नेपाल में स्थानीय चुनावों के बाद नये संविधान के लागुकरण हेतु अभी 26 नवम्बर और 7 दिसंबर को प्रांतीय और संघीय चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व और फर्स्ट पास्ट द पोस्ट की चुनाव पद्धति के आधार पर होने जा रहे है. नेपाल में सत्ता केंद्र में रहने के कारण राजनीतिक दलों के गठबंधन बनना एक प्रवृत्ति बन गयी है. नेपाली काग्रेस शासित शेर बहादुर देउबा की सरकार में पुष्प कमल दहाल के माओवादी केंद्र दल की गठबंधन वाली सरकार है लेकिन आगामी चुनावों से ठीक पहले चुनावी गठबंधन के लिए एमाले के साथ वाम गठबंधन बनाना आश्चर्यजनक है और यह देउबा की सरकार और नेपाली कांग्रेस के लिए भी बड़ी चुनौती बन गयी है. वाम गठबंधन के जवाब में देउबा ने आगामी चुनावों में टक्कर देने हेतु एक लोकतान्त्रिक गठबंधन बनाया जिसमे बिजय गछेदार, कमल थापा की राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी और बाबूराम भट्टराई (हालांकि बाद में भट्टराई नेपाली कांग्रेस से जुड़ गये) की नया शक्ति पार्टी शामिल है. इस गठबंधन में मधेश दलों को भी शामिल करने की कोशिश की गयी लेकिन सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं हो पाई. इसके परिणाम स्वरूप मधेश आधारित दलों राष्ट्रिय जनता पार्टी- नेपाल और संघीय समाजवादी फोरम नेपाल ने एक और चुनावी गठबंधन किया जिससे कि वे प्रदेश 2, जो कि मधेश बाहुल्य है, यहाँ जीतने की कोशिश करेंगे. इस प्रकार नेपाल के आगामी चुनाव में ये छोटे बड़े तीन गठबंधन चुनाव में शामिल होंगे.
नेपाल के इन प्रान्तों और संघीय चुनावो में 330 सीट प्रान्तों की और 275 सीटें संघीय निर्वाचन क्षेत्र की है. दोनों स्तरों पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व और फर्स्ट पास्ट द पोस्ट पद्दति से चुनाव होने जा रहे है. संसद की 110 सीटों पर तथा प्रान्तों की विधानसभाओं की 220 सीटो पर चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार चुनाव होंगे तथा संसद की शेष 165 सीटों और प्रान्तों की 110 सीटों पर चुनाव फर्स्ट पास्ट द पोस्ट पद्दति के अनुसार होंगे. ये चुनाव दोनों स्तरों पर दो पद्दतियों से दो चरणों में होगे, 26 नवम्बर को पहाड़ी प्रदेशों में होगे क्योकि सर्दी और बर्फ़बारी हो सकती है और बाकि तराई और निचले प्रदेशों में 7 दिसंबर को चुनाव को होंगे.1
चुनाव आयोग के अनुसार आनुपातिक प्रतिनिधित्व के नामांकन के लिए 6094 उम्मीदवारों के नाम पंजीकृत हुए है. इसमें मूल निवासी समुदाय से 793 पुरुष और 931 महिलाएं है, खास/आर्य समुदाय से 867 पुरुष और 997 महिलाये है, थारू समुदाय से 158 पुरुष और 262 महिलाएं है, दलित समुदाय से 342 पुरुष और 496 महिलाये है, मधेशी समुदाय से 445 पुरुष और 563 महिलाये है, मुस्लिम समुदाय से 81 पुरुष और 157 महिलाएं है, निः शक्त समुदाय से 158 पुरुष और 115 महिलाये है और वंचित समूहों से 107 पुरुष और 122 महिलाएं है. इस प्रकार इस चुनाव में संसद और प्रान्तों की विधानसभाओ के लिए 110 और 220 सदस्य अनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्दति के अनुसार चुने जायेंगे.2 वही फर्स्ट पोस्ट द पास्ट की पद्दति के चुनाव हेतु 4708 उम्मीदवारों ने पर्चे भरे. चुनाव आयोग ने कहा कि इस पद्दति से चुनाव के लिए संसद के लिए 126 महिलाओ ओए प्रान्तों की विधानसभाओं के लिए 209 महिलाओ ने नामांकन करवाया.
चुनाव से पहले सभी दलों ने अपने अपने घोषणा पत्र भी जारी किये है, जिनको आधार बना कर वे चुनाव लड़ रहे है. वाम गठबंधन के घोषणापत्र में कहा गया कि अभी नेपाल की राजनीति दो धुर्वो में बंट गयी है, जिसमे एक ओर नेपाली कांग्रेस है और दूसरी तरफ हम है. इसमें कहा गया कि नेपाली काग्रेस का आधार सामंती और निरंकुश वादी है. वाम ने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए लिखा कि वैदेशिक रिश्तों में पूंजीवाद के साथ एकाधिकार, समझौतावादी और आत्म समर्पणवादी बताया. नेपाली काँग्रेस ने वाम की आलोचना करते हुए अपने घोषणापत्र में लिखा कि एमाले राष्ट्रीय एकता और समृद्धि में बाधक है माओवादी अस्थिर राजनीति का लाभ उठाकर अवसर खोजते है. नेपाल में साम्यवाद स्थापित करने के उद्देश्य से यह वाम गठबंधन हुआ है अंतर्राष्ट्रीय संबंधो पर वाम ने लिखा कि राष्ट्रीय हित, स्वाधीनता और संप्रभुता की रक्षा प्राथमिकता होगी. पंचशील और असंल्ग्नता के आधार पर विदेशी रिश्ते कायम होगे. स्वतंत्र विदेश नीति का अवलम्बन किया जायेगा और आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं होगा. वही नेपाली कांग्रेस ने लिखा कि पडौसी देशो के साथ राष्ट्रिय पुनर्जागरण के अनुसार एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान स्थापित करेगे. पडौसी देशों के साथ सम्मान पूर्ण रिश्ते स्थापित होंगे तथा इससे विदेशी निवेश और व्यापार में वृद्धि होगी.3 तराई के दलों ने अपने घोषणापत्र में संविधान संशोधन को मुख्य मुद्दा बनाया तथा राष्टीय प्रजातंत्र पार्टी ने हिन्दू राष्ट्र बनाने पर जोर दिया.
संघ और प्रान्त के इस चुनाव में कई नामी हस्तियाँ चुनाव लड़ रही है. वर्तमान प्रधानमन्त्री शेर बहादुर देउबा संसदीय सीट पर (फर्स्ट पास्ट द पोस्ट) ददेल्दुरा-1 से चुनाव लड़ रहे है, यह इनका घरेलु निर्वाचन क्षेत्र है. एमाले के अध्यक्ष के पी शर्मा ओली झापा- 5 से चुनाव लड़ रहे है, यहाँ वाम दलों का गढ़ माना जाता है. माओवादी अध्यक्ष पुष्प कमल दहाल चितवन-3 से चुनाव लड़ रहे है, यह इनका घरेलू निर्वाचन क्षेत्र है. सभी प्रतिद्वंद्वी अपने गठबंधन दलों के समर्थन से अपने क्षेत्रो में जीतने का दावा कर रहे है.4
वाम गठबंधन क्यों बना?
नेपाल की राजनीति में परिवर्तन आना और आपस में सत्ता के लिए दल बदलना और गठजोड़ कर लेना आम बात है, लेकिन चुनाव से ठीक पहले माओवादी केद्र और एमाले का मिलना महज गठबंधन नहीं इसके अन्य कई समीकरण भी हो सकते है. स्थानीय चुनाव के परिणाम देखते है तो ऐसा लगता है कि यदि ये दोनों दल साथ में चुनाव लड़ते तो 83 प्रतिशत मत इनके पास आते. एक कारण इस गठबंधन का यह भी बताया जा रहा है कि स्थानीय स्तर के चुनाव के तीसरे चरण में प्रान्त 2 में नेपाली काँग्रेस ने इन दोनों वाम दलों को करारी मात दी जिसके कारण ये नजदीक आये. लेकिन वाम दलों के अभी नजदीक आने के यही नहीं अन्य कारण भी बताये जा रहे है. इसमें ओली और प्रचंड की अपनी खुद की गणित भी है, इन्हें यह आभास हो गया कि अभी नेपाल में जो आनुपातिक प्रतिनिधित्व की पद्दति आई है उससे चुनावो में कोई एक दल बहुमत नहीं ला सकता और यदि दोनों दल मिल जाये तो यह संभव है. काठमांडू घाटी में ऐसी चर्चा भी है कि नेपाली कांग्रेस को भारत और वाम दलों को चीन का समर्थन है. और चीन ने वर्तमान कांग्रेस सरकार को कमजोर करने और वाम दलों को एकजुट कर इस गठबंधन को बनाने में भूमिका निभाई है.5 हालाँकि नेपाल के कुछ विद्वान यह भी मानते है यह गठबंधन नहीं गठजोड़ है, चुनाव के बाद समीकरण बदल सकते है माओवादी सत्ता पाने के लिए उलट फेर भी कर सकते है.
भारत की चिंता
इसमें कोई संदेह नहीं है कि नेपाल में वाम गठबंधन की सरकार आती है तो भारत के लिए थोड़ी चिंता जरुर होगी क्योकि चीन का प्रभाव बढ़ सकता है. चीन द्वारा नेपाल के वाम दलों को एक जुट करना यद्यपि भारत के नेपाल के साथ पारंपरिक रिश्तो के लिए चुनौती हो सकता है. और वाम दलों के कारण चीन को नेपाल में अधिक सत्कार और जगह मिल मिल सकती है. ऐसे में भारत को आवश्यकता है कि वाम दलों के नेताओं का चीन के प्रति झुकाव का विश्लेषण किया जाये. यद्यपि भारत की तरफ से इन चुनावों को लेकर कोई टिप्पणी नहीं आई है और भारत के नेतृत्व की ओर से हमेशा लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती का ही समर्थन किया जाता रहा है. वर्तमान में विकासात्मक मुद्दों को आगे रखते हुए प्रधानमन्त्री मोदी की नेपाल यात्रा प्रस्तावित है जहाँ वे अरुण-३ हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट का उद्घाटन करेंगे. लेकिन इस निमंत्रण पर अभी अंतिम बात नेपाल के वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम के रुख के हिसाब से होगी. चुनाव के बाद नई सरकार किसकी होगी यह कहना मुश्किल है और ये चुनाव का परिणाम आने वाले नेपाल के राजनीतिक नेतृत्व का निर्णय करेगा जिसके बाद ही भारत नेपाल के साथ रिश्तो की दशा और दिशा तय कर पायेगा.
चुनाव और आगे की राह
नेपाल में नए संविधान के लागू होने के बाद स्थानीय स्तर के बाद अब संघ और प्रान्तों के चुनाव हो रहे है. नेपाल के लिए यह सब एक नया परीक्षण है. अभी तक केन्द्रात्मक शक्ति व्यवस्था रही और अब संघात्मक व्यवस्था आई है, जिसे नेपाल की जनता और यहाँ का राजनीतिक चरित्र अपनाने की प्रक्रिया में है. अभी चुनाव के माहौल को देखकर लगता है कि चुनाव काठमांडू के लिए नहीं पूरे देश के लिए हो रहा है. केंद्र के अलावा सात प्रान्तों में नई सरकार बनेगी जो कि पहली बार होगा. हालाँकि नेपाल के मीडियाकर्मियों का यह भी कहना है कि स्थानीय स्तर की सरकार के पास इतने अधिकार दिए गये है कि लोग प्रान्तों के चुनावो को लेकर इतने उत्साहित नहीं है और केवल संघ के चुनावों में ही रूचि दिखा रहे है.6 कुछ आलोचकों का यह भी कहना है कि यह संघीय मॉडल पश्चिमी है और नेपाल जैसे छोटे और गरीब राष्ट्र के अनुकूल नहीं है. चुनावों का भारी खर्चा देश की अर्थव्यवस्था को गिरा सकता है.
काठमांडू घाटी और आस पास के जिलो में लोगों से बात करने से यह साफ़ हुआ कि वाम गठबंधन की स्थिति इस चुनाव में अच्छी है और उनके जीतने के आसार है. इस चुनाव के लिए दोनों दलों ने 60 (एमाले): 40 (माओवादी) के अनुपात में सीटों का बंटवारा किया है. नेपाली कांग्रेस के लोकतान्त्रिक गठबंधन की स्थिति मजबूत नहीं लगती है, लेकिन स्थानीय लोगों को यह भी मानना है कि तराई के दलों के साथ नेपाली कांग्रेस का सीटों को लेकर समझौता हो जाता तो प्रान्त दो में कांग्रेस की स्थिति अच्छी होती.7 काँग्रेस के साथ गठबंधन में जुडी राप्रपा को अधिक लाभ होगा लेकिन कांग्रेस को ज्यादा लाभ नहीं होगा. राप्रपा को 7-10 सीटों का फायदा होगा लेकिन काँग्रेस को 5-7 सीटों का ही फायदा होगा. नेपाल के चुनावी विश्लेषकों का यह भी कहना है कि जो देश तीस साल तक गैर दलीय रहा वहां दलों के चरित्र के आधार पर मतदान होगा, यह कहना गलत होगा. इस चुनाव में भी मतदान जाति और उम्मीदवार को देख कर ही होगा.8 वैसे दो तिहाई बहुमत आना किसी भी दल के लिए मुश्किल है और संभवतया नेपाल की राजनीति में आगे गठबंधन की राजनीति की परम्परा चलने के प्रबल आसार है साथ ही साथ शक्ति केंद्र तीन दलों के इर्द गिर्द ही घूमेगा.
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* लेखक, शोध अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, सप्रू भवन, नई दिल्ली |
डिस्क्लेमर: आलेख में दिये गए विचार लेखक के मौलिक विचार हैं और काउंसिल के विचारों को प्रतिबिम्बित नहीं करते।
Endnotes
1 ”Provincial and federal elections timetable made public", The Kathmandu Post, 11 September 2017,
http://kathmandupost.ekantipur.com/news/2017-09-11/provincial-and-federal-elections-timetable-made-public.html
2 "PR lists for parliamentary, provincial polls unveiled", The Himalayan Times, 4 November 2017,
https://thehimalayantimes.com/nepal/proportional-representation-lists-parliamentary-provincial-polls-unveiled/
3 नरेंद्र साउद, "पांच वर्ष भीतर समृद्धि", अन्नपूर्ण पोस्ट, 8 नवम्बर 2017,
http://annapurnapost.com/epaper/epaper_searched/547#&gid=1&pid=1
4 "Prominent Contestant", The Himalayan Times, 3 November 2017,
https://thehimalayantimes.com/nepal/4700-file-papers-dec-7-election/
5 परशुराम काफले, पत्रकार, नयाँ पत्रिका के साथ बातचीत द्वारा, काठमांडू, 5 नवम्बर 2017.
6 परशुराम काफले, पत्रकार, नयाँ पत्रिका के साथ बातचीत द्वारा, काठमांडू, 5 नवम्बर 2017
7 तुला नारायण शाह , मधेश फाउंडेशन के साथ बातचीत द्वारा, काठमांडू, 10 नवम्बर 2017
8 सी के लाल, स्वतंत्र पत्रकार के साथ बातचीत द्वारा, काठमांडू, 5 नवम्बर 2017