कई अफ्रीकी देशों में लंबे समय तक शासक रहने वाले व्यक्ति की मृत्यु या पद से हटने से शासन में कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिलता। पहले से शासन से जुड़े लोग ही सत्ता पर अपनी मजबूत पकड़ बनाये रखते हैं और थोड़ा बहुत उन्हीं के तरीकों या रास्तों पर चलते रहते हैं। रॉबर्ट मुगाबे के बाद जिम्बाब्वे, इसका बात का एक अच्छा उदाहरण है। 37 साल (1980-2017) तक जिम्बाब्वे पर शासन करने वाले रॉबर्ट मुगाबे के हटने के बावजूद, जिम्बाब्वे अफ्रीकन नेशनल यूनियन (पैट्रियोटिक फ्रंट) नामक उनकी पार्टी सत्ता में बनी हुई है।[1] बल्कि, इसने देश में अपनी पकड़ भी काफी मजबूत की है। इस तरह के शासन की एक और दिलचस्प विशेषता, सशस्त्र बलों के साथ उनका घनिष्ठ संबंध और विदेशी शक्तियों का समर्थन है। सेना के वरिष्ठ अधिकारी सत्ता का लाभ लेने के लिए पूरी तरह से सत्ता से जुड़े हुए रहते हैं और इसलिए, वो इस व्यवस्था को बदलने में कोई रुचि नहीं रखते। इस तरह के शासन में मानव अधिकारों, आर्थिक विकास एवं लोकतंत्र की स्थिति ज्यादा अच्छी न होने के बावजूद, वो दुनिया की प्रमुख शक्तियों की वैश्विक रणनीतियों के लिए बेहद उपयोगी साबित होते हैं। जब तक इस तरह का शासन दुनिया की प्रमुख शक्तियों के उद्देश्यों को पूरा करता रहता है, तब तक वे शासक के अपने देश में किए जाने वाले गलत कामों को भी अनदेखा करते रहते हैं। चाड में घटित हालिया घटनाक्रम इस बात को साबित करता है।
अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में स्थित चाड दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है। साहेल क्षेत्र सहारा रेगिस्तान और अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय सवाना के बीच स्थित है तथा अटलांटिक महासागर से लेकर लाल सागर तक फैला हुआ है। साहेल क्षेत्र के देश विकास एवं सुरक्षा की गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। कई देशों को विद्रोहियों और / या आतंकवादियों से अपने राज्य प्राधिकरण के लिए गंभीर खतरा है। चाड एक भूमि-बंद देश है और यह उत्तरी अफ्रीका, हॉर्न ऑफ अफ्रीका व पश्चिम अफ्रीका को जोड़ने की वजह से एक बेहद अहम स्थान पर स्थित है। इसकी सीमा उत्तर में लीबिया, पूर्व में सूडान, दक्षिण में मध्य अफ्रीकी गणराज्य और पश्चिम में नाइजीरिया, नाइजर और कैमरून से लगती है। चाड को फ्रांस द्वारा बसाया गया था और यह अफ्रीका में फ्रांस का मजबूत सहयोगी है। फ्रांस के व्यापार एवं राजनीतिक वर्ग के चाड में व्यापक हित हैं और पहले की, पूर्व औपनिवेशिक सत्ता ने चाड में सैन्य हस्तक्षेप का भी इस्तेमाल करने में कोई संकोच नहीं किया है।[2]
साहेल क्षेत्र
(स्रोत: https://www.trtworld.com/africa/african-union-to-deploy-3-000-troops-to-restive-sahel-34165)
1990 के बाद से ही, चाड का शासन सत्तावादी शासक इदरीस डेबी के हाथों में थी, जिनकी उत्तर की ओर से चाड की राजधानी अन्' ड्जमेना की ओर बढ़ रहे विद्रोहियों से लड़ रहे सैनिकों की कमान संभालते समय हुए हमले में मौत हो गई। डेबी चाड की सेना के कमांडर-इन-चीफ थे और उन्होंने अपने गुरु व सत्तावादी शासक हिसिन हैबर के खिलाफ तख्तापलट करके सत्ता हासिल की थी। हालांकि चाड में लोकतंत्र की औपचारिक संरचना है, लेकिन सत्ता राष्ट्रपति के हाथों में केंद्रित होती है।[3] अभी के लिए, नेशनल काउंसिल ऑफ ट्रांज़िशन (एनसीटी), जिसमें चाड के सैन्य अधिकारी भी शामिल हैं, ने डेबी के बेटे महातम इदरीस डेबी को अगले 18 महीनों के लिए अंतरिम राष्ट्रपति नियुक्त किया है। एनसीटी ने सरकार और देश की विधानसभा को भी भंग कर दिया है।[4] आगे, इस बात की पूरी संभावना है कि, पहले का शासन सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करेगा और शासन करना जारी रखेगा। इसी बीच, इदरीस डेबी की मौत से चाड की घरेलू राजनीति व साहेल क्षेत्र में आतंकवाद-रोधी अभियानों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
डेबी अफ्रीकी शासकों की पीढ़ी के हैं, जिन्होंने 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में सत्ता संभाली थी। इसमें युगांडा के योवेरी मुसेवेनी (1986 से सत्ता में हैं), सूडान के उमर-अल-बशीर (जिन्होंने 1989 से 2019 तक शासन किया) और इरीट्रिया के इसाईस अफवेर्की (1993 से शासन कर रहे हैं) शामिल हैं। इन नेताओं ने देश पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी और शासन व अपने निजी प्राधिकरण की चुनौतियों के बावजूद तीन दशकों से अधिक समय तक सत्ता में बने रहने में कामयाब रहे। साल 2019 में, सूडान के अल-बशीर को अंततः दबाव की वजह से सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा और अब, इदरीस डेबी की युद्ध के दौरान मृत्यु हो गई है। हालांकि, मुसेवेनी और अफवेर्की अभी भी सत्ता में हैं। अगर डेबी की मौत नहीं होती, तो वह आगे भी देश की सत्ता संभलाते रहते। उन्होंने हाल ही में संविधान में कुछ संशोधन किया था, जिससे उन्हें जीवन भर शासन करने की शक्ति मिल गई थी। अपनी मृत्यु से ठीक पहले, उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव भी जीते थे।[5] अपने 31 सालों के शासन में, डेबी को तख्तापलट के कई प्रयासों, घरेलू विरोध और विद्रोही हमलों का सामना किया। वह इन सभी चुनौतियों से बचे रहे। हालांकि, तेल की खोज के बावजूद डेबी के शासन में देश में कोई भी सार्थक विकास नहीं हुआ। कथित तौर पर, उन्होंने अपनी व्यक्तिगत संपत्ति काफी अधिक बढ़ाई और उनके शासन में भ्रष्टाचार व्याप्त था। हालांकि, डेबी साहेल में आतंकवाद-रोधी अभियानों के एक दृढ़ पश्चिमी सहयोगी थे।[6]
साहेल क्षेत्र में, पिछले दशक में इस्लामवादी उग्रवाद का काफी विकास हुआ और इससे क्षेत्रीय शांति व सुरक्षा को सीधा खतरा पैदा हो रहा है। स्थानीय इस्लामवादी विद्रोह बोको हराम और अलकायदा तथा इस्लामिक स्टेट के कुछ समूह इस क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं। इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि साहेल अफ्रीका और चाड, सूडान और नाइजीरिया जैसे ईसाई राज्यों में इस्लामिक और इस्लामिक प्रभावों के बीच की भ्रंश रेखा है, जिसे हिंसक, धार्मिक विविधता और अतिवाद के विकास के परिणामों से निपटने हेतु मजबूर होना पड़ा है। आतंकवादी समूहों की बढ़ती शक्ति और इस खतरे की क्षेत्रीय व वैश्विक प्रतिक्रिया के संदर्भ में, 2013 में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया। फ्रांसीसी सेना द्वारा आसन्न खतरे का अनुभव करके हस्तक्षेप करने से पहले तक माली में, उत्तर से हमला करने वाले इस्लामवादियों ने 2013 में माली की राजधानी बमाको पर लगभग कब्जा ही कर लिया था। अभी भी माली की सरकार इस्लामवादी विद्रोह से जूझ रही है।[7] उत्तरी नाइजीरिया में, बोको हराम के आतंकवादी बिना किसी डर के अपना समूह चला रहे हैं और नाइजीरियाई सेना इस खतरे को रोकने में सक्षम नहीं है। बोको हराम लेक चाड बेसिन के आसपास के क्षेत्रों में खुद को मजबूत करने में कामयाब रहा है, जहां नाइजीरिया, नाइजर, चाड और कैमरून की सीमाएं मिलती हैं।[8]
अफ्रीका में आतंकवाद
(स्रोत: https://newlinesinstitute.org/isis/isis-in-africa-the-caliphates-next-frontier/)
साहेल क्षेत्र में स्थित बुर्किना फासो, मॉरिटानिया, नाइजर और चाड जैसे अन्य राज्य भी इस्लामी आतंकवाद से अलग-अलग स्तर तक प्रभावित हुए हैं। शुष्क साहेल क्षेत्र गरीब है और यहां कई ऐसे अशासित क्षेत्र हैं, जहां राज्य प्राधिकरण की पहुंच नहीं है। राज्यों के बीच की सीमाएं कमजोर हैं और बोको हराम जैसे समूह ऐसी स्थितियों का खुब लाभ उठाते हैं। इन गरीब राज्यों के लिए, प्रभावी नागरिक एवं सैन्य प्रशासन प्रदान करना और क्षेत्र में आर्थिक विकास लाना मुश्किल भरा है। इसलिए, आतंकवादी यहां अपनी गतिविधियां बेहद आसानी से कर पाते हैं। साल, 2015 में इस्लामिक स्टेट ने यहां लेक चाड बेसिन के आसपास एक पश्चिम अफ्रीकी प्रांत की स्थापना की थी, जिसे आईएसडब्ल्यूएपी के नाम से जाना जाता है, और बोको हराम इसमें शामिल हो था। हालांकि, संचालन और सैद्धांतिक मतभेदों की वजह से, बोको हराम साल 2016 में आईएसडब्ल्यूएपी से अलग हो गया। अब, ये दोनों समूह इस क्षेत्र में सक्रिय हैं और दोनों का उद्देश्य नागरिक व सैन्य ठिकानों पर घातक हमला करना है।[9] लीबिया में 2011 से चल रहा गृह युद्ध और अस्थिरता ने भी इसको बढ़ावा दिया है। इसलिए, अफ्रीकी संघ (एयू) और पश्चिम अफ्रीका राज्य आर्थिक समुदाय (ईसीओडब्ल्यूएएस) जैसी क्षेत्रीय शक्तियों के साथ-साथ पश्चिमी शक्तियां भी साहेल क्षेत्र में आतंकवाद-विरोधी प्रयासों को आकार देने में लगी हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने भी साहेल क्षेत्र में आतंकवाद के खतरे की गंभीरता पर ध्यान दिया है।[10]
साहेल क्षेत्र में आतंकवाद विरोधी प्रयासों में फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) सबसे सक्रिय पश्चिमी शक्तियां हैं। फ्रांस ने 2013 में इस्लामवादी आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई में माली की सरकार की सहायता हेतु ऑपरेशन सर्वल शुरू किया था। साल 2014 में, ऑपरेशन सर्वल की जगह ऑपरेशन बरखाने ने ले ली और तब से फ्रांस की सेना सक्रिय रूप से साहेल में आतंकवाद विरोधी अभियान चला रही है। ऑपरेशन बरखाने का मुख्यालय चाड की राजधानी अन्' ड्जमेना में है और इसके तहत माली, नाइजर, बुर्किना फासो और चाड शामिल हैं। फ्रांस ने साहेल क्षेत्र में 4500 सैनिकों को तैनात किया है और ये सैनिक लड़ाकू गश्त, खुफिया जानकारी जुटाने और प्रशिक्षण सहित कई गतिविधियों में लगे हुए हैं। इन प्रयासों में चाड की सेना फ्रांस की महत्वपूर्ण साझेदार है।[11] चाड ने अमेरिका को आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए ड्रोन बेस संचालित करने की भी अनुमति दी है।[12]
पश्चिम अफ्रीका में अमेरिकी और फ्रांसीसी सैन्य उपस्थिति
साहेल में आतंकवाद विरोधी प्रयासों के लिए चाड की जरुरत अमेरिका और फ्रांस के ठिकानों की मेजबानी करने तक ही सीमित नहीं है। यहां के सभी क्षेत्रीय सशस्त्र बलों में से, चाड की फ्रांसीसी प्रशिक्षित सेना को सबसे सक्षम माना जाता है।[13] चाड की सेना के पास विद्रोहियों से लड़ने का दशकों का अनुभव है और इसने उत्तरी नाइजीरिया में बोको हराम के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।[14] चाड, नाइजर, माली, बुर्किना फासो और मॉरिटानिया के सैनिकों से बने जी-5 क्षेत्रीय बल में, चाड की सेना सबसे शक्तिशाली है और इदरीस डेबी इस्लामवादी आतंकवादियों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार थे। हाल ही में, उन्होंने नाइजर, माली और बुर्किना फासो के बीच सबसे प्रभावित सीमा क्षेत्र में 1200 सैनिकों को तैनाती करने की बात की थी। यह चाड की इन प्रयासों के लिए समर्पित सेना तैनात करने और उसकी क्षमताओं को दिखाता है।[15] इसलिए, साहेल में इस्लामी आतंकवादियों के खिलाफ अपनी लड़ाई में, चाड की सेना की भूमिका और सहयोग अहम है।
आतंकवाद-रोधी प्रयासों में, चाड जैसे स्थानीय सहयोगियों की भूमिका को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। इदरीस डेबी की मृत्यु के बाद उनके बेटे को उनका उत्तराधिकारी नियुक्ति किए जाने का फ्रांस ने स्वागत किया है। महातम इदरीस डेबी ने भी चाड के सैनिकों का नेतृत्व किया है और उम्मीद है कि वो अपने पिता की नीतियों पर ही चलेंगे।[16] हालांकि, अभी चाड की सरकार के सामने मौजूदा चुनौती विद्रोहियों द्वारा उत्पन्न खतरे से निपटना है, जिन्होंने लीबिया से हमले करना शुरु कर दिया है। 2016 में फ्रंट फॉर चेंज एंड कॉनकॉर्ड इन चाड (एफएसीटी) नामक विद्रोही समूह का गठन किया गया और इसमें गोरान जनजाति के सेना के अधिकारी और लड़ाके शामिल हैं। उनका लीबिया के सेनापति खलीफा हफ़्टर के साथ गैर-आक्रामक समझौता है।[17] ऐसी अफवाह है कि हफ़्टर और रूसी सैन्य ठेकेदार कंपनी वैगनर समूह इन विद्रोहियों को हथियार उपलब्ध करा रहे हैं और उन्हें प्रशिक्षण दे रहे हैं। हालाकि, हफ़्टर को फ्रांस का सहयोगी भी जाना जाता है और फ्रांस इदरीस डेबी का प्रमुख सहयोगी रहा है। इसलिए, फ्रांस और डेबी के वफादार हफ़्टर से नाराज़ हैं।[18]
इसके अलावा, एक अन्य प्रमुख कारक के रुप में सूडान के दारफुर क्षेत्र में शांति व स्थिरता पर भी विचार किया जाना चाहिए। पहले भी, दारफुर में अस्थिरता का चाड की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और चाड का दारफुर की समस्याओं से जटिल संबंध देखने को मिला है।[19] इसलिए, चाड को पश्चिम (लेक चाड बेसिन और साहेल क्षेत्र) और उत्तर (लीबिया) से सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और इसलिए पूर्व (सूडान) के बारे में भी सोचने की जरुरत है। चाड के आसपास के क्षेत्रों में मौजूद सुरक्षा चुनौती के इस हालात में, शासन में सुधार, आर्थिक विकास और नागरिकों का कल्याण करना काफी मुश्किल भरा काम है। क्षेत्रीय राज्यों को मालूम है कि चाड के सैन्य बलों के बिना, चाड और साहेल क्षेत्र में आतंकवाद-रोधी प्रयास कमजोर हो जाएंगे और इससे क्षेत्रीय सुरक्षा की स्थिति बेहद खराब हो सकती है। इसलिए, चाड में होने वाली हर घटना का असर, उसकी महत्वपूर्ण भू-स्थानिक स्थिति के कारण, पूरे क्षेत्र पर पड़ेगा।
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*डॉ. संकल्प गुरज़र, शोधकर्ता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली ।
व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं ।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
संदर्भ:
[1] AFP, “Zimbabwe parliament sworn in after ZANU-PF victory”, France24.com, September 5, 2018, available at: https://www.france24.com/en/20180905-zimbabwe-parliament-sworn-after-zanu-pf-victory (Accessed on April 26, 2021)
[2] Joe Gazeley, “The death of Déby has exposed the limits of French influence in Chad”, Democracy in Africa, April 22, 2021, available at: democracyinafrica.org/the-death-of-deby-has-exposed-the-limits-of-french-influence-in-chad/ (Accessed on April 26, 2021)
[3]Paul Melley, “IdrissDéby: Chad's future rocked by president's battlefield death”, BBC News, April 21, 2021, available at: https://www.bbc.com/news/world-africa-56822431 (Accessed on April 26, 2021)
[4]Al Jazeera, “Deby’s death and Chad’s next day: This is what the army announced”, April 20, 2021, available at: https://www.aljazeera.com/news/2021/4/20/chads-military-announces-new-interim-government-after-deby-death (Accessed on April 26, 2021)
[5]John Campbell, “Deby's Death Heightens Uncertainty in Chad, West Africa”, Council on Foreign Relations, April 21, 2021, available at: https://www.cfr.org/blog/debys-death-heightens-uncertainty-chad-west-africa (Accessed on April 26, 2021)
[6]Ibid
[7]Alexis Arieff, “Crisis in Mali”, Congressional Research Service, October 21, 2020, available at: https://fas.org/sgp/crs/row/IF10116.pdf (Accessed on April 26, 2021)
[8]Alexis Arieff, “Crisis in Mali”, Congressional Research Service, October 21, 2020, available at: https://fas.org/sgp/crs/row/IF10116.pdf (Accessed on April 26, 2021)
[9] Jason warner and Charotte Hulme, “The Islamic State in Africa: Estimating Fighter Numbers in Cells Across the Continent”, CTC Sentinel, 11(7), August, 2018.
[10]UNSC, “Ignoring Sahel Region Will Have ‘Disastrous Implications’ for West Africa, Peace Operations Chief Warns Security Council”, Relief Web, November 16, 2020, available at: https://reliefweb.int/report/burkina-faso/ignoring-sahel-region-will-have-disastrous-implications-west-africa-peace (Accessed on April 26, 2021)
[11]European Council on Foreign Relations, “Mapping Armed Groups in Mali and the Sahel”, May, 2019, available at: https://ecfr.eu/special/sahel_mapping/operation_barkhane (Accessed on April 26, 2021)
[12]European Council on Foreign Relations, “Mapping Armed Groups in Mali and the Sahel”, May, 2019, available at: https://ecfr.eu/special/sahel_mapping/operation_barkhane (Accessed on April 26, 2021)
[13]John Campbell, “Deby's Death Heightens Uncertainty in Chad, West Africa”, Council on Foreign Relations, April 21, 2021, available at: https://www.cfr.org/blog/debys-death-heightens-uncertainty-chad-west-africa (Accessed on April 26, 2021)
[14] David Welna, “Amended Travel Ban Threatens U.S. Military Relations With Chad”, NPR, September 26, 2017, available at: https://www.npr.org/2017/09/26/553799094/amended-travel-ban-threatens-u-s-military-relations-with-chad (Accessed on April 26, 2021)
[15]Al Jazeera, “Chad deploys 1,200 troops to quell Sahel violence”, February 16, 2021, available at: https://www.aljazeera.com/news/2021/2/16/chad-to-send-troops-to-sahel-flashpoint-amid-regional-summit (Accessed on April 26, 2021)
[16]BBC Monitoring, “Chad's new leader - Mahamat IdrissDébyItno”, April 22, 2021, available at: https://www.bbc.com/news/world-africa-56836109 (Accessed on April 26, 2021)
[17]BBC Monitoring, “Chad's new leader - Mahamat IdrissDébyItno”, April 22, 2021, available at: https://www.bbc.com/news/world-africa-56836109 (Accessed on April 26, 2021)
[18]BBC Monitoring, “Chad's new leader - Mahamat IdrissDébyItno”, April 22, 2021, available at: https://www.bbc.com/news/world-africa-56836109 (Accessed on April 26, 2021)
[19]Michelle Gavin, “The Unfolding Consequences of Idriss Déby's Death”, Council on Foreign Relations, April 22, 2021, available at: https://www.cfr.org/blog/unfolding-consequences-idriss-debys-death (Accessed on April 26, 2021)