कुलभूषण सुधीर जाधव के मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के निर्णय की घोषणा 17 जुलाई, 2019 को की गई, जिसपर दोनों पक्षों-भारत और पाकिस्तान के बारे में सार्वजनिक प्रतिक्रिया हुई। विदेश मंत्रालय (एमईए) के बयान में इसका स्वागत किया गया और इसे उसके पक्ष में एक "ऐतिहासिक निर्णय" बताया गया और यह कहा गया कि इस मुद्दे पर भारतीय स्थिति को मान्य ठहराया गया।1 दिनांक 18 जुलाई, 2019 को भारत के विदेश मंत्री श्री एस. जयशंकर ने जाधव के मामले में नतीजे से संसद को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि न्यायालय ने पाकिस्तान को कांस्युलर संबंधों पर विएना कन्वेंशन का सम्मान नहीं करने का दोषी पाया और उसे भारत को कांस्युलर एक्सेस देने तथा प्रभावी रूप से जाधव की दोषसिद्धि एवं दंडादेश की समीक्षा एवं उसपर पुनर्विचार करने का निदेश दिया।2
इसके विपरीत, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने कुलभूषण जाधव को दोषमुक्त करने / छोड़ देने की भारतीय प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया।3 उसने कुलभूषण जाधव पर एक प्रामाणिक भारतीय पासपोर्ट पर बिना वीजा के पाकिस्तान में प्रवेश करने और आतंक संबंधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया एवं अंतिम रूप से यह तय किया कि यह स्पष्ट रूप से भारत के आतंकवाद का मामला था।4 पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने कुलभूषण यादव को "दोषमुक्त, छोड़ने और वापस नहीं करने" के आईसीजे के निर्णय की सराहना कीl5 मेजर जनरल आसिफ गफूर ने पाकिस्तानी टीवी चैनल एआरवाई से बातचीत की और "प्राप्त सफलता " पर राष्ट्र को बधाई दी। उन्होंने जीत का दावा किया और कहा कि आईसीजे ने(सैन्य न्यायालय के) अधिमत को मान्य ठहराया है।6 उनके लिए, आईसीजे द्वारा यथा आदेशित पाकिस्तान के भीतर मामले की समीक्षा और पुनर्विचार पाकिस्तानी न्याय प्रणाली का विधिमान्यकरण है।7 उन्होंने आगे कहा कि भारत फिर से हैरान हुआ और इस नतीजे को "एक और 27 फरवरी" करार दिया- जबकि भारत और पाकिस्तानी सेनाओं के बीच आमने-सामने की लड़ाई हुई थीl8 नई दिल्ली और इस्लामाबाद/रावलपिंडी से अलग- अलग आधिकारिक प्रतिक्रियाओं का सुविचारित अध्ययन इस मुद्दे पर दोनों देशों द्वारा अपनाए गए विरोधी दृष्टिकोण को रेखांकित करता है।
निर्णय
निर्णय के प्रारंभ में, न्यायालय ने यह कहते हुए अपने अधिकार क्षेत्र को रेखांकित किया कि "न्यायालय को विवादों के अनिवार्य निपटान के संबंध में कांस्युलर संबंधों पर विएना कन्वेंशन के वैकल्पिक प्रोटोकॉल के अनुच्छेदI के तहत क्षेत्राधिकार है।"9 और "विवाद, कांस्युलर संबंधों पर वियना कन्वेंशन के निर्वचन और लागू किए जाने से संबंधित है।”10 चूंकि दोनों - भारत और पाकिस्तान, किसी आरक्षण या घोषणा के बिना, विएना कन्वेंशन और वैकल्पिक प्रोटोकॉल के पक्षकार हैं, अत: न्यायालय को कन्वेंशन के निर्वचन एवं लागू किए जाने पर पक्षकारों के बीच किसी विवाद का निर्णय करने का अधिकार हैl भारत 28 दिसंबर, 1977 से और पाकिस्तान 14 मई, 1969 से विएना कन्वेंशन के पक्षकार हैंl
42-पृष्ठ का निर्णय आईसीजे का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसे पढ़ने और समझने के लिए विधि का विशेषज्ञ या छात्र होने की जरूरत नहीं हैl यह सरल और बोधगम्य भाषा में लिखा गया है, जिसे अधिक से अधिक श्रोतागण समझ सकते हैं। इसमें अटकलों की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि न्यायालय ने मामले के बारे में सब कुछ स्पष्ट करने का ईमानदार प्रयास किया है। किसी भी बिंदु या मुद्दे पर, न्यायालय दोनों पक्षों- भारत और पाकिस्तान द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्कों को सूचीबद्ध करती है। दोनों पक्षों के तर्कों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करने के बाद, न्यायालय अपनी स्थिति बताता है। ऐसा करते समय, वह यह भी विस्तार से बताता है कि न्यायालय ने किसी विशेष मुद्दे या बिंदु पर ऐसा निर्णय क्यों किया।
भारत के आवेदन पर पाकिस्तान के आक्षेप
पाकिस्तान ने भारत के आवेदन की ग्राह्यता के विरुद्ध तीन स्पष्ट आक्षेप किए । ये आक्षेप भारत द्वारा प्रक्रिया का कथित दुरुपयोग किए जाने, अधिकारों का कथित दुरुपयोग किए जाने और कथित विधिविरुद्ध आचरण के संबंध में थे। पहले आक्षेप (प्रक्रिया के कथित दुरुपयोग) के बारे में, पाकिस्तान ने तर्क दिया कि भारत ने जाधव के दंडादेश के बाद 150 दिनों की अवधि के भीतर राज्यक्षमा याचिका दायर करने के संवैधानिक अधिकार को नजरअंदाज कर दिया। भारत ने "वैकल्पिक प्रोटोकॉल के अनुच्छेद II में परिकल्पित विवाद निपटान के अन्य तंत्रों" का उपयोग करने पर विचार नहीं किया।11 दूसरा आक्षेप अधिकारों के दुरुपयोग के संबंध में था जिसके प्रति पाकिस्तान ने तीन मुख्य तर्क दिए:
तीसरा आक्षेप भारत के कथित विधिविरुद्ध आचरण से संबंधित था, जिसके लिए पाकिस्तान ने "क्लीन हैंड्स" के सिद्धांत और "अधम कार्य से [नॉन ऑरिटर एक्शन] के सिद्धांत" का अवलंब लिया।12 न्यायालय ने एक-एक करके इन आक्षेपों की जांच की और अंत में सभी को नामंजूर कर दिया तथा भारत के आवेदन के ग्राह्य होने की घोषणा की।
विएना कन्वेंशन और वैकल्पिक प्रोटोकॉल की सुसंगत धाराएं
दिनांक 24 अप्रैल, 1963 को विएना, ऑस्ट्रिया में कांस्युलर संबंधों पर वियना कन्वेंशन पर सहमति हुई। संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, अंतर्राष्ट्रीय संधि अस्तित्व में आई, जिससे अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के संप्रभु राज्यों के बीच कांस्युलर संबंधों के लिए रूपरेखा परिभाषित हुईl इस मामले में कांस्युलर संबंध पर विएना कन्वेंशन का अनुच्छेद 36 और वैकल्पिक प्रोटोकॉल का अनुच्छेद I सुसंगत हैं। वैकल्पिक प्रोटोकॉल संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा विएना में मार्च 4 - अप्रैल 22,1963 को अंगीकृत किया गया । इसमें कहा गया है कि:
वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 में, जो प्रेषक राज्य के नागरिकों के साथ संचार और संपर्क से संबंधित है, कथित किया गया है कि :
1.प्रेषक राज्य के नागरिकों से संबंधित कांस्युलर कार्यों को सुविधाजनक बनाने की दृष्टि से:
(क) कांस्युलर अधिकारी प्रेषक राज्य के नागरिकों के साथ संवाद करने और उन तक पहुंचने के लिए स्वतंत्र होंगे। प्रेषक राज्य के नागरिकों के पास संचार और प्रेषक राज्य के कांस्युलर अधिकारियों तक पहुंच के संबंध में समान स्वतंत्रता होगीl
(ख) यदि वह ऐसा अनुरोध करता है, तो प्रापक राज्य के सक्षम अधिकारी, बिना देरी किए, प्रेषक राज्य के कांस्युलर पोस्ट को कॉन्सुलर जिले के भीतर विचारण लंबित रहने पर उस राज्य के किसी नागरिक के गिरफ्तार किए जाने या कारागार या अभिरक्षा में भेजे जाने या किसी अन्य रूप में निरुद्ध रखे जाने पर उसकी सूचना देंगेl गिरफ्तार किए गए, कारागार, अभिरक्षा में रखे गए या निरुद्ध किए गए किसी व्यक्ति द्वारा कांस्युलर पोस्ट को संबोधित कोई पत्र उक्त प्राधिकारियों द्वारा विलम्ब किए बिना अग्रेषित किया जाएगाl उक्त प्राधिकारी संबंधित व्यक्ति को कोई विलम्ब किए बिना इस उप-पैरा के अधीन उसके अधिकारों के बारे में सूचित करेंगेl
(ग) कांस्युलर अधिकारियों को प्रेषक राज्य के किसी ऐसे नागरिक से मिलने, बातचीत करने, पत्राचार करने और उसके लिए विधिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था करने का अधिकार होगा जो कारागार, अभिरक्षा में है या जिसे निरुद्ध रखा गया हैl उन्हें प्रेषक राज्य के किसी ऐसे नागरिक से भी मिलने का अधिकार होगा जो किसी निर्णय के अनुसरण में उनके जिले में कारागार, अभिरक्षा में है या जिसे निरुद्ध रखा गया हैl ऐसा होने पर भी, कांस्युलर अधिकारी किसी ऐसे नागरिक की ओर से कार्रवाई करने से विरत रहेंगे जो कारागार, अभिरक्षा में है या जिसे निरुद्ध रखा गया है, परन्तु जो अभिव्यक्त रूप से ऎसी कार्रवाई का विरोध करता हैl
2. इस अनुच्छेद के पैरा 1 में उल्लिखित अधिकारों का प्रयोग इस परंतुक के अध्यधीन रहते हुए प्रापक राज्य की विधि एवं विनियमों के अनुरूप किया जाएगा कि उक्त विधि और विनियम उन उद्देश्यों को पूरी तरह प्रभावी करने में सक्षम हैं जिनके लिए इस अनुच्छेद के अधीन दिए गए अधिकार आशयित हैंl14
पाकिस्तान द्वारा अपवाद की माँग
पाकिस्तान के आक्षेपों को नामंजूर किए जाने और भारत के आवेदन को ग्राह्य किए जाने के बाद पाकिस्तान ने तीन आधार पर विएना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 को लागू किए जाने से अपवाद की मांग की :
न्यायालय ने इन प्रश्नों की विस्तार से जांच की और पाया कि न तो विएना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 और न ही किसी अन्य प्रावधान में जासूसी के मामलों का कोई संदर्भ है और इस प्रकार यह निष्कर्ष निकाला गया कि संदिग्ध जासूसी जैसे कुछ व्यक्तियों की श्रेणियों को अनुच्छेद 36 के दायरे से बाहर नहीं किया गया है l विएना कन्वेंशन के प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से यह कथित किया गया है कि "रूढ़िजन्य अंतरराष्ट्रीय विधि के नियम वर्तमान कन्वेंशन के प्रावधानों द्वारा स्पष्ट रूप से विनियमित नहीं होने वाले मामलों को विनियमित करते हैं", इस प्रकार न्यायालय का मानना है कि अनुच्छेद 36 इस मामले को विनियमित करता है। न्यायालय ने यह भी घोषित किया कि 2008 का समझौता अनुच्छेद 36 के तहत दायित्व को विस्थापित नहीं करता है।
अनुच्छेद 36 का अतिक्रमण
भारत के आवेदन की ग्राह्यता पर पाकिस्तान के आक्षेपों को नामंजूर किए जाने और फिर किसी अपवाद के वर्जन के बाद न्यायालय ने इस प्रश्न पर विचार किया कि पाकिस्तान द्वारा अनुच्छेद 36 का अतिक्रमण किया गया है या नहींl इस मुद्दे पर भारत की स्थिति यह थी कि उसे पता नहीं था कि अनुच्छेद 36 1 (ख) के तहत पाकिस्तान ने जाधव को उसके अधिकारों की जानकारी दी थी या नहीं। पाकिस्तान ने यह तर्क नहीं दिया कि जाधव को उसके अधिकारों के बारे में बताया गया था। अनुच्छेद 36, पैराग्राफ 1 (ख) में सक्षम अधिकारियों से यह अपेक्षित है कि वे निरुद्ध रखे जाने वाले विदेशी नागरिक को उसके अधिकारों के बारे में सूचित करें। चूंकि, पाकिस्तान ने भारतीय निरोध पर प्रतिवाद नहीं किया और बहस करता रहा कि अनुच्छेद 36 इस मामले में लागू नहीं होता है, इसलिए न्यायालय के लिए यह निष्कर्ष निकालना आसान था कि पाकिस्तान ने अनुच्छेद 36 के पैराग्राफ 1 (ख ) के तहत अपनी बाध्यता भंग कीl
इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि पाकिस्तान ने दिखाया था कि जाधव को 3 मार्च, 2016 को गिरफ्तार किया गया और भारत को इसके बारे में तीन सप्ताह बाद यानी 25 मार्च, 2016 को सूचित किया गया। अनुच्छेद 36 द्वारा ऐसे मामलों में "बिना विलम्ब के" सूचित किया जाना अपेक्षित है हालांकि, न्यायालय द्वारा यह उल्लिखित किया गया है कि "बिना विलम्ब के" पद का अर्थ "गिरफ्तारी के बाद तुरंत और पूछताछ से पहले" समझा जाए। इस प्रकार, न्यायालय ने यह भी पाया कि पाकिस्तान ने अनुच्छेद 36 के अधीन यथापेक्षित "बिना विलम्ब के" सूचित करने की अपनी बाध्यता भंग की हैl
न्यायालय ने इस संबंध में भारत द्वारा कई बार अनुरोध किए जाने के बावजूद पाकिस्तान द्वारा कांस्युलर एक्सेस प्रदान नहीं किए जाने के मुद्दे पर भी विचार किया । भारत ने 25 मार्च, 2016 से कम से कम 10 बार ऐसे अनुरोध किए थे। दिनांक 21 मार्च, 2017 को एक नोट वर्बेल में, पाकिस्तान ने कहा, "भारतीय नागरिक को कांस्युलर एक्सेस दिए जाने के मामले पर तभी -------------------विचार किया जाएगा जब भारत जांच प्रक्रिया और न्याय के शीघ्र निपटान में सहायता के लिए पाकिस्तान के अनुरोध को मानता है।”15 यह पाकिस्तान द्वारा कांस्युलर एक्सेस को सशर्त बनाने का एक प्रयास था। न्यायालय का विचार था कि जांच प्रक्रिया में पाकिस्तान के साथ सहयोग करने में भारत की विफलता, कांस्युलर एक्सेस दिए जाने से पाकिस्तान के इनकार को न्यायोचित नहीं ठहराती है। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि कोई राष्ट्र अनुच्छेद 36 के तहत अपनी बाध्यता को पूरा करने की शर्त नहीं रख सकता है और यह निष्कर्ष निकाला कि पाकिस्तान ने विएना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36, पैराग्राफ 1 (क), (ख), और (ग) के तहत अपनी बाध्यता भंग की है।
भारत द्वारा अनुतोष की मांग
पाकिस्तान द्वारा विएना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 का भंग किया जाना साबित होने के बाद, भारत द्वारा आईसीजे से माँगे गए अनुतोष को रेखांकित करना उचित होगा। प्रथमत:, भारत ने न्यायालय से यह न्यायनिर्णीत और घोषित करने का अनुरोध किया कि पाकिस्तान द्वारा की गई कार्रवाई अनुच्छेद 36 का प्रबल भंग है। भारत ने न्यायालय से निम्नलिखित घोषित करने का अनुरोध किया :
भारत ने एक वैकल्पिक अनुरोध भी किया कि यदि न्यायालय जाधव को छोड़ने का निदेश नहीं देता है, तो सैन्य न्यायालय के विनिश्चय को बातिल किया जाए या पाकिस्तान को निदेश दिया जाए कि वह उक्त विनिश्चय को बातिल करने के लिए कार्रवाई करे l इसके अलावा, भारत ने आईसीजे से अनुरोध किया कि भारत को पूर्ण कांस्युलर एक्सेस के साथ असैनिक अदालतों में (जाधव की संस्वीकृति को अपवर्जित कर) विचारण का निदेश दिया जाए ।
पाकिस्तान ने इसका प्रतिवाद करते हुए कहा कि भारत द्वारा मांगा गया अनुतोष केवल एक अपीलीय आपराधिक अदालत द्वारा दिया जा सकता है और यथापूर्व स्थिति बहाल करना समुचित उपचार नहीं है l पाकिस्तान ने कहा कि समुचित उपचार अधिक से अधिक प्रभावी समीक्षा करना एवं सिद्धदोष और दंडादेश पर पुनर्विचार करना होगा l पाकिस्तान ने यह भी तर्क दिया कि न्यायिक समीक्षा और राज्यक्षमा प्रक्रिया पहले से ही जाधव के लिए उपलब्ध थी। इसके अलावा, पाकिस्तान ने कहा कि भारत और जाधव के आचरण को अनुतोष पर किए जानेवाले किसी भी विचार के समय ध्यान में रखा जाना चाहिए।
उपचार
यह साबित होने के बाद कि पाकिस्तान ने विएना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 का भंग किया, अदालत ने इस मामले में समुचित उपचार प्रतिपादित किया। प्रथमत:, न्यायालय ने पाकिस्तान को निदेश दिया कि वह जाधव को अनुच्छेद 36, पैरा 1 (ख) के अधीन उसके अधिकारों की जानकारी दे और भारतीय कांस्युलर अधिकारियों को उसके पास पहुंचने और उसके लिए विधिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था करने की अनुमति दे। द्वितीयत: न्यायालय ने इस मामले में समुचित उपचार के रूप में जाधव के सिद्धदोष एवं दंडादेश की प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार को सही माना l न्यायालय के अनुसार न्यायिक प्रक्रिया समीक्षा और पुनर्विचार के कार्य के अनुकूल है। न्यायालय ने राज्यक्षमा प्रक्रिया को अपर्याप्त उपचार मानकर उसे नियमविरुद्ध घोषित किया और यह स्पष्ट किया कि उपयुक्त राज्यक्षमा प्रक्रिया, न्यायिक समीक्षा और पुनर्विचार का पूरक हो सकती है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी समीक्षा और पुनर्विचार में निष्पक्ष परीक्षण के सिद्धांत अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैंl प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार का विकल्प और साधन पाकिस्तान पर छोड़ दिया गया । आईसीजे ने यह भी स्पष्ट किया कि " जाधव के सिद्धदोष और दंडादेश की प्रभावी समीक्षा एवं पुनर्विचार के लिए प्राणदंड पर निरंतर रोक लगाना एक अपरिहार्य शर्त हैl”
न्यायालय ने भारत द्वारा माँगा गया कोई अन्य अनुतोष नहीं दिया, और यह रेखांकित किया कि वैकल्पिक प्रोटोकॉल के अनुच्छेद I पर आधारित उसका अधिकार क्षेत्र विएना कन्वेंशन के निर्वचन या लागू किए जाने तक सीमित है । इस प्रकार, जाधव के सिद्धदोष और दंडादेश के संबंध में भारत के अनुरोध का विएना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 से कोई संबंध नहीं है और वे न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बाहर हैं l
हाल में हुए परिवर्तन
आईसीजे के फैसले के तुरंत बाद, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की। दिनांक 18 जुलाई, 2019 की प्रेस विज्ञप्ति में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया कि कुलभूषण जाधव को कांस्युलर संबंधों पर विएना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36, पैराग्राफ1 (ख) के तहत उसके अधिकारों की जानकारी दी गई । यह भी कहा गया कि पाकिस्तान अपने यहाँ की विधि के अनुसार, जाधव को कांस्युलर एक्सेस प्रदान करेगा। दिनांक 1 अगस्त को पाकिस्तान ने औपचारिक रूप से भारत से संपर्क किया और 2 अगस्त, 2019 को जाधव को कांस्युलर एक्सेस देने की पेशकश की। चूंकि इस प्रस्ताव में जाधव और भारतीय कांस्युलर अधिकारियों के बीच बैठक के दौरान एक पाकिस्तानी अधिकारी की उपस्थिति जैसी कुछ शर्तें जुड़ी हुई थीं, अत: भारत ने पाकिस्तान को एक मुक्त वातावरण में "अप्रभावित" कांस्युलर एक्सेस प्रदान करने के लिए कहा। पाकिस्तान ने "अप्रभावित" कांस्युलर एक्सेस की भारत की मांग को ठुकरा दिया।17 इस मुद्दे पर, कम से कम आम जनता की जानकारी में,अबतक कोई संवाद नहीं हुआ हैl
निष्कर्ष
वर्तमान मामले के बारे में पाकिस्तान की मंशा के प्रति कोई संदेह नहीं है। जैसा कि राजदूत विवेक काट्जू बताते हैं, "पाकिस्तान लंबे समय से अपने यहाँ आतंकवाद के मामलों में भारत को फंसाने के लिए एक 'सिल्वर बुलेट' की तलाश कर रहा था।" यही वह 'सिल्वर बुलेट' है, हालांकि विरचित है, जिसे पाकिस्तान तैयार करने में कामयाब हुआ है। पाकिस्तानी राज्य और भारत-पाकिस्तान संबंधों की प्रकृति को देखते हुए, सुरक्षा प्रतिष्ठान इस सिल्वर बुलेट को तब तक रखना चाहेगा, जब तक वह ऐसा कर सकता है। इस निमित्त पाकिस्तान, आईसीजे के फैसले में हेरफेर करने में संकोच नहीं करेगा। जिस तरह से पाकिस्तान में इस विशेष फैसले का निर्वचन किया जा रहा है, कांस्युलर एक्सेस की सशर्त पेशकश उस दिशा में उठाया गया कदम है। हालांकि, अभी सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है और उम्मीद की जा सकती है कि अंत में राजनयिक प्रयास दोनों देशों को इस मुद्दे को हल करने में मदद करेंगे।
***
* डॉ.आशिष शुक्ल, भारतीय वैश्विक कार्य परिषद, नई दिल्ली में शोध अध्येता ।
खंडन: व्यक्त किए गए विचार शोधकर्ता के हैं, परिषद् के नहीं l
End Notes
1MEA (2019), “Statement on ICJ verdict on the Jadhav case,” Press Release, Ministry of External Affairs, New Delhi, 17 July 2019.
2MEA (2019), “External Affairs Minister‟s statement in the Parliament regarding KulbhushanJadhav,” Speeches & Statements, Ministry of External Affairs, New Delhi, 18 July 2019.
3MOFA (2019), “Judgement of International Court of Justice on Commander KulbhushanJadhav,” Ministry of Foreign Affairs, Islamabad, 17 July 2019.
4Ibid.
5The Dawn (2019), “PM appreciates ICJ‟s decision to not acquit, release Jadhav; says Pakistan will proceed as per law,” 18 July, 2019, https://www.dawn.com/news/1494785
6ARY News (2019), Maj. Gen. Asif Ghafoor‟s Interview by ARY News, 17 July 2019, https://www.youtube.com/watch?v=MOJF67yetDc
7Ibid.
8Ibid.
9ICJ (2019), Jadhav Case: India vs Pakistan, Hague: The International Court of Justice, General List No. 168, 17 July 2019, p.
10Ibid.
11Ibid, p. 15.
12Ibid, p. 18.
13UN (1964), Optional Protocol Concerning the Compulsory Settlement of Disputes, New York: United Nations, p. 2.
14United Nations (2005), Vienna Convention on Consular Relations 1963, New York: United Nations, p. 15.
15ICJ (2017), Application Instituting Proceedings: Case Concerning the Vienna Convention on Consular Relations (India vs. Pakistan), Hague: International Court of Justice, pp. 6-7.
16Ibid, pp. 30-32.
17Hindustan Times (2019), “„No talks‟, says Pak on Jadhav, rejects demand of unimpeded consular access,” 8 August 2019, https://www.hindustantimes.com/india-news/pakistan-turns-down-india-s-demand-of-unimpeded-consular-access-to-kulbhushan-jadhav/story-3PFNqQfipKbsa5RBrHPpeL.html