2017 में, पश्चिम अफ्रीकी राज्यों में अपनी तीन देशों की यात्रा के दौरान, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने उपनिवेश के समय के दौरान अफ्रीका से ली गई कलाकृतियों को वापस लौटाने की आवश्यकता के बारे में बात की थी। औगाडौगू विश्वविद्यालय, बुर्किना फ़ासो के अपने भाषण में, उन्होंने कहा कि ‘अफ्रीकी धरोहर मात्र निजी संग्रहों और यूरोपीय संग्रहालयों में रखने के लिए नहीं है’ और ‘अफ्रीकी धरोहर को न केवल पेरिस में, बल्कि डकार, लागोस और कॉटनौ में भी प्रदर्शित किया जाना चाहिए’।1 आगे बढ़ते हुए, उन्होंने चुराई गई अफ्रीकी कलाकृतियों को वापस लौटाने की संभावनाओं की तलाश करने के लिए सेनेगली लेखक और अर्थशास्त्री फेलवाइन सार्र और फ्रांसीसी कला इतिहासकार बेनेडिक्ट सवॉय को शामिल करते हुए एक दो सदस्यीय आयोग का गठन किया। आयोग द्वारा 2018 में जमा की गई ‘सवॉय-सार्र रिपोर्ट’ में स्पष्ट रूप से यह सुझाव दिया कि अफ्रीकी कलाकृतियों को अफ्रीका को वापस लौटा दिया जाना चाहिए। रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया था कि उन वस्तुओं को वापस लौटाने के बाद ‘अगले पांच वर्षों में सूचना एकत्रण, अनुसंधान, वैज्ञानिक विनिमय और प्रशिक्षण भी होना चाहिए’।2 मैक्रॉन के भाषण और सवॉय-सार्र की रिपोर्ट ने अफ्रीकी नागरिकों, इतिहासकारों, नागरिक समाज समूहों और राजनीतिक नेताओं के मन में लंबे समय से घर कर चुके मुद्दे को उठाया था।
अफ्रीका के उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया के दौरान, बेल्जियम और जर्मनी सहित सभी औपनिवेशिक शक्तियों ने बड़ी संख्या में अफ्रीकी कलाकृतियों और वस्तुओं को जबरन हथिया लिया था। इनमें कीमती मूर्तियाँ, महल के दरवाजे, कलाकृतियाँ, सिंहासन और तख्तियाँ शामिल थीं। औपनिवेशिक सेनाएँ और प्रशासक इन वस्तुओं को लूटने में जुटे हुए थे। उदाहरण के लिए, 1897 में, ब्रिटिश सेना ने बेनिन साम्राज्य, की मूर्तियों और तख्तियों को लूट लिया, जो अब आधुनिक नाइजीरिया का हिस्सा है। ‘बेनिन ब्रोंज’ के नाम से जानी जाने वाली ये वस्तुएं अब लंदन के ब्रिटिश संग्रहालय का हिस्सा हैं। इसी प्रकार, 1892 में, फ्रांसीसी सेनाओं ने अबोमी शहर को लूटा था, जो वर्तमान समय में बेनिन के नाम से जाना जाता है। जाहिर है, चुराई गई ये वस्तुएँ पेरिस की क्वाई ब्रानली संग्रहालय का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।3 इसके अलावा, इनमें से कुछ वस्तुएं यूरोपीय नागरिकों के निजी संग्रह का हिस्सा हैं।
कुछ अनुमानों के अनुसार, 90-95 प्रतिशत अफ्रीकी कलाकृतियाँ अफ्रीका महाद्वीप से बाहर हैं और इनमें से अधिकांश वस्तुएं यूरोप में हैं। लगभग 90,000 अफ्रीकी वस्तुएं फ्रांस में हैं और अकेले ब्रिटिश संग्रहालय में उप-सहारा अफ्रीका की 73,000 वस्तुएं हैं।4 बेल्जियम के मामले में, मध्य अफ्रीका की रॉयल संग्रहालय में लगभग 180,000 अफ्रीकी कलाकृतियां हैं। अफ्रीकी कलाएं केवल पूर्व यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों में ही मौजूद नहीं है। बल्कि ऑस्ट्रिया, एक ऐसा देश जिसने कभी अफ्रीका का उपनिवेश नहीं किया था, के वेल्ट संग्रहालय में 37,000 अफ्रीकी वस्तुएं मौजूद हैं।5 ये संख्याएं लूट की सीमा के साथ-साथ उनकी तिरछी भौगोलिक संकेन्द्रण को दर्शाती हैं। इसलिए, यूरोपीय देशों को अफ्रीकी वस्तुएं मजबूरन वापस लौटाने के लिए चलाए जा रहे आंदोलन को महाद्वीप के भीतर कर्षण मिल रहा है। राष्ट्राध्यक्षों जैसे कि डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डीआरसी) के राष्ट्रपति फेलिक्स त्सेसीकेदी समेत अन्य प्रभावशाली लोगों ने इन कलाकृतियों को वापस लौटाने के लिए खुलकर आवाज उठाई है।6
हालांकि, मैक्रॉन के भाषण और सवॉय-सार्र की रिपोर्ट के बावजूद, अफ्रीकी कलाकृतियों के वास्तविक पुनर्स्थापन के मामले में बहुत कुछ नहीं बदला है। कुछ यूरोपीय संग्रहालयों ने सीमित अवधि (जैसे कि 3 से 5 वर्ष) के लिए अफ्रीकी देशों को इनमें से कुछ वस्तुएं ‘उधार’ पर देने की इच्छा दिखाई है और इसके पट्टे की अवधि बढ़ाने की संभावना भी जताई है। हालांकि, इन वस्तुओं को स्थायी रूप से वापस लौटाने का मुद्दा विवादस्पद और अनसुलझा बना हुआ है। ब्रिटिश और फ्रांसीसी संग्रहालय अपने संग्रह को विखंडित नहीं कर सकते और वास्तव में इन वस्तुओं को वापस लौटाने के लिए उन्हें अपने संबंधित संसदों से अनुमति लेने की आवश्यकता है। हालांकि, अफ्रीकी कलाकृतियों की वापसी के मुद्दे को हल करना आसान नहीं होगा। वास्तव में, अफ्रीकी कलाकृतियों की वापसी की तुलना में ‘मानव अवशेष’ को वापस लौटाना आसान था। उदाहरण के लिए, जर्मनी ने 2018 में नामीबिया को ‘मानव अवशेष’ वापस लौटाया था।7
अफ्रीकी वस्तुओं को वापस लौटाने और ऐसा करने के लिए यूरोपीय अनिच्छा का मुद्दा सिर्फ लूट और उसकी वापसी के मुद्दे तक ही सीमित नहीं है। यह अफ्रीका के इतिहास, सांस्कृतिक धरोहर और पहचान के साथ अंतरंग रूप से जुड़ा हुआ है। अफ्रीकी देशों को वस्तुएं वापस लौटाने से इनकार करके और/या लौटाने में देरी करके, यूरोप अफ्रीकी देशों को अपने ही इतिहास के एक हिस्से पर वैध स्वामित्व रखने से वंचित कर रहा है। ये कलाकृतियाँ यूरोपीय उपनिवेशवादियों के आगमन से पहले अफ्रीका की शानदार सभ्यता और समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाती हैं। इन वस्तुओं की वापसी और अफ्रीकी संग्रहालयों में इनके प्रदर्शन से निश्चित रूप से अफ्रीकी लोगों को अपने अतीत के साथ जुड़ने में मदद मिलेगी, जिससे महाद्वीप की बेहतर छवियां प्रक्षेपित करने और साथ ही तथाकथित बर्बरता और क्रूरता के मिथकों को भंग करने में मदद मिलेगी। यूरोपीय संग्रहालयों में इन वस्तुओं की निरंतर उपस्थिति यह भी दर्शाती है कि उपनिवेशवाद की परियोजना वास्तव में अब भी समाप्त नहीं हुई है।
यह एक तथ्य है कि कई अफ्रीकी राज्यों में इन वस्तुओं को रखने हेतु संग्रहालयों को प्रबंधित करने की आर्थिक क्षमता और प्रशिक्षित जनशक्ति का अभाव है। इसलिए, जैसा कि सवॉय-सार्र की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है, यूरोपीय देश संग्रहालय के कर्मियों को प्रशिक्षित करने, ज्ञान और संग्रहालयों के प्रबंधन से संबंधित सर्वोत्तम प्रथाएं साझा करने में सहायता और आवश्यक आर्थिक सहायता भी प्रदान कर सकते हैं। उस दिशा में वास्तव में कुछ प्रयास हुए हैं। पश्चिमी अफ्रीकी शहरों जैसे कि लागोस और बेनिन में नए संग्रहालयों का निर्माण किया जा रहा है और यूरोपीय संग्रहालय इन संग्रहालयों के लिए कुछ कलाकृतियाँ ‘उधार’ पर देगा। ‘बेनिन डायलॉग ग्रुप’ नामक एक पहल भी की जा रही है जिसमें कई यूरोपीय संग्रहालय, रॉयल कोर्ट ऑफ़ बेनिन (नाइजीरिया) और नाइजीरियाई सरकार शामिल हैं। बेनिन डायलॉग ग्रुप ‘बेनिन सिटी में एक संग्रहालय की स्थापना के लिए साथ मिलकर काम करने पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें यूरोपीय संग्रहालयों के एक संघ से बेनिन की कला कृतियों को आवर्ती तौर पर प्रदर्शित किया जाएगा’।8 हालांकि, वास्तविक परिणामों को प्राप्त करने के लिए इन प्रयासों को त्वरित करने और कई गुना बढ़ाने की आवश्यकता है।
चुराई गई कलाकृतियों को वापस लौटाने का मुद्दा भारत के संदर्भ में भी प्रासंगिक है। भारत पर फतह और उस पर कब्ज़ा करने के दौरान, अंग्रेजों ने देश के विभिन्न हिस्सों से कई मूल्यवान कलाकृतियों की चोरी की थी और इनमें से कई कलाकृतियों को ब्रिटिश संग्रहालय और कला दीर्घाओं में प्रदर्शित किया गया है।9 स्वतंत्र भारत इन कलाकृतियों को वापस लाने के लिए लगातार जोर दे रहा है। हाल ही में, ब्रिटिश और अमेरिकी सरकारों ने भारत को कुछ कीमती कलाकृतियाँ बरामद करने में मदद की है जिनकी तस्करी की जा रही थी।10 इसके अलावा, जनवरी 2020 में प्रधान मंत्री स्कॉट मॉरिसन की भारत यात्रा के दौरान ऑस्ट्रेलिया ने भारत को दो मूर्तियों वापस करने का फैसला किया था।11 हालांकि, कोहिनूर हीरे और 7.5 फीट ऊंची सुल्तानगंज बुद्ध प्रतिमा, जो अंग्रेजों द्वारा लूटी गई थी, को वापस करने के भारत के अनुरोध को ब्रिटिश सरकार ने अस्वीकार कर दिया गया था।12 अफ्रीका की तरह ही, भारत को भी यूरोपीय राज्यों से इनकार, अनिच्छा और द्वेषपूर्ण सहयोग का सामना करना पड़ रहा है।
इस संबंध में, नाज़ियों द्वारा कला कार्यों को लूटने और इन कलाकृतियों को वापस लौटाने के मामले पर विचार करने और तुलना करने का अनुदेश देना उचित होगा। 1930 और 1940 के दशक में, नाज़ियों ने पोलैंड, फ्रांस, चेकोस्लोवाकिया, नीदरलैंड और बेल्जियम जैसे विजित देशों से सभी यूरोपीय कलाकृतियों का लगभग पांचवां हिस्सा लूटा था। यह लूट एक व्यवस्थित लूट थी और तीसरे-राइख के लिए महत्वपूर्ण थी। लूट की मात्रा का अंदाजा लगाना मुश्किल था, हालांकि अनुमानित आंकड़े बताते हैं कि कई मिलियन चित्रों, मूर्तियों और पुस्तकों को लूटा गया था। नाज़ियों ने कई यहूदी परिवारों के निजी कला संग्रह को भी लूट लिया था।13 इसलिए, नाज़ियों द्वारा चुराई गई कलाकृतियों की पहचान करने और उन्हें उनके असली मालिकों को वापस लौटाने के लिए सहयोगियों ने अलग से एक कार्यक्रम चलाया था जिसे ‘स्मारक, ललित कला और अभिलेखागार (एमएफएए) कार्यक्रम’ के नाम से जाना जाता था।14 1945-1951 के दौरान, एमएफएए अधिकारियों ने पाँच मिलियन कलाकृतियाँ उनके असली मालिकों को वापस लौटाई थीं और फिर भी यह अनुमान लगाया गया कि कई और सांस्कृतिक वस्तुओं को लौटाया जाना बाकी है।15
यूरोपीय अनुभव, एशिया और अफ्रीका के अनुभवों से बिलकुल विपरीत हैं। यूरोपीय, अपने देश से चुराई गई कलाकृतियों को, बड़े पैमाने पर, वापस लाने की व्यवस्था करने में सक्षम हैं। इसलिए, पूर्व औपनिवेशिक शक्तियों से कलाकृतियों को वापस लाना और संग्रहालय का प्रबंधन और रखरखाव एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें भारत और अफ्रीकी राज्य सहयोग कर सकते हैं, अपने अनुभवों को साझा कर सकते हैं और अपनी चुराई गई कलाकृतियों को वापस लौटाने के लिए पूर्व औपनिवेशिक शक्तियों को मनाने के लिए एक साथ मिलकर काम कर सकते हैं। ईरान और अफ़ग़ानिस्तान जैसे अन्य एशियाई देश भी इन प्रयासों में सहयोग दे सकते हैं। उत्तर-औपनिवेशिक राज्यों के लिए, अपने खुद के इतिहास को पुनः प्राप्त करना और अपनी कलाकृतियों को वापस लाना केवल इतिहास और संस्कृति के बारे में नहीं है, बल्कि पहचान और राजनीति के बारे में भी है। इसलिए, भारत और अफ्रीकी राज्यों के लिए इन कलाकृतियों को वापस लाने के लिए अलग-अलग तरीकों से सहयोग करना आवश्यक है।
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* डॉ. संकल्प गुर्जर, शोधकर्ता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
टिप्पणियां:
[1] “Emmanuel Macron’s speech at the University of Ouagadougou”, Élysée, November 28, 2017, at https://www.elysee.fr/emmanuel-macron/2017/11/28/emmanuel-macrons-speech-at-the-university-of-ouagadougou.en (Accessed February 20, 2020)
[1] Farah Nayeri, “Museums in France Should Return African Treasures, Report Says”, The New York Times, November 21, 2018 at https://www.nytimes.com/2018/11/21/arts/design/france-museums-africa-savoy-sarr-report.html (Accessed February 20, 2020)
[1] Ibid
[1]Naomi Rea, “France Released a Groundbreaking Report on the Restitution of African Art One Year Ago. Has Anything Actually Changed?”, ArtNetnews, December 11, 2019, at https://news.artnet.com/art-world/french-restitution-report-global-1728216 (Accessed February 20, 2020)
5 Lynsey Chutel, “France will have to change its laws to return its looted”, African art, Quartz Africa, November 22, 2018, at https://qz.com/africa/1473023/france-should-return-looted-african-artifacts-says-report/ (Accessed February 20, 2020)
[1] Sheila Uría Veliz, “Congolese artefacts kept in Belgian Museum must be returned, said DRC President”, The Brussels Times, November 25, 2019, at: https://www.brusselstimes.com/belgium/80154/congolese-artefacts-kept-in-belgian-museum-must-be-returned-said-drc-president/
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[1] For more on this, see: Aarefa Johri, “Not just the Kohinoor: Four other artefacts that India wants Britain to return”, Scroll.in, April 22, 2016, at: https://scroll.in/article/807006/not-just-the-kohinoor-four-other-artefacts-that-india-wants-britain-to-return (Accessed February 20, 2020)
[1]Jaya Menon, “UK returns two stolen artifacts, including one from Tamil Nadu, to India”, The Times of India, August 16, 2019, at: http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/70693775.cms?utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst (Accessed February 20, 2020)
[1] “Australian PM to return three National Gallery idols stolen from India”, The Hindu, November 27, 2019, at: https://www.thehindu.com/news/national/tamil-nadu/australia-prime-minister-to-return-three-idols-from-national-gallery-to-india/article30096924.ece (Accessed February 20, 2020)
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[1] In 2014, a beautiful film, called ‘The Monuments Men’ was released about the MFAA officers and their difficult mission. It starred leading Hollywood actors such as George Clooney and Matt Demon. See: Ben Child, “George Clooney’s The Monuments Men leaves the critics stone cold”, The Guardian, January 30, 2014, at: https://www.theguardian.com/film/2014/jan/30/monuments-men-leaves-critics-stone-cold (Accessed March 6, 2020)
[1] Robert M. Poole, “Monumental Mission”, Smithsonian Magazine, February 2008, at: https://www.smithsonianmag.com/history/monumental-mission-16753884/ (accessed March 6, 2020)