यह दृष्टिकोण बताता है कि क्यों अमेरिका और चीन के बीच हाल ही में हस्ताक्षरित चरण-एक व्यापार समझौता मात्र एक अंतः कालीन व्यवस्था है और इसके बहुपक्षीय व्यापार शासन पर क्या निहितार्थ हैं। विश्लेषण से पता चलता है कि यह काफी हद तक एक एक-तरफा दस्तावेज है और गंभीर वैचारिक कमियों से ग्रस्त है।
इस वर्ष 15 जनवरी को, चीन के वाईस प्रीमियर लिऊ हे और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रम्प ने अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध में आंशिक युद्धविराम के प्रतीक के रूप “चरण एक” समझौते पर हस्ताक्षर किया।i यह समझौता बीजिंग और वाशिंगटन के बीच कई महीनों की बातचीत के बाद संपन्न हुआ, जिस दौरान बाजार तक पहुंच में वृद्धि, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर कम शुल्क, बौद्धिक संपदा अधिकार और द्विपक्षीय निवेश प्रवाह जैसे कई मुद्दों पर बातचीत हुई थी।
यह व्यापार विवाद 2018 की शुरुआत में वाशिंगटन द्वारा चीन से स्टील के आयात पर 25 प्रतिशत और एल्यूमीनियम के आयात पर 10 प्रतिशत प्रशुल्क लगाए जाने के बाद शुरू हुआ।ii इसका मुंहतोड़ जवाब देते हुए, चीनी सरकार ने अमेरिका से 50 बिलियन डॉलर के आयात पर प्रशुल्क लगाया था। तब से जैसे को तैसा वाली यह चालें चली जा रहीं हैं और जिसके परिणामस्वरूप सितम्बर 2019 में चीनी वस्तुओं पर अतिरिक्त 112 बिलियन डॉलर का प्रशुल्क लगाया गया था। यह विवाद ट्रम्प प्रशासन द्वारा चीन के सौर पैनलों की राष्ट्रीय सुरक्षा समीक्षा के साथ शुरू हुआ और यूएस व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) के कार्यालय द्वारा धारा 301 की जांच के बाद और भी गहरा गया, जिसमें चीन को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, विदेशी निवेश और बौद्धिक संपदा अधिकारों के क्षेत्रों में अनुचित व्यापार प्रथाओं में संलग्न पाया गया था।iii
चरण-एक समझौते से क्या उपलब्ध हुआ?
“चरण एक समझौते” को हालांकि वाइट हाउस ने एक “महत्वपूर्ण कदम” के रूप में बताया, पर इसे जमीन पर बहुत ही कम सफलता मिली है।iv वास्तव में यह चीन-अमेरिकी व्यापार संबंधों के भविष्य के बारे में ऐसे कई सवाल छोड़ जाता है जिनके जवाब नहीं मिले हैं। यह समझौता मुख्य रूप से तीन चीजों पर केंद्रित है: चीन के साथ अमेरिकी व्यापार घाटे से कैसे निपटना है; बौद्धिक संपदा (आईपी) अधिकारों, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, और मुद्रा प्रथाओं पर कटिबद्धता का नवीनीकरण और समझौते के कार्यान्वयन की अनुवीक्षा, शिकायतों के आंकलन और विवादों को सुलझाने के लिए एक उच्च स्तरीय द्विपक्षीय समीक्षा तंत्र स्थापित करना।v
समझौते के एक भाग के रूप में, ट्रम्प प्रशासन ने मूल रूप से 160 बिलियन डॉलर की चीनी वस्तुओं पर अतिरिक्त दंडात्मक प्रशुल्क लगाने की योजना बनाई है जो पिछले साल 15 दिसंबर से प्रभाव में आना था।vi हालांकि इसमें सितम्बर 1, 2019 से 120 बिलियन डॉलर के चीनी उत्पादों पर लगाया जाने वाला प्रशुल्क 15 प्रतिशत से घटाकर 7.5 प्रतिशत तक आधा करने का वादा किया गया है, पर अन्य प्रशुल्कों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।vii इनमें यूएस द्वारा 250 बिलियन डॉलर के चीनी आयातों पर लगाया गया 25 प्रतिशत प्रशुल्क और इसके जवाब में चीन द्वारा 110 बिलियन डॉलर के अमेरिकी वस्तुओं पर लगाया गया प्रशुल्क शामिल है। हस्ताक्षर समारोह के बाद, राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह भी घोषणा की कि बीजिंग के अनुरोध पर “चरण दो” वार्ता जल्द ही शुरू होगी और 2020 के चुनाव से प्रभावित नहीं होगी। बदले में, चीन ने दोगुनी कृषि खरीद सहित दो साल की अवधि में 200 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य की अमेरिकी वस्तुओं की खरीद बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की है।viii
अपेक्षाएं पूरी करने में असफलता
व्यापार समझौते के पाठ के पहले वाचन से प्रतीत होता है कि वाशिंगटन चीनी पक्ष के लिए “आदेश” जारी कर रहा है जो चीन को मानना होगा। दूसरे शब्दों में, यह पाठ एक-तरफा दस्तावेज प्रतीत होता है जिसमें “क्विड-प्रो-क्वो” के तत्वों की कमी है और जो चीन के लिए उत्तरदायित्वों से भरा हुआ है। यह समझौते को अवास्तविक बनाता है, जिससे भविष्य के विवादों के लिए जगह खाली रह जाती है।
(स्रोत: लाइवमिंट, 16 जनवरी 2020)
समझौते में बौद्धिक संपदा और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से संबंधित नीतियों और प्रथाओं से जुड़े पहले दो अध्यायों में प्रौद्योगिकी के किसी भी प्रकार की चोरी, दुरुपयोग या प्रौद्योगिकी के जबरन हस्तांतरण के गंभीर निहितार्थों को स्वीकारा गया है।ix हालांकि इन मुद्दों पर सर्वसम्मति बनी है, लेकिन समझौते में चीन के प्रवर्तन तंत्र से निपटने के प्रावधानों के बारे में बात नहीं कही गई है।
कानूनों के कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियाँ, चीन की घरेलू नीतियों से संबंधित बहस के केंद्र में रही हैं। चीन के प्रवर्तन कर्मी न्यायिक उत्तरदायित्व से मुक्त रहते हैं और स्थानीय तथा प्रांतीय शासन का हिस्सा बनते हैं।x ये चीन के नए विदेशी निवेश कानून (एफआईएल) के मामले को कमजोर बना देता है।xi इस साल पहली जनवरी से लागू होने वाला कानून चीन में संचालित विदेशी फर्मों की जबरन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाने और उन्हें उचित व्यवसाय माहौल प्रदान करने का वादा करता है।
वास्तव में तत्काल समझौता केवल चीन के खिलाफ अमेरिकी सरकार की व्यापार संबंधी कुछ शिकायतों को ही संबोधित करता है और विवाद के प्रमुख मुद्दों की अनदेखी करता है। यह चीनी घरेलू आर्थिक नीतियों से संबंधित है जिसमें अपने राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों के पक्ष में वृहद आर्थिक सहायता का उपयोग किया जाता है, जिनसे उन्हें अनेकों कानूनों और प्रावधानों से राहत मिलती है और कम-ब्याज वाले बैंक ऋण, निःशुल्क भूमि और अन्य सुविधाओं के रूप में अधिमान्य वित्त पोषण के माध्यम से स्थानीय एवं वैश्विक रूप से अपने संचालनों में सहायता मिलती है।xii ऐसे प्रोत्साहन से चीन तथा विश्व भर में मौजूद विदेशी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा में चीनी कंपनियों को अनुचित लाभ मिलता है।xiii
इस समझौते में व्यापार घाटा दूर करने की अमेरिका की मांग के संबंध में, चीन के लिए लक्ष्य तय किया गया है कि वह अगले दो वर्षों के दौरान 2017 के आयातों की तुलना में अमेरिका से 200 बिलियन डॉलर अधिक का आयात करेगा।xiv हालांकि, इसमें अमेरिका और चीन के बीच “विस्तारित व्यापार” के परिणामों को ध्यान में नहीं रखा गया है। सबसे पहला, सहमत लक्ष्य इतना महत्वाकांक्षी है कि चीन के लिए इसे पूरा करना असंभव प्रतीत होता है। चूंकि वर्तमान में चीन के घरेलू संरचनात्मक मुद्दों के कारण इसकी अर्थव्यवस्था को मंदी से गुजरना पड़ रहा है, इसलिए दो साल की अवधि में आयात के उत्तरदायित्वों को पूरा करना एक चुनौती होगी। दूसरा, इससे वैश्विक व्यापार में बदलाव आ सकता है। लक्ष्यों का पालन करने के अपने प्रयास में, बीजिंग अपने अन्य व्यापार साझेदारों के साथ होने वाला व्यापार को अमेरिका की ओर मोड़ कर उन्हें चौकन्ना कर सकता है।xv इसके अलावा, चीन के साथ व्यापार असंतुलन को खत्म करने के प्रति ट्रम्प प्रशासन के जुनून की वजह से बड़े मैक्रोइकनोमिक घटक छूट गए हैं जिसके परिणामस्वरूप 100 से अधिक देशों के साथ वाशिंगटन का व्यापार घाटा हुआ है। निवेश के सापेक्ष अमेरिका की कम घरेलू बचत दर की बदौलत, अमेरिका को विश्व भर में व्यापार घाटा हुआ है और बचत बढ़ाकर, विदेशी मुद्राओं की अधिक खरीद और पूंजी प्रवाह पर कर लगाकर इसे सही किया जा सकता है।xvi
जो चीज समझौते को और अधिक समस्याग्रस्त बनाती है, वो ये है कि समझौते की वजह से इसके और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और इसके विवाद निपटान निकाय (डीएसबी) के बीच जानबूझकर दूरी बनती जा रही है। “द्विपक्षीय मूल्यांकन और विवाद समाधान” अध्याय में एक “व्यापार रूपरेखा समूह” बहुपक्षीय सेटिंग में व्यापार संबंधी विवादों को सुलझाने में वाशिंगटन की अनिच्छा को इंगित करता है।xvii राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा दिसंबर 2019 में निर्धारित जजों की नियुक्ति रोकने का निर्णय लिए जाने के बाद डब्ल्यूटीओ की विवाद निपटान प्रणाली लगभग निष्क्रिय हो गई है।xviii समझौते में इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया है कि डीएसबी के साथ चीन का अनुपालन दर, किसी भी अन्य द्विपक्षीय या बहुपक्षीय व्यवस्थाओं की तुलना में कहीं अधिक है, इससे यह समझौता और भी अधिक अदूरदर्शी बन गया है।xix
इन सभी के बावजूद, इस समझौते से चीन को एक बड़ी राहत ये मिली है कि करेंसी मैनिपुलेटर की सूची से चीन का नाम हट गया है।xx ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के चरम पर चीन को “करेंसी मैनिपुलेटर” की सूची में डाला था।xxi एक दिलचस्प चाल चलकर, समझौते पर हस्ताक्षर करने से कुछ दिनों पहले, अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने करेंसी वॉच सूची से चीन का नाम हटा दिया, जो अमेरिकी पक्ष की ओर से हालातों की गंभीरता घटाने की दिशा में एक उत्सवी कदम का संकेत है। यह चाल, विशुद्ध रूप से प्रतीकात्मक है, हालांकि यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के समझौता विलेख में एक देश को करेंसी मैनिपुलेटर मानने या न मानने के संबंध में विहित शर्तों की उपेक्षा करता है।xxii
एक निराशाजनक दृष्टिकोण
96 पृष्ठ का यह समझौता, अपने ही भाव में अंतर्मुखी है। यह बहुपक्षीय आर्थिक संस्थानों और वैश्विक आर्थिक स्थिरता और समृद्धि में उनके लंबे समय के योगदान का ज्यादा सम्मान नहीं करता है। वास्तव में, चीन-अमेरिकी व्यापार विवाद में कुछ विवादास्पद मुद्दों पर समझौते के पथभ्रष्ट प्रस्तावों ने आर्थिक शासन में अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों और नियमों की पवित्रता को क्षीण कर दिया है।xxiii समझौते की संकीर्ण और सीमित दृष्टि ने न केवल वैश्विक व्यवसायों के विकल्पों को बाधित किया है, बल्कि बहुपक्षीय प्रणाली के सुधार आवेग में भी बाधा उत्पन्न की है। द्विपक्षीय संबंधों के दृष्टिकोण से, बेहतर होता अगर यह समझौता एक बहुपक्षीय मंच में और दुनिया के अन्य देशों की उपस्थिति में हुआ होता। इससे चीन और अमेरिका दोनों पर अनुपालन का दबाव बना रहता। ऐसा न कर पाने के कारण दोनों देशों के बीच हालात गंभीर बनने का जोखिम बरक़रार है और शायद इस बार ये हालात अनियंत्रित हो जाए।
इस प्रकार, “चरण एक समझौते” का एक समग्र विश्लेषण एक अंतः कालीन व्यवस्था को दर्शाता है जिसने अमेरिका-चीन व्यापार संबंधों में अस्थायी रूप से चिंताओं को कम किया है। दोनों पक्ष “आसान मुद्दों को पहले हल करने” और “मुश्किल मुद्दों को बाद के लिए छोड़ देने” के दृष्टिकोण पर स्पष्ट रूप से सहमत हुए हैं। व्यापार संघर्ष को रेखांकित करने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित नहीं करने से, यह समझौता अधूरा रहा गया जिससे दूसरे चरण की वार्ता में बड़ी चुनौतियां खड़ी होंगी।xxiv यह समझौता चीनी वस्तुओं पर अमेरिकी प्रशुल्क और अमेरिकी वस्तुओं पर चीनी प्रशुल्क को पूरी तरह से समाप्त करने में भी विफल रहा है। इसके सुपरिणाम देखें तो चरण एक समझौते के माध्यम से प्राप्त अस्थायी राहत ने अमेरिकी और चीनी व्यवसायों को प्रसन्न किया है। लेकिन कोई इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं है कि जिन कंपनियों की दोनों देशों में आपूर्ति श्रृंखला है, वे पूंजीगत व्यय तुरंत पुनः आरम्भ करेंगी या कुछ और परिणाम आने तक की प्रतीक्षा करेंगी।
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*डॉ. प्रियंका पंडित विश्व मामलों की भारतीय परिषद, दिल्ली की शोधकर्ता हैं।
इसमें व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
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