सारांश
इस आलेख में ईरान में ट्रम्प प्रशासन के अन्तिम लक्ष्यों को समझने के क्रम में ईरान पर अमेरिका के "अधिकतम दबाव अभियान" की चर्चा की गयी है। इस आलेख में 'ईराकी खतरे' को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने तथा सत्ता परिवर्तन के लिए सैन्य हस्तक्षेप को उचित ठहराने के लिए बुश प्रशासन द्वारा प्रयुक्त दबाव अभियानों तथा शत्रुतापूर्ण प्रदर्शनों के पैटर्न (विन्यास) को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। इस आलेख में यह भी चर्चा की गयी है कि ईरान पर ट्रम्प की अस्थिर स्थित तथा ईरानी शासन के विरुद्ध उनके वरिष्ठ सलाहकारों द्वारा अपनाई गयी दृढ़ नीति के कारण ईरान के साथ सैन्य संघर्ष की सम्भावना में किस प्रकार वृद्धि हुई है।
भूमिका
संयुक्त राष्ट्र (अमेरिका) प्रशासन के 'अधिकतम दबाव अभियान' ने एक बार फिर तेहरान तथा वाशिंगटन को सैन्य संघर्ष की स्थिति में ला खड़ा कर दिया है जिसमें इस क्षेत्र में वाशिंगटन को एक अन्य 'इच्छानुरूप युद्ध' प्रारम्भ करने के साथ अमेरिका के बाहर तथा भीतर दोनों ओर से एक बार पुन: ईराक युद्ध के भय की याद दिला दी।
'अधिकतम दबाव की नीति' सिग्निफिकेंट रिडक्शन एक्जेम्पशन्स (एसआरई) की समाप्ति के साथ आधिकारिक तौर पर अप्रैल 2019 में प्रारम्भ हुई जिसे भारत सहित आठ बड़े ईरानी तेल आयातकों के लिए स्वीकृत की गयी थी। इसे ईरानी तेल निर्यात को शून्य करने के लिए किया गया था जिसके राजस्व का उपयोग वाशिंगटन के अनुसार ईरान द्वारा इस क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियाँ संचालित करने के लिए किया जा रहा था। ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) को विदेशी आतंकवादी संगठन (एफटीओ) घोषित करने के साथ ही वाशिंगटन का यह दबाव और भी अधिक कठोर हो गया जिससे आईआरजीसी के साथ किसी भी प्रकार का सम्बन्ध रखने वाली ईरानी संस्थाओं को व्यापार करना कठिन हो गया। मई 2019 में बी-52 बमवर्षक विमानों सहित एयरक्राफ्ट कैरियर यूएसएस अब्राहम लिंकन की तैनाती से ईरान और अमेरिका के बीच आसन्न सैन्य संघर्ष का खतरा उत्पन्न हो गया। ईरान द्वारा इस प्रकार की सैन्य कार्यवाही को अमेरिका का 'मनोवैज्ञानिक युद्ध' करार दिया गया जिसका उद्देश्य अमेरिकी दबाव में तेहरान को भयभीत करना था।1
इस आलेख में चर्चा की गयी है कि कि अमेरिकी माँगों को पूरा करने के लिए किस प्रकार अमेरिका का 'अधिकतम दबाव अभियान' विद्रोही शासन को बाध्य करने के लिए निर्देशित करेगा। इस आलेख में 2003 में ईराकी आक्रमण के रूप में घटित हुए ईराक में बुश प्रशासन के नेतृत्व वाले दबाव अभियान की इससे तुलना करके यह ज्ञात किया जायेगा कि अमेरिका द्वारा डाले गये इस दबाव अभियान का विन्यास क्या है। ऐसा करन में यह भी व्याख्या की जायेगी कि अमेरिका अमेरिकी हितों के लिए जिन्हें खतरा मानता है उन राष्ट्रों के नकारात्मक प्रदर्शनों से वह किस प्रकार निपटता है। अन्त में इस आलेख में राष्ट्रपति ट्रम्प की अस्थिर नीति तथा उनके प्रशासन के कठोर कार्यवाही के पक्षधरों के सन्दर्भ में ईरान में ट्रम्प प्रशासन के अन्तिम लक्ष्य को समझने का प्रयास किया जायेगा।
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबन्धों का ऐतिहासिक अवलोकन
पीड़ित देशों को अपनी विदेश नीति व्यवहार को परिवर्तित करने के लिए बाध्य करने का अमेरिकी दबाव अभियान शीत युद्ध की समाप्ति से ही अमेरिकी विदेश नीति का एक हिस्सा रहा है। वाशिंगटन ने इसी प्रकार के दबाव पूर्व में अभियान क्यूबा, लीबिया, इराक तथा उत्तरी कोरिया के विरुद्ध चलाये थे।
वाशिंगटन ने ईरान पर पहली बार 1979 में उस समय प्रतिबन्ध लगाये थे जब ईरानी क्रान्ति के बाद ईरानी विद्यार्थियों के एक समूह ने तेहरान में अमेरिकी दूतावास की तालाबन्दी कर दी जिसमें लगभग 70 अमेरिकी बन्धक बना लिये गये थे। इन प्रतिबन्धों में ईरानी तेल आयातों पर प्रतिबन्ध, ईरानी सरकार की सम्पत्तियों की जब्ती तथा व्यापार प्रतिषेध शामिल थे। ईरान समर्थित हिजबुल्ला द्वारा बेरुत में अमेरिकी तथा फ्रांसीसी नौसैनिक बैरकों पर आक्रमण के पश्चात 1983 में रीगन प्रशासन ने आधिकारिक तौर पर ईरान को "आतंकवाद प्रायोजक राष्ट्र" घोषित कर दिया और सभी विदेशी सहायताओं तथा ईरान को शस्त्रों की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया।2 क्लिंटन प्रशासन ने ईरान को "समस्त राष्ट्रों की शान्ति तथा सुरक्षा के लिए खतरा"3 घोषित करते हुए 1995 में अन्य प्रतिबन्ध लगा दिये जिसमें ईरान में समस्त अमेरिकी व्यापार तथा निवेशों को निषिद्ध कर दिया गया।4 इसके बाद 'ईरान तथा लीबिया प्रतिबन्ध अधिनियम' के तहत ईरान के ऊर्जा क्षेत्र पर भी द्वितीयक प्रतिबन्ध आरोपित कर दिये गये। 2003 में ईरान द्वारा नाभिकीय समृद्धि की दिशा में कार्य के उजागर होने से आने वाले वर्षों में और भी अधिक प्रतिबन्ध लगा दिये गये ताकि ईरान को उसके नाभिकीय कार्यक्रम से वंचित किया जा सके और बुश प्रशासन ने ईराक तथा उत्तरी कोरिया के साथ ईरान को "बुराइयों की धुरी" घोषित कर दिया।5 2010 में ओबामा प्रशासन ने ईरान की नाभिकीय संवर्धन गतिविधियों को नाभिकीय अप्रसार सत्ता तथा "पड़ोसियों की स्थिरता" के लिए खतरा माना।6 इसके परिणामस्वरूप इसने ईरान के विरुद्ध द्वितीय प्रतिबन्धों के क्षेत्र का विस्तार करते हुए कम्प्रीहेन्सिव ईरान सैंक्शन्स, एकाउंटेबिलिटी एण्ड डाइवेस्टमेंट एक्ट (सीआईएसएडीए) पारित कर दिया। ईरान द्वारा अपने नाभिकीय संवर्धन गतिविधियों से इनकार करने पर 2012 में अमेरिका, यूरोपीय संघ (ईयू) तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ईरान के विरुद्ध प्रतिबन्धों की झड़ी लगा दी जिसमें ईरानी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह पंगु बनाने वाले पूर्ण यूरोपीय संघ तेल प्रतिबन्ध सहित ईरान के ऊर्जा तथा वित्तीय उद्योगों से पूरी तरह से असम्बद्ध होना शामिल था।7
ईरान द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों-चीन, फ्रांस, रूस, अमेरिका तथा ब्रिटेन और जर्मनी तथा यूरोपीय संघ के साथ ज्वाइंट कम्प्रीहेन्सिव प्लान ऑफ एक्शन पर हस्ताक्षर करने के बाद उस पर प्रतिबन्ध हटा लिये गये। इस समझौते में ईरान के नाभिकीय कार्यक्रम पर निर्धारित सीमा में क्रियान्वन के बदले में समस्त परमाणु सम्बन्धी आर्थिक एवं वित्तीय प्रतिबन्धों को हटाने का प्रावधान था।
स्रोत : cnbc.com
शत्रु शासन के प्रति अमेरिकी प्रतिनिधान - इराक तथा ईरान के दो मामले
ईरान के विरुद्ध अमेरिकी प्रतिबन्धों का महत्त्वपूर्ण घटक वह मार्ग बना जिसमें अनुवर्ती अमेरिकी प्रशासनों ने दशकों से ईरान को नकारात्मक रूप से देखना जारी रखा। इसे इस क्षेत्र तथा सम्पूर्ण विश्व में "अस्थिरकारी गतिविधियों" को संचालित करने का अपराधी माना जाता रहा जो सक्रिय रूप से आतंकवादियों तथा छद्म समूहों को समर्थन देता है और 'बुराइयों की धुरी' है जिसे समाप्त किया जाना चाहिए। राष्ट्रपति ट्रम्प ने ईरान को ऐसा "कट्टर देश"8 माना जो "हिंसात्मक ढंग से अपने ही नागरिकों का दमन करता है।" अमेरिका के राज्य सचिव माइक पोम्पियो ने ईरान को बार-बार "घातक व्यवहार" करने वाला बताया जो पश्चिमी एशियाई क्षेत्र के लिए खतरा है। इसी प्रकार की नकारात्मक प्रतिनिधान की नीति ईराक पर बुश प्रशासन के दबाव अभियान के दौरान प्रयुक्त की गयी थी।
"आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक युद्ध" के अंग के रूप में वाशिंगटन का इराक पर आक्रमण विशेष रूप से सद्दाम हुसैन को पदच्युत करने के लिए किया गया था। 1990 से 2003 तक इराक पर सामूहिक रूप से अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबन्ध लगाया गया। कथित तौर पर इन प्रतिबन्धों ने न केवल इराक की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया बल्कि इराक में एक मानवीय संकट भी उत्पन्न कर दिया जिसमें 500,000 से अधिक बच्चों की मृत्यु हुई।9 अमेरिका पर 9/11 हमलों के बाद बुश प्रशासन "इराकी खतरे" को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करता रहा जो आक्रमणों में इराक-अलकायदा की साठगाँठ, व्यापक संहार के अस्त्रों तथा सद्दाम हुसैन द्वारा आतंकवादियों को हथियार मुहैया कराने के आधारहीन सिद्धान्तों पर आधारित थे। क्षेत्रीय तथा वैश्विक सुरक्षा के खतरे के रूप में बार-बार इराकी शासन को प्रस्तुत करना, राज्य द्वारा आतंकवाद के प्रायोजक के रूप में सार्वजनिक रूप से इराक को बदनाम करना, विश्वशान्ति के लिए खतरे के रूप में 'बुराई की धुरी' जैसे वाक्यांशों का प्रयोग वाशिंगटन द्वारा इराक में सत्ता परिवर्तन को तर्कसंगत करने के रूप में किया गया। अमेरिका द्वारा सैन्य कार्यवाही को बल प्रदान करने के लिए पुन: सद्दाम के शासन को कट्टरपन्थी तथा उत्पीड़क के रूप में प्रस्तुत किया गया। बुश ने कहा कि "... अमेरिका तथा हमारे सहयोग इराकी जनता को उनकी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण करने में सहायता करेंगे और स्वतन्त्रता के संस्थानों का सृजन करेंगे" भले ही इसके लिए सैन्य कार्यवाही करनी पड़े।10
इन प्रशासनों को दमनकारी तथा आतंकवाद के समर्थक के रूप में प्रस्तुत करने के पीछे निहित विचार ऐसे देशों को घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर अवैध तथा अलग-थलग करना था। वाशिंगटन ने इन प्रतिनिधानों को इराक में सत्ता परिवर्तन के इरादे से सैनिक हस्तक्षेप को तथा ईरान और इराक दोनों पर अमेरिकी प्रतिबन्धों को तर्कसंगत सिद्ध करने में किया। हाल में खाड़ी में सैन्य प्रतिष्ठान तैयार करना और आईआरजीसी की प्रतिष्ठा को विदेशी आतंकवादी संगठन बताना ईरानी खतरे को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने के साधन हैं। इस प्रकार के सैनिक अभियान ने पुन: इरान को "कानून विहीन शासन", "राज्य संरचना में आतंकवाद को प्रमुख उपकरण के रूप में"11 प्रयोग करने वाले राष्ट्र तथा क्षेत्रीय आक्रामकता प्रदर्शित करने वाले शत्रु शासन के रूप में प्रस्तुत किया।12
ईरान में ट्रम्प प्रशासन के उद्देश्य
ईरान पर राष्ट्रपति ट्रम्प की दुविधापूर्ण स्थिति ने तनाव बढ़ाने के भय को थोड़ा कम करने का कार्य किया। यद्यपि उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अमेरिका "सत्ता परिवर्तन नहीं कराना चाहता है..... हम (अमेरिका) ईरान में किसी प्रकार का नाभिकीय अस्त्र नहीं चाहते हैं",13 उन्होंने खुले तौर पर "ईरान के आधिकारिक अन्त" की धमकी दी।14 ह्वाइट हाउस ने स्पष्ट रूप से कहा कि वाशिंगटन "जब तक ईरान के नेता अपने विनाशापूर्ण व्यवहार में परिवर्तन नहीं लाते हैं तब तक हम उस पर अधिकतम दबाव बनाना जारी रखेंगे.....और बातचीत करेंगे।"15 ट्रम्प की स्थिति से स्पष्ट होता है कि उनका यह कृत्य इस्लामिक गणराज्य के प्रति किसी वैचारिक शत्रुता के कारण नहीं है बल्कि प्राथमिक तौर पर "नाभिकीय अस्त्रों की ओर जाने वाले सभी मार्गों को बन्द" करने के लिए लक्षित है।16
इसके अतिरिक्त ट्रम्प प्रशासन के के कुछ "आक्रामक"17 अधिकारियों, माइक पोम्पियो तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन की उपस्थिति ने अमेरिका की ईरान नीति को अधिक अनिश्चित बना दिया। "लीग ऑफ नेशन्स" में पुन: शामिल करने के क्रम में नाभिकीय मुद्दे पर पुन: वार्ता करने हेतु पूर्व शर्त के रूप में पोम्पियो ने ईरान के लिए 12 माँगों वाली "नवीन ईरान रणनीति" प्रस्तुत की।18 ईरान के यूरेनियम संवर्धन पर रोक लगाने सहित प्रस्तावित माँगों की हठवादी प्रकृति अमेरिकी हितों के लिए ईरान को पूर्ण रूप से समर्पण करने के लिए अनिवार्य आह्वान थी। खाड़ी में तेल के जहाजों पर हालिया आक्रमणों को देखते हुए पोम्पियो ने बिना किसी तात्विक प्रमाण के ईरान द्वारा "अकारण आक्रमण" करने का अपराधी ठहराया और उसे "अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा के लिए खतरा" बताया। इसी प्रकार "ईरान के लिए हिंसक बाज"19 के रूप में विख्यात जॉन बोल्टन ने खुले तौर पर ईरान में सत्ता परिवर्तन का आह्वान किया।20 ईरान के एक असन्तुष्ट गुट मुजाहिदीन खल्क द्वारा 2017 में आयोजित एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते समय बोल्टन ने कहा कि "अमेरिका की घोषित नीति मुल्ला के शासन को उखाड़ फेंकने के लिए होनी चाहिए।"21 बोल्टन ने कहा 2019 में खाड़ी के समीप अमेरिकी युद्धपोतों की तैनाती का निर्णय "ईरानी शासन के लिए स्पष्ट एवं त्रुटिविहीन सन्देश था कि अमेरिकी हितों अथवा उसके किसी भी सहयोगी पर हमले का कठोरता से जवाब दिया जायेगा।"22 राष्ट्रपति ट्रम्प की दुविधापूर्ण स्थिति के साथ-साथ इन अधिकारियों द्वारा "ईरानी खतरे" को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना ईरान में सत्ता परिवर्तन के लिए अमेरिका के युद्ध की लालसा को प्रबल करता है।
ईरान पर प्रतिबन्ध लगाने के प्रति राष्ट्रपति ट्रम्प का कठोर निर्णय आंशिक रूप से उत्तरी कोरिया पर दबाव अभियान की सफलता के कारण दृढ़ हुआ है जो वहाँ के नेतृत्व को वार्ता करने के लिए पर्याप्त सीमा तक तैयार कर चुका है। किन्तु ईरान को वार्ता के लिए बाध्य करने की उनकी आशाएँ मुख्यत: दो कारणों से भ्रमपूर्ण सिद्ध हो सकती हैं। पहला, ओबामा प्रशासन द्वारा लगाये गये पहले चरण के प्रतिबन्ध में यूरोपीय संघ, रूस तथा चीन सहित अन्य अन्तर्राष्ट्रीय देशों की सहमति थी जो समान रूप से ईरान की यूरेनियम संवर्धन क्षमताओं से चिन्तित थे। इसके विपरीत अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं ने 2018 में राष्ट्रपति ट्रम्प के जेसीपीओए से वापसी के परिणामस्वरूप इस डील पर समर्थन देना जारी रखा। उदाहरण के लिए यूरोपीय संघ के विदेश मामलों के प्रमुख फेडेरिका मोघेरिनी ने सार्वजनिक रूप से वाशिंगटन से फारस की खाड़ी के पास अमेरिकी सैनिक अड्डे के परिणामस्वरूप "अधिकतम सख्ती" जारी रखने का आह्वान किया।
दूसरे, 2012 में ओबामा के पंगु करने वाले प्रतिबन्धों के प्रति तेहरान ने प्रत्युत्तर में अपने यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को दोगुना कर दिया। परिणामस्वरूप ओबामा प्रशासन ने ईरान के नाभिकीय कार्यक्रम को पूरी तरह से बन्द करने की अपनी माँग में नरमी दिखाई और नाभिकीय समझौते पर कुछ छूट देने के लिए तैयार हो गया। पोम्पियो की 12 माँगें तथा ट्रम्प प्रशासन का ईरान पर दबाव अभियान वास्तव में इस पर बातचीत करने के बजाय नाभिकीय डील की शर्तें बताने के उद्देश्य की प्रतीत होती हैं।
निष्कर्ष
वैश्विक मामलों के प्रति राष्ट्रपति ट्रम्प की "अमेरिका प्रथम" नीति बिना कोई छूट दिये अमेरिकी माँगों को मनवाने के लिए देशों को भयभीत करने वाली नीति की दिशा में जा रही है। उनकी जबरदस्ती वाली कूटनीति अब तक केवल अवपीड़क तथा कूटनीति हीनता पर केन्द्रित रही है। ईरान के महत्वाकांक्षी नाभिकीय कार्यक्रम पर पूर्ण प्रतिबन्ध का आह्वान करने वाली ट्रम्प प्रशासन की "नवीन ईरान रणनीति" से स्पष्ट होता है कि राष्ट्रपति ट्रम्प केवल कुल जोड़ शून्य नाभिकीय डील में इच्छुक हैं।
ईरान पर ट्रम्प की नीति तथा इराक पर बुश प्रशासन की नीति की समानताओं ने, जिसका परिणाम उसका आक्रमण करना रहा, ने ईरान में ट्रम्प प्रशासन के अन्तिम एजेंडे पर व्यापक चिन्ताओं को जन्म दिया। ईरान पर राष्ट्रपति ट्रम्प की दुविधापूर्ण स्थिति तथा ट्रम्प की ईरान नीति को निर्देशित करने वाले कुछ कठोर रुख अपनाने वाले लोगों की उपस्थिति के फलस्वरूप वाशिंगटन की ईरान नीति से कुछ अधिक चिन्ताएँ ही उभरी हैं। किन्तु अब तक दबाव अभियान से कुछ हासिल नहीं हो पाया है तेहरान तथा वाशिंगटन के बीच बराबरी की स्थिति ही रही क्योंकि इससे न तो ईरान की क्षेत्रीय राजनीति में कोई परिवर्तन हुआ और न ही इससे ईरान वार्ता के लिए तैयार हो पाया। बल्कि इससे ईरान यूरेनियम संवर्धन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए जिद पर ही उतरा जो कि 'अधिकतम दबाव अभियान' के सम्पूर्ण कार्यक्रम के विपरीत हुआ।
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* लेखक, शोधकर्ता, वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण : इसमें व्यक्त विचार शोधकर्ता के हैं न कि परिषद के।
अंत टिप्पण
1 BBC News (2019) US sends Patriot missile system to Middle East amid Iran tensions. [online] Available at: https://www.bbc.com/news/world-us-canada-48235940
2 Samore, G (2015). Sanctions Against Iran: A Guide to Targets, Terms, and Timetables. Belfer Center for Science and International Affairs, pp. 3-16.
3 Statement by the Press Secretary. (1995). [online] Available at: https://clintonwhitehouse6.archives.gov/1995/05/1995-05-08-statement-on-executive-order-iran-trade-ban.html
4 Samore, G (2015). Sanctions Against Iran: A Guide to Targets, Terms, and Timetables. Belfer Center for Science and International Affairs, pp. 3-16
5 President Delivers State of the Union Address. (2002). [online] Available at: https://georgewbush-whitehouse.archives.gov/news/releases/2002/01/20020129-11.html
6 Remarks by the President on United Nations Security Council Resolution on Iran Sanctions. (2010). [online] Available at: https://obamawhitehouse.archives.gov/photos-and-video/video/president-obama-iran-sanctions#transcript
7 Stratfor. (2018). Iran's Strategy for Surviving U.S. Sanctions. [online] Available at: https://worldview.stratfor.com/article/iran-strategy-surviving-us-sanctions-nuclear-deal
8Remarks by President Trump on Iran Strategy. (2017). [online] Available at: https://www.whitehouse.gov/briefings-statements/remarks-president-trump-iran-strategy/
9 Geneva International Centre for Justice. (n.d.). Razing the Truth About Sanctions Against Iraq. [online] Available at: http://www.gicj.org/positions-opinons/gicj-positions-and-opinions/1188-razing-the-truth-about-sanctions-against-iraq
10 The Guardian. (2002). Transcript: George Bush's speech on Iraq. [online] Available at: https://www.theguardian.com/world/2002/oct/07/usa.iraq
11 Intent to Designate the Islamic Revolutionary Guards Corps as a Foreign Terrorist Organization. (2019). [online] Available at: https://www.state.gov/intent-to-designate-the-islamic-revolutionary-guards-corps-as-a-foreign-terrorist-organization/
12 Executive Order Reimposing Certain Sanctions with Respect to Iran. (2018). [online] Available at: https://www.whitehouse.gov/presidential-actions/executive-order-reimposing-certain-sanctions-respect-iran/
13 Smith, N. (2019). Trump meets with Japan's Abe to defuse tensions with Iran and North Korea. [online] The Telegraph. Available at: https://www.telegraph.co.uk/news/2019/05/27/trump-meets-japans-abe-defuse-tensions-iran-north-korea/ [Accessed 15 Jun. 2019].
14 Donald Trump’s tweet dated May 20, 2019
15 Advancing the U.S. Maximum Pressure Campaign On Iran. (2019). [online] Available at: https://www.state.gov/advancing-the-u-s-maximum-pressure-campaign-on-iran/
16 Remarks by President Trump on Iran Strategy. (2017). [online] Available at: https://www.whitehouse.gov/briefings-statements/remarks-president-trump-iran-strategy/ [Accessed 19 Jun. 2019].
17 RT International. (2019). Bolton & Pompeo ‘looking for fight’ with Iran, Trump trapped in the middle – Ron Paul. [online] Available at: https://www.rt.com/usa/460265-bolton-pompeo-fight-iran/ [Accessed 20 Jun. 2019].
18 After the Deal: A New Iran Strategy. (2018). [online] Available at: https://www.state.gov/after-the-deal-a-new-iran-strategy/
19 Wong, E. (2019). Pompeo Says Intelligence Points to Iran in Tanker Attack in Gulf of Oman. [online] The New York Times. Available at: https://www.nytimes.com/2019/06/13/us/politics/oil-tanker-attack-pompeo.html
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20 Schmitt, E. and E. Barnes, J. (2019). White House Reviews Military Plans Against Iran, in Echoes of Iraq War. [online] The New York Times. Available at: https://www.nytimes.com/2019/05/13/world/middleeast/us-military-plans-iran.html [Accessed 20 Jun. 2019]
21 Dubin, R. and De Luce, D. (2018). Bolton’s Ascent Gives Iranian Group a New Lease on Life. [online] Foreign Policy. Available at: https://foreignpolicy.com/2018/04/30/bolton-iran-mek-terrorism-trump/ [Accessed 12 Jun. 2019].
22 Sanchez, R. and Vahdat, A. (2019). US sends naval strike group to Middle East in 'message' to Iran. [online] The Telegraph. Available at: https://www.telegraph.co.uk/news/2019/05/06/us-sends-naval-strike-group-middle-east-message-iran/ [Accessed 12 May 2019].
23 Porter, G. (2015). How a weaker Iran got the hegemon to lift sanctions. [online] Middle East Eye. Available at: https://www.middleeasteye.net/opinion/how-weaker-iran-got-hegemon-lift-sanctions [Accessed 9 Jun. 2019].