काबुल पर तालिबान के आधिपत्य के छह महीने इस 15 फरवरी, 2022 को पूरे हो गए। पिछले साल के घटनाक्रम ने उन देशों के लिए वित्तीय असमंजस की स्थिति पैदा कर दी जिनके बैंको में अफगानिस्तान के पैसे पड़े हुए थे। दुनिया भर के केन्द्रीय बैंकों में अपदस्थ अफगान सरकार के लगभग दस अरब डॉलर रह गए थे जिनमें से लगभग 7 अरब डॉलर अमेरिका में और शेष जर्मनी, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन और संयुक्त अरब अमीरात1 के पास थे। अगस्त 2021 के मध्य में, काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद अमेरिका ने फिर से अफगानिस्तान पर प्रतिबंध लगा दिए और बदली सत्ता को अस्वीकार करते हुए अमरीकी बैंकों में पड़ी अफगान संपत्ति को जब्त कर लिया। इस फैसले से अफगानिस्तान एक तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था से कट गया और उसकी बैकिंग प्रणाली चरमरा गई। यूएनडीपी के अनुमानों के मुताबिक, इस साल सत्ताईस प्रतिशत अफगान लोगों को गरीबी में जीना होगा।2 11 फरवरी, 2022 को, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक अधिशासी आदेश पर हस्ताक्षर किए3 जिसके जरिए अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक की 7 अरब डॉलर की फ्रीज की गई संपत्ति को 9/11 के आतंकी हमले में मारे गए लोगों के परिजनों और अफगानिस्तान में मानवीय सहायता के लिए आधा-आधा बांट दिए जाने की संभावना है
अफगान संपत्ति पर अमेरिका का कार्यकारी आदेश
बाइडेन प्रशासन ने कहा कि वह न्यायाधीश से साढ़े तीन अरब डॉलर की अफगान संपत्ति को एक ट्रस्ट फंड में स्थानांतरित करने की अनुमति मांगेगा, जो कि गंभीर मानवीय संकट का सामना कर रहे अफगान लोगों की मदद के लिए स्थापित किया जाएगा। इसी आदेश में यह भी कहा गया है, राष्ट्रपति बाइडेन 9/11 के हमलों के पीड़ितों के परिजनों के लिए साढ़े तीन अरब डॉलर (तालिबान के सत्ता में आने से पहले अफगान केंद्रीय बैंक के न्यूयॉर्क में जमा किए गए 7 अरब डॉलर में से) जारी करने के लिए एक कानूनी रास्ता बनाएंगे क्योंकि उनका मानना है कि ये अमरीकी लोग तालिबान तथा अन्य समूहों के खिलाफ सुनाए गए कानूनी फैसलों के हिसाब से इन पैसों के हकदार हैं।इस आदेश के अनुसार, भले ही अफगानिस्तान के लोगों के लिए साढ़े तीन अरब डॉलर जारी करने की अनुमति मिल जाएगी फिर भी बाकी के साढ़े तीन अरब डॉलर अमेरिका के पास ही रह जाएंगे और आतंकवाद के शिकार हुए अमेरिकी लोगों द्वारा किए गए मुकदमों के फैसलों के हिसाब से इनका बंटवारा होगा।4
खबरों के अनुसार5, 2001 और 2020 के बीच अमरीका की ओर से अफगानिस्तान को गैर-सैन्य सहायता के रूप में लगभग 150 अरब अमेरिकी डॉलर दिए गए जो कि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की ओर की गई आर्थिक मदद की तुलना में अरबों ज्यादा है।तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के पहले अफगानिस्तान गणराज्य के बजट का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा जिसने न केवल सरकारी मंत्रालयों को बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, शासन व्यय और बुनियादी ढांचे जैसी सार्वजनिक सेवाओं को भी वित्त पोषित किया अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से मदद के रूप में मिला था। लेकिन तालिबान के आते ही सभी स्रोतों से विदेशी सहायता बंद हो गई। जिससे विदेशी सहायता पर निर्भर देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भविष्यवाणी की थी कि अफगानिस्तान में लगभग 32 करोड बच्चों के भंयकर कुपोषण से पीड़ित होने की आशंका है। एक अनुमान के मुताबिक अफगानिस्तान के 22 करोड़ 80 लाख लोगों, या 55 प्रतिशत आबादी को नवंबर 2021 और मार्च 20226 के बीच खाने पीने की भारी दिक्कत का सामना करना पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरस बार-बार दुनिया को अफगानिस्तान के मानवीय संकट के बारे में चेतावनी देते रहे हैं कि देश "बेहद खतरनाक स्थिति में है"। उन्होंने सुरक्षा परिषद से तालिबान शासित देश में मानवीय सहायता के लिए आवश्यक सभी लेनदेन को मान्यता देने का भी आह्वान किया।7
इस तथ्य से अवगत होते हुए कि खाली खजाने वाले देश पर शासन करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है, तालिबान ने अमेरिका से उसके बैकों में रखी गई अफगानिस्तान की वित्तीय संपत्ति पर से जब्ती हटाने की बा-बार अपील की थी।
इस संपत्ति को अमेरिका के कब्जे से मुक्त कराने के लिए मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से एक वीडियो अपील में कहा "दुनिया को राजनीतिक पूर्वाग्रह के बिना अफगानिस्तान के लोगों का समर्थन करना चाहिए और उनके प्रति अपने मानवीय दायित्वों को पूरा करना चाहिए।8"
तालिबान ने अमेरिका के बैंक में पड़े अपने देश के पैसों को निकलवाने के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक ताकतों से बातचीत करने के लिए हर मंच का उपयोग किया है। यद्यपि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच अफगान लोगों की मदद के लिए अफगानिस्तान में आसन्न आर्थिक और मानवीय संकट को दूर करने की आवश्यकता के बारे में सर्वसम्मत मान्यता रही है; लेकिन इसके साथ ही उन्हें कट्टर चरमपंथियों को बढ़ावा दिए बिना संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को मदद करने जैसी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
पिछले साल 19 दिसंबर को आयोजित एक विशेष बैठक में, इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के 57 सदस्यों ने संयुक्त राष्ट्र के साथ काम करने का संकल्प लिया था ताकि अमेरिका में अफगानिस्तान की जब्त संपत्ति को मुक्त करने का प्रयास किया जा सके।9 इसके बाद 22 दिसंबर, 2021 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से अमेरिका के उस प्रस्ताव को स्वीकार किया जो तालिबान के हाथों तक इस संपत्ति की पहुंच के बिना अफगानिस्तान को मानवीय सहायता की सुविधा प्रदान करता है।10 हालांकि इस प्रस्ताव में यह बाद दोहराई गई कि इस तरह की सहायता "अफगानिस्तान में बुनियादी मानवीय जरूरतों" का समर्थन करती है और तालिबान से जुड़ी संस्थाओं पर लगाए गए प्रतिबंधों का "उल्लंघन नहीं" है।11 अब तक किसी भी देश ने तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने कट्टरपंथी चरमपंथियों को समर्थन दिए बिना संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को सहायता पहुंचाने का चुनौतिपूर्ण काम है।
नार्वे की राजधानी ओस्लो में तालिबान प्रतिनिधिमंडल और पश्चिमी अधिकारियों के बीच हाल ही में संपन्न वार्ता में भी तालिबान की प्रमुख चिंताएं अमरीका के कब्जे से अपनी संपत्ति छुड़ाने और देश के लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करना रही जबकि पश्चिमी देशों का ध्यान मानवीय सहायता और मानवाधिकारों पर केंद्रित रहा।12
जब्त पड़ी हुई संपत्ति के अमेरिका के चंगुल से छूट जाने से निश्चित रूप से अफगानिस्तान को बड़ी राहत मिलती, लेकिन बाइडेन प्रशासन इस मामले में टस से मस होने को तैयार नहीं था क्योंकि तालिबान को देश में मानवाधिकारों और विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करने के लिए मजबूर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के पास यही एकमात्र रास्ता था। अमेरिका द्वारा इस संपत्ति को जारी करने का निर्णय हालांकि तालिबान के लिए एक बड़ा कदम है, लेकिन इस राशि का आधा हिस्सा 9/11 के पीड़ित परिवारों को दिये जाने का अमरीका के फैसले पर उसने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
बाइडेन के कार्यकारी आदेश पर प्रतिक्रिया
बाइडेन के कार्यकारी आदेश का अफगानिस्तान में सभी वर्गों ने तीखी आलोचना की है और इसे अपने देश की संपत्ति को हथियाने का कदम बताया है क्योंकि उनका देश इस समय आर्थिक पतन की ओर अग्रसर है। अफगानिस्तान की राजधानी में अमेरिका के 9/11 के पीड़ित परिवारों के लिए अफगानिस्तान की संपत्ति में से साढ़े तीन अरब डॉलर जारी करने वाले बाइडेन के कार्यकारी आदेश के खिलाफ यह कहते हुए विरोध प्रदर्शन हुए हैं कि यह पैसा अफगानिस्तान के लोगों का है। कथित तौर पर प्रदर्शनकारियों ने अफगानिस्तान में पिछले 20 वर्षों के युद्ध के दौरान मारे गए हजारों अफगान नागरिकों के लिए अमेरिका से वित्तीय मुआवजे की मांग भी की।13
तालिबान ने अमेरिकी राष्ट्रपति से अफगानिस्तान के इन पैसों के बारे में जारी ओदश को वापस लेने की मांग की है और इस बारे में पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। तालिबान ने अफगानिस्तान के पैसे को जब्त करने के कदम को "चोरी" और"अमेरिका के नैतिक पतन" का संकेत बताया है।14 उन्होंने बाइडेन की कार्रवाई को अफगानों के अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए अस्वीकार कर दिया है। तालिबान ने चेतावनी देते हुए हुए कहा है कि यदि अमेरिका अपना रूख नहीं बदलता है और अपनी कार्रवाई जारी रखता है, तो उसे भी अमरीका के बारे में अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।"15अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने भी बाइडेन प्रशासन से इस फैसले को निरस्त करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि पैसा अफगान लोगों का था और अन्य उद्देश्यों के लिए इसका उपयोग करना "गलत" है- "हमारी अमेरिकी लोगों के प्रति संवेदनाएं हैं [लेकिन] अफगान परिवार परिवार उन लोगों से ज्यादा पीड़ित हैं जिन्होंने 911 हमले में अपनी जान गंवाई है। उन लोगों के नाम पर अफगानिस्तान के लोगों का पैसा रोकना या जब्त करना अन्यायपूर्ण और अनुचित है और अफगान लोगों के खिलाफ अत्याचार है।16 ”उन्होंने राष्ट्रपति बाइडेन से अफगानिस्तान के लोगों के सारे पैसे वापस करने का अनुरोध किया है।
अशरफ गनी के नेतृत्व वाली अफगान सरकार के वित्तीय सलाहकार टोरेक फरहदी ने बाइडेन के आदेश की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा है - "ये संपत्ति अफगानिस्तान के लोगों की है तालिबान की नहीं ... बाइडेन का यह एकतरफा फैसला अंतरराष्ट्रीय कानून से मेल नहीं खाता"। उन्होंने कहा, "दुनिया में कोई अन्य देश किसी अन्य देश की संपत्ति को इस तरह जब्त करने का फैसला नहीं करता है।"17 बाइडेन के कार्यकारी आदेश ने ट्विटर हैंडल "#USA_stole_money_from_Afghans", "#AfghansDidntCommit9/11" के साथ सोशल मीडिया पर हलचल मचा रखी है जिसमें कहा गया है कि 9/11 के अपहर्ता सऊदी नागरिक थे, अफगान नहीं। यह ध्यान देना जरुरी है कि 11 सितंबर, 2001 के हमलावरों में से कोई भी अफगानिस्तान से नहीं था, हमलों के मास्टरमाइंड, अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को तालिबान सरकार ने शरण दी थी।
अफगान लोगों ने तर्क दिया है कि मानवीय सहायता अमेरिकी खजाने से आनी चाहिए, न कि अमरीका के पास पड़े अफगानिस्तान के पैसों से जिसका उपयोग देश की मुद्रा को संभालने , मौद्रिक नीति में मदद करने और देश के भुगतान संतुलन का प्रबंधन करने के लिए किया जाना चाहिए।18 अमरीका के कदम की आलोचना के बीच, अफगानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि थॉमस वेस्ट ने स्पष्ट किया है कि अमरीका ने उसके पास पड़े अफगानिस्तान के पैसों में से साढ़े तीन अरब डॉलर को ट्रस्ट फंड में विशेष रूप से मानवीय सहायता के लिए दिए जाने पर अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है। वेस्ट ने कहा कि वह अफगानिस्तान के आर्थिक विशेषज्ञों से इस बारे में परामर्श कर रहे हैं कि अफगानिस्तान में साढ़े तीन अरब डॉलर का इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए। बाइडेन प्रशासन के इन स्पष्टीकरणों से अफगान लोंगों का गुस्सा कुछ कम हो सकता है हालांकि तालिबान ने बाइडेन के फैसले का इस्तेमाल अफगान लोगों का साथ पाने के लिए किया है क्योंकि अफगान जनता इसका समर्थन कर रही है। अब तक, यह स्पष्ट नहीं है कि अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक की संपत्ति पर अमेरिकी कार्यकारी आदेश कितनी जल्दी अफगान लोगों के लिए राहत वाला होगा लेकिन इससे संकटग्रस्त तालिबान शासन को मबूती जरूर मिली है।
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*डॉ. अन्वेषा घोष , शोध अध्येता, भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
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