 11, 2020, Andalou Agency
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Strengthening India-Central Asia Relations: An Approach, ICWA, Dr. Sunil Kumar & Pankaj Tripathi, September 7, 2020
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Authors:
Dr Sunil Kumar, Director, Flamme Corporation & Member, India-Central Asia Foundation
Pankaj Tripathi, ex-Civil Servant, Principal Consultant, Sarojini Damodaran Foundation