सार
समुद्री सहयोग धीरे-धीरे भारत-जर्मनी सामरिक साझेदारी के एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में उभर रहा है। हिन्द महासागर क्षेत्र (आईओआर) में हितों की बढ़ती अभिसरण और दोनों पक्षों में उत्सुकता, वैश्विक जन को सुरक्षित बनाने के लिए द्विपक्षीय समुद्री सहयोग को गहराने, स्थिरता बनाए रखने और एक सहयोगात्मक तरीके से आर्थिक समृद्धि में सहायता करने हेतु संभावनाएं पेश करती हैं।
भारत और जर्मनी महत्वपूर्ण सामरिक साझेदारों के रूप में विविध क्षेत्रों में एक घनिष्ठ बहुमुखी संबंधों को साझा करते हैं। दोनों देश अब लम्बे समय के कायम अपनी सामरिक साझेदारी को समुद्री क्षेत्र तक विस्तार करने के लिए उत्सुक हैं। भारत व्यापक हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था, समुद्री सैन्य क्षमताओं और सामरिक महत्वाकांक्षाओं के साथ क्षेत्र भर के देशों के साथ साझेदारी को मजबूत बनाने का इच्छुक है। दूसरी ओर, जर्मनी ने भूराजनीतिक परिवर्तनों को पहचानते हुए दोनों देशों के बीच हाल में संचालित उच्च स्तरीय वार्ताओं में हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) को महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्र के रूप में रेखांकित किया है। जनवरी 2020 में नई दिल्ली के दौरे के दौरान जर्मन राज्य मंत्री ने कहा कि जर्मनी “हिन्द-प्रशांत में एक हितधारक है, हालांकि जर्मनी भौगोलिक रूप से इस क्षेत्र का हिस्सा नहीं है, लेकिन यदि यहाँ की प्राणाधार जीवनरेखा को कोई खतरा होता है और अड़चन आती है, क्षेत्र में ऊर्जा और वाणिज्य के प्रवाह को चुनौती देता कोई भी संघर्ष होता है, तो इससे हमारी अर्थव्यवस्थाओं के कामकाज पर और परिणामस्वरूप यूरोप की समृद्धि और सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ेगा”।1 नवंबर 2019 में अंतर-शासकीय परामर्श (आईजीसी) के पांचवें दौर के लिए जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल की भारत यात्रा के दौरान जारी किए गए संयुक्त बयान में, “आईओआर की स्थिरता में भारत और जर्मनी के साझा हितों” पर प्रकाश डाला गया था।2
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जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल और प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी नई दिल्ली में
स्रोत: https://mea.gov.in/photo-gallery.htm
हिन्द महासागर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सन्दर्भ में लगातार ख्याति प्राप्त कर रहा है क्योंकि यह क्षेत्र एक प्रधान सामरिक सन्दर्भ बिंदु के रूप में उभर रहा है और हिन्द तथा प्रशांत महासागर का एक अधिक समेकित दृष्टि प्रस्तुत कर रहा है। क्योंकि कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समुद्री वीथिकाओं (आईएसएल) के माध्यम से पूर्व और दक्षिण एशिया, यूरोप और पश्चिम एशिया के बीच अधिकतर व्यापार होता है, इसलिए यह महासागर विश्व ऊर्जा उत्पादन और वैश्विक समुद्री व्यापार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पश्चिम पर होरमज़ की जलसंयोगी और पूर्व में मलक्का की जलसंयोगी, यहाँ पर पारवहन होने वाले तेल के सन्दर्भ में विश्व में सबसे अधिक महत्वपूर्ण सामरिक चोक पॉइंट्स हैं। इस क्षेत्र में किसी भी व्यवधान के गंभीर आर्थिक और रणनीतिक परिणाम हो सकते हैं। इस महासागर से गुजरने वाले कुल व्यापार में से लगभग 80 प्रतिशत व्यापार क्षेत्र-पार देशों को जाते हैं। इसलिए, महासागर की सुरक्षा और रक्षा, जिसे पारंपरिक और गैर-पारंपरिक खतरों दोनों का सामना करना पड़ता है, न केवल क्षेत्रीय देशों के लिए बल्कि अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।
आईओआर में भारत और जर्मनी दोनों के बड़े हित हैं। भारत न केवल भौगोलिक रूप से बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी एक हिंद महासागर राज्य है। यह देश हिंद महासागर के केंद्र में स्थित है और अपने 7500 किलोमीटर की वृहद तटरेखा और 2 मिलियन वर्ग किलोमीटर के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के साथ यह इस क्षेत्र का एक बड़ा खिलाड़ी है।3 इस देश की भौगोलिक अवस्थिति, इसकी सुरक्षा, वाणिज्य और व्यापार को समुद्री क्षेत्र से जोड़ती है। इस महासागर में “भारत के अधिकतर इतिहास का आकार दिया है, भारत के भविष्य की कुंजी भी है”।4 आसियान देशों, जापान, कोरिया गणराज्य, चीन और अमेरिका सहित इसके प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के साथ भारत का अधिकांश व्यापार इस क्षेत्र से होकर गुजरता है। देश में कच्चे तेल की आवश्यकता का लगभग 80%, जो भविष्य में बढ़ने की उम्मीद है, हिंद महासागर के आईएसएल के उपयोग से आयात किया जाता है।5
दूसरी ओर जर्मनी के लिए, भौगोलिक दूरी के बावजूद, इस महासागर का महत्वपूर्ण आर्थिक और सामरिक मूल्य है। जर्मन नौसेना के प्रमुख वाइस एडमिरल एंड्रियास क्रूस ने हिंद महासागर में जर्मन उपस्थिति के लिए बहस करते हुए कहा कि “जर्मनी का समुद्री हित दायरा हिन्द-प्रशांत क्षेत्र तक फैला हुआ है”।6 एक निर्यात निर्भर अर्थव्यवस्था होने के नाते जर्मनी के लिए यह महत्वपूर्ण है कि आपूर्ति श्रृंखला को बनाए रखने के लिए आईओआर के समुद्री वीथिकाएँ स्वतंत्र और सुरक्षित बने रहें। यूरोप-एशिया व्यापार का एक बड़ा हिस्सा इस महासागर से होकर गुजरता है। जर्मनी और यूरोप के लिए एशिया-प्रशांत बाजार तक पहुँचने में सुएज़ कैनाल के माध्यम से यह महासागर एक प्राथमिक प्रवेश द्वार है। यह क्षेत्र जर्मनी का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जबकि 2017 में जर्मनी के कुल निर्यातों का 15 प्रतिशत निर्यात जिसका कुल मूल्य €186 बिलियन था एशिया की ओर रवाना हुआ, जो 2018 में बढ़कर €391 बिलियन हो गया।7 इसऐसा अधिकतर व्यापार, हिंद महासागर के समुद्री वीथिकाओं से होते हुए समुद्री मार्गों से होकर गुजरता है।
हालांकि, क्षेत्र के महत्व के बावजूद, जर्मनी के सामरिक विचार में इस महासागर के प्रति एक सुसंगत दृष्टिकोण का अभाव रहा है। 2015 में, जर्मन फेडरल फॉरेन ऑफिस ने एक ‘हिन्द महासागर सम्मेलन’ का आयोजन किया था जिसने इस क्षेत्र के प्रति जर्मन सामरिक प्राथमिकताओं की अभिव्यक्ति की शुरुआत को चिह्नित किया।8 जर्मन के पूर्व विदेश मंत्री फ्रेंक-वाल्टर स्टीनमीयर ने सम्मेलन में कहा, “अब सही समय आ गया है कि जर्मनी और यूरोप आईओआर पर अधिक ध्यान देना चाहिए”।9 चूंकि जर्मनी अपने देश से दूर जुड़ाव हेतु प्रयास कर रहा है, भारत अपनी सामरिक अवस्थिति, हिंद महासागर में सबसे बड़ी नौसेना और तट रक्षक उपस्थिति के साथ और आईओआर में शांति और समृद्धि के लिए क्षेत्र पार साझेदारी बनाने की इच्छा के साथ, जर्मनी के लिए महत्वपूर्ण भागीदार होगा।
सहयोग के लिए प्रत्याशित फोकस क्षेत्र
ऐतिहासिक रूप से, भारत और जर्मनी के बीच आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों को बढ़ावा देने वाले समुद्री संपर्क, 16 वीं शताब्दी से अस्तित्व में हैं जब ऑग्सबर्ग और न्युरेमबर्ग की जर्मन ट्रेडिंग कंपनियों ने कीमती पत्थरों और मसालों की तलाश में अफ्रीका के इर्द-गिर्द नए समुद्री मार्ग विकसित किए थे। उसके बाद, 16 वीं और 18 वीं शताब्दी में भारत और अन्य एशियाई देशों के साथ व्यापार करने के उद्देश्य से कई जर्मन कंपनियों की स्थापना हुई।10 हालाँकि, हाल के समय में, हिंद महासागर के प्रति जर्मनी के हित अभाव को देखते हुए, समुद्री सहयोग को द्विपक्षीय एजेंडे में महत्व नहीं मिल पाया। पर फिर भी, हाल के दिनों में, यूरोप और जर्मनी को एशिया और इसके महासागरों के प्रति अपनी भूमिकाएं बढ़ाने की आवश्यकता का एहसास होता रहा है। चूंकि अब जर्मनी ने हिंद महासागर को सुरक्षित करने, जर्मन व्यापार और ऊर्जा स्रोतों का एक बड़ा हिस्सा यहाँ से गुजारने में सक्रिय रुचि लेना शुरू कर दिया है, इसलिए समुद्री सहयोग धीरे-धीरे भारत-जर्मन संबंधों का एक महत्वपूर्ण पहलू बनता जा रहा है।
समुद्रतटवर्ती देशों की बढ़ती क्षेत्रीय एकता, विकासशील अर्थव्यवस्थाएं, समुद्री प्रौद्योगिकियों की बढ़ती मांग और नीली अर्थव्यवस्था पर ध्यान बढ़ने के साथ-साथ, आईओआर जर्मनी को कई आर्थिक और सामरिक अवसर प्रदान करता है जिसे वह पूंजी में परिणामत कर सकता है। इन अवसरों का लाभ उठाने के लिए, हालांकि, यह आवश्यक है कि यह क्षेत्र शांतिमय और स्थिर बना रहे। हाल के घटनाक्रम, विशेष रूप से क्षेत्रीय और वैश्विक खिलाड़ियों के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और बढ़ती भू-आर्थिक प्रतिस्पर्धा और संक्रमित प्रकृति की गैर-पारंपरिक चुनौतियों में समुद्री वीथिकाओं को बाधित करने और क्षेत्र की स्थिरता को खतरे में डालने की क्षमता है।
2017 में, हिंद महासागर परिधि के सभी देशों, चीन और अमेरिका के लिए जर्मन राजदूतों का एक क्षेत्रीय सम्मेलन कोलोंबो में आयोजित किया गया था, जिसमें भारतीय विदेश सचिव एस जयशंकर को मुख्य भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया था। सम्मेलन के दौरान एक वरिष्ठ जर्मन राजनयिक ने टिप्पणी की कि “हिंद महासागर क्षेत्र एक ऐसा रंगमंच है जिसे कम आंका गया है ... .जर्मनी को अपने संबंधों में विविधता लाने की आवश्यकता है; यदि अमेरिका पहले की तरह उपस्थित नहीं है तो अन्य देशों को महासागर में शांति बनाए रखने के लिए जिम्मेदारी लेने की आवश्यकता है”। उन्होंने यह भी व्यक्त किया कि “यहाँ पर बड़ी शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा बन रही है, और भारत के साथ जुड़ना महत्वपूर्ण है, जो जर्मनी का एक बड़ा भागीदार है”।11
द्विपक्षीय संबंधों में समुद्री सहयोग के महत्व को पहचानते हुए, 2018 में भारत की यात्रा के दौरान जर्मन रक्षा मंत्री उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने अपने 30 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ पश्चिमी नौसेना कमान का दौरा किया। प्रतिनिधिमंडल ने कुछ रक्षा प्रतिष्ठापनों और भारतीय नौसेना का सबसे बड़ा स्वदेशी निर्देशित मिसाइल विध्वंसक आईएनएस कोलकाता का दौरा किया। उन्होंने रेखांकित किया कि जर्मनी और यूरोप सुरक्षित व्यापार मार्गों, बाजारों तक पहुंच और स्थिर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर निर्भर हैं और समुद्रों को खुला रखने में अत्यधिक रुचि रखते हैं। इस बात पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में एक भागीदार होने के नाते बर्लिन “भारत के साथ करीबी संवाद करना चाहता है”, और ये भी कहा कि “सुएज़ कैनाल और मलक्का जलसंयोगी के बीच मौजूद हिंद महासागर वैश्वीकरण का एक प्रमुख राजमार्ग है”।12
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डॉ उर्सुला वॉन डेर लेयेन, रक्षा मंत्री, जर्मनी का स्वागत करते हुए वाइस एडमिरल एआर कारवे, स्टाफ चीफ, पश्चिमी नौसेना कमान
स्रोत: indiannavy.nic.in
आईओआर में भारत और जर्मनी के हितों के महत्वपूर्ण अभिसरण हैं। 2017 में भारतीय प्रधान मंत्री की जर्मनी यात्रा के दौरान जारी किए गए संयुक्त वक्तव्य में दोनों देशों के लिए आईओआर में “सुरक्षा, स्थिरता, कनेक्टिविटी और नीली अर्थव्यवस्था के सतत विकास” पर विशेष महत्व पर जोर दिया गया है। दोनों देशों ने नियम आधारित व्यवस्था, नौवहन स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान और यूएनसीएलओएस और अन्य अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार विवादों के शांतिपूर्ण समाधान, आतंकवाद और समुद्री डकैती, ऐसे अन्य संगठित अपराधों के खतरों के मद्देनजर समुद्री यातायात की सुरक्षा में अपने साझा हितों को भी दोहराया है।13 भारतीय नौसेना ने विशेष रूप से अदन की खाड़ी में समुद्री डकैती रोधी गतिविधियों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, सेशेल्स, मॉरीशस और मालदीव और मलक्का में भी ईईजेड निगरानी और डकैती-रोधी तैनाती प्रदान की है। जर्मन नौसेना ने अतीत में, डकैती का मुकाबला करने और अदन की खाड़ी से होकर गुजरने वाले व्यापारी जहाजों की सुरक्षा के लिए ईयू-एनएवीएफओआर की ‘ऑपरेशन अटलांटा’ में भी भाग लिया था। इसलिए दोनों देश इस क्षेत्र में डकैती, गैर-कानूनी ढंग से मछली पकड़ने और अन्य समुद्री अपराधों जैसी चुनौतियों के खिलाफ क्षमता निर्माण में संयुक्त प्रयास आरम्भ करने के लिए सहयोग कर सकते हैं। हिंद महासागर क्षेत्र में मानवीय सुरक्षा और आपदा राहत (एचएडीआर) संचालन “भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं में सबसे आगे बना रहा है”।14 क्योंकि आईओआर प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील है, इसलिए समुद्री अपशिष्ट के खिलाफ लड़ाई, तटीय लचीलापन, और आपदा लचीलापन सहित पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास में सहयोग भविष्य के सहयोग के लिए ध्यान दिए जाने वाले महत्वपूर्ण क्षेत्र हो सकते हैं।
आज तक दोनों देशों के बीच नौसेना का जुड़ाव सीमित रहा है। भारतीय और जर्मन नौसेना के बीच 2008 में अरब सागर में कोच्चि से दूर एक संयुक्त पासेज नौसेना अभ्यास एकमात्र बड़ी सह-क्रिया थी। 2018 में, जर्मन नौसेना के प्रमुख वाइस एडमिरल एंड्रियास क्रूस ने भारत का दौरा किया, जिसमें भारतीय रक्षा बलों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ भारत-जर्मन नौसैनिक सहयोग और सैन्य संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा की गयी। जर्मन नौसेना की सीमित क्षमता को देखते हुए, एक संयुक्त नौसेना अभ्यास करना व्यवहार्य नहीं है15, लेकिन सद्भावना यात्रा, बंदरगाह का दौरा, प्रशिक्षण पहल और संयुक्त गश्ती तैनाती की तलाश की जा सकती है। जर्मन नौसेना अपने नौसेना अवसंरचनाओं को आधुनिक बनाने और उन्नत करने की योजना बना रहा है ताकि वो तत्कालीन समुद्रों से परे भी एक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार हो। इस साल की शुरुआत में, जर्मन नौसेना ने घोषणा की कि उसका हैम्बर्ग F124 साचसेन-क्लास फ्रिगेट जून 2020 से हिंद महासागर की यात्रा करने के लिए तैयार होगा, यह हिन्द महासागर नौसेना संगोष्ठी के भाग लेने के लिए रीयूनियन नामक फ्रांसीसी द्वीप का दौरा करेगा और रास्ते में बंदरगाहों का दौरा और युद्धाभ्यास करेगा।16 बहुपक्षीय मंचों पर गहन जुड़ाव के लिए भी प्रयास किए जाने चाहिए जहां हिंद महासागर परिधि संघ (आईओआरए) और आईओएनएस सहित दोनों देश भाग लेते हैं (जर्मनी 2015 से आईओआरए में एक डायलॉग पार्टनर है और आईओएनएस में एक पर्यवेक्षक है)।
रक्षा उद्योग के सहयोग की भी संभावना है। भारत और जर्मनी ने 2019 में संवर्धित रक्षा और रक्षा उद्योग सहयोग पर व्यवस्था का कार्यान्वयन पूर्ण किया, जिसका उद्देश्य रक्षा अनुसंधान और विकास सहयोग को सुविधाजनक बनाना है। 2019 में चांसलर मर्केल की भारत यात्रा के दौरान, दोनों पक्षों ने भारतीय और जर्मन नौसेना उद्योगों के बीच समुद्री परियोजनाओं को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया। यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि, जर्मन थिसेन क्रुप मरीन सिस्टम्स (GmBH) भारतीय नौसेना के लिए छह पारंपरिक पनडुब्बियों के निर्माण हेतु विश्व स्तर पर बोली लगाने वाले चार बोलीदाताओं में से एक है। यदि ये कंपनी $ 6.6 बिलियन की परियोजना को सफलतापूर्वक प्राप्त कर लेती है, तो यह डीजल-विद्युत चालित पनडुब्बियों के निर्माण के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करते हुए एक स्थानीय भारतीय शिपयार्ड के साथ मिलकर काम करेगी।17
भारत के लिए जर्मनी यूरोप का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार जर्मन के अर्थव्यवस्था की आधारशिला है जिसमें जर्मनी के निर्यात-उन्मुख अर्थव्यवस्था में € 50 बिलियन तक के अनुमानित वार्षिक कारोबार के साथ समुद्री उद्योग एक महत्वपूर्ण चालक है। जर्मनी के पास 2,250 व्यापारिक जहाजों वाला दुनिया का चौथा सबसे बड़ा व्यापारी बेड़ा है और वैश्विक कंटेनर पोत क्षमता में 20% बाजार हिस्सेदारी है, जो 300 मिलियन टन माल ढोता और 400,000 नौकरियां पैदा करता है। 2017 में आर्थिक मामलों और ऊर्जा के संघीय मंत्रालय द्वारा प्रकाशित समुद्री एजेंडा 2025 का उद्देश्य जर्मनी को “समुद्री उद्योग का केंद्र” बनाना है।18 स्पष्ट है कि समुद्री उद्योग को संभालने में जर्मन विशेषज्ञता द्विपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
चूंकि व्यापक हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अवसंरचना और कनेक्टिविटी चर्चा का विषय बन गया है, इसलिए यह इस क्षेत्र में जर्मन निवेश के अवसरों को खोलता है। भारत 'सागरमाला' पहल के तहत नए बंदरगाह बना रहा है औ पुराने बंदरगाहों का उन्नयन कर रहा है, जो आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग की मांग के साथ बंदरगाह द्वारा संचालित विकास पर केन्द्रित है। सीमेंस नमक एक जर्मन बहुराष्ट्रीय समूह कंपनी ने ‘सागरमाला’ पहल के अधीन पोत मंत्रालय द्वारा 2017 में स्थापित ‘समुद्री एवं पोत निर्माण में उत्कृष्टता केंद्र (सीईएमएस)’ में अपना योगदान दिया है। सीएमईएस के विशाखापट्टनम और मुंबई में कई कैम्पस हैं, जिसका उद्देश्य बंदरगाह और जहाज निर्माण क्षेत्र के लिए जहाजों की डिजाइन, विनिर्माण, संचालन और रखरखाव में कौशल विकास को आगे बढ़ाना है।19
उभरता हुआ एक ऐसा क्षेत्र जिसमें सहयोग बढ़ाने पर ध्यान दिया जा सकता है, वो है इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), ब्लॉकचेन समाधान और अन्य स्मार्ट तकनीकों के उपयोग से स्वचलित स्मार्ट बंदरगाहों का विकास है। जर्मनी को इस क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त है; जर्मनी का सबसे बड़ा बंदरगाह हैम्बर्ग, दुनिया का एक सबसे कुशल स्मार्ट बंदरगाह के रूप में काम कर रहा है, जो अत्याधुनिक डिजिटल प्रौद्योगिकी से लैस है और इंटरनेट ऑफ एवेरीथिंग का उपयोग करता और कुशल संचालन की गारंटी देता है।20 क्योंकि भारत इस तरह के स्मार्ट बंदरगाह के निर्माण की योजना बना रहा है, इसलिए जर्मन नो-हाउ सहयोग का अवसर प्रदान कर सकता है।
समुद्री प्रौद्योगिकी भविष्य के सहयोग हेतु ध्यान देने वाला एक प्रमुख क्षेत्र है, क्योंकि जर्मनी के पास समुद्री इंजीनियरिंग, अधोजल प्रौद्योगिकी, अपतटीय पवन ऊर्जा, कंटेनर शिपिंग, आपदा राहत प्रौद्योगिकी आदि में प्रौद्योगिकीय बढ़त प्राप्त है। 2019 में चांसलर एंजेला मर्केल की यात्रा के दौरान भारत और जर्मनी समुद्री प्रौद्योगिकीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए ‘अंतर्देशीय, तटीय और समुद्री प्रौद्योगिकी में एक समझौता ज्ञापन’ पर सहमत हुए। जर्मनी, भारत सहित आईओआर के अन्य देशों के साथ भागीदारी बनाने और ऐसी परियोजनाओं में जुड़ने के लिए अपनी विशेषज्ञताओं का उपयोग कर सकता है।
भारत और जर्मनी के बीच समुद्री सहयोग बढ़ाने में विशेष रूप से बंदरगाह प्रबंधन और रसद, पोत रसद, और बंदरगाहों के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का दोहन, तेल और गैस निकालने में अपतटीय प्रौद्योगिकी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों की तलाश की जा सकती है।
निष्कर्ष
हालाँकि आईओआर जर्मनी का तत्काल पड़ोस नहीं है, फिर भी इसके सामरिक और आर्थिक हित आंतरिक रूप से इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। हिंद महासागर और वृहद हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में हुए विकास का जर्मनी के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष निहितार्थ है - चाहे वो इसे चुने या न चुने। प्रतिस्पर्धा, सत्ता प्रतिद्वंद्विता, बढ़ते सैन्य खर्च और नौसेना क्षमताएं, बहुपक्षीय व्यवस्थाओं और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की चुनौती देते हैं और एक मजबूत क्षेत्रीय संगठन का अभाव आईओआर की स्थिरता और सुरक्षा को चुनौती देता है।
हाल के वर्षों में, भारत ने इस क्षेत्र के समान विचारधारा वाले देशों का भागीदार बनने की अपनी इच्छा को स्पष्ट किया है। भारत और जर्मनी के बीच बहुमुखी सामरिक साझेदारी ने स्पष्ट रूप से दोनों के बीच सहजता की भावना पैदा की है। भारत सागर (सभी के लिए सुरक्षा और विकास) और अब हिन्द-प्रशांत महासागर पहल (आईपीओआई) की दृष्टि के अधीन एक परस्पर सहायक और सहयोगात्मक तरीके से आईओआर में आर्थिक संबंधों और विकास को मजबूत बनाने के लिए प्रयास कर रहा है, इसलिए जर्मनी के साथ साझेदारी की संभावनाओं को और अधिक तलाशा जा सकता है। भारत क्षेत्रीय संघर्षों और गैर-पारंपरिक चुनौतियों से अबाधित होकर बंदरगाह विकास और संबंधित अवसंरचनाओं, अंतर्देशीय जल परिवहन, नीली अर्थव्यवस्था, आपदा लचीलापन और हिंद महासागर में समुद्री पारिस्थितिकी, व्यापार और कनेक्टिविटी को संरक्षित करने के साथ-साथ संप्रभुता और पारदर्शिता, व्यवहार्यता और स्थायित्व के क्षेत्रों में सहयोग के लिए अन्य देशों के साथ जुड़ने के लिए तैयार है। इन क्षेत्रों में भारत और जर्मनी के बीच सहयोग के प्रयासों को मूर्त, परिणाम-उन्मुख नतीजे पाने के लिए समन्वित किया जा सकता है।
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*डॉ. प्रज्ञा पाण्डेय, विश्व मामलों की भारतीय परिषद की शोधकर्ता |
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
अंत टिप्पण:
1Speech by Minister of State Annen at the reception of Foreign Secretary Vijay Gokhale on the occasion of the Raisina Dialogue 2020, 14.01.2020https://www.auswaertiges-amt.de/en/newsroom/news/annen-raisina/2292714
2JointStatement during the visit of Chancellor of Germany to India, November 01, 2019,https://mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/31991/Joint+Statement+during+the+visit+of+Chancellor+of+Germany+to+India
4Prime Minister’s Keynote Address at Shangri La Dialogue, June 01, 2018, https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/29943/Prime+Ministers+Keynote+Address+at+Shangri+La+Dialogue+June+01+2018
5India’s Maritime Security Strategy, 2015, https://www.indiannavy.nic.in/sites/default/files/Indian_Maritime_Security_Strategy_Document_25Jan16.pdf
6The Commanders Respond, March 2018, US Naval Institute, https://www.usni.org/magazines/proceedings/2018/march/commanders-respond
7Interview of Dr. Hubert Lienhard, Chair of the Asia-Pacific Committee of German Business, https://www.deutschland.de/en/topic/business/2018-asia-pacific-conference-in-jakarta
8Garima Mohan, Engaging with the Indian Ocean, 2017, p. 37,
https://www.gppi.net/media/Mohan_2017_Engaging_with_the_Indian_Ocean.pdf
9Speech by Foreign Minister Frank-Walter Steinmeier at the opening of the Indian Ocean Conference at the Federal Foreign Office, 2015, https://www.auswaertiges-amt.de/en/newsroom/news/150609-indianoceankonferenz/272306
10India-Germany Relations, https://mea.gov.in/Portal/ForeignRelation/Germany_July_2014.pdf
11German focus on Indian Ocean, April 05, 2017, https://www.thehindu.com/news/national/german-focus-on-indian-ocean/article17819673.ece
12Germany pitches for closer defence ties with India, July 12, 2018, https://economictimes.indiatimes.com/news/defence/germany-pitches-for-closer-defence-ties-with-india/articleshow/47445020.cms?utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst
13India-Germany Joint Statement during the visit of Prime Minister to Germany, May 30, 2017, https://www.mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/28496/IndiaGermany
14Indian Maritime Doctrine, Ministry of Defence, Government of India 2014 ,p. 14
15I.bid. no. 8, p7
16German Navy F124-Class Frigate Hamburg Set For 5-Month Indo-Pacific Deployment, https://www.navalnews.com/naval-news/2020/03/german-navy-f124-class-frigate-hamburg-set-for-5-month-indo-pacific-deployment/
17PM NarendraModi to meet German Chancellor Angela Merkel; to discuss defence cooperation, climate change and cyber security, https://www.financialexpress.com/defence/pm-narendra-modi-to-meet-german-chancellor-angela-merkel-to-discuss-defence-cooperation-climate-change-and-cyber-security/1745834/
18Maritime Agenda 2025, Federal Ministry of Economic Affairs and Energy, 2017, https://www.bmwi.de/Redaktion/EN/Publikationen/maritime-agenda-2025.html
19Word Class Center of Excellence in Maritime and Ship Building to come up in Mumbai and Vishakhapatnam, 21 November 2017,https://pib.gov.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=173704
20Hamburg Port Authority, https://www.hamburg-port-authority.de/en/hpa-360/smartport/