सीरिया में चल रहे गृह युद्ध में कई वर्ष के विरोधी नियंत्रण के बाद 13 दिसम्बर, 2016 को अलेप्पो शहर पर पूरी तरह से सीरियाई सेना और सरकार समर्थित मित्र सेनाओं का नियंत्रण हो गया, इस प्रकार इस लंबे चले गृह युद्ध में एक बदलाव आया। राष्ट्रपति बशर अल असद की सैन्य विजय की इस पृष्ठभूमि में यह महत्वपूर्ण है कि इस युद्ध और इसकी क्षेत्रीय व वैश्विक सुरक्षा अंतर्ग्रस्तता के भविष्य को देखा जाए। अलेप्पो से उभरे इस सुरक्षा गतिशीलता के विश्लेषण से पूर्व अप्रैल, 2011 में शुरू हुए सरकार विरोधी युद्ध के साथ शुरू हुए अलेप्पो के लिए युद्ध की ऐतिहासिकता को समझना अनिवार्य है। इसके लिए, निम्नलिखित प्रश्नों का हल किया जाना आवश्यक है कि अलेप्पो समस्या कैसे बन गयी?किसने सबसे पहले शहर पर कब्जा किया और राष्ट्रपति असद के विजय की प्रकृति और भविष्य क्या है?
अलेप्पो: युद्ध काल
अप्रैल-मई, 2011 में अलेप्पो में सरकार के विरूद्ध छात्रों के विद्रोह की शुरूआती अवधि से लेकर दिसम्बर, 2016 तक इसके पतन तक इस शहर में कई सैन्य आक्रमण हुए और घेराबंदी हुई। इस शहर के महाविद्यालयों के छात्रों के विद्रोह को सरकारी सुरक्षा बलों (एसएफ) और शहर में सरकार समर्थित वफादार छात्रों द्वारा नियंत्रित किया गया। यहीं से सीरिया की आर्थिक राजधानी अलेप्पो युद्ध में शामिल हो गया जिसके कारण जुलाई, 2012 में सेना और विद्रोहियों, जो स्वतंत्र सीरियाई सेना (एफएसए) का हिस्सा थे, जिसमें सशस्त्र नागरिक और सेना छोड़ने वाले शामिल थे, के बीच भयानक युद्ध शुरू हो गया। यहां यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि इन विरोधियों में एफएसए और गैर-एफएसए अतिवादी समूह शामिल हैं जिनका झुकाव इस्लाम के प्रति अधिक था। इस्लामी समर्थक के इसमें आ जाने से सरकार विरोधी आंदोलन धार्मिक, अतिवादी और हिंसक बन गया। उसके बाद इन विद्रोहियों ने युद्ध शुरू किया जो सरकार के लिए गंभीर वैचारिक और सुरक्षा चुनौती बन गयी।
ये विद्रोही सामूहिक रूप से अलेप्पो में सरकार समर्थित बलों के विरूद्ध युद्ध करते रहे जो अब तक सीरियाई युद्ध में सबसे लंबा युद्ध रहा। इस शहर में और इसके आसपास लंबे समय तक आक्रमण होता रहा जो अगस्त, 2012 तक चलता रहा, जिसके परिणामस्वरूप विद्रोही नियंत्रित पूर्वी अलेप्पो और सरकार पश्चिमी अलेप्पो के बीच यह शहर बंटा रहा। इस शहर के पश्चिमी भाग में समृद्ध और प्रभावी सीरियाई लोग रहते हैं जिनका समर्थन सरकार के साथ है। 15 दिसम्बर, 2013 को विद्रोही के अधीन क्षेत्रों में सरकारी सेना द्वारा वायु हमला करने के साथ हीं दोनों पक्षों के बीच यह युद्ध दूसरे वर्ष में पहुंच गया। वर्ष 2015 में सरकार के समर्थन में युद्ध में रूस के आ जाने से अलेप्पो आक्रमण में बढ़ोतरी हुई। सशस्त्र विद्रोहियों से उस क्षेत्र को पुन: प्राप्त करने के एक प्रयास में सरकार ने जुलाई-अगस्त, 2016 में विद्रोहियों के आखिरी आपूर्ति मागों को बंद कर तथा कब्जे वाले पूर्वी अलेप्पो को प्रभावी तरीके से प्राप्त कर अपने आपरेशन में आगे बढ़े। इस अवरोध को तोड़ने के लिए विद्रोहियों द्वारा विभिन्न प्रयास किए जाने के बावजूद, सरकार आपूर्ति मार्ग तक पहुंच को बाधित करने में सफल रहे। धीरे-धीरे दो महीने की अवधि के बाद सरकारी सेना ने रूसी वायु सेना सहायता से 15 नवम्बर, 2016 को आक्रमण पुन: शुरू किया। इसके परिणामस्वरूप विद्रोहियों के नियंत्रण से जिलों को पुन: प्राप्त किया गया। 26 नवम्बर, 2016 को सरकार ने सबसे बड़े विद्रोही क्षेत्र जिसमें मसाकेन हेनानो शामिल है, को पुन: कब्जे में लिए जाने की घोषणा की। इसके बाद, सतत युद्ध प्रयास से सरकारी सेना में विद्रोहियों, नागरिक क्षेत्रों में बम गिराने में शामिल थे, के नियंत्रण से 90 प्रतिशत से अधिक भूभाग को पुन: हासिल किया। अंततोगत्वा 13 दिसम्बर, 2016 को सरकार सशस्त्र विद्रोहियों के नियंत्रण वाले समस्त भूभाग के साथ अलेप्पो के युद्ध में विजयी हुई।
तथापि, सरकार द्वारा यह विजय आगे की क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों से रहित नहीं था। पतन पश्चात चुनौतियों को देखते हुए इस विजय को दो मुख्य परिप्रेक्ष्यों –नीतिगत और राजनैतिक, से देखना आवश्यक है। रणनीतिक रूप से अलेप्पो के विजय से इस संघर्ष का भविष्य आकार लेगा जो अभी समाप्त नहीं हुआ है। विद्रोहियों की हार से नि:संदेह युद्ध की दिशा में बदलाव होगा और राजनीतिक समझौते के नए माध्यम खुलेंगे। राजनैतिक रूप से अलेप्पो की पराजय से राष्ट्रपति असद की वैधानिकता को मजबूती मिलेगी और सरकार अपनी शक्ति को समेकित करेगी एवं शक्ति की स्थिति से समझौता को शुरू करेगी। आदर्शपूर्ण स्तर पर सामूहिक असद विरोधी ताकतों के विरूद्ध विजय अभी हासिल की जानी है। यह एक वैचारिक चुनौती है जो देश की सुरक्षा तथा समग्र रूप से इस क्षेत्र के लिए एक खतरा उत्पन्न करता है।
इसके रहित और सहित चुनौतियां
सरकार की जीत के बावजूद बड़ी चुनौतियों का समाधान अभी किया जाना है। अलेप्पा का पतन अभी सीरिया में चल रहे संघर्ष का एक चरण भर है और इन्हें प्रादेशिक लाभ और सैन्य जीत के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। मुख्य चुनौती इस युद्ध के वैचारिक सहारा से संबंधित है जिसका इस राजनीतिक प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। स्पष्ट रूप से अलेप्पो के पतन के एक सप्ताह के बाद और इन नागरिकों को निकालने के बाद तुर्की में रूसी राजदूत एंड्रेई कार्लोव की 19 दिसम्बर, 2016 को ड्युटी समाप्त तुर्की पुलिस अधिकारी द्वारा लक्षित हमले में अंकारा में गोली मार कर हत्या कर दी गयी, उस अधिकारी ने ट्रिगर खींचते हुए चिल्लाया, ‘’अलेप्पो को मत भूलो।‘’हत्यारे के सनकी नारे, ‘’… जिहाद करो’’ को देखकर इस हमले को मुख्य रूप से मास्को और अंकारा के बीच पुनर्मेल को बिगाड़ने तथा सीरिया में संकल्प की ओर इन प्रयासों को जटिल बनाने के इरादे से सीरिया में रूस के सैन्य हस्तक्षेप के विरूद्ध एक प्रतिकार के रूप में देखा जा सकता है।
तथापि, इस हत्या के रूस-तुर्की संबंधों के प्रतिकूल प्रभाव पड़ने तथा राजनीतिक समझौतों के अभियान के पटरी पर से उतरने की संभावना नहीं है। वास्तव में रूसी राजदूत पर हमले से रूस और तुर्की के ‘’आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष’’ में एक साथ हो गए।
जैसा कि तुर्की में देखा गया, आतंकवाद का साझा खतरा देश में वहां की व्यवस्था में लोन वुल्फ के उभरने तथा पहले से खंडित विद्रोही समूह से अन्य धड़ों के उभरने के साथ ही जटिल हो गया है। अलेप्पो पर सरकार के नियंत्रण के बाद ये चुनौतियां इन क्षेत्रों से भागे विद्रोहियों के कारण और जटिल हो गयी हैं। ये चुनौतियां विद्रोहियों के खतरे, आतंकवादियों के पुन: एक होने, पुन: आतंकी कार्रवाई शुरू करने तथा मुक्त कराये गए क्षेत्रों पर पुन: कब्जा करने के खतरे के साथ और बढ़ गयीं हैं। जैसा कि पूर्व में देखा गया है, 20 मई, 2015 को प्राचीन शहर पलमायरा सात दिन के अवरोध के समाप्त होने के बाद पूर्णरूपेण आईएस के नियंत्रण में था। बाद में, इस पतन के लगभग एक वर्ष के बाद सीरियाई सेना ने आतंकवादी समूह को कई प्रकार की हानि पहुंचाते हुए 25 मार्च, 2016 को पालमायरा के गढ़ पर पुन: कब्जा किया। यह बहुत लंबा नहीं चला और आठ महीने के अंतराल पर आतंकियों ने 11 दिसम्बर, 2016 को पुन: शहर पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया। पालमायरा का मामला इस पतन के बाद विद्रोहियों और आतंकवादियों के अलेप्पो भागने का एक उदाहरण हो सकता है तथा इस प्रदेश के एक भाग पर पुन: कब्जा करने का परिणाम हो सकता है, इस प्रकार यह सरकार नीत आंतकी कार्रवाई का जबाव देन की विश्वसनीयता के एक चुनौती उत्पन्न करता है।
ऐसे परिदृश्य में जहां भिन्न वैचारिकता वाली प्रेरणाओं के साथ विद्रोही समूहों और आतंकी समूहों का एक समूह हो, केवल एक राहत एक उत्पादक राजनीतिक सामंजस्य और इस युद्ध के अन्य मोर्चों के लिए सैनिकों की और तैनाती की आशा है।
निष्कर्ष
अलेप्पो शहर, जिसे ‘समग्र गृह युद्ध का सूक्ष्म ब्रह्माण’’ के रूप में उल्लेखित किया गया है, के पतन ने राष्ट्रपति असद की सरकार की स्थिति मजबूत की है जो इन समझौतों को शुरू कर सके। विद्रोहियों के लिए यह पतन मनोवैज्ञानिक और सैन्य रूप से हतोत्साहित करने वाला है। राजनीतिक समझौता यह सुनिश्चित करेगा कि सीरिया में क्या होना है। संयोग से 20 दिसम्बर, 2016 को रूस, तुर्की और ईरान के नेता सीरिया में शांति स्थापित करने के लिए मिले जिसमें क्षेत्रीय प्रभाव में नए परिवर्तन पर जोर दिया गया। ‘’मास्को घोषणा’’ के रूप में संदर्भित इस त्रिपक्षीय सम्मेलन से यह कहते हुए सिद्धांतों की घोषणा की गयी कि तीनों देशों को इन बातचीत से उभरने वाले किसी समझौते के लिए उत्तरदायी होना चाहिए। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लवरोव, तुर्की विदेश मंत्री मेहमट कवुसोग्लु और ईरानी विदेश मंत्री जावेद जरिफ संयुक्त वक्तव्य में ‘’सीरिया सरकार और विपक्ष की सहायता करने, समझौते का प्रारूप तैयार करने तथा इसके गारंटीदाता के रूप में कार्य करने हेतु अपनी इच्छा व्यक्त करने’’ पर सहमत हुए।
इसके अतिरिक्त, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लवरोव ने कहा कि संपूर्ण सीरिया में युद्ध विराम के लिए त्रिपक्षीय गठबंधन योजना हो जिसमें इस्लामी स्टेट शामिल न हो और सीरियाई अलकायदा अध्याय में पूर्व समझौतों की अपेक्षा बेहतर प्रत्याशा हो।
ऐसे ही एक अन्य घटनाक्रम में संयुक्त राष्ट ने 31 दिसम्बर, 2016 को सीरिया में हिंसा की समाप्ति और शांति समझौते को शुरू करने के लिए रूस और तुर्की द्वारा किए गए प्रयासों को समर्थन देने का एक संकल्प अंगीकृत किया गया। 28 दिसम्बर, 2016 को सीरियाई सरकार और सशस्त्र विपक्षी दल राष्ट्रव्यापी युद्ध विराम पर सहमत हुए थे। मास्को-अंकारा ने युद्ध विराम पर बातचीत की, जिसका सकारात्मक परिणाम हो सकता है और जो दीर्घकालिक राजनीतिक समझौता का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। राष्ट्रपति असद की सरकार और विद्रोही बलों के बीच शांति बातचीत कजाखस्तान की राजधानी अस्ताना में जनवरी, 2017 में होना निर्धारित है।
महत्वपूर्ण रूप से, इस पतन और बाद के घटनाक्रम भी बाहरी शक्तियों मुख्यत: अमेरिका और इसके मित्र देशों, जो सीरिया सरकार के विरूद्ध विद्रोहियों का वित्तपोषण और सैन्य सहायता मुहैया करते रहे हैं, के लिए झटके के समान हैं। इससे वांशिगटन की एक बाहरी नेता को स्थापित करने की नीति के लिए चुनौती है जो नेता सीरिया में अमेरिका के हितों की रक्षा करे। लोकतंत्रिक व्यवस्था लोगों के बीच से ही आती है। इसे न तो बाहर से लादा जा सकता है और न ही इसके लिए उकसाया जा सकता है। मास्को घोषणा ने पश्चिम एशिया में शक्ति गतिशीलता को बदलकर रख दिया जहां ईरान ने अमेरिका और इसके मित्र देशों के विरूद्ध प्रतिरोध खड़ा किया, और रूस इस क्षेत्र में अपने प्रभाव की पुनर्प्राप्ति की कोशिश कर रहा है। अलेप्पो के पतन तथा मास्को घोषणा, जिसका लक्ष्य सीरियाई संकट को समाप्त करने के लिए एक रूपरेखा तैयार करना है, के साथ हीं इसे इस रूप में देखे जाने की आवश्यकता है कि क्या सीरिया एक नई क्षेत्रीय व्यवस्था को पुन: तैयार करेगा।
घरेलु राजनीतिक स्तर पर यदि राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार एक विश्वसनीय राजनीतिक सुधार नहीं लाए तो अलेप्पो में सैन्य सफलता राजनीतिक स्थायित्व और शांति में तब्दील नहीं हो पायेगी। समान रूप से यह भी महत्वपूर्ण है कि सीरिया में बड़ा युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है जो गंभीर सुरक्षा चुनौतियां हैं जो आतंकी समूहों की बहुलता से शुरू होती हैं जिनकी एक या अन्य आतंकवादी समूह के प्रति निष्ठा है। यह भी देखना महत्वपूर्ण है कि अलेप्पो के बाद क्या है। अंतत: इस्लामी सहानुभूति के साथ नरमपंथी और चरमपंथी विद्रोही कहां जाएंगे? क्या यह राजनीतिक समझौता सर्व समावेशी होगा और उनमें से कौन कट्टपंथ के रास्ते का त्याग करेगा? क्या वे अलकायदा प्रभुत्व वाले इदलिब प्रांत अथवा आईएस नियंत्रण पालमायरा की ओर बढ़ेंगे? चिंताजनक बात यह है कि धरातल पर स्थिति और जटिल हो सकता है जहां विद्रोही सैन्य अभियान वाले क्षेत्रों में भाग सकते हैं और उपद्रवी समूहों में मिल सकते हैं। इस सुरक्षा संबंधी चुनौती की पृष्ठभूमि में जिसे देखे जाने की आवश्यकता है वह यह कि इसके राजनीतिक समझौते की प्रत्याशा क्या है और इसका अंदर और बाहर क्या व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
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*डॉ. अम्बरीन आगा, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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