मध्य एशिया के साथ संबंधों को और अधिक घनिष्ठ बनाने के लिए भारत द्वारा नए सिरे से प्रयास किया जाना अनिवार्य हो गया है। यह न केवल सुरक्षा, रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि अफगानिस्तान के साथ भारत के दीर्घकालिक संबंधों को देखते हुए का एक महत्वपूर्ण तत्व भी है। तालिबान की पीठ पर सवार होकर जैसे जैसे अफगानिस्तान में पाकिस्तान का प्रभाव बढ़ रहा है, भारत को अफगानिस्तान के भीतर और साथ ही साथ ईरान, रूस और मध्य एशिया के साथ भी अपने संबंधों को और मजबूत करना होगा। मध्य एशियाई गणराज्यों और उनके और अफगानिस्तान के बीच स्पष्ट रूप से महत्वपूर्ण अंतर हैं। हालाँकि, नीति निर्माण के दृष्टिकोण से, भारत के लिए इसका एक अंतर्निहित परस्पर और संरचनात्मक सामंजस्य है।
(स्रोत: भारत का मानचित्र)
स्पष्ट उल्लेख के साथ शुरूआत करने के लिए, मध्य एशियाई गणराज्य भी अफगानिस्तान की तरह स्थलसीमा से घिरे हुए हैं; लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां की आबादी भारत के प्रति सद्भावना रखती है, और भारत को अधिक सक्रिय रूप से एक संतुलन शक्ति के रूप में देखना चाहती है। अफगानिस्तान के लिए संतुलन पाकिस्तान के रूप में जारी रह सकता है, क्योंकि पाक आईएसआई अफगानिस्तान को एक ग्राहक राज्य में बदलना चाहता है या जहां वह अपने प्रॉक्सी - तालिबानी नेतृत्व में, जो इसे आश्रय देता और हेरफेर करता हो, के माध्यम से अनुपातहीन प्रभाव पैदा कर सकता है। मध्य एशियाई देशों के लिए, भारत के साथ साथ चीन भी एक संतुलन बनाने वाला बल हो सकता है, क्योंकि चीन के बढ़ते आर्थिक गठजोड़ इन देशों में कभी भी बड़े होते हैं, विशेषकर उनकी नाजुक अर्थव्यवस्थाओं पर। यह एक तथ्य है कि कोई भी संप्रभुत्व राष्ट्र दूसरे पर बहुत अधिक निर्भर नहीं होना चाहता या एकतरफा संबंध नहीं रखता चाहता है, जो उसकी स्वयं की निर्णय लेने की क्षमता को प्रतिबंधित करता हो।
इसलिए, यह मध्य एशिया के संबंध में भारत के लिए नीतिगत ध्यान अपने आप ही सुझाता है। प्रारंभिक परिणामों को सहन करने की सबसे अधिक संभावना वाली नीति एक है, जो आर्थिक संबंधों को प्राथमिकता देती है। संक्षिप्त तौर पर कहें तो, आर्थिक क्षेत्र में इसे और अधिक संकीर्ण बनाने के लिए, इस पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा कि भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच व्यापार-से-व्यापारिक संबंधों में गतिशीलता को जोड़ा जाए। और वह भी जल्दी से जल्दी जैसा कि समय की मांग है। इसके होते हुए भी, यह बहुत सीधा सपाट तो लगता है, लेकिन सारी गड़बड़ी तो इसके विस्तार में जाने पर पता चलता है। समस्या कई देशों के उपर्युक्त स्थलसीमा से घिरे होने की प्रकृति के साथ शुरू होती हैं, जो एक मुक्त-प्रवाह वाले व्यापार को प्रभावित करती हैं, और इसलिए इनका ट्रैक रिकॉर्ड उल्लेखनीय नहीं रहा है। वास्तव में, मध्य एशिया में भारत से सहायता प्राप्त परियोजनाओं का रिकॉर्ड निराशाजनक रहा है। जो इन दो बाधाओं पर काबू पाने से संबंधित हैः (i) साधन और परिवहन के तरीके; और (ii) संयुक्त परियोजनाओं के निष्पादन में दक्षता, जैसा कि हमने अफगानिस्तान के मामले में पिछले 17-18 वर्षों में देखा है, इसलिए यह महत्वपूर्ण बन गया है।
ध्यान देने योग्य बिन्दु, सुझाए गए उपायः
मध्य एशिया, अफगानिस्तान और ईरान में भारतीय मिशनों द्वारा सुविधा प्रदान करना, भारतीय व्यापारिक व्यक्तियों को पारगमन के उद्देश्यों के लिए बंदर अब्बास बंदरगाह के अलावा ईरान में चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने में सक्षम बनाता है। उदाहरण के रूप में एक संक्षिप्त केस स्टडी को देखें: एक भारतीय कंपनी नियमित आधार पर उज्बेकिस्तान से भारत में खाद्यान्न आयात करती रही है। अप्रैल 2018 में, उसने ओमान की खाड़ी में चाबहार बंदरगाह की सेवाओं का लाभ उठाने की कोशिश करते हुए, अफगानिस्तान के माध्यम से भारत में खाद्य पदार्थों के दो कंटेनरों का आयात किया। हालांकि, कुछ कारणों से दोनों कंटेनरों को अफगानिस्तान में हैयरातन सीमा पर हिरासत में लिया गया था। जब कंपनी प्रमुख ने ताशकंद में अफगान दूतावास (13/04/18) से अफगानिस्तान का दौरा करने और मामला सुलझाने के लिए वीजा लेने के लिए संपर्क किया, तो उन्हें ताशकंद में भारतीय दूतावास से एक समर्थन पत्र या एक टेलीफोन कॉल प्राप्त करने की सलाह दी गई। दुर्भाग्य से, हमारे मिशन द्वारा उन्हें मदद नहीं मिल सकी। तब उज्बेक कंपनी के उनके स्थानीय साथी ने मजार-ए-शरीफ में उज्बेक वाणिज्य दूतावास से संपर्क किया। मजार में उज्बेक वाणिज्य दूतावास ने तुरंत हैयरातन कस्टम्स का दौरा किया और इस मुद्दे को हल किया, जिसके बाद कंटेनरों को उज्बेकिस्तान लौटाया गया। और फिर कंटेनरों को बंदर अब्बास मार्ग से गुजारा गया।
यहां उल्लिखित बिंदु यह है कि जब तक संबंधित भारतीय मिशनों और इसके अधिनस्त कार्यालयों को सामान्य रूप से व्यापार संबंधों को मजबूत करने के लिए महत्व देने हेतु संवेदीकृत नहीं किया जाता है, और विशेष रूप से चाबहार बंदरगाह (ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में) के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए, तब तक बंदरगाह का परिचालन उतना सार्थक नहीं होगा जैसा कि परिकल्पित है। इसके साथ ही, मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ व्यापार में पहले से निवेश कर चुके व्यवसायियों को यह बताकर प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है कि क्षेत्र के साथ उनकी व्यापारिक गतिविधियों को सुगम बनाया जाएगा। व्यावसायिक संगठन और थिंक टैंक जिनका इस क्षेत्र में जुड़ाव है वे भारतीय व्यवसायियों को सुविधा प्रदान करने में एक भूमिका निभा सकते हैं, और जिनके मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापारिक संबंध हैं, और जो विदेश मंत्रालय और अन्य मंत्रालयों के साथ एक विश्वसनीय कड़ी के रूप में कार्य करते हैं।
मध्य एशियाई व्यापार/व्यापारिक जगत की अपनी ख़ासियत है क्योंकि कम्युनिस्ट युग की संरचनाओं और प्रथाओं की छाया अभी भी यहां बनी हुई है। दूसरा बड़ा कारक है, भाषा। रूसी या राष्ट्रीय भाषा का ज्ञान एक प्रमुख फायदे की बात है, क्योंकि यहां अंग्रेजी आबादी के एक छोटे से हिस्से द्वारा बोली जाती है। इन्हें पार पाने और स्थानीय सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं से परिचित होने के लिए, ऐसे व्यापारियों को जो पहले से ही इस क्षेत्र के साथ व्यापार करने का अनुभव रखते हैं, उन्हें त्वरित प्रभाव के लिए सुविधाजनक बनाने की जरूरत है।
मध्य एशिया के साथ व्यापार करने वाले भारतीय व्यापारियों के लिए सामान्य बंदरगाह बंदर अब्बास ही रहा है। हालांकि, अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण, इसका उपयोग प्रतिबंधित कर दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप व्यापार की मात्रा कम है। ईरान के माध्यम से पारगमन व्यापार पर प्रतिबंधों के प्रभाव को स्पष्ट करने के लिएः भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों के बावजूद, भारतीय निर्यातकों को भारतीय बैंकों द्वारा ईरान के माध्यम से माल के परिवहन के लिए तीसरे देश में गंतव्य हेतु बीआरसी/ई-बीआरसी (बैंक प्राप्ति प्रमाण पत्र) जारी नहीं किया जा रहा है, जैसे कि अफगानिस्तान, मध्य एशिया या रूस के लिए, भले ही निर्यातक ने पहले ही बैंक में विदेशी मुद्रा में भुगतान प्राप्त किया हो और बैंक ने राशि को क्रेडिट करने के लिए सेवा शुल्क में कटौती कर ली हो। दूसरी ओर, चाबहार बंदरगाह अमेरिकी प्रतिबंधों के तहत नहीं है और मुंद्रा और न्हावा शेवा जैसे बंदरगाहों से भारत के पश्चिमी तट के करीब है। वर्तमान परिस्थितियों में चाबहार बंदरगाह को और अधिक प्रभावी ढंग से मध्य एशियाई क्षेत्र और उससे आगे तक पहुंचने के लिए बढ़ावा दिया जा सकता है।
ईरान में बढ़ते चीनी पदचिन्हों के मद्देनजर हमारे लिए चाबहार की ख़ासियत और अधिक बढ़ गई है। इसलिए यह सुझाव दिया गया है कि भारत, ईरान, अफगानिस्तान, मध्य एशिया और कोकेशियान देशों में काम करने वाली लॉजिस्टिक्स कंपनी के साथ बैठकें की जा सकती हैं ताकि ऐसा करने के तरीके तलाशे जा सकें। लॉजिस्टिक्स कंपनी के साथ समझना पोर्ट का प्रबंधन करना नहीं होगा, बल्कि केवल पोर्ट का उपयोग करके अंतर-देश व्यापार को सुविधाजनक बनाना होगा। काफी हद तक, इस तरह की व्यवस्था से भारत और अफगानिस्तान, भारत और मध्य एशियाई गणराज्यों और भारत और रूस के बीच व्यापार से संबंधित संघर्षों को कम करने में मदद मिल सकती है।
भारत अपने अन्य मित्र देशों को भी अफगानिस्तान के साथ व्यापार के लिए चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने हेतु प्रोत्साहित कर सकता है। उदाहरण के लिए, कुछ हफ्ते पहले, ग्वादर बंदरगाह का उपयोग करके ऑस्ट्रेलिया से अफगानिस्तान तक 16000 मीट्रिक टन उर्वरक की एक खेप का निर्यात किया गया था। चाबहार में बेहतर लॉजिस्टिक्स और इसके बढ़ते उपयोग के साथ, चाबहार के माध्यम से इस तरह के यातायात को बढ़ावा दिया जा सकता है।
जारी कोविड-19 की महामारी के चलते, मध्य एशिया और भारत के बीच परस्पर माल का परिवहन काफी प्रभावित हुआ है। समुद्री मार्ग से भारत और मध्य एशियाई राज्यों के बीच कार्गो में तेजी से गिरावट आई है। इसके अलावा, यात्री-सह-कार्गो उड़ानें लगभग पूरी तरह से बंद हो गई हैं। उदाहरण के लिए, निम्नलिखित यात्री और मालवाहक उड़ानें मार्च 2020 तक चालू थीं:
यात्री उड़ानें, इनमें व्यापारिक माल भी ढोया जाता हैः
कार्गो उड़ानें:
साप्ताहिक आधार पर ताशकंद से कार्गो उड़ानों को छोड़कर, इन सभी उड़ानों को रोक दिया गया है। हालांकि, इस तरह की विकट स्थिति भी पुनः आकलन करने और जल्दी से व्यापार संबंधों को ठीक करने के अवसर प्रस्तुत करती है।
जैसा कि उपरोक्त उल्लिखित है, वर्तमान में भारत से मध्य एशिया में निर्यात का सबसे पसंदीदा मार्ग ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह के माध्यम से ही है, और वहां से यह तुर्कमेनिस्तान से होकर गुजरता है। तुर्कमेन सीमा पर सौदा करने की अप्रत्याशित प्रकृति का परिणाम रेलवे वैगनों में भरी हुई मालवाहक वस्तुओं में, और ईरान-तुर्कमेनिस्तान सीमा पर सराख (ईरान) - सेराख्स (तुर्कमेनिस्तान) चेक प्वाइंट पर फंसे हुए कंटेनरों में होता है। तुर्कमेनिस्तान द्वारा लगाए गए सड़क मार्ग से माल की आवाजाही पर वर्तमान प्रतिबंधों के कारण, भारत के लिए भेजे जाने वाले कार्गो कंटेनरों ने इसके बजाय उज्बेकिस्तान-अजरबैजान-ईरान-भारत मार्ग का उपयोग करना शुरू कर दिया है, जिससे पारगमन की अवधि और माल ढुलाई शुल्क बढ़ जाती है।
पख्तूनख्वा (पाकिस्तान) में तोरखम सीमा चैकी पर स्थिति अक्सर बदतर होती है। जमीनी स्थिति के आधार पर, वाघा-अटारी सीमा चेक पॉइंट पर जाने वाले ट्रकों के लिए पारगमन मार्ग बाधित हो जाता है। 15 जुलाई से, एक सीमित संख्या में ट्रक (20-25 ट्रक, जिनमें ज्यादातर काले किशमिश, लिकोरिस की जड़ें या मुलेठी, बादाम, कैरम के बीज आदि लदे होते हैं), अफगानिस्तान से अटारी सीमा चैकी पर पहुंचने लगे हैं। हालांकि, यह मार्ग पूरी तरह से पाकिस्तानी अधिकारियों की दया पर निर्भर है, जो थोड़ा भी बहाना मिलने पर इसे बंद कर देते हैं।
इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए, अगर चाबहार बंदरगाह को बढ़ावा दिया जाता है और एक प्रतिष्ठित लॉजिस्टिक कंपनी को इससे जोड़ा जाता है, जो कि बुनियादी बातों का अनुभवी हो और कागजी कार्रवाई से जुड़ी है, तो मध्य एशिया तक पहुंच आसान हो जाएगी। अफगानिस्तान मध्य एशियाई गणराज्यों के लिए माल के परिवहन के लिए और इसके विपरीत, एक पारगमन बिंदु हो सकता है। इस प्रक्रिया में, ट्रांजिट फीस संग्रह में वृद्धि के रूप में अफगान अर्थव्यवस्था को बढ़ावा भी मिल सकेगा। यह अफगान लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान करेगा, क्योंकि ट्रांस-शिपमेंट प्रक्रिया के लिए और कार्गो की संख्या में वृद्धि को संभालने के लिए उनकी मदद की आवश्यकता होगी।
अफगानिस्तान से मध्य एशिया और यहां तक कि पूर्वी यूरोप तक, भारत उज्बेक हाई-स्पीड रेलवे ट्रैक पर निर्भर हो सकता है। उज्बेकिस्तान ने ताशकंद (उजबेकिस्तान) से हैयरातन (अफगानिस्तान) तक उच्च गति वाली मालगाड़ियों की नियमित रूप से निर्धारित आवाजाही के लिए एक उत्कृष्ट, लेकिन बहुत कम इस्तेमाल हुई रेलवे ट्रैक विकसित की गई है। बदले में, ताशकंद से अन्य मध्य एशियाई देशों और इसके बाद रूस और पूर्वी यूरोप के लिए उत्कृष्ट रेल और सड़क संपर्क मौजूद है।
रणनीतिक रूप से, न्हावा शेवा (या किसी अन्य भारतीय बंदरगाह) का उपयोग - चाबहार - हैयरातन - ताशकंद मार्ग भी चीनी क्षेत्र की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ (ओबीओआर) पहल का एक विकल्प होगा। यह चीनी-विकसित ग्वादर बंदरगाह की क्षमता को कम करेगा। भारत के पश्चिमी तट से आसानी से सुलभ, चाबहार एक बड़े भारत समर्थित परिवहन कॉरिडोर - अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) का हिस्सा होगा। भारतीय-निर्मित, जारंज (ईरानी सीमा पर) - डेलाराम (अफगानिस्तान के निमरोज प्रांत में) हाईवे का संपर्क ईरान के नए संपर्क मार्ग जारंज से चाबहार तक है। इसके अलावा, भारत ईरान-अफगान सीमा पर चाबहार से ज़ाहेदान तक एक रेल लिंक में भी शामिल है।
चाबहार बंदरगाह अपेक्षाकृत कमजोर लॉजिस्टिक्स सेवाओं और बुनियादी ढांचे, और बंदरगाह के बारे में उचित जानकारी के प्रसार की कमी के कारण भारतीय व्यापार समुदाय के बीच उतना लोकप्रिय नहीं रहा है। परिणामस्वरूप, बंदरगाह में निवेश करने के पीछे के उद्देश्य कम हो गए हैं। इसलिए, चाबहार को बढ़ावा देने के लिए सरकार इस बंदरगाह का उपयोग करते हुए, परिवहन पर छूट देने पर विचार कर सकती है। यह छूट माल ढुलाई की धारणा के आधार पर हो सकती है, अर्थात भारतीय बंदरगाह से कंटेनर (40 फीट) भेजने पर लगने वाला भाड़ा, उदाहरण के लिए नाहवा शेवा से, चाबहार होते हुए उजबेकिस्तान तक, तब ढुलाई शुल्क बंदर अब्बास मार्ग के रास्ते (वर्तमान में, भारत से उजबेकिस्तान के लिए माल लगभग 5000 अमेरिकी डॉलर है) से अधिक नहीं होना चाहिए। यह कुछ वर्षों के लिए एक अस्थायी उपाय होगा, और चाबहार के माध्यम से यातायात बढ़ने और इसकी दक्षता में सुधार होने पर इसे बंद किया जा सकता है। इसकी काफी संभावना है कि समय के साथ, चाबहार के माध्यम से और मध्य एशियाई देशों से भारतीय निर्यात और आयात का परिवहन काफी सस्ता हो जाए।
(स्रोत: चाबहार: गेटवे टू अफगानिस्तान और मध्य एशिया, ब्रह्म चेलानी, द हिंदुस्तान टाइम्स, 26 अप्रैल, 2018)
समुद्री-सड़क-रेल मार्गों को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के अलावा, विशेष रूप से चाबहार के ईरानी बंदरगाह के माध्यम से, भारत के लिए अन्य व्यापारिक महत्व का विकल्प जिसे एक साथ विकसित करने की आवश्यकता है, वह है हवाई मार्ग। भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच आसान उड़ान संपर्क और एयर कॉरिडोर बनाना, जैसा कि अफगानिस्तान के साथ है, भारत और क्षेत्र के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए एक लंबा रास्ता तय करेगा और मध्य एशिया में भारत की पहुंच को काफी हद तक बढ़ाएगा। भारत-मध्य एशिया व्यापार को गति देने के लिए एयर कॉरिडोर की स्थापना सबसे तेज तरीका हो सकता है। शुरुआती दौर में इसका समर्थन करने के मुद्दे पर भारत और अफगानिस्तान के बीच जिस क्रम में प्रयास किया गया है, उसे वैसा ही विचार किया जाना चाहिए। यूएसएआईडी के साथ भारत, वाणिज्यिक वस्तुओं के परिवहन के लिए यूएसडी 0.50 प्रति किलोग्राम की दर से एक विशेष टैरिफ प्रदान कर रहा है, तथा भारत और अफगानिस्तान के कई शहरों के बीच साप्ताहिक उड़ानों की व्यवस्था है। उदाहरण के लिए, मध्य एशियाई गणराज्यों के संबंध में यूएसडी 1 प्रति किलो के विशेष टैरिफ पर विचार किया जा सकता है।
एयर कॉरिडोर और चाबहार दोनों मोर्चों पर काम करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये प्रकृति में एक दूसरे के पूरक हैं; उच्च मूल्य वाले सामान एयर कॉरिडोर का उपयोग करके पारगमन कर सकेंगे, जबकि थोक वस्तुओं को समुद्र-सड़क/रेल मार्ग के माध्यम से ले जाया जा सकता है। सामरिक रूप से भी यह समझने योग्य है, क्योंकि यह एक माध्यम/रूट पर यह निर्भरता कम करेगा, और इसे संभावित चोक पॉइंट में बदलने से रोकेगा भी। इसी तरह, अफगानिस्तान के लिए चाबहार के माध्यम से व्यापार में बढ़ोतरी फायदेमंद होगी, क्योंकि यह पाकिस्तान के साथ उसकी निर्भरता को कम करेगा, जिसके साथ उसका एक कठिन और अनिश्चित संबंध रहा है। इसलिए, चाबहार के प्रति अपनी रुचि और प्रतिबद्धता को व्यक्त करने वाला अफगानिस्तार, एक अधिक अग्रिम और उपयोगी साबित होगा।
मध्य एशियाई देशों को भी अधिमान्य व्यापार साझेदार का दर्जा दिया जा सकता है। इससे व्यापार की मात्रा पर प्रभाव पड़ेगा, और भारत इस क्षेत्र में कई वस्तुओं में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होगा। उदाहरण के लिए, हाल ही में एक अखबार के लेख में उल्लेख किया गया था कि करीम नगर (तेलंगाना) में खनन गतिविधि चीनी खरीदारों की अनुपस्थिति के कारण प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही थी। करीम नगर ग्रेनाइट खनन के लिए जाना जाता है। चीनी कंपनियाँ खम्मम, मत्तूर (प्रकाशम), ओंगल और अन्य स्थानों से ग्रेनाइट ब्लॉक खरीदती हैं और इन ब्लॉकों की सामग्री को चीन में संसाधित करती हैं और फिर इसे मध्य एशिया, यूरोप और अमेरिका में बेचती हैं। ऐसे सीमित प्राकृतिक संसाधनों के मामले में भारत में मूल्यवर्धन व्यापार बढ़ाने के अलावा स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसरों को भी बढ़ाएगा। ग्रेनाइट के अलावा, अन्य खनिज हैं जो चीन भारत से खरीदता है, इन्हें वह अपने यहां सस्ती प्रक्रियाओं पर संसाधित करता है और फिर मध्य एशिया और रूस में प्रतिस्पर्धी मूल्य पर बेचता है।
इसी बीच, जब तक अधिमान्य/मुक्त व्यापार सौदों पर हस्ताक्षर नहीं कर लिए जाते हैं, तब तक मध्य एशियाई गणराज्य में पारस्परिक रूप से लाभप्रद आधार पर व्यापार विशेषाधिकारों पर विचार किया जा सकता है। इस तरह की व्यवस्था क्षेत्र में चीनी व्यापार के प्रभुत्व को कम करने का कार्य करेगी। इसके अलावा, आयात के दौरान लागू कुछ कोटा व्यवस्था, जैसे कि दाल के मामले में, को भी दूर करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, भारत उजबेकिस्तान से हरी मूंग दाल, कजाकिस्तान से लाल मसूर और रूस से पीली मटर आयात करता है। वर्तमान में, इन वस्तुओं को केवल भारत में बड़े प्रोसेसर द्वारा आयात किया जा सकता है। डीजीएफटी द्वारा जारी आयात लाइसेंस रखने वाली ये संस्थाएं आम तौर पर सीधे आयात प्रक्रिया में निवेश नहीं करती हैं, और एजेंटों के माध्यम से कार्य करती हैं। इस तरह के कोटा को हटाए जाने से छोटे और मझोले व्यापारियों/उद्यमियों, जो कोटा आधारित व्यापार प्रणाली से प्रभावित हैं, को लाभान्वित करने की प्रक्रिया शुरू होने के साथ-साथ उपभोक्ता को भी लाभ होगा।
इस क्षेत्र में बेहतर पहुंच से लंबे समय में सभी भागीदारों के लाभ के लिए व्यापार में विकृतियों में भी कमी आएगी। उदाहरण के लिए, भारत लगभग 500 टन हींग का आयात कर रहा है, जिसमें 450 मीट्रिक टन लगभग अफगानिस्तान से आयात किया जाता है, और 50 मीट्रिक टन ईरान, उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान से आयात किया जाता है। अफगानिस्तान की कुल शुद्ध हींग की फसल 2019 में लगभग 50 से 70 मीट्रिक टन थी, और बाकी 400 मीट्रिक टन अफगानिस्तान ने ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान से आयात किया गया था और फिर अफगानिस्तान से भारत द्वारा इसे आयात किया गया था। अफगानिस्तान से आयात के लिए, अधिमान्य द्विपक्षीय व्यापार समझौते के कारण कस्टम ड्यूटी मुक्त है (अफगानिस्तान द्वारां मूल प्रमाण पत्र जारी करने के बाद शून्य शुल्क का भुगतान किया जाता है)। इसलिए, भारत मध्य एशिया से कच्चे हींग का मुख्य खरीदार है। इसका औसत मूल्य लगभग 100 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम है और कुल आयात लगभग 500 मीट्रिक टन प्रति वर्ष है। इसलिए, इसका कुल मूल्य लगभग पचास मिलियन अमरीकी डालर (50,00,0000) तक आता है।
यदि अधिमान्य व्यापार की स्थिति को मध्य एशियाई गणराज्यों के अनुरूप माना जाता है, तो मध्य एशियाई मूल के सामान सीधे बढ़े हुए मात्रा में भारत में आने लगेंगे, जो न केवल इस क्षेत्र के साथ आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देगा, बल्कि अफगानिस्तान द्वारा अर्जित राजस्व में भी वृद्धि करेगा, जैसा कि यह एक परिवहन केंद्र के रूप में निर्दिष्ट है। इसी तरह, चाय, दवाओं, कपड़ों और इंजीनियरिंग तथा स्पेयर पार्ट्स सामानों के भारतीय निर्यात से निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। यहां एक व्यापार समझौते के होने के साथ, हम नए क्षेत्रों में बाजार हिस्सेदारी के लिए प्रतिस्पर्धा भी शुरू कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, चीन मध्य एशिया और रूस के लिए स्टील का सबसे बड़ा निर्यातक है। हालांकि वर्तमान में भारत के लिए इस काफी बड़े और बढ़ते बाजार में प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल है, खराब लॉजिस्टिक्स और स्टील पर उत्पादन उपकर और अन्य करों को लगाने के कारण, यदि मध्य एशियाई गणराज्यों को स्टील निर्यात के लिए ड्यूटी ड्रॉबैक की अनुमति दी जाती है, तो कम से कम पांच साल में, भारतीय इस्पात उत्पादों को इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बाजार हिस्सेदारी हासिल करने की उम्मीद की जा सकती है। चीन को लौह अयस्क के निर्यात पर किसी प्रकार का प्रतिबंध भी इस दिशा में मदद कर सकता है।
भारत से इस क्षेत्र को निर्यात किए जाने वाले सामानों की एक निदर्शी सूची निम्नानुसार हैः
मध्य एशिया से आयात:
बाजार की मांग के अनुसार क्षेत्र से कई अन्य उत्पादों की खरीद करने की क्षमता मौजूद है। मध्य एशियाई देश कुछ धातु और रासायनिक उत्पादों की सोर्सिंग के लिए एक विकल्प प्रदान कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, अखबारों ने हाल ही में रिपोर्ट किया कि भारतीय एयर कंडीशनर विनिर्माण में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, क्योंकि इसके ज्यादातर पार्ट्स चीन से आयात किए जाते हैं, जिनमें कंप्रेशर्स और कॉपर मेटालिक ट्यूब शामिल हैं, जिसके लिए हम पूरी तरह से चीन पर निर्भर हैं। भारत वैकल्पिक रूप से इन वस्तुओं की खरीद मध्य एशिया से कर सकता है। इसी तरह, भारतीय उत्पादों के निर्यात के लिए उपलब्ध बाजार फिलहाल सूची में नहीं है, इसका पता लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, भारतीय ट्रैक्टर मध्य एशियाई बाजार में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी हासिल कर सकते हैं। आज भारत, अमेरिका और चीन के बाद ट्रैक्टरों का सबसे बड़ा निर्माता है, और इसने साल 2018-19 में अमेरिका और कई अफ्रीकी देशों सहित लगभग 90,000 ट्रैक्टरों का निर्यात किया। (देखें: अशोक गुलाटी और रितिका जुनेजा द्वारा ट्रैक्टर इकोनॉमिक्स, द इंडियन एक्सप्रेस, 31 अगस्त, 2020)।
एक अन्य क्षेत्र जिसमें महत्वपूर्ण सहयोगी क्षमता है, चह भारत में प्रौद्योगिकी के निर्माण और स्थापना के आदान-प्रदान में है। उजबेकिस्तान और किर्गिस्तान में कुछ गुणवत्ता वाली इंजीनियरिंग इकाइयाँ भी हैं जिनके साथ भारतीय उद्योग सहयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, उजबेकिस्तान के चिरचिक में टंगस्टन मिश्र धातु संयंत्र, उच्च गुणवत्ता के सीमेंटेड कार्बाइड उपकरण (काटने के उपकरण, सटीक उपकरण) बनाती है। ऐसी कंपनियों को भारत में संयुक्त उद्यम शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। संयुक्त उद्यम के लिए कच्चा माल शुरू में मदद उजबेकिस्तान से प्राप्त की जा सकती है; और बाद में संयुक्त उद्यम के उत्पादों को रीसाइक्लिंग करके उत्पादित किया जा सकता है। इस तरह के संयुक्त उद्यम भी ऐसे उत्पादों के लिए चीन पर निर्भरता कम करेंगे।
जैसा कि ‘‘चैम्प’’ (द यूएसएआईडी कमर्शियल हौर्टिकल्चर एंड एग्रिकल्चर मार्केटिंग प्रोग्राम) भारत-अफगानिस्तान कारोबार को बढ़ावा दे रहा है, इसी प्रकार एक निकाय/संगठन, जो कि विदेश मंत्रालय के समन्वय में हो, मध्य एशियाई देशों के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। (यूएसएआईडी और भारत द्वारा समर्थित ‘‘चैम्प’’ द्वारा बिजनेस-टू-बिजनेस मीटिंग की सुविधा है। यह बिजनेस-टू-बिजनेस बैठकों की प्रगति की निगरानी भी करता है, और कंपनियों के बीच बकाया मुद्दों को हल करने की कोशिश करता है।)
व्यापारिक गतिविधि के अलावा, एक क्षेत्र जिसमें भारत-मध्य एशिया संबंधों को आगे बढ़ाने की महत्वपूर्ण क्षमता है, वह पहले से ही चिकित्सा पर्यटन का विस्तारित क्षेत्र है। यह फिर से अफगानिस्तान के साथ भारत के संबंधों के जुड़ाव का द्योतक है। विशेष चिकित्सा सेवाओं के लिए मध्य एशियाई क्षेत्र में एक बड़ी मांग मौजूद है जो दिल्ली और मुंबई जैसे शहर पेश कर सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए नियमित उड़ानों और वीजा सुविधा में मदद मिलेगी। मेडिकल डोमेन में, ध्यान केंद्रित करने के लिए एक और खंड प्रशिक्षण में सहयोग किया जाएगा। भारतीय चिकित्सा टीमों को एक रोटेशन आधार पर क्षेत्र में भेजा जा सकता है। इससे भारत कोे इस क्षेत्र में चिकित्सा प्रत्यारोपण और सहायक उपकरण के निर्यात से भी लाभ होगा। आधुनिक चिकित्सा सेवाओं के लिए इस क्षेत्र में गहरी मांग है, जो किफ़ायती हैं।
हाल के समय में, भारत ने निजी उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) की संख्या में भी तेजी से वृद्धि देखी है। यह एक अन्य क्षेत्र है, जो मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ सहयोग की क्षमता रखता है। वह दो भारतीय एचईआई - एमिटी यूनिवर्सिटी और शारदा यूनिवर्सिटी - पहले से ही ताशकंद में मौजूद हैं, यह एक आदर्श मामला है।
एक अन्य सहयोगी गतिविधि जिसे नए सिरे से ऊर्जा के साथ खोजा जा सकता है, वह है फिल्म की शूटिंग। मध्य एशिया असीम प्राकृतिक सुंदरता से संपन्न है और गतिशील भारतीय फिल्म उद्योग के लिए उचित कीमत पर दिलचस्प स्थान भी प्रदान कर सकता है। भारतीय फिल्मों की शूटिंग को सुविधाजनक बनाने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय फिल्म बोर्डों, जैसे कि उजबेकिस्तान फिल्म आयोग के साथ टाई-अप करना बहुत ही फायदेमंद होगा।
नए सिरे से इस दृष्टिकोण में पहुंच के दौरान, यह ध्यान में रखना होगा कि पांच मध्य एशियाई गणराज्य सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रूप से भिन्न होंगे, और इस क्षेत्र के लिए एक व्यापक नीतिगत ढांचे के भीतर, उनमें से प्रत्येक के साथ भारत के संबंधों को अलग हिसाब से पोषित करना होगा। इसके अलावा, आउटरीच/पहल के बारे में रूस के साथ एक बेहतर समझ इसमें काफी उपयोगी होगी। भौगोलिक रूप से, मध्य एशियाई देशों के बीच, उज्बेकिस्तान काफी महत्व का है। राष्ट्रपति शौवकत मिर्जियोएव के साथ, देश ने इस क्षेत्र में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विशिष्ट रूप से अधिक खुली और सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी है। उज्बेकिस्तान और अन्य मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ आर्थिक संबंध बनाने से अफगानिस्तान के साथ हमारे संबंधों पर रणनीतिक असर पड़ेगा।
भावी प्रयासः
डॉ. सुनील कुमार, पंकज त्रिपाठी
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नोटः भारतीय व्यवसायी सुनील कुमार, निदेशक, फ्लेम कॉर्पोरेशन के साथ चर्चा की एक श्रृंखला के आधार पर।
अन्य संदर्भः
चाबहार: गेटवे टू अफगानिस्तान और मध्य एशिया, ब्रह्म चेलानी, द हिंदुस्तान टाइम्स, 26 अप्रैल, 2018
अशोक गुलाटी और रितिका जुनेजा द्वारा ट्रैक्टर इकोनॉमिक्स, द इंडियन एक्सप्रेस, 31 अगस्त, 2020
लेखक:
डॉ. सुनील कुमार, निदेशक, फ्लेम कॉर्पोरेशन
पंकज त्रिपाठी, पूर्व-सिविल सेवक, प्रधान सलाहकार, सरोजिनी दामोदरन फाउंडेशन