लुइज़ इनासियो "लूला" द सिल्वा को ब्राजील के अगले राष्ट्रपति के रूप में चुना गया है। उनकी जीत राजनीतिक लहर में सबसे नई है जिसके कारण लातिन अमेरिका– अर्जेंटीना, कोलंबिया, चिली, होंडुरास और पेरू, में, वामपंथी विचारधारा वाले राजनेताओं ने जीत हासिल की है। ‘सेंटर लेफ्ट पार्टियों’ में लगातार हो रहे परिवर्तन के साथ, महाद्वीप में ‘गुलाबी लहर’ के फिर से आने की चर्चा है। लातिन अमेरिका के राजनीतिक परिदृश्य में एक बार फिर से ‘वामपंथी’ लोगों का अधिक लोकप्रियता हासिल करना, यह शोधपत्र वर्तमान पुनरुत्थान के कारणों और क्या यह 1990 के दशक में इस क्षेत्र को प्रभावित करने वाले से अलग है, की पड़ताल करता है।
पहली लहर
दशकों की सैन्य तानाशाही के बाद, सत्तावादी शासनों की जगह लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों ने ले ली। 1990 के दशक में, पूरे क्षेत्र में वामपंथी सरकारों की लहर दौड़ गई। जब ह्यूगो शावेज़ ने 1999 में वेनेजुएला में ऐतिहासिक चुनाव जीता, तो उनकी जीत के बाद एक के बाद एक कई देशों में वामपंथियों की चुनावों में जीत हुई। क्षेत्र के राजनीतिक परिदृश्य में इस चरण को “गुलाबी लहर/ पिंक टाइड”, या मारिया रोज़ा कहा जाता है। इस अवधि को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में लातिन अमेरिका के उदय और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ तनावपूर्ण संबंधों द्वारा चिन्हित किया गया है। घरेलू स्तर पर, रिकॉर्ड संख्या में लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठने में सक्षम हुए और सामाजिक खर्च में वृद्धि हुई। हालांकि, 2015 तक, भ्रष्टाचार के आरोपों, तेल की कीमतों में गिरावट के कारण मुद्रा मूल्य की हानि और आधारभूत वस्तुओं की कुल कमी जैसे विभिन्न कारणों से, ‘वाम के विकल्प’ को ठुकरा दिया गया और कई ‘सेंटर’ या ‘राइट ऑफ द सेंटर’ पार्टियों ने क्षेत्र के देशों में सरकारें बनाईं।
दूसरी लहर- ‘नया वाम/ न्यू लेफ्ट’
दूसरे लहर की शुरुआत 2018 में मैनुअल लोपेज़ ओब्रेडोर के मैक्सिको के राष्ट्रपति बनने के साथ शुरू हुई। इसके बाद जल्द ही अर्जेंटीना, होंडुरास, पेरू, कोलंबिया और चिली ने जल्द ही मैक्सिको के उदाहरण का अनुसरण किया। बहरहाल, सवाह यह उठता है कि मतदाताओं के बीच बदलाव क्यों है? सबसे पहले, अतीत से पता चलता है कि लातिन अमेरिकी मतदाताओं ने राजनीतिक वाम और दक्षिण पंथ के बीच सत्ता बदली है। इसलिए, मौजूदा परिवर्तन इतना आश्चर्यजनक नहीं है। दूसरा कारक, मौजूदा सरकारों का प्रदर्शन रहा है। लोगों में, विशेष रूप से शारीरिक परिश्रम करने वाले कामगार और युवाओं में, बेहद असंतोष है जिसे क्षेत्र के देशों में सड़क पर विरोध प्रदर्शन के माध्यम से व्यक्त किया गया है। वर्ष 2019 में चिली में सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हुए थे, ऐसे ही हिंसक प्रदर्शन कोलंबिया और इक्वाडोर में भी हुए थे। इन देशों में विकासशील अर्थव्यवस्था है, मध्यम वर्ग तेजी से विकास कर रहा है और गरीबी कम हुई है; बहरहाल, संपन्नता में असमानता रही है और आबादी के एक बड़े हिस्से को इससे दूर कर दिया गया है। असमानता और बेरोज़गारी के बीच खाई बनी हुई है, शिक्षा का खर्च बढ़ गया है और क्षेत्र में भ्रष्टाचार एवं हिंसा क्षेत्र में परेशानी का कारण बने हुए हैं। आखिर में, महामारी इस क्षेत्र के लिए विनाशकारी साबित हुई। लोगों की मृत्यु के अलावा, इसने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में कुप्रबंधन और सामाजिक असमानता को भी उजागर किया है। काफी हद तक पर्यटन और अनौपचारिक क्षेत्र पर निर्भर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को महामारी ने बहुत कमज़ोर बना दिया है, घरेलू आय और क्रय शक्ति को भी कम किया है। वार्षिक ईसीएलएसी[i] रिपोर्ट 2021[ii] के अनुसार, पिछले दो दशकों में इस क्षेत्र द्वारा की गई प्रगति को बर्बाद करते हुए महामारी ने गरीबी को बहुत अधिक बढ़ाते हुए स्वास्थ्य और सामाजिक संकट को बढ़ा दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, 2020 और 2021 के बीच अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या में लगभग पांच मिलियन (पचास लाख) की वृद्धि हुई है। सरकार के कुप्रबंधन ने जनता के असंतोष से अवगत वामपंथी दलों ने इन समस्याओं का समाधान खोजने का वादा किया है। उन्होंने अपने पिछले रिकॉर्ड के बारे में बात की है, जिसमें आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा से ऊपर उठ रहा है और सामाजिक कल्याण एवं विकास का अनुभव करने वाले देशों की अर्थव्यवस्थाओं तक पहुंच प्राप्त कर रहा है। इसलिए, यह कहना सुरक्षित होगा कि सरकार में वर्तमान परिवर्तन वैचारिक प्रकृति से अधिक व्यावहारिक है।
फिर भी, नवगठित सरकारें अपनी पिछली उपलब्धियों का ही राग नहीं अलापते रह सकतीं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियां पहली लहर के मुकाबले अलग हैं। महामारी और यूक्रेन का चल रहा संकट ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी ला दी है और मुद्रास्फीति ने अन्य चीज़ों के अलावा ईंधन और भोजन की लागत में वृद्धि की है, जिससे परिवार का बजट बिगड़ गया है। नई सरकारों के पास अपनी सामाजिक कल्याण योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त मात्रा में वस्तुएं नहीं होंगी। महामारी के कारण आई आर्थिक मंदी के अलावा, कुछ सरकारें बढ़ते प्रवासन के दबावों, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते आर्थिक और सामाजिक परिणामों एवं नशीली दवाओं से संबंधित बढ़ती हिंसा का भी सामना कर रही हैं।
अपने– अपने विधायी निकायों के भीतर, नई सरकारों को कड़े विरोध का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, ब्राज़ील में, राष्ट्रपति बोल्सोनारो की पार्टी समेत रूढ़िवादी उम्मीदवारों ने कांग्रेस में अपना प्रतिनिधित्व बढ़ाया है। इस क्षेत्र के अधिकांश देश भी उच्च स्तर के राजनीतिक ध्रुवीकरण एवं टकराव से त्रस्त हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि नई सरकारों को आबादी के बीच बढ़ती खाई को पाटना होगा, विशेष रूप से ऐसे समय में जब भ्रष्टाचार के आरोपों और नशीली दवाओं के व्यापार से जुड़े होने के कारण राजनेताओं पर विश्वास कम रहता है। इस प्रकार, नए अध्यक्षों को यह सुनिश्चित करने के लिए विपक्षी दलों के साथ काम करना होगा कि शासन को नुकसान न हो।
यह मान लेना भी गलत होगा कि जनता ने नवनिर्वाचित सरकारों के प्रति अपना असंतोष व्यक्त नहीं किया है। चिली के राष्ट्रपति बोरिक और पेरू के राष्ट्रपति कैस्टिलो को धन के पुनर्वितरण और बेहतर सामाजिक सुरक्षा के अपने चुनावी वादों को पूरा न कर पाने के कारण लोगों के दबाव का सामना करना पड़ रहा है। अतीत के विपरीत, सोशल मीडिया तक व्यापक पहुंच असंतोष को विरोध आंदोलनों में तेजी से लामबंद करने और सड़कों पर व्यक्त करने की अनुमति देती है।
एक और उल्लेखनीय अंतर संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों में रहा है। क्षेत्र के देश संयुक्त राज्य अमेरिका और इसकी मुक्त बाज़ार नीतियों से दूर जाने की मांग नहीं कर रहे हैं। इसके बदले, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी इस क्षेत्र में परिवर्तनों को स्वीकार कर लिया है और वह यहां नई सरकारों के साथ काम करना चाहता है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में प्रवाह को देखते हुए, इस क्षेत्र के देशों को चीन और रूस समेत अन्य शक्तियों के साथ अफने संबंधों पर फिर से विचार करना होगा। और जबकि वामपंथी दल इस क्षेत्र की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सत्ता में आए हैं, उनका इस क्षेत्र के प्रति दृष्टिकोण अलग है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति बोरिक वेनेजुएला, निकारागुआ और क्यूबा में हो रहे अत्याचारों के आलोचक रहे हैं। जबकि मैक्सिको के राष्ट्रपति ओब्रेडोर तेल के उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान दे रहे हैं, कोलंबिया के राष्ट्रपति पेड्रो– अक्षय ऊर्जा के विकल्पों पर खर्च कर रहे हैं। गर्भपात और एलजीबीटीक्यू अधिकारों, सामाजिक कार्यक्रमों पर खर्च को बढ़ाने के तरीके और भविष्य के लिए आर्थिक नीतियों पर उनका दृष्टिकोण अलग– अलग है।
निष्कर्ष
लातिन अमेरिकी राजनीति में वर्तमान परिवर्तन को केवल एक वैचारिक बदलाव के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। लोगों ने सत्ता में बैठी ऐसी सरकारों को वोट न देने का फैसला किया जो उनके अनुसार अपना एजेंडा पूरा करने में विफल रहीं और इसके बदले उन्होंने उन वैकल्पिक पार्टियों को वोट दिया जो उनके अनुसार सकारात्मक परिवर्तन लाने में सक्षम होंगे। ‘नए वाम/ न्यू लेफ्ट’ ने अतीत की तुलना में एक अलग संदर्भ में विभिन्न चुनौतियों के साथ सत्ता संभाली है। उन्हें संबंधित देशों के लिए सबसे उपयुक्त अभिनव समाधान के साथ काम करना होगा। और यदि 'नया वाम/ न्यू लेफ्ट' अपना वादा पूरा करने में नाकाम रहा, तो अगला चुनाव बदलाव का आरंभ करेगा।
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*डॉ. स्तुति बनर्जी, सीनियर रिसर्च फेलो, भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद टिप्पणियां
[i] Economic Commission for Latin America and the Caribbean
[ii] Report is available at https://www.cepal.org/en/pressreleases/extreme-poverty-region-rises-86-million-2021-due-deepening-social-and-health-crisis, Accessed on 07 November 2022