सार
भारत वैश्विक जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्या को दूर करने के लिए परस्परलाभकारी नीतियों को आगे बढ़ाने हेतु सीएआरआईसीओएम और एफआईपीआईसी के साथभागीदारीकी प्रत्याशा कर रहा है तथा जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न होनेवाली खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने, पर्यावरण के प्रति संवेदनशील पर्यटन काविकास करने, नवीकरणीय ऊर्जा का विकास करने, सागर संसाधनों का सतत उपयोग एवंकमजोर अर्थव्यवस्था का उन्नयन करने तथा आपदा प्रबंधन और राहत एवं बचाव कार्योंके लिए क्षमता- निर्माण करने हेतु कार्य कर रहा हैl इसका दीर्घकालिक लक्ष्य ऐसेविचारों का आदान-प्रदान करना है जो भविष्य के संबंधों को आगे बढ़ाने और उसे सिद्धकरने में मदद करेंगे।
दिवंगत सुश्री सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के तुरंत बाद, संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों (192) के साथ जुड़ने के लिए बृहद संपर्क योजना की शुरुआत की। इसमें राष्ट्रों के भौगोलिक आकार या अवस्थिति का ख्याल किए बिना उनके साथ आर्थिक संबंधों से परे जुड़ाव के जरिए क्षेत्रीय संबंधों को मजबूत करने की पहल की गईl इस पहल के पीछे भारत का उद्देश्य ऐसा कार्य-उन्मुख एवं प्रगाढ़ संबंध बनाना है जिससे पारस्परिक हित एवं चिंता के मुद्दे हल होंगेl भारत की विदेश नीति के इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (2019) की तर्ज पर भारत-कैरिबियन द्वीप सम्मेलन(सीएआरआईसीओएम) और फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड्स कोऑपरेशन (एफआईपीआईसी) के साथ दो बैठकें कीं।ये बैठकें द्वीप देशों के साथ क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच के माध्यम से द्वि-पक्षीय और बहुपक्षीय दोनों स्तरों को मजबूत करने की दिशा में एक कदम हैं। सीएआरआईसीओएमऔर एफआईपीआईसी से भारत को बड़े अभिसरण क्षेत्रों पर अपने संबंधों को मजबूत करने और मतभेदों को, यदि कोई हों, हल करने में सहायता मिलती है l
भारत और सीएआरआईसीओएम
लैटिन अमेरिका और कैरेबियन (एलएसी) क्षेत्र विश्व के एक ध्रुव के रूप में उभर रहा है। कैरिबियाई राष्ट्रों के साथ अपने संबंध को और मजबूत करने की इच्छा भारत ने ऐसे समय में प्रकट की है जब कैरिबियाई राष्ट्रों को भी लैटिन अमेरिका के साथ अपने संबंध को बढ़ाते हुए उत्तरी अमेरिका और यूरोप के अपने पारंपरिक संबंधों से परे संबंध कायम करने की चाह है l
सीएआरआईसीओएमi- इस क्षेत्र के लिए सामान्य नीति और आर्थिक लक्ष्यों को बढ़ावा देने वाले देशों के कैरेबियाई समुदाय ने भारत को इस क्षेत्र के देशों के साथ संबंधों को मजबूत बनाने में मदद की।मजबूत संबंध से न केवल भारत को सीएआरआईसीओएमकी प्राथमिकताओं, चिंताओं, और आवश्यकताओं को समझने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे उसे लैटिन अमेरिका के बड़े क्षेत्र से संबंध बनाने में भी मदद मिलेगी ।
सीएआरआईसीओएमके लिए, भारत एवं अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं और "दक्षिण" में अन्य देशों के साथ संबंधों को इस रूप में देखा जा रहा है कि इससे क्षेत्रीय एकीकरण को समर्थन मिलेगा और दीर्घकालिक रूप से क्षेत्र का स्थायी विकास होगा । ये संबंध सम्मानसूचक और कैरेबियाई देशों के लिए विकास सहयोग के पारंपरिक स्रोतों के विकल्प होंगे।उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ विकास सहयोग में सीएआरआईसीओएमकी विशेष रुचि है क्योंकि इससे उसे पारंपरिक स्रोतों के संकुचन की स्थिति में रियायती निधि मिलती है।ii
इस क्षेत्र के राष्ट्रों के लिए भारत एक विकास भागीदार रहा है। प्रधान मंत्री मोदी ने इनके साथ संबंधों को गति देने के अपने प्रयास में क्षमता निर्माण, विकास सहायता और आपदा प्रबंधन एवं समुत्थान-शक्ति में सहयोग में सीएआरआईसीओएमदेशों के साथ भागीदारी करने पर जोर दिया। उन्होंने सीएआरआईसीओएम देशों में सामुदायिक विकास परियोजनाओं के लिए 14 मिलियन अमरीकी डालर एवं सौर, नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन संबंधी परियोजनाओं के लिए 150 मिलियन अमरीकी डालर की ऋण व्यवस्था की घोषणा की। प्रधान मंत्री मोदी ने सहयोग को और सशक्त करने के अपने प्रयास में सीएआरआईसीओएमके संसदीय प्रतिनिधिमंडल को भारत का दौरा करने का निमंत्रण दियाliiiकेवल सरकारी अधिकारियों और बहुमत में रहने वाली पार्टी के सदस्यों से परे संपर्क स्थापित करने की आवश्यकता, विपक्ष के सदस्यों, अन्य प्रमुख राजनैतिक कार्यकर्ताओं और राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ संबंध से भारत को उन देशों के साथ दृढ संबंध कायम करने में मदद मिलती है। इससे भारत को वहां के लोगों के साथ आधिक से अधिक विचार-विमर्श करने, उनके विचारों को साझा करने और विशेष इलाके या क्षेत्र से संबंधित परियोजनाओं में सहयोग करने के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं l इससे भारत और सीएआरआईसीओएमसदस्यों को राष्ट्रीय स्तर की परियोजनाओं से परे लोगों की जरूरतों के मुताबिक़ छोटे स्तर की क्षेत्रीय परियोजनाओं के प्रति विचार साझा करने के अवसर प्राप्त होते हैं lप्रधान मंत्री मोदी ने 14 सीएआरआईसीओएमनेताओं के साथ अपनी पहली बैठक
में, न केवल द्विपक्षीय, बल्कि क्षेत्रीय संदर्भ में, भारत और भागीदार कैरेबियन देशों के बीच तेजी से बढ़ते गहरे संबंधों पर प्रकाश डाला। बैठक में मौजूदा राजनीतिक और संस्थागत संवाद प्रक्रियाओं को मजबूत करने, आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने, व्यापार और निवेश के अवसर बढ़ाने और व्यक्तिगत मजबूत संबंधों को बढ़ावा देने के उपाय पर विचार किया गया।
प्रधानमंत्री मोदी और सीएआरआईसीओएम के नेतागण (2019,न्यूयार्क)
आर्थिक सहयोग का ऐसा एक क्षेत्र कमजोर अर्थव्यवस्था है। महासागर आधारित अर्थव्यवस्थाएं उनकी संबंधित अर्थव्यवस्थाओं का एक महत्वपूर्ण घटक हैं तथा भारत और सीएआरआईसीओएमदोनों संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों के तहत कमजोर अर्थव्यवस्था को उन्नत कर रहे हैं। सीएआरआईसीओएमकैरिबियाई देशों और भारत में छोटे द्वीप राज्यों के बीच स्वास्थ्य क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने के लिए एक ऐसे मामले पर विचार कर रहे हैं जो उनके विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। भागीदारी की गुंजाइश न केवल पारंपरिक उपचारात्मक दवाओं और उपचारों में है, बल्कि पूरक वैकल्पिक दवाओं में भी है, जो भारत की अर्थव्यवस्था का तेजी से बढ़ता क्षेत्र है। सीएआरआईसीओएमभारत के उद्यम को कल्याण और चिकित्सा पर्यटन बनाने का इच्छुक है।
इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भारत के प्रवासी हैं जो पारस्परिक रूप से सशक्त भागीदारी के लिए नए दरवाजे खोलने में मदद कर सकते हैं। इसमें पीआईओ, भारतीय मूल के लोगों का एक जीवंत समुदाय है, जिनकी द्वीप राष्ट्रों में काफी शक्ति और प्रभाव है। प्रवासी भारतीय शिक्षित हैं और वे मेजबान देशों के साथ घुल-मिल गए हैं तथा आम चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं। एनआरआई उद्यमी इन राष्ट्रों के विभिन्न विशेष आर्थिक क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। भारत और दुनिया भर में भारतीय प्रवासियों के साथ अपने संबंधों को बनाए रखते हुए व्यापार, राजनीति, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में उनकी सफलता उन्हें इस तरह के संबंधों का लाभ उठाकर इन क्षेत्रों के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में मदद करती है।
भारत और सीएआरआईसीओएमब्रिक्स के जरिए भी एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं, जहाँ सीएआरआईसीओएमअपने आर्थिक संबंधों के विविधीकरण को आगे बढ़ाने के लिए निवेश और व्यापार के अवसरों की तलाश कर रहा है। ब्रिक्स और सीएआरआईसीओएमके आपसी हित में, उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखने के लिए वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है। भारत के लिए, बहुपक्षीय मंच पर सीएआरआईसीओएमके साथ संबंध और इस क्षेत्र के देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध उनके विकास के लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त करने के अवसर प्रदान करते हैं । सीएआरआईसीओएमऔर भारत अपने-अपने क्षेत्रों में अपने संबंधों को गहरा करने के लिए एक दूसरे का साथ देने की संभावना की तलाश कर सकते हैं। सीएआरआईसीओएमका लैटिन अमेरिका के साथ प्रगाढ़ संबंध हैं और भारत इस क्षेत्र पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा हैl भारत सीएआरआईसीओएमराष्ट्रों को दक्षिण एशिया के अन्य राष्ट्रों के साथ जुड़ने का मंच प्रदान करता है।
भारत और एफआईपीआईसी
चूँकि भारत एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी इंडो-पैसिफिक का विकास चाहता है, अत: उसकी अपेक्षा है कि प्रशांत क्षेत्र के द्वीप देश उस अवधारणा को संचालित करने में उसकी मदद करें जो एक्ट ईस्ट नीति के जरिए संबंधों को और मजबूत करेगा।भारत-आसियान संबंधों के चलते भारत इस क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रहा है और हिंद महासागर में अपने कार्यनीतिक और वाणिज्यिक हितों की रक्षा कर रहा है। एफआईपीआईसी प्रशांत क्षेत्र के साथ जुड़ने के लिए गंभीर प्रयास कर रहा है।
एफआईपीआईसी की स्थापना के साथ प्रशांत द्वीप राष्ट्रों के साथ भारत का संबंध प्रगाढ़ हुआ है। [एफआईपीआईसीकी पहली और दूसरी बैठक क्रमश: फ़िजी (2015) और जयपुर (2016) में हुई]l हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी और भारत-प्रशांत द्वीप समूह विकासशील राज्यों(पीएसआईडीएस) के नेताओं के बीच न्यूयॉर्क (2019) में हुई बैठक प्रशांत द्वीप देशों के साथ घनिष्ठ भागीदारी करने और पारस्परिक रूप से लाभकारी विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करने की दृष्टि आयोजित की गई थी ।सहायता प्राप्त करने वाले देशों द्वारा बताई गई आवश्यकताओं के आधार पर भारत द्वारा विकासात्मक सहायता प्रदान किए जाने की बात को ध्यान में रखते हुए, प्रधान मंत्री मोदी ने उनकी पसंद के क्षेत्रों में उच्च प्रभाव विकासात्मक परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए 12 मिलियन अमरीकी डालर (प्रत्येक पीएसडीएस को 1 मिलियन अमरीकी डालर) का अनुदान आबंटित करने की घोषणा की l इसके अलावा, प्रत्य्रेक देश की आवश्यकता के आधार पर सौर, नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु संबंधित परियोजनाओं पर कार्य करने के लिए 150 मिलियन अमरीकी डालर की एक रियायती ऋण व्यवस्था की भी घोषणा कीl प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2020 की पहली छमाही में पोर्ट मोरेस्बी में आयोजित होने वाले तीसरे एफआईपीआईसी शिखर सम्मेलन के सभी नेताओं को उच्च स्तरीय संबंध जारी रखने और गति बनाए रखने के लिए आमंत्रित कियाlv
प्रधानमंत्री मोदी और एफआईपीआईसी के नेतागण (2019,न्यूयार्क)
प्रशांत द्वीप राष्ट्रों के साथ भारत के संबंध को विभिन्न कारकों द्वारा आकार दिया जा रहा है। भारत तेल और प्राकृतिक गैस, खनन, आईटी, स्वास्थ्य सेवा, मछली पकड़ने और समुद्री अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में द्वीप राष्ट्रों के साथ अधिक से अधिक सहयोग चाहता है। प्रशांत द्वीप समूह भारतीय प्रवासियों का घर है। व्यापार के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों के केंद्र में इसकी भौगोलिक अवस्थिति भारत के लिए महत्वपूर्ण है जिससे वह वहाँ अपना संबंध मजबूत कर सके l चीन, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी अन्य क्षेत्रीय शक्तियों की भूमिका ने इस क्षेत्र के सामरिक और आर्थिक महत्व को बढ़ा दिया हैl
भारत और इस क्षेत्र के राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर समान चिंता साझा करते हैं। यूनाइटेड नेशंस इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर जलवायु परिवर्तन पर रोक नहीं लगाया गया, तो समुद्र के स्तर में वृद्धि तटीय शहरों, छोटे द्वीप देशों, आर्कटिक समुदायों और समुद्री पारिस्थितिकी एवं निवास स्थान को तबाह कर देगी। भारत के लिए, इस रिपोर्ट में दो मेगा-शहरों-मुंबई और कोलकाता की तबाही की चेतावनी दी गई है, जबकि प्रशांत क्षेत्र के द्वीप देशों के लिए खतरा अधिक स्पष्ट है। यह ऐसा एजेंडा बिंदु है जिसे भारत,सीएआरआईसीओएम देशों के साथ भी साझा करता है।
एफआईपीसीके साथ भारत के संबंध में स्वच्छ ऊर्जा के अनुसंधान और विकास की संयुक्त परियोजनाएं, समुद्री जीव विज्ञान अनुसंधान केंद्रों की स्थापना, निर्माण क्षमता, भूमि और जल संसाधन सूची के निर्माण के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर सहयोग शामिल हैं। इन क्षेत्रों के अलावा, द्वीप राष्ट्र और भारत सस्ती स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में एक साथ काम कर रहे हैं।
इस संबंध को आगे बढ़ाने के पीछे भारत का उद्देश्य एफआईपीआईसी देशों के साथ सहयोग करना है, ताकि वह समुद्री क्षेत्र जागरूकता बढ़ाने, वाणिज्यिक आवाजाही की जानकारी साझा कर सके तथा उसे नौसेना और तट रक्षकों के बीच सुरक्षा संबंधों को मजबूत करने में मदद मिल सके। वह नागरिक और रक्षा दोनों क्षेत्रों में क्षमता निर्माण पर एफआईपीआईसी देशों के साथ सहयोग करना चाहता है और समुद्री बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं में संलग्न रहना चाहता है जिससे व्यापार में और वृद्धि हो सके l यह समग्र दृष्टिकोण प्रधान मंत्री मोदी की (सिक्यूरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) की अवधारणा का विस्तार है। इस पहल का उद्देश्य क्षमता बढ़ाना, अन्य देशों के साथ जुड़ना और समुद्र तटीय देशों में अधिक सहयोग को बढ़ावा देना है। इस क्षेत्र पर समुचित ध्यान दिया जाना सुनिश्चित करने के लिए अप्रैल 2019 मेंभारत ने विदेश मंत्रालय में एक इंडो-पैसिफिक विंग की स्थापना की।
निष्कर्ष
भारत वैश्विक जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्या को दूर करने, जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने, पर्यावरण के प्रति संवेदनशील पर्यटन के विकास, नवीकरणीय ऊर्जा के विकास,सागर संसाधनों के सतत उपयोग, कमजोर अर्थव्यवस्था की उन्नति, आपदा प्रबंधन और राहत एवं बचाव कार्यों के लिए क्षमता निर्माण की समस्या को दूर करने हेतु पारस्परिक रूप से लाभकारी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए सीएआरआईसीओएमऔर एफआईपीआईसी से भागीदारी की प्रत्याशा करता है l इसका दीर्घकालिक लक्ष्य उन विचारों का आदान-प्रदान करना है जो भविष्य के संबंधों को सुगम बनाने और उसे पुख्ता करने में मदद करेंगे। यह उद्यमी संस्कृति के निर्माण, स्टार्ट-अप के विकास के लिए पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण, शिक्षा क्षेत्र, विशेषकर सूचना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र, में सहयोग के जरिए युवा पीढ़ी की जरूरतों को पूरा करने जैसे विभिन्न माध्यमों से प्राप्त किया जा सकता है l जहाँ वे आपसी चिंता के मुद्दों पर लड़ाई करते हैं, वहीं भारत और सीएआरआईसीओएमएवं एफआईपीआईसीजलवायु परिवर्तन, सतत विकास जैसे मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण में योगदान करने के लिए अपने विलक्षण अनुभवों और विशेषज्ञता को ध्यान में रखते हैं।
कैरेबियन और प्रशांत क्षेत्र दोनों के द्वीप राष्ट्र छोटे है परन्तु भारत के लिए उनका आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक महत्व है। इन राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है और वे जनसांख्यिकीय परिवर्तन की प्रत्याशा कर रहें हैंl इससे भारत को नया आर्थिक अवसर मिलता हैl द्वीप राष्ट्रों के साथ संबंध मजबूत करने से सहयोग के लिए विचारों, ज्ञान और सूचनाओं के आदान-प्रदान तथा चुनौतियों का सामना करने के नए अवसर प्राप्त होंगे।
*****
* डॉ. श्रुति, भारतीय वैश्विक कार्य परिषद, नई दिल्ली में शोध अध्येता ।
खंडन: व्यक्त किए गए विचार शोधकर्ता के हैं, परिषद् के नहीं l
iThere are 15 Member States of the CARICOM: Antigua and Barbuda, Bahamas, Barbados, Belize, Dominica, Grenada, Guyana, Haiti, Jamaica, Montserrat, Saint Lucia, St Kitts and Nevis, St Vincent and the Grenadines, Suriname and Trinidad and Tobago.
iiAnnitaMontoute, “CARICOM’s External Engagements: Prospects and Challenges for Caribbean Regional Integration and Development,”https://www.policycenter.ma/sites/default/files/OCPPC-GMF-1517v2.pdf, Accessed on 14 October 2019.
iiiMinistry of External Affairs, Government of India, “Prime Minister met with the leaders of CARICOM at the UNGA,”https://mea.gov.in/press-releases.htm?dtl/31862/Prime_Minister_met_with_the_leaders_of_CARICOM_at_the_UNGA, Accessed on 10 October 2019
ivFIPIC grouping includes Cook Islands, Fiji, Kiribati, Marshall Islands, Micronesia, Nauru, Niue, Samoa, Solomon Islands, Palau, Papua New Guinea, Tonga, Tuvalu and Vanuatu.
v Ministry of External Affairs, Government of India, “Prime Minister meets Pacific Island Leaders,”https://mea.gov.in/press-releases.htm?dtl/31854/Prime_Minister_meets_Pacific_Island_Leaders, Accessed on 10 October 2019