अपनी वर्तमान विदेशी मुद्रा संकट के बीच श्रीलंका ने अगस्त 2021 में देश में आपातकाल की घोषणा की थी। श्रीलंका के ज्यादातर बैंक आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए धन मुहैया कराने हेतु विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहे हैं। देश के राजस्व में करीब 80 अरब अमेरिकी डॉलर की कमी आई है।[i] सेंट्रल बैंक ने एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 200 रुपये से अधिक की दर से वायदा कारोबार और रुपये के स्पॉट ट्रेडिंग (हाज़िर कारोबार) पर प्रतिबंध लगा दिया है[ii]। इसके कारण इस द्वीपीय राष्ट्र में विदेशी मुद्रा संकट और गंभीर हो गया है। हालांकि, यह स्थिति रातोंरात नहीं बनी है। इसके कई कारण हैं जैसे 2019 में ईस्टर बम हमले, कोविड-19 महामारी का फैलना और कई राजनीतिक फैसले जिन्होंने अपेक्षित परिणाम नहीं दिए। आसन्न संकट को भांपते हुए सरकार ने इस साल की शुरुआत में ही वाहनों, खाद्य तेलों और कुछ अन्य वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाकर इसे टालने की कोशिश की लेकिन इससे कुछ विशेष लाभ नहीं हुआ। इस संकट की ओर ले जाने वाले कई महत्वपूर्ण कारकों में से कुछ महत्वपूर्ण कारकों का विश्लेषण इस लेख में किया गया है।
2019 में कोलंबो में हुए सीरियल बम विस्फोट के बाद से देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 10% का योगदान करने वाला पर्यटन उद्योग बुरे दौर से गुजर रहा है। 21 अप्रैल 2019, ईस्टर रविवार को, आत्मघाती हमलावरों ने कोलंबो के तीन चर्च और तीन आलिशान होटलों को अपना निशाना बनाया था। हमले के बाद से काफी समय तक श्रीलंका में पर्यटकों का आना कम रहा। पर्यटन के क्षेत्र में 70% तक की गिरावट दर्ज की गई और इसके कारण श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। पर्यटकों की कमी के कारण विदेशी मुद्रा संकट पैदा हो गया, जुलाई 2020 के आखिर में विदेशी मुद्रा भंडार कम हो कर 2.8 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया जबकि पिछले वर्ष की तुलना में अर्थव्यवस्था में 3.6%[iii] की कमी दर्ज की गई।
इससे पहले की स्थिति सामान्य होती और पर्यटन उद्योग रफ्तार पकड़ता, कोविड-19 ने श्रीलंका समेत पूरे विश्व को प्रभावित कर दिया। हालांकि पहली दो लहरों ने श्रीलंका में कम बर्बादी मचाई लेकिन तीसरी लहर ने तो पूरे द्वीप को बर्बाद ही कर दिया। हालांकि कोविड महामारी के शुरुआती लहरों के दौरान श्रीलंका की स्थिति अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत अच्छी रही, लेकिन चीन और यूरोपीय संघ के देशों जैसे इसके प्रमुख निर्यात गंतव्य स्वास्थ्य संबंधी गंभीर आपात स्थितियों से जूझ रहे थे। इसलिए, इन देशों में श्रीलंका से किया जाना वाला निर्यात स्वाभाविक रूप से प्रभावित हुआ। परिधान के कई कारखाने, जो निर्यात की एक प्रमुख वस्तु और श्रीलंका के लिए विदेशी मुद्रा का प्रमुख स्रोत हैं, महीनों तक बंद पड़े रहे।
निर्माण क्षेत्र को छोड़कर, बीते कुछ वर्षों में श्रीलंकाई उद्योगों को शायद ही कोई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) मिला हो। इसके अलावा, मार्च 2020 में, कोलंबो स्टॉक एक्सचेंज (सीएसई/ CSE) में विदेशी फंडों के बहिर्वाह के कारण एक दिन में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई। विदेशी निवेशकों द्वारा रखी गई सरकारी हुंडी और सरकारी बॉन्ड में 9.03% (8.236 अरब रुपये) की जबरदस्त कमी हुई, इसके कारण इसी माह के पहले दो सप्ताहों में 19.6 अरब रुपयों का कुल विदेशी मुद्रा बहिर्वाह हुआ[iv]। स्टॉक एक्सचेंज में हुई गिरावट निश्चित रूप से कोविड-19 का नतीजा था। साल 2020 के दौरान विदेशी प्रेषण में 2.7 अरब अमेरिकी डॉलर की गिरावट के साथ समस्या बढ़ गई थी क्योंकि विदेशों में काम करने वाले श्रीलंकाई महामारी से बुरी तरह प्रभावित थे[v]।
अब तक श्रीलंका पहले से ही मुद्रा संकट के कठिन दौर से गुजर रहा था। नकदी की कमी से निपटने के लिए श्रीलंका के सेंट्रल बैंक ने बीते 18 महीनों में 800 अरब रुपए छापे हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ रही है[vi]। पैसे के इस प्रवाह ने आपूर्ति को स्थिर बनाए रखते हुए मांग में वृद्धि की है। इसके कारण उच्च मुद्रास्फीति की बुनियादी आर्थिक समस्या पैदा हुई जिसके परिणामस्वरूप मुद्रा का अवमूल्यन हुआ, आयात महंगा हो गया और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बहुत बढ़ गया। मार्च 2020 के पहले सप्ताह से ज्यादातर प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले श्रीलंकाई रुपये का अवमूल्यन शुरु हो गया। विशेष रूप से, यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमज़ोर हुआ और 198.46 रुपये (30 मई 2021 को) के स्तर पर पहुँच गया, यह इतिहास में अब तक के सबसे बड़े अवमूल्यन में से एक था[vii]। रुपये के वर्तमान अवमूल्यन ने अनिवार्य रूप से देश के आयात खर्च में वृद्धि की और परिणामस्वरूप इसका विदेशी ऋण बोझ बढ़ गया।
इस विदेशी मुद्रा संकट का एक अन्य कारण देश का अपनी आवश्यक वस्तुओं के लिए आयात पर अत्यधिक निर्भरता भी है। श्रीलंका दैनिक आवश्यकता की वस्तुओं जैसे चीनी, दालें, अनाज और दवाओं के लिए लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है और इस स्थिति में देश अपने आयात बिलों का भुगतान करने के लिए विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहा है, भोजन की कमी भी है। सरकार द्वारा जैविक खेती करने और रसायानिक उर्वरकों के प्रयोग पर रोक लगाने के अचानक किए गए फैसले से घरेलू खाद्य उत्पादन में भारी गिरावट आई और खाद्य मूल्य में बहुत अधिक वृद्धि हुई।
उपरोक्त सभी कारकों ने श्रीलंका को गंभीर विदेशी मुद्रा संकट में डाल दिया है। अब वह ऐसी स्थिति में है जहां सरकार के लिए आपातस्थिति से बाहर निकलने के लिए दूसरे देशों से मदद लेना अनिवार्य हो गया है। देखना यह होगा कि अब श्रीलंका की सरकार क्या कदम उठाती है।
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*डॉ. राहुल नाथ चौधरी, रिसर्च फेलो, इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफेयर्स।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
संदर्भ:
[i] Central Bank of Sri Lanka.
[ii]Ibid.
[iii] ICRA, Sri Lanka. Available at: https://www.icralanka.com/research/midyear-economic-update-2021/ Accessed on 15.9.21
[iv]Deyshappriya, N R Ravindra. (17 Jul, 2021). Covid 19 and the Sri Lankan Economy. Engage-Economic and Political Weekly. Vol. 56, Issue No. 29
[v]Gunadasa, S (2020): Sri Lankan Government Responds to COVID-19 by Mobilising the Military and Helping the Financial Elite. World Socialist Website, Available at: https://www.wsws.org/en/articles/2020/03/18/sril-m18.html. Accessed on10.9.2021
[vi]Nirupama Subramanian (Sep. 9,2021) Explained: The perfect storm that has led to Sri Lanka’s national ‘food emergency’. Indian Express. Available at: https://indianexpress.com/article/explained/sri-lanka-food-emergency-debt-burden-7496044/ Accessed on: 10.9.2021
[vii]Deyshappriya, N R Ravindra. (17 Jul, 2021). Covid 19 and the Sri Lankan Economy. Engage-Economic and Political Weekly. Vol. 56, Issue No. 29