शिंजो आबे (1954-2022) सबसे लंबे समय तक जापान के प्रधानमंत्री रहें। अपने कार्यकाल (2006-07 और 2012-2020) के दौरान, उन्होंने जापान को अधिक आत्मविश्वासी, प्रभावशाली तथा "सामान्य" राष्ट्र बनाने का प्रयास किया। उन्हें "इंडो-पैसिफिक" के सृजन का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने इस अवधारणा को न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा तथा रणनीति के मुख्य धारा के विचाक-विमर्श में लाया बल्कि इंडो-पैसिफिक के विचार की भौगोलिक रूपरेखा को भी परिभाषित किया। विशेषतः, उन्होंने भारत के पश्चिमी तट से आगे बढ़ते हुए इंडो-पैसिफिक के दायरे का विस्तार किया और इस क्षेत्र के भू-रणनीतिक विस्तार में पूर्वी तथा दक्षिणी अफ्रीका को शामिल किया।
27 अगस्त, 2016 को, केन्या के नैरोबी में 'टोक्यो इंटरनेशनल कांफ्रेश ऑन अफ्रीकन डेवलपमेंट' (टीआईसीएडी) को संबोधित करते हुए, उन्होंने इंडो-पैसिफिक के अपने विचार में निहित सिद्धांतों पर बात की।[i] दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने यह विचार रखा कि जापान इन "दो-समुद्री संगम" को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी उठाएगा। इससे पहले, उन्होंने 2007 में भारतीय संसद में भाषण देते समय इस शब्द का ज़िक्र किया था और उनके उस भाषण को इंडो-पैसिफिक की उत्पत्ति का मूल बिंदु माना जाता है।
टीआईसीएडी 1993 से अफ्रीका के साथ जुड़ने हेतु जापानी विदेश नीति का प्राथमिक साधन रहा है। नैरोबी (2016) में आयोजित छठवां टीआईसीएडी शिखर सम्मेलन अफ्रीका में आयोजित होने वाला पहला शिखर सम्मेलन था। इस शिखर सम्मेलन में अपने संबोधन में, आबे ने कहा था कि "जब आप एशिया और हिंद महासागर के समुद्रों को पार करते हुए नैरोबी पहुंचते हैं, तब आप समझ पाते हैं कि एशिया और अफ्रीकी समुद्र को क्या जोड़ता है।" उन्होंने आगे कहा कि "स्वतंत्र तथा खुले महासागरों और दो महाद्वीपों के मिलन से उत्पन्न हुए आजीविका के विशाल अवसर ही दुनिया में स्थिरता तथा समृद्धि लाएंगे"। यहाँ, "मुक्त तथा खुले महासागरों और दो महाद्वीपों" का उपयोग उल्लेखनीय है क्योंकि जापान "स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक" के विचार को समर्थन देता है।
यह साफ था कि जापान "प्रशांत तथा हिंद महासागरों और एशिया एवं अफ्रीका के संगम को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार है" और यह इसे "एक ऐसा स्थान बना देगा जो स्वतंत्र हो, जहां कानून का शासन हो तथा जहां बाजार अर्थव्यवस्था बल या जबरदस्ती से मुक्त हो।" आबे ने तर्क दिया कि जापान अफ्रीका के साथ मिलकर काम करना चाहता है ताकि "दोनों महाद्वीपों को शांतिपूर्ण समुद्रों के ज़रिए जोड़ने वाले समुद्रों को कानून द्वारा शासित किया जा सके।" कानून के शासन, बाजार अर्थव्यवस्था और स्वतंत्रता पर उनका बल चीन की घरेलू और विदेश नीति के दृष्टिकोण के बिल्कुल विपरीत है और दोनों प्रमुख शक्तियों के विभिन्न दृष्टिकोणों को रेखांकित करता था।
उन्होंने आगे कहा कि "आपूर्ति श्रृंखला द्वारा पहले से ही एशिया और अफ्रीका के बीच एक विशाल पुल का सृजन हो रहा है, जो औद्योगिक ज्ञान प्रदान कर रही है"। परोक्ष रूप से एक "स्वतंत्र और खुले" इंडो-पैसिफिक के विचार का उल्लेख करते हुए, उन्होंने कहा कि, "एशिया में लोकतांत्रिक देशों में रहने वाली आबादी पृथ्वी पर किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में अधिक है। एशिया को लोकतंत्र, कानून के शासन तथा बाजार अर्थव्यवस्था के आधार पर विकास हासिल हुआ है जिसने वहां जड़ें जमा ली हैं।" उन्होंने "एशिया से अफ्रीका तक के इस क्षेत्र" को "विकास एवं समृद्धि का मुख्य केन्द्र" बनाने का आह्वान किया था।
हालाँकि इंडो-पैसिफिक की अवधारणा 2000 के दशक के अंतिम समय से प्रचलन में है, लेकिन इसकी भौगोलिक रूपरेखा भारत के पश्चिमी तट तक सीमित थी। हालाँकि, जापान ने 2016 में इसे हिंद महासागर अफ्रीका तक फैला दिया। इसकी शुरुआत इस अनुभव से हुई कि संसाधन संपन्न अफ्रीका और पश्चिम एशिया को दक्षिण व पूर्वी एशिया से जोड़ने वाले समुद्री मार्ग हिंद महासागर से परे स्थित हैं। चूंकि कि जापान हिंद महासागर में अपनी भूमिका को बढ़ाने का रास्ता तलाश रहा था, इसलिए पानी पर खींची गई एक कृत्रिम क्षेत्रीय सीमा तार्किक नहीं थी। इस तरह की कृत्रिम सीमाएं मानसिक कल्पनाओं को भी सीमित करती हैं। इसलिए, इंडो-पैसिफिक की शुरुआती परिभाषाओं में विस्तार करना आवश्यक था।
इसी बीच, 2009 से ही जापान ने अदन की खाड़ी में होने वाली समुद्री डकैती विरोधी अभियानों में भाग लेना शुरू कर दिया था, जो भारतीय उपमहाद्वीप से परे था।[ii] 2011 में, जापान ने जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य अड्डा खोला। ऐसा करके वह अपने रणनीतिक सीमा का विस्तार कर रहा था और जापानी सुरक्षा के विस्तार के लिए हिंद महासागर एक प्रमुख रणनीतिक क्षेत्र बना हुआ है। इसके अलावा, बढ़ती इंडो-जापानी रणनीतिक साझेदारी ने भी, संभवतः, इंडो-पैसिफिक की भौगोलिक सीमाओं के बारे में जापानी सोच को आकार देने में भूमिका निभाई। भारत के लिए, हिंद महासागर हमेशा एक रणनीतिक रंगमंच रहा है (पूर्वी अफ्रीका से दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तक) और अफ्रीका को इंडो-पैसिफिक में लाना जापान की ओर से भारत के लिए यह संकेत था कि इसकी प्राथमिकताओं को भी महत्व दिया जाएगा।
पारंपरिक सीमाओं को पार करते हुए, नए क्षेत्र की घोषणा करने का उद्देश्य, बदली हुई रणनीतिक तस्वीर पर विचार करना था, विशेषतः आपसी क्षेत्रों में चीन की बढ़ती गतिविधियों पर। इसलिए, जापान द्वारा हिंद महासागर अफ्रीका को इंडो-पैसिफिक ढांचे में शामिल करना समझ में आता है। व्यवहारिक तौर पर, यह अफ्रीकी देशों के लिए भी एक संकेत था कि चीन के अलावा, अन्य कई महत्वपूर्ण देश भी हैं जो अफ्रीका के साथ संबंधों को मजबूत कर रहे हैं। बाद में घटित हुई दो घटनाएं आबे के दृष्टिकोण की प्रासंगिकता को दर्शाती हैं। पहला 2017 में, जब एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (एएजीसी) की परिकल्पना चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के प्रत्युत्तर के रूप में की गई थी, अफ्रीका एएजीसी का एक प्रमुख हिस्सा था। दूसरा, जब भारत ने 2018 में शांगरी-ला डायलॉग में अपनी इंडो-पैसिफिक विजन को पेश किया, तो अफ्रीका को इंडो-पैसिफिक फ्रेमवर्क में शामिल किया गया।[iii] इसलिए, शिंजो आबे का दृष्टिकोण भारत के दृष्टिकोण से मेल खाता था जिसे लगभग सभी से स्वीकार्य किया और अब इसे इंडो-पैसिफिक पर मुख्यधारा की सोच का हिस्सा माना जाता है।
*****
*डॉ. संकल्प गुरज़ार, रिसर्च फेलो, इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफ़ेयर्स, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
संदर्भ:
[i] Ministry of Foreign Affairs of Japan, Address by Prime Minister Shinzo Abe at the Opening Session of the Sixth Tokyo International Conference on African Development (TICAD VI), August 27, 2016. Available at: https://www.mofa.go.jp/afr/af2/page4e_000496.html (Accessed on July 12, 2022).
[ii] The Government of Japan, “Counter-Piracy Operations”, 2017. Available at: https://www.japan.go.jp/tomodachi/2017/spring-summer2017/counter_piracy_operations.html (Accessed on July 12, 2022).
[iii] Ministry of External Affairs, “Prime Minister’s Keynote Address at Shangri La Dialogue”, June 01, 2018. Available at: https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/29943/Prime+Ministers+Keynote+Address+at+Shangri+La+Dialogue+June+01+2018 (Accessed on July 12, 2022).