रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के अवसर पर डोनाल्ड ट्रम्प को एक बधाई संदेश भेजा था। ट्रम्प को अपने संदेश में, पुतिन ने विश्वास दिलाया किया कि मॉस्को और वाशिंगटन के बीच एक दूसरे के विचारों को ध्यान में रखते हुए वार्ता करनाएक-दूसरे केहितों की पूर्ति करती है। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि "समानता, आपसी सम्मान और एक-दूसरे की स्थिति के सिद्धांतों के आधार पर रूसी-अमेरिकी बेहतर संबंध हमारे देशों के लोगों और पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के हितों की पूर्ति करते हैं",और हमें अपने वर्तमान संकट से निकलकर आईएसआईएस द्वारा पेश की गई चुनौती जैसी वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
क्रेमलिन ने एक बयान में कहा कि पुतिन और निर्वाचित राष्ट्रपतिट्रम्प ने 14 नवंबर को टेलीफोन पर बातचीत में सहमति व्यक्त की कि उनके देशों के बीच संबंध "असंतोषजनक" थे और उन्होंने संबंध सुधारने के लिए मिलकर काम करने की कसम खाई। बयान में कहा गया है कि दोनों नेताओं ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एकीकृत प्रयासों पर चर्चा की, "सीरिया में संकट के समाधान" पर बात की और सहमति व्यक्त की कि उनके सहयोगी एक दूसरे के बीच आमने-सामने बैठक करना शुरू करेंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन और ट्रम्प पर रूसी अखबार कोमर्सेंट द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में,रूसियों ने क्लिंटन (केवल 16 प्रतिशत लोगों ने उनका समर्थन किया) के बजाय ट्रम्प (84 प्रतिशत ने उनका समर्थन किया) को अपनी पसंद बताया।
ट्रम्प ने9 नवंबर को न्यूयॉर्क में समर्थकों के लिए अपने पहले भाषण में रूस के साथ अच्छे संबंधों की कामना करते हुए सभी देशों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने का वादा किया। उनके अनुसार, ऐसे मामलों में, संबंध सही बनाया जाएगा। "हम, सभी के साथ समानता के आधार पर संबंध बनाएंगे।" ’समानता आधार'रूस के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है जो विश्व व्यवस्था में स्वयं को अमेरिका द्वारा समान भागीदार के रूप में देखने की इच्छा रखता है।
राष्ट्रपतिय और उप-राष्ट्रपति बहसों के दौरानरूस एकऐसा विषय था जिसने अमेरिकी लोगों को सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया था, उसके बादइस्लामिक स्टेट (आईएस या आईएसआईएस) और कर संबंधी विषयों ने किया था। रूस ने राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया के दौरान, जून 2016 में डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी (डीएनसी) के दस्तावेज़ों के हैक होने की ख़बरें आने तथा उसके बाद चुनावी माह में जॉन पॉडेस्टा, जो क्लिंटन के अभियान के अध्यक्ष थे, के निजी अकाउंट से विकीलीक्स दस्तावेज़ के प्रकाशन के बादडेमोक्रेट्स के तीखे हमलों का सामना किया। रूस पर अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों में से एक को लाभ सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका में एक गलत सूचना अभियान शुरू करने का आरोप लगाया गया, जिसे रूसी राष्ट्रपति के प्रेस सचिव दिमित्री पेसकोव ने नकार दिया। अमेरिका में रूसी राजनयिकों को अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा मतदान केंद्रों पर राष्ट्रपति चुनावों पर नजर रखने से भी रोक दिया गया, जिसके लिए रूस ने अमेरिका की पारदर्शिता और चुनावों के लोकतांत्रिक चरित्र पर सवाल उठाया था। वास्तव में, 9 दिसंबर को, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2016 के चुनाव में साइबर हमलों और विदेशी हस्तक्षेप की समीक्षा करने तथा 20 जनवरी, 2017 को अपना पद छोड़ने से पहले खुफिया एजेंसियों को एक रिपोर्ट देने का आदेश दिया था। हालांकि, 12 दिसंबर को डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस (ओडीएनआई) के कार्यालय के तीन अनाम अधिकारियों ने डोनाल्ड ट्रम्प को राष्ट्रपति चुनाव जीतने में रूस के हस्तक्षेप पर सीआईए के आकलन पर अपना संदेह व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि उनकी एजेंसी सीआईए के निष्कर्षों पर कोई सवाल नहीं उठा रही है, फिर भी वह उन्हें स्वीकार नहीं करेगा।
रूस, विशेष रूप से पुतिन, काहिलेरी क्लिंटन के साथ 2011 में मॉस्को में हुए पुतिन के पुनर्निवार्चन के खिलाफ प्रदर्शन के बाद से कभी भी अच्छा संबंध नहीं रहा है। क्लिंटन ने 2011 में रूसी संसदीय चुनावों की सार्वजनिक रूप से निंदा की थी। पुतिन ने अमेरिका पर रूस के संसदीय चुनावों में कथित धोखाधड़ी के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया था। पुतिन ने कहा कि तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री क्लिंटन द्वारा की गई टिप्पणियों, जिसमें क्लिंटन ने रूस में चुनावों के बारे में "गंभीर चिंता" व्यक्त की, ने क्रेमलिन के आलोचकों के लिए एक "संकेत" के रूप में काम किया। क्रेमलिन ने क्लिंटन को अपनी संप्रभुता के लिए एक अस्तित्ववादी खतरे के रूप में देखा। रूसपश्चिम, विशेष रूप से यूएस द्वारा लोकतंत्र को बढ़ावा देने के आधार पर नस्लवाद क्रांतियों और शासन परिवर्तन की आलोचना करता रहा है। क्लिंटन के राष्ट्रपति अभियान के दौरान भावनाएं स्पष्ट थीं। चुनाव के लिए 9 मई को अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में, रूस के अमेरिकी चुनाव के साथ छेड़छाड़ के बारे में "एक बहुत गंभीर'’ चिंता व्यक्त की, जिसका अर्थ है कि पुतिन और‘उनके द्वारा अभिशासित विरोधाभासी विदेशी शक्ति डोनाल्ड ट्रम्प को सक्रिय रूप से चुनने की कोशिश कर रही है।" अपने अभियान के दौरान, उन्होंने रूस के प्रति आक्रामक रुख बनाए रखा।
क्लिंटन ने अपने अभियान के दौरान कहा कि वह उन गठबंधनों के सुदृढ़ीकरण की वकालत करेंगी जिनमें नाटो की अहम भूमिका है और वह चाहती हैं किरूस द्वारा बल और नव-साम्राज्यवादी नीतियों के जरिए अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बदलने के प्रयासों के खिलाफ अमेरिका अपने प्रयास बढ़ाए। इन दानों मुद्दों से रूस असुरक्षित महसूस कर रहा था।
रसियन फेडरेशन काउंसिल कमेटी ऑन डिफेंस एंड सिक्योरिटी के एक सदस्य, सीनेटर एलेक्सी पुष्कोव ने ट्वीट किया कि "रूसी कार्ड खेलना" और पुतिन को एक बुरे आदमी के रूप में चित्रित करने से क्लिंटन को सहायता नहीं मिली। इसके विपरीत, मॉस्को के साथ संघर्ष छेड़कर केवल भय पैदा हुआ है, जिसके कारण वह चुनाव हार गईं।”
इस बीच, ट्रंप रूस के साथ तालमेल का संकेत देते रहें। उन्होंने अपने चुनाव अभियान के दौरान विदेश नीति पर अपने भाषण में कहा था कि उनका मानना है कि अमेरिका और मॉस्को आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई में एक कॉमन ग्राउंड की खोज कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि "सीरिया में उनके भी बहुत हित हैं, और इस्लामी आतंकवाद के साथ उनकी अपनी लड़ाई है"। अपने भाषण के दौरान, उन्होंने यह भी कहा कि रूसी खुफिया ने अमेरिका को बोस्टन बॉम्बर्सके बारे में चेतावनी दी थी।
पुतिन ने 8 नवंबर को मॉस्को में विदेशी राजदूतों के पत्रों के प्रस्तुतीकरण समारोह में बोलते हुए कहा, "हमने ट्रम्प के अभियान की बयानबाजी सुनी, जबकि अभी भी वह अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए एक उम्मीदवार है, जो रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंधों को बहाल करने पर केंद्रित थी।मॉस्को और वाशिंगटन के बीच संबंध सुधारने के लिएपुतिन ने 8 नवंबर को कहा किअमेरिका को सर्वप्रथम एक समान साझेदार की तरह काम करना शुरू करना चाहिए और रूस के हितों का सम्मान करना चाहिए, न कि अपनी बातें थोपने की कोशिश करे। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहाकिद्विपक्षीय संबंधों में समस्याएं 2014 में यूक्रेनी संकट से काफी समय पहले से बढ़ना शुरु हो गई थीं और इसलिए अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के समाधानों की खोज करने मेंअमेरिका को रूस के साथ बातचीत करनी होगी क्योंकि कोई भी देश अब अकेले उन मुद्दों पर कार्य करने में सक्षम नहीं है।
9 नवंबर को, लावरोव ने कहा कि रूस नए अमेरिकी प्रशासन के कार्यों से उसकी परख करेगाऔर उसी के अनुसार उचित कदम उठाएगा। उन्होंने कहा कि रूस अमेरिकी लोगों द्वारा चुने गए किसी भी अमेरिकी नेता के साथ काम करने के लिए तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि रूस ने लंबे समय तक यूएसके सकारात्मक कदमों के बारे में 'रणनीतिक धैर्य' दिखाया है।
ट्रम्प की जीत से रूस की उम्मीदें
ट्रम्प की जीत से रूस को प्राथमिक उम्मीद लगती हैकिवह रूस पर प्रतिबंधों को हटा देगा। रूसी राष्ट्रपति के सलाहकार सर्गेई ग्लेज़येव का मानना है कि अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रम्प रूसी विरोधी प्रतिबंधों को समाप्त कर देंगे। वह उम्मीद कर रहे हैं कि नए राष्ट्रपति के तहत अमेरिका अपने देश और रूस के बीच संबंधों को फिर से शुरू करेगा। क्रेमलिन ने यह भी उम्मीद जताई कि संबंधों का'पुनः आरंभ' अमेरिका के साथ-साथ पश्चिम के साथ व्यापार, वित्तीय और आर्थिक क्षेत्रों में एक सुदृढ़ संबंध को बहाल करने में मदद करेगा। ग्लेज़येव के अनुसार, द्विपक्षीय संबंध ‘पुनः आरंभ’होगा क्योंकि क्रेमलिन ने महसूस किया कि ओबामा प्रशासन ने रूस के खिलाफ एक आक्रामक विदेश नीति का अनुसरण किया जो फलदायी नहीं हुई।
दूसरा, रूस उम्मीद कर सकता है कि ट्रम्प क्रीमिया को रूस के एक भाग के रूप में मान्यता देंगे और यूक्रेनी सरकार से अमेरिकी समर्थन वापस ले लेंगे। अपने राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान फ्लोरिडा में एक समाचार सम्मेलन के दौरान, ट्रम्प ने कहा था कि वह क्रीमिया को रूसी क्षेत्र के रूप में मान्यता देने और यूक्रेन संकट पर रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने पर विचार करना चाहते हैं। तथापि, यह राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने के बाद मुमकिन लगता है। अमेरिकी विदेश नीति रूस द्वारा क्रीमिया पर आधिपत्य जमाने के प्रयास को एक ‘उल्लंघन'के रूप में देखती है।
यूरोप में तैनात नाटो सैनिकों में कमी पर ट्रम्प के बयान के आधार पर, क्रेमलिन विशेष रूप से रूस की सीमाओं से नाटो सैनिकों में कमी की उम्मीद कर रहे हैं, भले ही पूरी तरह सैनिक न हटाए जाएं। रूस के पड़ोस में नाटो बलों को हटाने या कम करने से मॉस्को को अपने घरेलू मुद्दों पर,जैसे कि अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
तीसरा, रूस सीरियाई विपक्षी विद्रोही समूहों के साथ बातचीत के माध्यम सेसीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन परिवर्तन के बिना सीरिया में एक राजनीतिक प्रस्ताव की उम्मीद करेगा। क्रेमलिन चाहेंगे कि ट्रम्प सीरिया में रूस के हस्तक्षेप को एक शांति मध्यस्थ के नजरिए से सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें। ओबामा प्रशासन ने सीरिया में रूस के कार्यों की अंतर्राष्ट्रीय युद्ध अपराधों की दृष्टि से जाँच के लिए कहा था।
चौथा, अमेरिका के साथ काम करने से रूस को आईएसआईएस सहित इस्लामी चरमपंथ समस्या से निपटने में मदद मिलेगी। दोनों देशों के बीच समन्वित खुफिया-साझाकरण और आतंकवाद-रोधी अभ्यासों से अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मुकाबला करने में मदद मिलेगी। रूस और अमेरिका के बीच सहयोग आईएसआईएस और सीरिया तथा क्षेत्र में लड़ रहे कई आतंकवादी समूहों का मुकाबला करने में भी मदद कर सकता है। 9/11 की घटना के बाद, मॉस्को‘आतंक पर वैश्विक युद्ध’में अमेरिका के पीछे खड़े हो गया था और उसने तालिबान के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की। हालाँकि, यह 9/11 के हमलों के दो साल बाद भी फलदायी नहीं हुआ,क्योंकियह संबंध फिर से टकराव में बदल गया जिसका कारण था अमेरिकी सैनिकों द्वारा मॉस्को के विरोध में इराक में मार्च करना।2004-2005 तक, रूस के पड़ोसी देशों, जैसे कि जॉर्जिया और यूक्रेन, में रंगभेदी क्रांति पनपने लगी, जिसने शीत युद्ध के तनावों को बढ़ा दिया। दोनों देशों के बीच तनाव की तीव्रता तब देखी जा सकती है जब 2008 में रूसी सैनिकों ने अमेरिकी-सहयोगी जॉर्जिया में मार्च किया था।
पांचवां, पुतिन और उनका प्रशासन एक राष्ट्रवादी एजेंडा के रूप में जासूसी करने लग गया थाजिससे रूस स्वयं को एक महान विश्व शक्ति के रूप में फिर से स्थापित करना चाहता था। वह विश्व व्यवस्था में अमेरिका की स्थिति को चुनौती देना चाहता है। पुतिन पश्चिम और अमेरिका के ’अन्य देशों में तथाकथित लोकतांत्रिक क्रांति के निर्यात’और बाहरी शक्ति के हस्तक्षेपके खिलाफ खड़े थे।उन्होंने 2020 तक अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, जिसे 2009 में राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया था, और जिसे 31 दिसंबर, 2015 को अद्यतन किया गया था, का भी विरोध किया क्योंकि वहरंगभेदी क्रांति और नाटो के विस्तार के साथ-साथ कानूनी राजनैतिक शक्तियों को हटा देने की प्रथा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में रूस की सीमाओं के प्रतिफोकस है।
ट्रम्प ने 27 अप्रैल, 2016 को वाशिंगटन, डीसी में अमेरिका के विदेश नीति के दृष्टिकोण पर अपने संबोधन के दौरान कहा कि “यह सब एक खतरनाक विचार के साथ शुरू हुआ था कि हम पश्चिमी लोकतंत्रों को उन देशों से बाहर कर सकते हैं जिनके पास पश्चिमी लोकतंत्र बनने का कोई अनुभव या रुचि नहीं थी।। हमारे विरोध में कहा गया कि हमने उन संस्थानों को ध्वस्त कर दिया और फिर जब हमें उनसे कुछ नहीं मिला, तो हम हैरान थे।"
अपने नए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में ट्रम्प द्वारा सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल माइकल फ्लिन को नियुक्त करने से रूस और अमेरिका के बीच तालमेल में मदद मिल सकती है। पूर्व डीआईए प्रमुख की रूस विरोधी रुख अपनाने से इनकार करने के लिए अमेरिका के हलकों में आलोचना की गई थी। फ्लिन मॉस्को और अमेरिका के एक साथ कार्य करने के विचार का समर्थन करते आ रहे थे ताकि आईएसआईएस के खतरे का समाधान किया जा सके। उन्होंने कहा कि “हमें अमेरिकियों के रूप में समझना होगा कि रूस के पास भी विदेश नीति है; रूस की भी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति है। और मुझे लगता है कि हम यह समझने में असफल रहे कि उसका मतलब क्या है।”
छठा, ट्रम्प ने "पहले अमेरिका का हित" के उद्देश्य से छह तात्कालिक उपायों में से एक के रूप में यह घोषणा की कि व्हाइट हाउस में उनके पहले दिन के कार्यकाल मेंअमेरिका ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) व्यापार समझौते से अपनी वापसी का संकेत देगा।हालांकि वास्तव में अभी तक ऐसी कोई योजना नहीं बनाई गई है, लेकिन भविष्य में टीपीपी में संशोधन और 'अगर’ पुतिन और ट्रम्प एक साथ कार्य करते हैं तो अमेरिका के साथ किसी तरह की साझेदारी हो सकती हैं जिससे मॉस्को को अपने यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (ईएईयू) प्रोजेक्ट को मजबूती प्रदान करने में मदद मिलेगी।
सातवां, पुतिन और ट्रम्प के एक साथ आने से नई स्टार्ट संधि का पालन करना संभव हो सकता है। नई स्टार्ट संधि के तहत, जिसे 2010 में हस्ताक्षरित किया गया था और 5 फरवरी, 2011 को लागू किया गया था, रूस और अमेरिका को 5 फरवरी, 2018 तक सामरिक हथियारों पर संधि के केंद्रीय बिंदुओं की पूर्ति करनी है। दोनों देशों की सामरिक हथियारों पर समग्र सीमा को रूपरेखा दी गई है:
यदि कोई 2011* (अनुलग्नक देखें) सेसामरिक आक्रामक हथियारों कीफैक्ट शीट पर डेटा का विश्लेषण करता है, तो यह देखा जा सकता है कि रूस के चार्ट में अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों, सबमैरीन-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइलों (एसएलबीएम) और 2014 में परमाणु हथियारों से लैस भारी बमवर्षकों की तैनाती में वृद्धि हुई है और हालांकि, 2015 में आईसीबीएम, एसएलबीएम और भारी बमवर्षकों के इन दो वर्गों में गिरावट आई है, लेकिन 2016 में उसके परमाणु शस्त्रों में वृद्धि हुई है। मार्च 2016 की शुरुआत में परमाणु वैज्ञानिकों के बुलेटिन के परमाणु नोटबुक के अनुसार, दुनियाभर में परमाणु हथियारों की संख्या का अनुमान 15,350 था। इसमें लगभग 4000 ऑपरेशनल वॉरहेड हैं, जिनमें से रूस और अमेरिकाप्रत्येक के 1800 से कम परमाणु हथियार हाई अलर्ट पर हैं और शॉर्ट नोटिस पर उपयोग के लिए तैयार हैं। रूस और अमेरिका के पास मौजूद परमाणु हथियार और अन्य परमाणु हथियार वाले देश एक शांतिपूर्ण और स्थिर दुनिया बनाने के लिए अच्छा संकेत नहीं है। 2014 में पुतिन द्वारा अनुमोदित अपनी सैन्य नीति में, रूस ने जोर देकर कहा कि परमाणु युद्ध और पारंपरिक हथियारों (बड़े पैमाने पर युद्ध, क्षेत्रीय युद्ध) के उपयोग के साथसैन्य संघर्ष को रोकने के लिए परमाणु हथियार एक महत्वपूर्ण कारक बने रहेंगे। दूसरी तरफ, परमाणु हथियार धारण करने वाले नौ देशों (भारत, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, इजरायल, फ्रांस, चीन, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया), या परमाणु हथियार रखने की मंशा कर रहे देशों के अलावा, पांच नाटो सहयोगियों (बेल्जियम, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड और तुर्की) के यूरोप में छह ठिकानों पर 180 अमेरिकी गैर-सामरिक परमाणु हथियार उपलब्ध हैं। युद्ध के मामले में, दोनों देशों को परमाणु शस्त्रागार से प्रभावित होने का खतरा है।
निष्कर्ष
रूस ट्रम्प की जीत के परिणाम देख रहा है। रूसी प्रधान मंत्री मेदवेदेव ने कहा कि मॉस्को प्रतिबंधों को हटाए जाने की उम्मीद नहीं कर रहा है, लेकिन प्रतिबंधों को आंशिक रूप से हटाए जाने की उम्मीद अवश्य करता है। रूस सीरिया पर एक प्रस्ताव की भी उम्मीद करेगा क्योंकि मॉस्को एक ऐसे संकटमें फंसा है जिसके नतीजेसीरिया के भीतर और उसके पड़ोस में विदेशी आतंकवादियों द्वारा कट्टरपंथी आक्रमण के रूप में देखे जा सकते हैं। रूस के लिए अन्य असुरक्षाएँ भी हैं। क्रेमलिन के लिए, नाटो नीतियों सहितअमेरिका और उसकी नीतियां,अमेरिकी रक्षा मिसाइल शील्ड की तैनाती और रूस के पड़ोसी देशों में रंगभेदी क्रांतियां अभी भी चिंता का विषय हैं (14 नवंबर को ओबामा ने कहा था कि ट्रम्प और नया अमेरिकी प्रशासन नाटो के प्रति प्रतिबद्ध रहेगा)।
दोनों देशों के बीच तत्काल बड़े बदलाव नहीं हो सकते हैं। ट्रम्प की नीतियों को सीनेट और कांग्रेस के समर्थन की आवश्यकता होगी जो नाटो सहित विभिन्न मुद्दों पर रूस के पक्ष में नहीं रह सकते। फिर भी, रूस और अमेरिका के बीच कुछ प्रकार के तालमेल की दिशा में प्रयास होंगे। रूस यह भी सुनिश्चित करना चाहेगा कि मॉस्को के अमेरिका के साथ मजबूत संबंध होने से चीन के साथ उसके संबंधमें असंतुलन न आए।
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*डॉ. इन्द्राणी तालुकदार, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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