डॉ. ग्लैडेन पप्पिन, अध्यक्ष, हंगेरियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स, का ट्रंप 2.0 के शासन में अमेरिका: यूरोप और विश्व के लिए निहितार्थ पर व्याख्यान मे आईसीडब्ल्यूए की अपर सचिव श्रीमती नूतन कपूर महावर का स्वागत भाषण, 19 मार्च 2025
हंगरी के हमारे मित्रों और विद्वानों!
1. भारत और हंगरी के बीच सदियों पुराना संबंध हैं। ये संबंध ऐतिहासिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं कूटनीति के क्षेत्र में भी है। पिछले कुछ वर्षों में यह संबंध और बेहतर हुआ है और व्यापार, प्रौद्योगिकी, शिक्षा एवं सांस्कृतिक आदान– प्रदान जैसे क्षेत्रों में विस्तारित हुआ है। यह द्विपक्षीय व्यापार की बढ़ती प्रकृति में स्पष्ट है, जो कोविड के बावजूद 2022 में एक अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया। न केवल व्यापार और निवेश जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में बल्कि नवीकरणीय और हरित ऊर्जा जैसे नए और उभरते क्षेत्रों में भी संबंध विकसित करने की बहुत संभावना है। इसमें न केवल व्यापार और निवेश जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में संबंध विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं बल्कि नवीकरणीय और हरित ऊर्जा जैसे नए एवं उभरते क्षेत्रों में भी संबंध विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं।
2. इस प्रकार, आर्थिक सहयोग भारत– हंगरी संबंधों का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। दोनों देशों के बीच फार्मास्यूटिकल्स, सूचना प्रौद्योगिकी, ऑटोमोटिव घटकों एवं नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में व्यापार में लगातार वृद्धि देखी गई है। इसके अलावा, भारतीय कंपनियां हंगरी में निवेश भी कर रही हैं। इसी प्रकार, हंगरी की कंपनियों ने बुनियादी ढांचे, इंजीनियरिंग और ऑटोमोटिव क्षेत्रों में भी निवेश किया है।
3. साल 1956 के हंगरी विद्रोह में निभाई गई भूमिका के कारण भारत को हंगरी में पर्याप्त सद्भावना प्राप्त है, क्योंकि सोवियत संघ के साथ भारत का हस्तक्षेप डॉ. अर्पद गोन्ज़ के जीवन को बचाने के लिए महत्वपूर्ण था जो आगे चल कर 1990 में हंगरी के प्रधानमंत्री बने। इसी तरह, यूक्रेन में युद्ध से भारतीय छात्रों को निकालने में हंगरी की भूमिका भारत में बहुत सराहनीय है।
4. भारत अपने पर्यटकों को अपनी प्राचीन संस्कृति एवं आध्यात्मिक परंपराओं के कारण आम हंगरीवासियों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य बना हुआ है। हालाँकि, इस बार फरवरी 2025 में, यह कोई और नहीं बल्कि हंगरी के प्रधानमंत्री और उनका परिवार था जिन्होंने भारत के अपने निजी दौरे के तहत केरल में दो सप्ताह बिताए जो दोनों देशों के बीच संबंधों की विकसित होती प्रकृति को दर्शाता है।
5. लोगों के बीच आपसी संपर्क भारत– हंगरी संबंधों का एक अनिवार्य पहलू बन गया है जो आपसी समझ और सांस्कृतिक प्रशंसा पर आधारित है। हंगरी भारतीय छात्रों के लिए एक प्रमुख गंतव्य के रूप में उभरा है, विशेष रूप से चिकित्सा, इंजीनियरिंग और मानविकी के क्षेत्र में।
6. आईसीडब्ल्यूए (ICWA) में हम हंगेरियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के अपने सहयोगियों की मेज़बानी करके बहुत प्रसन्न हैं और डॉ. ग्लैडेन पप्पिन के विचारों को सुनने के लिए उत्सुक हैं, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए समय से पहले हो सकता है। हंगरी नियमित रूप से हमारे विद्वानों द्वारा आईसीडब्ल्यूए (ICWA) में किए जाने वाले अकादमिक कार्यों में शामिल रहा है। हमने पूर्वी यूरोप में सोवियत संघ के बाद के विचार पर एक पुस्तक परियोजना आरंभ की है जो हाल ही में प्रकाशित हुई है। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि इस अध्ययन में हंगरी का भी बड़ा हिस्सा शामिल है।
7. दोस्तों, हम यहाँ अंतरराष्ट्रीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण क्षण पर एकत्र हुए हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ओवल ऑफिस में चुने जाने के साथ ही, अमेरिका– यूरोप संबंध गिरावट की राह पर हैं। अमेरिका– यूरोप संबंध– ट्रांसअटलांटिक गठबंधन के भाग्य से लेकर पुनरुत्थानशील रूस और यूक्रेन में संकट, जलवायु से लेकर व्यापार और तकनीक से लेकर चीन तक– बहुत तनाव से गुज़रने वाले हैं। इन मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच बढ़ती कलह आसन्न लगती है क्योंकि यूरोपीय नेता तीव्र भू– राजनीतिक मंथन के बीच विश्व में यूरोप की भूमिका को फिर से परिभाषित करने की तैयारी कर रहे हैं।
8. हालांकि यूरोपीय नेताओं ने ट्रम्प प्रशासन के साथ जुड़ने और नए अनुबधों पर बातचीत करने की इच्छा व्यक्त की है लेकिन हाल ही में संपन्न म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन और राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा रूस के साथ बातचीत में यूक्रेन के यूरोपीय सहयोगियों को शामिल न करने के निर्णय ने इसे मुश्किल बना दिया है। राष्ट्रपति ट्रम्प की राजनीति की अनोखी प्रकृति इन तीन क्षेत्रों में यूरोपीय संघ– अमेरिका संबंधों को व्यापक रूप से प्रभावित करने जा रही हैं जिन्हें अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर टी (T), तीन टी के रूप में वर्णित किया जा सकता है- व्यापार (Trade), युद्धविराम (Truce) और ट्रांसअटलांटिक गठबंधन (Transatlantic Alliance)।
9. राष्ट्रपति ट्रंप का अमेरिका फर्स्ट नज़रिया संयुक्त राज्य अमेरिका की घरेलू और विदेश नीतियों दोनों में बहुत उथल– पुथल मचा रहा है। उनकी राजनीति की अपरंपरागत प्रकति केवल यूरोप तक ही सीमित नहीं है। जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अमेरिका के एशियाई सहयोगी भी राष्ट्रपति ट्रंप के विघटनकारी नज़रिए को महसूस कर चुके हैं, उदाहरण के लिए, सेमी–कंडक्टर उद्योगों एवं रक्षा मुद्दों पर। राष्ट्रपति ट्रंप ने इन देशों को अमेरिका का फ़ायदा उठाने वाला बताया है।
10. हालाँकि, राष्ट्रपति ट्रम्प की राजनीति यूरोपीय और एशियाई देशों को अपने आर्थिक संबंधों में विविधता लाने का अवसर भी देती है और मुझे यह जानकर खुशी हुई कि भारत इन देशों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य के रूप में उभरा है। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन और अन्य यूरोपीय आयुक्तों की हाल की भारत यात्रा सही समय पर हुई क्योंकि विश्व देख रहा है कि भारत अपनी तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्था के कारण विश्व के लिए क्या अवसर पैदा कर रहा है।
11. संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में, दोनों पक्षों का समर्थन है कि संबंध निरंतर बढ़ते रहें। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कई बार कहा है कि दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध हैं, जो राष्ट्रपति ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान भी स्पष्ट था। इस प्रकार, भारत ट्रंप के दूसरे प्रशासन का एक प्रमुख भागीदार बना रहेगा और रक्षा, सुरक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंध लगातार मजबूत होते रहेंगे।
12. ट्रंप प्रशासन के तहत हिंद– प्रशांत एक बार फिर प्रमुखता हासिल करने के लिए तैयार है। अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड द्वारा भारत, जापान और थाईलैंड का हिंद– प्रशांत दौरा जो प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका की सफल यात्रा से पहले हुआ था, हिंद– प्रशांत में अमेरिका की फिर से जागृत रुचि को दर्शाता है। दोनों देशों में हिंद– प्रशांत को स्वतंत्र, खुला और आक्रामकता से मुक्त रखने की दिशा में सहयोग करने की बहुत संभावना है।
13. मुझे डॉ. ग्लैडेन पप्पिन की एक बार फिर से मेज़बानी करते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है। बीते वर्ष भी ये यहाँ आए थे और उन्होंने आईसीडब्ल्यूए (ICWA) के महानिदेशक के साथ आपसी हितों के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर बहुत ही उपयोगी चर्चा की थी। डॉ. पप्पिन हंगेरियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के अध्यक्ष हैं जो आईसीडब्ल्यूए का एक समझौता ज्ञापन साझेदार (MoU partner) है और उनकी इस यात्रा से दोनों संस्थानों के बीच के संबंध प्रगाढ़ होंगे।
14. अब मैं डॉ. ग्लैडेन पप्पिन को ‘ट्रंप 2.0 के शासन में अमेरिका: यूरोप और विश्व के लिए निहितार्थ' विषय पर अपना व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित करता हूँ।
धन्यवाद
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