सार
बगदाद हवाई अड्डे पर ईरान के शीर्ष सैन्य अधिकारियों में से एक क़ासिम सुलेमानी को मारने के संयुक्त राज्य के एक-तरफा फैसले से क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है। यह ईरान में अमेरिका के खिलाफ लोक-मत को भी ठोस बनाएगा, जिससे आगे ईरान और अमेरिका के बीच भविष्य की वार्ता के लिए कोई जगह नहीं रह जाएगी। फैली अस्थिरता का इस क्षेत्र मेंचल रही ऊर्जा सुरक्षा से लेकर संपर्कता परियोजनाओं जैसे अनेक पहल मेंभारत के हितों पर प्रभाव पड़ रहा है।
मध्य पूर्व क्षेत्र अब कई दशकों से अस्थिर रहा है। ईरान-इराक युद्ध, खाड़ी युद्ध, इराक युद्ध, आईएसआईएल, अल-कायदा और अल-नुसरा जैसे आतंकवादी संगठनों का उदय एवं यमन और सीरिया में गृह युद्ध कुछ ऐसी घटनाएँ हैं जो पिछली आधी सदी से इस क्षेत्र में घट रही हैं। उथल-पुथल के बावजूद, राष्ट्र एक अस्थिर शांति की दिशा में काम कर रहे थे। इराक की स्थिति स्थिर बन रही थी और ईरान परमाणु समझौते के फलस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत होने की इच्छा प्रकट कर रहा था। हालांकि, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्य पूर्व नीति ने शांति की इस नाज़ुकस्थिति कोमिटा कर रख दिया। ईरान परमाणु समझौते से पीछे हटने, यरुशलम को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देने, फिलिस्तीन से सहायता वापस लेने, सऊदी अरब और यूएई को सैन्य सहायता प्रदान करना जारी रखने इस बात कासाक्ष्य मिलने के बावजूद कि हथियारों का इस्तेमाल नागरिकों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है, और आईएसआईएल के खिलाफ युद्ध में कुर्द-उनके सहयोगियों से अपना समर्थन वापस लेने का ट्रम्प प्रशासन ने जो फैसला लियाहै उसने इस क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका की नीति के उद्देश्य पर सवालिया निशान लगा दिया है। आज, क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका के कई साझेदार अपनी विदेश नीति में विविधता लाने और संयुक्त राज्य अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिए सक्रिय प्रयास कर रहे हैं।
बगदाद हवाई अड्डे पर ईरान के शीर्ष सैन्य अधिकारियों में से एक क़ासिम सुलेमानी को मारने के संयुक्त राज्य के एक-तरफा फैसले ने इस क्षेत्र में फैली अस्थिरता को बढ़ा दिया है। जनरल सुलेमानी, ईरान की सेना के विदेशी अभियानों का निर्देशन करते थे, और मध्य पूर्व में ईरान के प्रभाव को बढ़ाने में सहायक थे।
जनरल क़ासिम सुलेमानी
यह हत्या ईरान की तुलना में ट्रंप प्रशासन के कुछ स्पष्ट लक्ष्यों के लिए हानिकारक रहा है।
स्रोत: द टेलीग्राफ, https://www.telegraph.co.uk/news/2020/01/06/irans-proxies-weigh-response-qassim-soleimani-killing-iran-vows/
स्रोत:द गार्डियन,https://www.theguardian.com/world/2020/jan/07/qassem-suleimani-burial-iran-general-home-town
निष्कर्ष
पहले से कोई सूचना दिए बिना संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा की गई एक-तरफा कार्रवाई ने खाड़ी में इसके सभी सहयोगियों को चिंतित कर दिया है, जिन्होंने हाल के महीनों में अपने नौवहन मार्गों और तेल अवसंरचना को लक्षित किया था और ईरान के साथ मिलकर तनाव कम करने की दिशा में काम कर रहे हैं। अमेरिकी कार्रवाई से क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है। यह ईरान में अमेरिका के खिलाफ लोक-मत को मजबूत करेगा, जिससे आगे ईरान और अमेरिका के बीच भविष्य की वार्ता के लिए कोई जगह नहीं रह जाएगी।
जबकि ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका ने तीव्रता को घटाने की बात कही है और संकेत दिया है कि वे आगे कोई कार्रवाई नहीं करेंगे, पर इसका मतलब यह नहीं है कि वे परोक्षी और/या साइबर हमलों के माध्यम से एक-दूसरे के हितों पर हमला करना जारी नहीं रखेंगे। संयुक्त राज्य अमेरिका ईरान के प्रति अपनी अधिकतम दबाव नीति के रूप में कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाना जारी रखेगा। वे सीरिया, यमन और इजरायल-फिलिस्तीन संबंधों में भी प्रतिकूल हित रखते रहेंगे।
भारत चाहेगा कि इस परिस्थितिकी तीव्रता जल्द से जल्द कम हो जाए। यह,इस दिशा में कदम उठाने के लिए ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों के साथ, और क्षेत्र के अपने भागीदारों जैसे कि संयुक्त अरब अमीरात, ओमान और कतर के साथ संपर्क में रहा है। चूंकि इस क्षेत्र में अधिक तनाव बना हुआ है, इसलिए इससे जहाजों के लिए बीमा मूल्य सहित ऊर्जा की कीमतों और शिपमेंट पर असर पड़ेगा। भारत ने पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र से अपनी ऊर्जा निर्भरता को कम करने के लिए कदम उठाए हैं पर फिर भी; यह खाड़ी देशों पर निर्भर होता रहा है। बढ़ी हुई कीमतें इसकी अर्थव्यवस्था पर एक दबाव होगी। इसके अलावा भारत को अपने कंटेनर जहाजों को सुरक्षा प्रदान करने, व्यापार मार्गों की सुरक्षा करने और किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए क्षेत्र के जल में अपनी नौसेना परिसंपत्ति को तैनात करना पड़ा है।
तेल के अलावा, इस क्षेत्र केअन्य संघर्ष से भारत के प्रवासी खतरे में पड़ जाएंगे जो वहां के देशों के श्रमिक वर्ग का हिस्सा हैं। वर्तमान में, 8.5 मिलियन1 के करीब भारतीय प्रवासी इस क्षेत्र में रहते हैं जिनमें से अधिकांश प्रवासी जीसीसी देशों में रहते हैं। इस क्षेत्र से ही सबसे अधिक विप्रेषणप्राप्त होता है जो इस क्षेत्र के देशों (संयुक्त राज्य, यूनाइटेड किंगडम और मलेशिया के साथ) से उत्पन्न और भारत को प्राप्त कुल विप्रेषण का लगभग 82 प्रतिशत है।2 भारतीय अर्थव्यवस्था और इसके विकास को मजबूत करने में विप्रेषण एक महत्वपूर्ण घटक है। मध्य पूर्वी देशों में नीले-कॉलर वाले और सफेद कॉलर वाले भारतीय प्रवासियों की बड़ी आबादी रहती है, जिनके परिवार भोजन, दवाइयों, शिक्षा और बेहतर आवास के लिए काफी हद तक विप्रेषण पर निर्भर होते हैं।
भारतीय विदेश मंत्री श्री एस. जयशंकर और ईरानी विदेश मंत्री श्री जवाद ज़रीफ़
भारत, ईरान और अमेरिका दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध रखता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ 2+2 वार्ता के बाद, विदेश मंत्री श्री एस. जयशंकर ने 19 वीं संयुक्त आयोग की बैठक के लिए ईरान का दौरा किया और अपने समकक्ष श्री जवाद ज़रीफ़ से मुलाकात की। भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए अमेरिकी प्रतिबंधों से छूट प्राप्त करने में सक्षम रहा है। भारत द्वारा अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ संपर्क को सुरक्षित करने के लिए यह बंदरगाह एक आधारशिला परियोजना है। इस क्षेत्र में उथल-पुथल से विकास परियोजना की लागत बढ़ेगी लेकिन यह दीर्घकालिक वित्तीय व्यवहार्यता के लिए हानिकारक भी होगा।
भारत में ईरान के राजदूत श्री अली चेगेनी ने कहा है कि ईरान भारत के तरफ से की गई किसी भी शांति पहल का स्वागत करेगा। ईरान और अमेरिका के बीच तनाव को कम करने के लिए एक बहुपक्षीय प्रयास का हिस्सा बनना भारत के हित में है।
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*डॉ. स्तुति बनर्जी, शोधकर्ता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।
इसमें व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
अंत टिप्पण:
[1]चित्रों को 2018 डेटा के आधार पर आगणित किया गया है जोhttp://mea.gov.in/images/attach/NRIs-and-PIOs_1.pdf पर उपलब्ध है
2भारतीय रिजर्व बैंक, “भारत की अंतर्प्रवाही विप्रेषण सर्वेक्षण 2016-17,” https://www.rbi.org.in/SCRIPTs/BS_PressReleaseDisplay.aspx?prid=44722, Accessed on 21 January 2020.