नॉवेल कोरोनावायरस अफ़ग़ानिस्तान के लिए इस समय एक और चुनौती लेकर आया है, एक ऐसा देश जो पहले से ही कई दशकों के युद्ध का शिकार रहा है। 25 मार्च 2020 को, अफ़ग़ानिस्तान के सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय ने हेरात प्रांत में कोरोनावायरस के 32 नए मामलों की घोषणा की, जिससे अफ़ग़ानिस्तान में मामलों की कुल संख्या बढ़कर 74 हो गई है।1 इसी बीच, यह बीमारी देश के दक्षिण, पूर्व और उत्तर के 11 अन्य प्रांतों तक भी पहुंच गई है। यदि प्रसार को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती है, तो यह संख्या काफी हद तक बढ़ने की संभावना है जिससे देश की आधी आबादी कोविड-19 से संक्रमित होने के खतरे में पड़ जाएगी। ऐसे समय में जब दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाएं कोविड-19 के प्रसार का सामना करने के लिए संघर्ष कर रही हैं, इस वैश्विक आपातकाल के मद्देनजर एक कंगाल युद्ध-ग्रस्त देश के सामने जो चुनौती है, वह शायद ही अतिरंजित हो सकती है। पूरे अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ते पॉजिटिव मामलों के बीच, हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की भविष्यवाणी के हवाले से कहा, “16 मिलियन लोगों के वायरस से संक्रमित होने की संभावना है” और चेतावनी दी है कि यह “अफ़ग़ानिस्तान में 110,000 लोगों की मौत का कारण बन सकता है।”2
हालाँकि महामारी का अभी तक इस देश पर कोई विनाशकारी प्रभाव नहीं पड़ा है, लेकिन जिस तरह से देश में चीजें आगे बढ़ रही हैं, बस कुछ ही समय की बात है कि परिस्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। पड़ोसी ईरान में घट रही दुःखद घटनाएं एक गंभीर खतरा पैदा करती हैं, विशेषकर तेहरान ने कथित तौर पर अपने अस्पतालों में अफ़ग़ानी शरणार्थियों का इलाज करने से इनकार कर दिया, जिससे कई लोग सीमा पार करके अफ़ग़ानिस्तान जाने पर मजबूर हो गए हैं।3 हजारों अफ़ग़ानी ईरान के पड़ोस के प्रांतों में वापस लौट आए हैं; जो सबसे बुरी तरह से प्रभावित देशों में से एक है। खबरों के मुताबिक, प्रसार को नियंत्रित करने के लिए वापस लौटने वाले अधिकांश लोगों को संगरोध में नहीं रखा गया था।4 इसलिए पश्चिमी प्रांत हेरात कम से कम 54 पॉजिटिव मामलों के साथ देश में प्रकोप का अधिकेन्द्र बनकर उभरा है।5 ईरान से वापस लौटते लोगों की भीड़ और सुरक्षा दिशानिर्देशों के पालन में अभाव के कारण लोगों को सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए मनाने में सरकार के प्रयास व्यर्थ साबित हुए हैं। अफ़ग़ानिस्तान में चिकित्सा अवसंरचना की बहुत ख़राब स्थिति को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि यह एक महामारी के प्रकोप से निपटने के लिए सुसज्जित नहीं है और इस युद्धग्रस्त देश में यह एक नई अग्र रेखा हो सकती है। राजनीतिक और नागरिक समाज के कई प्रसिद्ध व्यक्तियों ने अफ़ग़ानिस्तान में कोविड-19 के खिलाफ सरकार के उपायों पर चिंता जताई है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई का राजनीतिक रूप से शोषण किया जाता है, तो देश को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।6
कोरोना वायरस महामारी का प्रकोप विशेष रूप से अफ़ग़ानिस्तान के लिए ऐसे कठिन समय पर आया है, जब यह अमेरिका और तालिबान के बीच 18-वर्षीय युद्ध को समाप्त करने के उद्देश्य से किए गए शांति समझौते को लागू करने के महत्वपूर्ण कार्य का सामना कर रहा है। यह कार्य वर्तमान में एक आंतरिक राजनीतिक संकट की छाया में है, जो राष्ट्रपति अशरफ़ गनी और अभियान में उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी डॉ. अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच चुनावी विवाद से उपजा है, जिसमें दोनों ने धोखाधड़ी के आरोप पर एक विवादित राष्ट्रपतीय चुनाव के बाद राष्ट्रपति पद का दावा किया था। यह आश्चर्यजनक था कि पूरे विश्व में कोरोना वायरस की महामारी फैलने के बावजूद अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने पिछले हफ्ते काबुल की यात्रा की ताकि अफ़ग़ानिस्तान को यह विवाद खत्म करने के लिए राजी कराया जा सके, जिसकी वजह से संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस)-संचालित शांति प्रयास खतरे में पड़ने की संभावना है।7 इस कदम ने रेखांकित किया कि अमेरिका प्रतिद्वंद्वी नेताओं के बीच कितनी बुरी तरह से एक समझौता करवाना चाहता है ताकि “एक समावेशी” सरकार तालिबान के साथ वार्ता को आगे बढ़ा सके। पोम्पियो ने अपने वक्तव्य में कहा, “अमेरिका उनसे निराश है और अफ़ग़ानिस्तान और हमारे साझा हितों के लिए उनके आचरण का क्या मतलब है,” मित्रतापूर्व रवैया अपनाने से इनकार करने पर चेतावनी देते हुए कहा, “ये उन अफ़ग़ानियों, अमेरिकियों, और गठबंधन सहयोगियों का अपमान है जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया है और इस देश के लिए एक नया भविष्य बनाने के संघर्ष में अपना अमूल्य योगदान दिया है।”8 पोम्पियो की मध्यस्था असफल होने के बाद, विदेश विभाग ने कहा कि वह इस वर्ष अफ़ग़ानिस्तान को दी जाने वाली सहायता राशि में $1 बिलियन की कटौती कर रहा है और संभवतः 2021 में भी $1 बिलियन की कटौती करेगा।9
यह आशंका जताई गई थी कि नेताओं का एक समेकित सरकार का समर्थन करने से इनकार करना, शांति मामलों के मंत्रालय द्वारा घोषित ’21 सदस्यीय समझौता टीम’ की वैधता पर सवाल उठाएगा। अफ़ग़ानी सरकार की टीम का नेतृत्व राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय के पूर्व प्रमुख मोहम्मद मासूम स्टेन्कजई ने किया और इसमें राजनेता, पूर्व अधिकारी, नागरिक समाज के प्रतिनिधि शामिल थे जिनमें पाँच महिलाएँ भी शामिल थीं।10 हालाँकि शांति प्रक्रिया के अगले कदमों में बड़ी रुकावट तब आई जब 28 मार्च को तालिबान ने घोषणा किया कि वह काबुल द्वारा घोषित टीम के साथ बातचीत नहीं करेगा क्योंकि इस टीम को सही तरीके से नहीं चुना गया है और इसमें “सभी अफ़ग़ानी गुट” शामिल नहीं हैं।11
अफ़ग़ानिस्तान में गनी-अब्दुल्ला के झगड़े के प्रति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभाजित प्रतिक्रिया मिली है। इन प्रतिक्रियाओं में चिंता और, सहायता धन रोकने की आलोचना शामिल है। फरवरी 2020 में राष्ट्रपति चुनाव में विजेता घोषित किए जाने के बाद गनी को बधाई देकर यूरोपीय संघ और भारत जैसे प्रमुख दानदाताओं ने अपना रुख कुछ हद तक स्पष्ट कर दिया था। जबकि गनी के शपथ ग्रहण समारोह में अमेरिका के विशेष दूत ज़ल्मय खलीलज़ाद की उपस्थिति और समानांतर सरकार की स्थापना के खिलाफ अमेरिका के लगातार विरोध को गनी के निःशब्द समर्थन के रूप में समझा जा सकता है, पर अमेरिका ने अभी तक अपनी प्राथमिकता स्पष्ट नहीं की है। यह तथ्य कि अपने हालिया दौरे में पोम्पियो ने दोनों नेताओं के साथ अलग-अलग (और एक साथ) मुलाकात की थी, यह दर्शाता है कि इस समय अमेरिका पूरी तरह से किसी एक के मुकाबले दूसरे को चुनना नहीं चाहता है। यह स्पष्ट है कि काबुल के घटनाक्रमों को लेकर अमेरिका को निराशा होने के बावजूद, यह अफ़ग़ानिस्तान के राजनीतिक तूफान से खुद को अलग करने की स्थिति में नहीं है; और न ही अफ़ग़ानिस्तान अपने सबसे बड़े दानदाता को छोड़ सकता है।
अमेरिकी विदेश मंत्री का यह दौरा, तालिबान के साथ 29 फरवरी के समझौते पर हस्ताक्षर करने के लगभग एक महीने बाद हुआ था। इस समझौते के बाद 10 मार्च, 2020 को ‘अंतः-अफ़ग़ानी वार्ता’ होनी थी। लेकिन काबुल से 5000 कैदियों की रिहाई को लेकर तालिबान की मांग पर यह प्रक्रिया स्थगित हो गई। दोनों पक्षों ने कैदियों की रिहाई पर अलग-अलग रुख प्रकट किया- हालांकि अफ़ग़ानी सरकार चरणबद्ध और सशर्त रिहाई के लिए सहमत हुई, पर तालिबान ने जोर देकर कहा कि सभी कैदियों को एक ही बार में रिहा किया जाना चाहिए जैसा कि शांति समझौते में बताया गया है। पर जब ऐसा लगने लगा कि संभावित वार्ता में बस रुकावट आने ही वाली है, खबरें आईं कि 22 मार्च को तालिबान और अफ़ग़ानी सरकार ने कैदियों की रिहाई पर एक “वर्चुअल” बैठक आयोजित की है।12 कथित तौर पर दोनों पक्षों ने अमेरिका और कतर द्वारा सुगम की गई स्काइप बैठक पर दो घंटे से अधिक समय तक बात की, जिसमें “सभी पक्षों ने हिंसा घटाने, अंतः-अफ़ग़ानी वार्ता और एक वृहद एवं स्थायी युद्ध विराम के लिए अपनी कड़ी प्रतिबद्धता व्यक्त की”।13 ज़ल्मय खलीलज़ाद ने शांति प्रक्रिया को आगे ले जाने में दोनों पक्षों द्वारा कैदियों की रिहाई के महत्व के बारे में ट्वीट किया, और आगे कहा कि “कोरोनावायरस का खतरा कैदियों की रिहाई को और अधिक जरूरी बनाता है”।14 अफ़ग़ानी सरकार की वार्ता टीम के साथ बातचीत करने से तालिबान का इनकार करना, कैदियों के आदान-प्रदान के कार्यान्वयन पर सवालिया निशान लगाता है।
अफ़ग़ानिस्तान के वर्तमान राजनीतिक संदर्भ में, एकमात्र पक्ष जिसे काफी हद तक फायदा हुआ है, वह तालिबान है। आज, वे स्पष्ट रूप से अफ़ग़ानिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य में एक वैध खिलाड़ी के रूप में उभरे हैं, जिसके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने बड़े पैमाने पर इस समूह के साथ जुड़ने के लिए अपनी उत्सुकता जताई है। इसके अलावा, यह अमेरिका से एक सौदा करने में कामयाब रहा, जिसने पहले इसे संघर्ष में एक हितधारक के रूप में भी देखने से इनकार कर दिया था। इस बीच, तालिबान ने सुरक्षा अधिष्ठापनों पर अपना आक्रमण जारी रखा है।15 पिछले शुक्रवार को, समूह ने उत्तरी बदकशान प्रांत के कई जिलों पर हमला किया जिसमें अफ़ग़ानिस्तान के कम से कम 10 सुरक्षाकर्मी मारे गए।16
भले ही अफ़ग़ानिस्तान कई चुनौतियों से जूझ रहा है, इसके अल्पसंख्यक समुदायों पर हुए भीषण आतंकवादी हमलों ने दुनिया को हिला कर रख दिया है। सबसे हाल में, इस्लामी राज्य ने काबुल के दिल शोरबाज़ार में स्थित गुरूद्वारे में हमला किया था, जिसमें अफ़गान-सिख समुदाय के 25 सदस्यों की मौत हो गई थी।17 सिखों का यह नरसंहार, मार्च के महीने में एक धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय पर आईएसआईएस का दूसरा हमला था। इससे पहले 6 मार्च को मुख्य रूप से शिया हजारा जातीय अल्पसंख्यकों के एक समूह पर हमला किया गया था, जिसमें 30 से अधिक लोग मारे गए थे।18
चाहे राजनीतिक संकट हो, शांति समझौता हो, उग्रवाद हो या महामारी हो- अफ़ग़ानिस्तान में चुनौतियों की संख्या केवल कई गुना बढ़ी हैं, जबकि आम अफ़ग़ानियों के लिए “शांति” हमेशा से एक माया बन कर रही है। अब समय आ गया है कि अफ़ग़ानिस्तान के विभिन्न हितधारक दुश्मनी छोड़कर वैश्विक संकट का समाधान करने के लिए एक-साथ मिलकर काम करें और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा “हमारे जीवन की सच्ची लड़ाई” पर ध्यान केंद्रित करने के लिए “विश्व में तत्काल युद्ध विराम” करने की अपील का जवाब दें।19 जैसा कि बर्नेट आर. रुबिन- अफ़ग़ानिस्तान के एक प्रमुख विशेषज्ञ कहते हैं, “इस अपील को लागू करने के लिए, महासचिव को अफ़ग़ानिस्तान के लिए एक ऐसा प्रतिनिधि नियुक्त करना चाहिए जिसकी मानवीय कार्यों में एक मजबूत पृष्ठभूमि हो और उस व्यक्ति को सफल बनाने में मदद के लिए, अमेरिका और उसके साझेदारों को अफ़ग़ानी राज्य को लगातार सहायता देना जारी रखना चाहिए, भले ही उन्होंने 29 फरवरी के समझौते के अनुसार अपनी प्रतिबद्धताओं के तहत सैनिकों को वापस बुला लिया हो।”20
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*डॉ. अन्वेषा घोष, विश्व मामलों की भारतीय परिषद की शोधकर्ता |
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
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