विसैन्यीकृत क्षेत्र पर उत्तरी कोरिया के नेता किम जोंग उन के साथ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की अघोषित बैठक ऐतिहासिक थी और अमेरिका-उत्तरी कोरिया सम्बन्धों में एक नयी सामान्यता स्थापित करती प्रतीत होती थी। राष्ट्रपति ट्रम्प की उच्च निजीकृत कूटनीति न केवल अमेरिका-उत्तरी कोरिया के सम्बन्धों के अन्तर को कम करने वाली है बल्कि यह अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में उत्तरी कोरिया की छवि को भी सामान्य बनाने में सहायक है।
उत्तरी कोरिया की भूमि पर 30 जून, 2019 को कदम रखकर इतिहास रचने के लिए डोनाल्ड ट्रम्प को केवल एक ट्वीट और एक दिन का सहारा लेना पड़ा जो किसी पदासीन अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा उठाया गया पहला कदम था। किन्तु शीत युद्ध के दीर्घकालीन अवशेष को शान्त करने के लिए इसमें सात दशक का समय तथा एक घुमन्तू प्रकार की प्रेसीडेंसी को शामिल होना पड़ा। विशाल सैन्यीकृत विसैन्यीकृत क्षेत्र (डीएमजेड), एक ऐसा स्थान जो कोरियाईयुद्ध के स्मृतियों को सँजोए है और कोरियाई प्रायद्वीप में जारी 'युद्ध की स्थिति' के स्मारक पर ट्रम्प तथा किम की हाथ हिलाते हुए छवि न केवल शत्रुता को शान्त कर रही है बल्कि महत्त्वपूर्ण ढंग से अमेरिका-उत्तरी कोरिया सम्बन्धों हेतु एक नयी सामान्यता स्थापित करती हुई प्रतीत हो रही है।
राष्ट्रपति ट्रम्प के अधीन अमेरिका-उत्तरी कोरिया के सम्बन्ध नाटकीयतापूर्ण तथा पूर्वानुमान रहित रहे हैं। पद सँभालने के प्रथम वर्ष के दौरान ट्रम्प ने उत्तरी कोरिया के साथ युद्ध की सीमा तक तनाव को बढ़ाया। किन्तु 2018 में, ट्रम्प ने अभूतपूर्व राजनयिक चतुराई दिखाई जिसके कारण वाशिंगटन तथा प्योंगयांग के बी दो शिखर वार्ताएँ तथा उच्चस्तरीय राजनयिक विनिमय सम्भव हुए। उत्तरी कोरिया की सांकेतिक यात्रा के साथ राष्ट्रपति ट्रम्प ने अमेरिका-उत्तरी कोरिया सम्बन्धों को सामान्य करने की दिशा में अगला कदम उठाया है।
ट्रम्प डीएमजेड पार करने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं किन्तु डीएमजेड का दौरा करने वाले वे पहले व्यक्ति नहीं हैं। पूर्व में पाँच अमेरिकी राष्ट्रपतियों रोनाल्ड रीगन ने 1983 में, बिल कि्लंटन ने 1993 में, जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने 2002 में तथा बराक ओबामा ने 2012 में डीएमजेड का दौरा किया। परम्परागत रूप से ये यात्राएँ प्योंगयांग को कड़ा सन्देश देने और अमेरिका-कोरिया गुट की शक्ति प्रदर्शित करने के लिए की गयी थीं। इन यात्राओं का उद्देश्य उत्तरी कोरिया की छवि को अलग-थलग, हिंसक तथा तानाशाह द्वारा शासित अद्भुत देश के रूप में प्रदर्शित करना भी था। इसके विपरीत सैनिक क्लांतियों तथा शारीरिक कवच में पूर्व राष्ट्रपतियों की तुलना में नागरिक वेशभूषा से सुसज्जित ट्रम्प के डीएमजेड के दौरे ने अमेरिका-उत्तरी कोरिया सम्बन्ध की छवि को मैत्रीपूर्ण तथा सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प तथा चेयरमैन किम जोंग उन 30 जून, 2019 को दोनों कोरियाई देशों को अलग करने वाले उत्तरी कोरिया वाले सेनारहित क्षेत्र (डीएमजेड) में। स्रोत : एएफपी/गेटी छायाचित्र
ट्रम्प के राष्ट्रपतित्व तक अमेरिकी राष्ट्रपति का उत्तरी कोरिया का दौरा या शिखर वार्ता अकल्पनीय थी क्योंकि इसे प्योंगयांग में शासन की वैधता के रूप में देखा जाता था। किम के साथ दो बैठकें करने तथा उत्तरी कोरिया का एक सांकेतिक दौरा करने के बाद राष्ट्रपति ट्रम्प ने इस शिखरवार्ता को एक राजनयिक दरार तोड़ने के उपकरण के रूप में प्रयुक्त किया जो कि उत्तरी कोरिया के व्यवहार परिवर्तन हेतु वाशिंगटन की परम्परागत दृष्टि से हटकर एक उपहार के रूप देखा गया।
अक्टूबर, 2000 में प्योंगयांग का दौरा करने वाले राज्य सचिव मैडलीन अलब्राइट उत्तरी कोरिया का दौरा करने वाले अब तक के सबसे शीर्ष अमेरिकी अधिकारी थे। पूर्व के दो राष्ट्रपतियों ने भी उत्तरी कोरिया का दौरा किया था। पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने अब तक प्योंगयांग की तीन यात्राएँ कीं। उनका पहला दौरा जून, 1994 में था जिसके दौरान वे किम जोंग उन के दादा से मिले तथा तत्कालीन नेता किम II-सुंग ने प्रथम नाभिकीय संकट के दौरान दोनों देशों के बीच सम्बन्धों को बहाल करने में सहायता की थी।1 एक अमेरिकी बन्धक को मुक्त कराने की व्यवस्था करने तथा उत्तरी कोरिया में खाद्य संकट सुलझाने के लिए कार्टर ने क्रमश: अगस्त 2010 तथा अप्रैल 2011 में प्योंगयांग की यात्राएँ की। पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने दो अमेरिकी पत्रकारों को मुक्त कराने हेतु वार्ता करने के लिए अगस्त 2009 में प्योंगयांग की आकस्मिक यात्रा की थी।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प तथा चेयरमैन किम जोंग-उन 30 जून, 2019 को दोनों कोरियाई देशों को अलग करने वाले उत्तरी कोरिया वाले सेनारहित क्षेत्र (डीएमजेड) में दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन के सामने हाथ हिलाते हुए। स्रोत : केसीएनए
डीएमजेड में राष्ट्रपति ट्रम्प, चेयरमैन किम तथा दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन की त्रिपक्षीय वार्ता भी कोरियाई प्रायद्वीप में समस्या के समाधान के लिए एक शीर्ष-पाद उपागम हेतु निरन्तरता तथा वरीयता का भी सूचक है। ट्रम्प का यह शीर्ष-पाद उपागम इस वर्ष के प्रारम्भ में फरवरी में हनोई सम्मेलन में वार्ता की असफलता के पश्चात दबाव में अपनाया गया। अमेरिका-उत्तरी कोरिया नाभिकीय वार्ता को पुन: प्रारम्भ करने के लिए गति देने हेतु ट्रम्प तथा किम के बीच अघोषित बैठक से तकनीक उन्मुखी ऊर्ध्वगामी संवाद प्रक्रिया की तुलना में राजनीतिक रूप से प्रेरित शीर्ष-पाद उपागम की प्रभावशीलता में नेतृत्व की धारणा को इंगित करती है।
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1The standoff between North Korea and the United States during 1992-94, following North Korea’s announced intent to withdraw from the nuclear Nonproliferation Treaty (NPT) is referred to as the first nuclear crisis. Former President Jimmy Carter’s visit to Pyongyang helped diffuse the two year standoff, paving the way for the signing of 1994 Agreed Framework between the two countries. See, Creekmore, Marion V. (2006), A Moment of Crisis: Jimmy Carter, the Power of a Peacemaker, and North Korea's Nuclear Ambitions, New York: Public Affairs.
यद्यपि राष्ट्रपति ट्रम्प की अपरम्परागत विधियों ने तनाव कम करने तथा वार्ता हेतु अनुकूल वातावरण सृजित करने में सहायता अवश्य की, किन्तु नाभिकीय नि:शस्त्रीकरण के मोर्चे पर स्पष्ट रूप से कोई प्रगति नहीं हुई। संस्थापित नाभिकीय वार्ता को पुन: प्रारम्भ करने के लिए ट्रम्प तथा किम के बीच हुआ समझौता हनोई की असफलता पर विजय प्राप्त करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति का सूचक है। जहाँ तक नाभिकीय मुद्दे का प्रश्न है, दोनों पक्ष अब इस मुद्दे पर एक-दूसरे की स्थिति को अधिक उत्तम ढंग से समझने के साथ-साथ सिंगापुर सम्मेलन के परिवेश से वापस मुड़ चुके हैं।
कार्यकारी स्तर की बातचीत की भूमिका जून 2018 में सिंगापुर में अपनी बैठक के दौरान दोनों नेताओं के बीच हुए समझौते के क्रियान्वयन हेतु खाका तैयार करने के लिए है जो मुख्य रूप अमेरिका-उत्तरी कोरिया सम्बन्धों को उन्नत करने, कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु नि:शस्त्रीकरण करने तथा युद्धविराम के प्रतिस्थापित करने के लिए शान्तिपूर्ण माहौल तैयार करने पर केन्द्रित है। हनोई में वार्ता की असफलता ने उनकी बातचीत की स्थितियों में पर्याप्त मतभेद जाहिर किया जिसमें परमाणु नि:शस्त्रीकरण की परिभाषा को लेकर विशेष कठिनाई थी।
हनोई में वाशिंगटन ने सर्वसमावेशी समझौते पर आधारित एक शानदार सौदेबाजी या "सब कुछ या कुछ नहीं" का प्रस्ताव रखा जिसमें परमाणु नि:शस्त्रीकरण की अन्तिम अवस्था का स्पष्ट चित्र शामिल था। दूसरी ओर, प्योंगयांग परमाणु नि:शस्त्रीकरण की अन्तिम अवस्था को मुक्त रखने की धारणा छोड़ते हुए 'कार्यवाही हेतु कार्यवाही' के सिद्धान्त पर आधारित क्रमिक समझौतों की शृंखला की माँग करते हुए अपने "समकालिक एवं चरणबद्ध" उपागम पर दृढ़ रहा। अपनी स्थितियों में मौलिक मतभेद ने जनसामान्य की आजीविका को प्रभावित करने वाले प्रमुख प्रतिबन्धों में ढील देने के बदले योंगबायोंग के नाभिकीय प्रतिष्ठान को नष्ट करने के उत्तरी कोरिया के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। वाशिंगटन का तर्क था कि योंगबायोंग पर्याप्त नहीं था और उसने उत्तरी कोरिया से नाभिकीय कार्यक्रम को पूर्ण रूप से समाप्त करने पर ही समस्त प्रतिबन्धों को हटाने का प्रस्ताव किया।
राष्ट्रपति ट्रम्प तथा चेयरमैन किम के मध्य बनी व्यक्तिगत सहमति तथा सद्भावना अधिक समय तक बरकरार नहीं रहती यदि परमाणु नि:शस्त्रीकरण के मुद्दे पर कोई प्रगति नहीं होती। घरेलू राजनीतिक जटिलताओं के कारण अमेरिका में आगामी राष्ट्रपति चुनावों तथा उत्तरी कोरिया में विकृत आर्थिक स्थिति के कारण ट्रम्प तथा किम को इस वार्ता को सफल करने की गति बरकरार रखना अत्यन्त लाभकारी है। डीएमजेड बैठक राजनीतिक खेल की एक ऊँची बाजी का सूचक है जो ट्रम्प तथा किम के संवाद का विषय निर्मित करती है।
हालिया विकासों से स्पष्ट है कि अमेरिका तथा उत्तरी कोरिया अपनी भावी वार्ताओं में एक नवीन तथा अत्यन्त लचीले व्यवहार का उपयोग कर रहे हैं। प्योंगयांग की नवीन वार्ताकार टीम की घोषणा तथा वर्कर्स पार्टी के यूनाइटेड फ्रंट विभाग से विदेश मन्त्रालय के लिए वार्ता निगरानी प्रभार को पारित करने का निर्णय उत्तरी कोरिया की वार्ता रणनीति में परिवर्तन का सूचक है। अधिकांश सैन्य कर्मियों से युक्त उत्तरी कोरिया की प्रचार-प्रसार मशीनरी यूनाइटेड फ्रंट डिपार्टमेंट को उत्तरी कोरिया-अमेरिका के सम्बन्धों पर कठोर स्थिति अपनाने वाला माना जाता है।
इसी बीच उत्तरी कोरिया के लिए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि स्टीफेन बीगन प्रारम्भ से ही लचीले रुख की आवश्यकता पर बल देते रहे हैं और उत्तरी कोरिया के "समकालीन तथा चरणबद्ध" उपागम के समतुल्य स्थिति "तात्कालिक एवं समान्तर" उपागम के आधार पर वाशिंगटन की वार्ता करने की इच्छा व्यक्त की। यद्यपि सैद्धान्तिक रूप में बीगन ने अमेरिकी प्रतिबन्धों में ढील देने के विचार को अस्वीकार कर दिया किन्तु उन्होंने कहा था कि मानवीय सहायता, जनता से जनता का विनिमय तथा वार्ता कार्यालयों को खोलने जैसी छूटों सहित कुछ "ऐसी चीजें हैं जो हम वर्तमान में कर सकते हैं।" परमाणु नि:शस्त्रीकरण वार्ता के दौरान अमेरिका की "अवसान (उत्तरी कोरिया के नाभिकीय कार्यक्रम का)" स्वीकार्यता वाशिंगटन की वार्ता प्रक्रिया में परिवर्तन का एक संकेत हो सकता है।
संस्थापित वार्ता प्रक्रिया को पुन: प्रारम्भ करने के लिए समझौते का समाचार न केवल अमेरिका-उत्तरी कोरिया सम्बन्धों के लिए, जिसकी गति हनोई सम्मेलन के पश्चात समाप्त होती प्रतीत हो रही थी, बल्कि क्षेत्रीय शान्ति एवं स्थिरता के लिए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि यह सत्य है कि ट्रम्प और किम के बीच डीएमजेड की बैठक ने अमेरिका-उत्तरी कोरिया वार्ता में एक नई ऊर्जा अनुप्राणित की है किन्तु नाभिकीय मुद्दे पर साझा सहमति बन पाना सरल नहीं होगा। किन्तु, ट्रम्प और किम के बीच उच्च निजीकृत कूटनीति के विषय में यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि इससे दोनों देशों के मध्य संरचनात्मक तथा परिदृश्यात्मक मतभेद अवश्य कम होगा।
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* डॉ. जोजिन वी. जॉन, शोधकर्ता, वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली
अस्वीकरण : इसमें व्यक्त विचार शोधकर्ता के हैं न कि परिषद के।