विश्व मामलों की भारतीय परिषद निम्नलिखित शर्तों पर अधिकतम 2 लाख रुपए की वित्तीय सहायता पर विचार करेगाः
- विश्व मामलों की भारतीय परिषद को साझीदार समझा जाएगा तथा स्थल पर कॉन्फ्रें स सामग्रियों, बैनरों आदि के प्रकाशन में संगठनकर्ता द्वारा परिषद को इसका श्रेय देना होगा।
- एक साल के अंदर सेमिनार / कॉन्फ्रेंस की कार्यवाहियों का प्रकाशन संपादित अंक के रूप में किया जाएगा। संपादित अंक में विश्व मामलों की भारतीय परिषद का ‘लोगो’ (प्रतीक चिन्ह) प्रायोजक संस्थान के रूप में लगाना होगा तथा इसी तरह का उल्लेख अंक की विषयवस्तु में भी करना अनिवार्य होगा। इसकी 10 प्रतियां विश्व मामलों की भारतीय परिषद को निःशुल्क उपलब्ध करानी होगी। विश्व मामलों की भारतीय परिषद प्रकाशक द्वारा दी जाने वाली छूट की दर पर अतिरिक्त प्रतियों को खरीद सकेगी।
- एक पूर्ण ऑडियो रिकार्डिंग तथा पेपर / कॉन्फ्रेंस के कार्यवाहियों की सॉफ्ट कॉपी भी विश्व् मामलों की भारतीय परिषद को उपलब्ध करानी होगी।
- महानिदेशक/उप महानिदेशक/संयुक्त सचिव/निदेशक (आर) और/या कम से एक अनुसंधान फेलो द्वारा विश्वि मामलों की भारतीय परिषद का प्रतिनिधित्व किया जाएगा, जो कि इस कॉन्फ्रेंस में मौलिक शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे। विश्व् मामलों की भारतीय परिषद के प्रतिनिधियों द्वारा की गई यात्रा की लागत विश्व मामलों की भारतीय परिषद द्वारा वहन की जाएगी परंतु ठहरने, खाने-पीने और स्थानीय परिवहन संबंधी व्यवस्था मेजबान संस्था द्वारा अनिवार्य रूप से की जाएगी।
कॉन्फ्रेंस अनुदान के लिए नियम
- आवेदक संस्थान / विश्वविद्यालय को संलग्नं प्रारूप में विश्व मामलों की भारतीय परिषद में आवेदन करना होगा, जिसमें इस तरह के कॉन्फ्रेंस की आवश्यकता का उल्लेख करना होगा तथा ऐसे कॉन्फ्रेंस किस तरह भारत की विदेश नीति में अत्यधिक समझ विकसित करेंगे अथवा भारत के लिए किसी समकालीन राजनीतिज्ञ-सामरिक विकास के महत्व में योगदान देंगे, का भी उल्लेख करना होगा।
- सेमिनार / कॉन्फ्रेंस / कार्यशाला का प्रस्तााव रुचिगत निम्नललिखित क्षेत्रों में से एक होना चाहिए।
भारत की विदेश नीति।
- एशिया क्षेत्र की बदलती राजनीतिज्ञ-सामरिक गतिशीलता तथा भारत पर इसका प्रभाव।
- भारत का अपने पड़ोसियों तथा वृहद पड़ोस के साथ संबंध।
- अध्यायन क्षेत्रः दक्षिण एशिया, एशिया प्रशांत, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, यूरोपीय संघ, रूस, चीन, अफ्रीका, बहुपक्षीय संस्था न, परमाणु मुद्दे आदि।
- कॉन्फ्रें स अनुदान आवेदन में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सहभागियों की संख्यास का स्प्ष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए। उपर्युक्त कॉन्फ्रेंंस के लिए चाहे कार्यकारी सत्र की विषयवस्तु् हो अथवा अतिरिक्त अनुदान हेतु अन्य एजेंसियाँ उनका भी उल्लेख होना चाहिए ।
- आवेदक द्वारा भागीदारों, संकल्पकना पत्र तथा विभिन्न शीर्षों के अंतर्गत अंतिम बजट की पूर्ण सूची उपलब्ध कराने के बाद ही अनुदान जारी किया जाएगा।
- अनुदान ग्राही को अंतिम रूप से तैयार हुयी पाण्डुलिपि प्रस्तुत करना होगा जिसमें कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत किए जाने वाले सभी शोधपत्र शामिल होंगे। कॉन्फ्रेंस की कार्यवाहियां विश्व मामलों की भारतीय परिषद द्वारा एवम अन्य अनुदान देने वाली एजेंसियों अथवा संस्थानों के साथ साझी की जाएगी। प्रस्तुत पाण्डुलिपि को अंतिम रूप से प्रकाशन से पूर्व समीक्षा की प्रक्रिया से गुजरना होगा।
- कॉन्फ्रेंस / वर्कशॉप / सेमिनार की समाप्ति के बाद कार्यक्रम के उद्देश्यों, कार्यक्रम के दौरान उठाए गए प्रमुख मुद्दों तथा कार्यवाही योग्य सुझावों को स्पष्ट करते हुए कॉन्फ्रेंस का सारांश भी प्रस्तुत करना होगा।
- इस संबंध में अनुसंधान समिति का निर्णय अंतिम एवं बाध्य होगा।
विश्व मामलों की भारतीय परिषद को प्राप्त प्रस्तावों के अनुमोदन अथवा अस्वीरकण के लिए परिषद् छटनी की प्रक्रिया अपनाएगी । प्राप्त प्रस्तावों पर विचार के लिए विश्व मामलों की भारतीय परिषद को कम से कम 6 माह के समय सीमा की आवश्यकता होगी।
इस प्रस्ताव हेतु संकाय अध्य्क्ष अथवा केन्द्र/ थिंक टैंक विचार मंच के विभागाध्यक्ष द्वारा अग्रेषित पत्र अवश्य शामिल होना चाहिए। प्रस्ताव निर्धारित प्रारूप में मुहरबंद लिफाफे में (ईमेल द्वारा नहीं) जिसके बाएं हाथ की तरफ शीर्ष पर कोने में ''कॉन्फ्रेंस अनुदान प्रस्तााव’’ लिखा हो, उपमहानिदेशक, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, सप्रू हाउस, बाराखंबा रोड, नई दिल्ली’-110001 को प्रस्तुत किया जाए।