“मैं चाहता हूं कि आप एशिया के संदेश को समझें।
इसे पश्चिमी चश्मे से या परमाणु बम की नकल कर नहीं सीखा जा सकता है।
यदि आप सच्चाई का संदेश देना चाहते हैं।
मैं आपसे केवल अपील नहीं करना चाहता हूं।
मैं आपका दिल जीतना चाहता हूं।”
महात्मा गांधी
2 अप्रैल 1947 को आईसीडब्ल्यूए द्वारा आयोजित एशियन रिलेशन कांफ्रेंस में महात्मा गांधी का भाषण।
“…एशिया पुन: स्वयं की खोज कर रहा है। …
एशिया पर यूरोपीय प्रभुत्व के उल्लेखनीय परिणामों में से एक एशिया के देशों का एक-दूसरे के साथ अलगाव रहा है.......।
आज यह अलगाव कई कारणों यथा राजनीतिक और अन्य कारणों से टूट रहा है.......।
यह सम्मेलन एशिया के मन मस्तिष्क और आत्मा के गहरे आग्रह की अभिव्यक्ति के रूप में महत्वपूर्ण है जो लगातार जारी रहा है....।
इस सम्मेलन में और इस कार्य में कोई नेता नहीं है और न ही कोई अनुयायी है। एशिया के सभी देशों को एक साझा कार्य के लिए एक साथ होना है।‘’
पंडित जवाहरलाल नेहरू
“हमने नियति के पहिए को पुन: गति प्रदान कर दी है और समय की सूई इस पहिए के घुमाव को नहीं रोकेगी।
आने वाले वर्षों में.......
आज जो हमने कार्य किया है, वह बना रहेगा और जीवित रहेगा तथा उन सभी के लिए आकाश में चमकते सितारे के समान होगा जो स्वतंत्रता, साहचर्य, समानता चाहते हैं....’’
श्रीमती सरोजिनी नायडू