सारांश
यूरोपीय संसद एकमात्र प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित यूरोपीय संघ (ईयू) निकाय है जिसके पास पर्यवेक्षकीय तथा बजटीय उत्तरदायित्व हैं। इसे ईयू-स्तरीय मुद्दों तथा कार्यवाहियों पर लोकतान्त्रिक चर्चा के केन्द्र के रूप में भी देखा जाता है। यूरोपीय संसद के चुनाव 23 से 26 मई, 2019 को सम्पन्न हुए थे। यूरोपीय संसद के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि इन चुनावों पर विशेष ध्यान आकर्षित किया गया। इसके परिणाम खण्डित संसद के रूप में आये जिसमें परम्परागत सहयोगी ईपीपी तथा एसएण्डडी के सम्बन्ध टूट गये। इससे यूरोपीय संसद का परिदृश्य बदल गया और पूर्व की अपेक्षा एक जटिल स्थिति सामने आयी। इस आलेख में संक्षेप में बताया जायेगा कि यह चुनाव किस प्रकार पूर्ववर्ती चुनावों से भिन्न था। इसमें चुनावों के परिणाम का भी विश्लेषण किया जायेगा और इन चुनावों से प्राप्त प्रमुख उपलब्धियों की चर्चा की जायेगी।
प्रमुख शब्द : यूरोपीय संसद, मध्य-दक्षिण, यूरो संशयवाद, ब्रेक्जिट
भूमिका
यूरोपीय संसद यूरोपीय संघ (ईयू) की प्रमुख विधिक निकाय का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें 28 सदस्य राष्ट्रों के कुल 751 सदस्य हैं। इसके सदस्यों का निर्वाचन प्रत्येक पाँच वर्ष में आयोजित अनेक चुनावों के माध्यम से किया जाता है। 23 से 26 मई, 2019 में सम्पन्न यूरोपीय संसदीय चुनावों को भारत के बाद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया माना जाता है। यूरोपीय संसद विश्व की एकमात्र ऐसी संसद है जिसके निर्णय अनेक प्रभुसत्तासम्पन्न राष्ट्रों पर प्रत्यक्ष वैधानिक प्रभाव डालते हैं। यूरोपीय संसद एक प्रत्यक्ष निर्वाचित ईयू विधानमण्डल है जिसके पास पर्यवेक्षकीय तथा बजटीय उत्तरदायित्व हैं और ईयू-स्तरीय मुद्दों तथा कार्यवाहियों पर लोकतान्त्रिक परिचर्चा के केन्द्र के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संसद ईयू परिषद (सदस्य राष्ट्रों के राष्ट्रीय नेताओं से निर्मित) के साथ सहयोग करती है और इसका कार्य यूरोपीय आयोग द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों पर आधारित होता है। ईयू के साझा बजट के माध्यम से जनता के धन को किस प्रकार व्यय किया जाये, एकल बाजार को किस प्रकार विनियमित किया जाये, यह सब यूरोपीय संसद की प्रमुख शक्तियों में शामिल है और सहमति प्रक्रिया के माध्यम से विस्तारीकरण सहित अनेक अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों के लिए इसके पास विशेषाधिकार (वीटो पावर) भी है।1 इस आलेख में संक्षेप में बताया गया है कि यह चुनाव क्यों पूर्ववर्ती चुनावों से भिन्न था। इसमें चुनावों के परिणाम का भी विश्लेषण किया गया है तथा इन चुनावों की प्रमुख उपलब्धियों को भी रेखांकित किया गया है।
यूरोपीय संसद के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि इन चुनावों पर विशेष ध्यान आकर्षित किया गया। सूक्ष्मदृष्टि से देखने पर महाद्वीप-वार चुनाव सम्पूर्ण कुछ अंश तक ईयू परियोजना पर एक जनमत संग्रह की भाँति प्रतीत होता है क्योंकि बैलट ब्रिटेन के इस संघ से चिरकालिक निर्वासन के दौरान आया। साथ ही ब्रिटेन के इसमें भाग लेने पर कुछ चिन्ताएँ उभरीं कि ब्रिटिश मतदाता इस अवसर का उपयोग ब्रेक्जिट पर अपना फैसला देने के लिए कर सकते हैं।2 दूसरा अन्य प्रमुख मुद्दा दक्षिणपंथ तथा वामपंथ के बीच बढ़ती दरार तथा जनरंजनवाद का उभरना है जो निश्चित रूप से नवीन यूरोपीय संसद की संरचना को प्रभावित करेगी। यूरोपीय संसदीय चुनाव पर ध्यान आकर्षित होने का एक प्रमुख मुद्दा यूरोपीय संशयवाद तथा अति दक्षिणपंथी दलों का उत्थान है। कुछ चुनाव-पूर्व विश्लेषणों के अनुसार इस चुनाव में इन दलों की मान्यता है कि ‘राष्ट्रों के यूरोप’ की ओर वापसी से संसद में पर्याप्त सीटें मिल सकेंगी। इनमें से अनेक दल मुक्त व्यापार के प्रति शंकालु हैं और वे किसी भी प्रकार के प्रवासन के विरुद्ध हैं तथा रूस के साथ मैत्री के पक्षधर हैं। इस बदलते परिवेश ने महान गठबन्धन के लिए भी जोखिम उत्पन्न कर दिया है क्योंकि क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स (ईपीपी) तथा सोशल डेमोक्रेट्स (एसएण्डडी) ने अब तक सदैव संसद में बहुमत हासिल किया था। अत: यह सम्भावना थी कि 2019 यूरोपीय संघ के इतिहास का ऐसा प्रथम वर्ष हो सकता है जिसमें यह महान गठबन्धन बहुमत नहीं प्राप्त कर सकेगा।
चुनावों की प्रमुख उपलब्धियाँ
यूरोपीय संसद आठ प्रमुख ब्लॉक-ग्रुप ऑफ यूरोपियन पीपल्स पार्टी (ईपीपी), ग्रुप ऑफ प्रोग्रेसिव एलायंस ऑफ सोशलिस्ट्स एण्ड डेमोक्रेट्स (एसएण्डडी), यूरोपियन कंजर्वेटिव्स एण्ड रिफॉर्मिस्ट (ईसीआर), एलायंस ऑफ लिबरल्स एण्ड डेमोक्रेट्स (एएलडीई) प्लस रिनायसेंस, कन्फेडरल ग्रुप ऑफ द यूरोपियन यूनाइटेड एलईटी-नॉर्डिक ग्रीन लेफ्ट (जीयूई/एनजीएल), ग्रुप ऑफ ग्रीन्स/यूरोपियन फ्री एलायंस (ग्रीन्स/ईएफए), यूरोप ऑफ फ्रीडम एण्ड डाइरेक्ट डेमोक्रेसी ग्रुप (ईएफडीडी) तथा यूरोप ऑफ नेशन्स एण्ड फ्रीडम (ईएनएफ) शामिल हैं (चित्र 1)। 2019 के चुनावों में खण्डित संसद बनी जिसमें ईपीपी तथा एसएण्डडी के महान गठबन्धन को संयुक्त बहुमत नहीं प्राप्त हुआ। व्यक्तिगत तौर पर इन दलों को क्रमश: 179 (2014 के चुनाव के 217 में से) तथा 153 सीटें (2014 के चुनाव के 186 में से) प्राप्त हुईं। एएलडीई प्लस रिनायसेंस 105 सीटें जीतकर तीसरा सबसे बड़ा दल बना। ग्रीन्स का वोट शेयर बढ़कर 69 सीट हो गया जिसमें जर्मनी, आयरलैण्ड तथा फ्रांस से सबसे अधिक मत प्राप्त हुए। अति दक्षिणपंथी यूरोसेप्टिक दलों का सीट शेयर बढ़ा किन्तु इसमें उतनी वृद्धि नहीं हुई जितनी कि नेताओं को अपेक्षा थी। ब्रिटेन की ब्रेक्जिट पार्टी तथा ईएनएफ के लेगा तथा नेशनल रैली के बढ़े हुए वोट शेयर के कारण उछाल मिला जिसके कारण ईएफडीडी ग्रुप को भारी संख्या में सीटें प्राप्त हुईं। इन समूहों को क्रमश: 54 तथा 58 सीटें प्राप्त हुईं।
'सहमति प्रक्रिया - यूरोपीय संसद औपचारिक तौर पर कोई संशोधन नहीं प्रस्तावित कर सकती है किन्तु यह समग्र रूप से विषय को अनुमोदित या निरस्त कर सकती है।
चित्र 1: यूरोपीय संसद में वोट शेयर, 2019-2024
स्रोत : यूरोपीय संसद, https://election-results.eu/european-results/2019-2024/
यूरोपीय संसदीय चुनावों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं :
इन चुनावों पर सबका ध्यान होने के कारण मतदाओं की संख्या पिछले दो दशकों की अपेक्षा अधिक रही। 2014 के 42.61 प्रतिशत मतदान की तुलना में इस बार रिकार्ड 50.97% यूरोपीय नागरिकों ने मतदान किया जो कि गत 20 वर्ष में सर्वाधिक था और 1979 में पहले प्रत्यक्ष चुनावों से लेकर अब तक पहली बार मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई। इन चुनावों को राष्ट्रवादियों, लोकरंजनवादियों तथा अति दक्षिणपंथी दलों के प्रभाव के परीक्षण के रूप में देखा गया जिन्होंने हाल के वर्षों में विभिन्न देशों में अपना आधार बढ़ाया। अखण्डता-उन्मुखी तथा यूई-उन्मुखी एवं उन दलों के द्वारा जो यूरोपीय संघ को कुलीनवर्ग से प्रेरित तथा नौकरशाही प्रक्रिया वाली मानते हैं, इन चुनावों को इस संगठन के भविष्य के लिए संकटपूर्ण मानते थे।
चित्र 2 : मतदाताओं की उपस्थिति
स्रोत : यूरोपीय संसद, https://election-results.eu/turnout/
स्पष्ट कार्ययोग्य बहुमत नहीं 1979 में प्रथम बार प्रत्यक्ष चुनाव सम्पन्न होने से लेकर अब तक यूरोपीय संसद का नेतृत्व मध्यमार्गी दलों द्वारा किया जाता रहा जिस पर मध्य-दक्षिण यूरोपियन पीपुल्स पार्टी ग्रुप (ईपीपी) तथा मध्य-वाम दल प्रोग्रेसिव एलायंस ऑफ सोशलिस्ट एण्ड डेमोक्रेट्स (एसएण्डडी) का प्रभुत्व था। इस महान गठबन्धन के साथ होने पर इन दलों को संसद में बहुमत प्राप्त हुआ। किन्तु 2019 में यह परम्परा टूट गयी क्योंकि उदारवादी दलों, हरित दलों और लोकरंजन दलों को अधिक समर्थन मिला।3 इन चुनावों से यूरोपीय संघ का राजनीतिक मानचित्र बदल गया क्योंकि ऐसा कोई स्पष्ट कार्ययोग्य बहुमत नहीं था जो संसद का नेतृत्व कर सके। महान गठबन्धन का मत प्रतिशत 2014 के 401 सीटों (51%) की तुलना में 2019 में गिरकर 332 सीट (44%) पर आ गया।4
चित्र 3 : ईपीपी तथा एसएण्डडी मत
स्रोत : बीबीसी, https://www.bbc.com/news/world-europe-48417191.
सम्पूर्ण यूरोप में ग्रीन पार्टी द्वारा अर्जित उपलब्धि इन चुनावों की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है। उन्हें जर्मनी में 20.5% मत, फिनलैण्ड में 16%, आयरलैण्ड में 18%, फ्रांस में 13.4% तथा डेनमार्क, स्वीडेन, बेल्जियम, लक्जमबर्ग और आस्ट्रिया में अधिक से अधिक मत प्राप्त हुए।5 ग्रीन पार्टी की टैली 2014 में 51 की तुलना में बढ़कर 70 हो गयी। ये परिणाम ग्रीन पार्टी के लिए अब तक सर्वोच्च रहे जो जलवायु परिवर्तन तथा पर्यावरण के प्रति यूरोपीय लोगों की बढ़ती चिन्ताओं का प्रतीक थे।6 इसके अतिरिक्त इन परिणामों को असन्तोष की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है जो जलवायु परिवर्तन के प्रति सरकारी उदासीनता तथा निष्क्रियता के विरुद्ध सम्पूर्ण यूरोप के युवाओं के विरोध प्रदर्शनों में स्पष्ट दिखाई दे रहा था।
इसी प्रकार इन चुनावों में एएलडीई पार्टी को भी पर्याप्त मत मिले-2014 में 68 सीटों की तुलना में इसे 2019 में 105 सीटें मिलीं। ईयू चुनाव में कुल प्राप्त सीटों में से 23 सीटें ईमैनुएल मैक्रों की रिनायसेंस लिस्ट से प्राप्त हुईं जिसका घनिष्ठ सम्बन्ध मध्यमार्गी एलआरईएम पार्टी से है। इससे ईयू सदस्यों के बीच घनिष्ठ एकीकरण वाले यूरोपीय नेताओं के मध्य सबसे बड़े समर्थक राष्ट्रपति मैक्रों द्वारा परिवर्तन लाने तथा चरम दक्षिणपंथियों को अवरुद्ध करने का अवसर प्राप्त होने की आशा है।
यूरोप में चरम दक्षिणपंथी, लोकरंजनवादी, यूरोसंशयवादी तथा राष्ट्रवादी दलों का उत्थान इन चुनावों के प्रति ध्यान आकर्षित करने वाले प्रमुख कारणों में से एक था। इन दलों को विभिन्न यूरोपीय देशों जैसे इटली (लेगा), पोलैण्ड (लॉ एण्ड जस्टिस पार्टी), हंगरी (फिडेज) की शक्ति संरचना में स्थान बनाने का लाभ प्राप्त हुआ, और जहाँ वे सत्ता में नहीं हैं जैसे नीदरलैण्ड्स (पार्टी फॉर फ्रीडम) में, उन्हें वहाँ अपना मत शेयर बढ़ाने में सफलता मिली। इन दलों ने चुनावों के दौरान आक्रामक नीति अपनायी जिसमें उन्होंने स्वयं को कुलीनवादी मुख्य धारा के दलों के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया और राष्ट्रों के यूरोप की पुनर्स्थापना की वकालत की।
इन चरम-दक्षिणपंथी दलों ने चुनाव परिणामों को सफल बताया। ये दल संसद में दो प्रमुख धड़ों-यूरोप ऑफ नेशन्स एण्ड फ्रीडम ग्रुप (ईएनएफ) तथा यूरोप ऑफ फ्रीडम एण्ड डाइरेक्ट डेमोक्रेसी (ईएफडी) में बँटे हैं, ये दोनों दल मिलकर 2014 में अपना सीट शेयर 20% से बढ़ाकर 24% करने में सफल रहे।7 इन धड़ों के प्रमुख विजेता इटली में मैटियो सैल्विनी की लेगा पार्टी थी जिसने देश में सर्वाधिक सशक्त राजनीतिक आन्दोलनकर्ता के रूप में 34% मत प्राप्त किए। फ्रांस में मेराइन ली पेन की पार्टी नेशनल रैली (24% मत) ने बहुत कम मतों के अन्तर से इमैनुएल मैक्रों की रिनायसेंस लिस्ट (22.5% मत) को पराजित किया। ये परिणाम 2017 के राष्ट्रपति चुनावों के विपरीत था, इस बार फ्रांसीसी मतदाताओं ने मैक्रों की व्यापारिक-मित्र तथा उदारवादी नीतियों के विपरीत ली पेन के प्रवास-विरोध तथा वाक्चातुर्यता को वरीयता दी।8 इसी प्रकार इंग्लैण्ड में नीगेल फैरागे की नवसृजित कट्टर पार्टी ब्रेक्जिट पार्टी ने कंजरवेटिव पार्टी तथा लेबर पार्टी को हानि पहुँचाते हुए चुनावों में 32% मत प्राप्त किये जिन्हें क्रमश: 9% तथा 11% मत प्राप्त हुए।
जहाँ एक ओर लेगा तथा नेशनल रैली ईएनएफ का अंग हैं वहीं ब्रेक्जिट पार्टी ईएफडी का अंग है। कुल मिलाकर ईएनएफ को 2014 के 36 सीटों की तुलना में 58 सीटें (7.72%) तथा ईएफडी को 2014 के 48 सीटों की तुलना में 54 सीटें (7.19%) प्राप्त हुईं। किन्तु चुनावों से पूर्व एकता का सशक्त प्रदर्शन करने के पश्चात लेगा तथा नेशनल पार्टी को जितनी सीटें मिलने की अपेक्षा थी उतनी सीटों से विजय नहीं प्राप्त हुई।
चित्र 4: ईएनएफ और ईएफडी का वोट शेयर
दक्षिण-पंथी तथा लोकरंजन गुटों ने इटली, फ्रांस तथा इंग्लैण्ड में सर्वोत्तम प्रदर्शन किया
स्रोत : बीबीसी, https://www.bbc.com/news/world-europe-48417iQi
ईपी चुनावों में इन दलों द्वारा हासिल की गयी जीत के बावजूद ये संसद में राजनीतिक गुटबन्दी में खण्डित ही रहे। हंगरी में 52% मतों से विशाल जीत हासिल करने वाली एक प्रमुख चरम दक्षिणपंथी विक्टर ओर्बन की पार्टी फिडेज ब्रूसेल्स में ली पेन तथा सैल्विनी की अपेक्षा एक भिन्न राजनीतिक गुट (ईपीपी) के साथ है।9 इसी प्रकार कंजरवेटिव एवं रिफॉर्मिस्ट समूह का एक अंग पोलैण्ड की लॉ एण्ड जस्टिस पार्टी को लगभग 45.56% मत मिले जो इस गठबन्धन में सबसे अधिक है। उनकी चिन्ताओं का एक मुख्य कारण मुद्दों पर उनकी मतभिन्नता है, इन दलों में रूसी प्रतिबन्धों जैसे मुद्दों को लेकर मतभिन्नता है जहाँ सैल्विनी की लेगा पार्टी प्रतिबन्धों को हटाने के पक्ष में है जो कि पोलैण्ड की लॉ एण्ड जस्टिस पार्टी के लिए एक अभिशाप है; और प्रवासियों के कोटे का मुद्दा जिसमें लेगा पार्टी विभिन्न देशों के मध्य प्रवासियों का निष्पक्ष वितरण चाहती लेकिन फिडेज दल ने ईयू के दिशा-निर्देशों का अनुपालन करने से इन्कार कर दिया है। इन निहित मतभेदों के कारण भले ही वे कुछ मुद्दों पर एकमत होने में सफल हुए हों किन्तु इससे चुनावों में अपनी मजबूती प्रदर्शित करने के बावजूद संसद की कार्यवाही पर गम्भीर प्रभाव पड़ेगा।
यूरोपीय संसद के चुनावों में इंग्लैण्ड के भाग लेने की आशा नहीं थी क्योंकि माना जा रहा था कि वह संघ से बाहर हो जायेगा। चूँकि अभी वह इस संगठन से बाहर नहीं हुआ है किन्तु ये चुनाव ब्रेक्जिट के मुद्दे पर एक जनमत संग्रह की भाँति समाप्त हुए। नीगेल फैरागे की नवसृजित ब्रेक्जिट पार्टी को कुल मतों का 31% मत प्राप्त हुआ और यूरोपीय संसद में इंग्लैण्ड को 29 सीटें प्राप्त हुईं। प्रो-रिमेन पार्टी तथा दूसरे जनमत संग्रह की समर्थक लिबरल डेमोक्रेट्स 20% मतों के साथ दूसरे स्थान पर ही। लेबर पार्टी 14% मतों के साथ तीसरे स्थान पर और कंजरवेटिव पार्टी 8% मतों के साथ अन्तिम स्थान पर रही-इंग्लैण्ड के दो प्रमुख दल उन दो अन्य दलों के पीछे रहे जिनके ईयू के साथ इंग्लैण्ड के सम्बन्धों पर स्पष्ट किन्तु भिन्न दृष्टिकोण थे।10 नीगेल फैरागे ने समझौता रहित या समझौते सहित 31 अक्टूबर, 2019 को ईयू से इंग्लैण्ड के अलग होने के समर्थन में अभियान चलाया। इंग्लैण्ड यूरोपीय संघ में रहेगा या अलग होगा यह राष्ट्रीय सरकार पर निर्भर करेगा जिसमें ब्रेक्जिट पार्टी को कहने के लिए कुछ नहीं है।
बिना शर्त के ब्रेक्जिट ईयू के लिए बुरा होगा किन्तु इंग्लैण्ड के लिए उससे भी अधिक बुरा होगा। इस परिदृश्य में इंग्लैण्ड ईयू का सदस्य नहीं बनेगा और ईयू के साथ साझा होने जाने वाले समस्त व्यापार तथा विनियामक व्यवस्थाओं की समाप्ति हो जायेगी। अब तक इंग्लैण्ड की संसद ने कहा है कि यह बिना शर्त (नो डील) ब्रेक्जिट नहीं चाहती है, किन्तु ब्रेक्जिट पार्टी के समर्थन में मतदान करने वाले लोगों के लिए संघ को छोड़ना एक आकर्षक विकल्प हो गया है।
आगे क्या होगा
यूरोपीय संसद को केवल संघ की संसद माना जाता है जो 1979 में सम्पन्न प्रत्यक्ष चुनावों से लेकर अब तक वास्तव में एक लोकतान्त्रिक संस्थान रही है। यह 512 मिलियन यूरोपीय नागरिकों का प्रतिनिधित्व करती है और इसे इन लोगों से जो शक्ति प्राप्त होती है उसे प्रस्तावित विधान को प्रदान करना चाहिए। इस चुनाव में ईपीपी तथा एसएण्डडी के महान गठबन्धन की पुरानी परम्परा टूट गयी, अब मामले-दर-मामले के आधार पर अधिक अस्थायी गठबन्धन की आशा की जा सकती है। जब 2 जुलाई, 2019 को नई संसद प्रारम्भ होगी तो इसमें चरम-दक्षिणपंथी, उदारपन्थी तथा ग्रीन्स (हरित) दलों के प्रतिनिधित्व का मिश्रण होगा। जब यूरोप के शीर्ष कार्यों की चर्चा होगी तो मोल-तोल तथा क्रॉस-पार्टी वार्ताओं का दृश्य उपस्थित होगा।11 इसके नेताओं द्वारा यूरोपीय आयोग के अभ्यर्थियों के लिए जोर दिया जायेगा जिसमें जीन क्लॉड जंकर के स्थान पर, जिनका कार्यकाल 31 अक्टूबर, 2019 को समाप्त हो रहा है; डोनाल्ड टस्क के स्थान पर यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष हेतु; ईयू हाई रिप्रेजेन्टेटिव फेडेरिका मोघेरिनी और यूरोपीय सेंट्रल बैंक के प्रमुख मैरियो द्राघी के स्थान पर नयी नियुक्तियों के लिए दबाव बनाया जायेगा।
इन चुनावों से स्पष्ट हो जाता है कि यूरोपीय राजनीति एक नये मार्ग तथा नई दिशा की ओर बढ़ रही है। दक्षिण-पंथियों का लम्बे समय तक उत्कर्ष पर रहना इस उत्परिवर्तन का अंग है किन्तु इन चुनावों में यह गतिशील होकर नहीं उभरी। चरम दक्षिणपंथी गुटों से अलग हो खण्डित हो बने हुए हैं। इन चुनावों में यूरोपीय संघ की अखण्डता के विचार का समाप्त न होना और ग्रीन्स तथा उदारवादियों के मध्य इस विचार का उभरना इस चुनाव की उल्लेखनीय बात रही जो कि नवीन यूरोपीय संसद में किंगमेकर (शासक का निर्माण करने वाले) की भूमिका निभाने वाले हैं। मध्य-दक्षिणपंथी तथा मध्य-वामपंथी अपनी कार्यसूची पारित कराने के लिए इन दलों पर निर्भर हैं।12 इन चुनावों से स्पष्ट होता है कि यह नये अथवा छोटे दलों के पक्ष में बड़े दलों के ह्रास के राष्ट्रीय पथ का अनुसरण करता है। ईपीपी-एसएण्डडी के बहुमत के पतन और फ्रैंको-जर्मन गठबन्धन के बढ़ते प्रभाव के कारण यह कहा जा सकता है कि नयी संसद खण्डित निकाय होगी जिसमें यूरोपीय राजनीति में अनिश्चितता बनी रहेगी।
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* लेखिका, शोधकर्ता, वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण : इसमें व्यक्त विचार शोधकर्ता के हैं न कि परिषद के।
अंत टिप्पण
1 Why the European Parliament Elections Matter, Open Society Foundations, March 2019, https://www.opensocietyfoundations.org/explainers/why-european-parliament-elections-matter, Accessed on 28 May 2019
2 The Washington Post, 15 April 2019, https://www.washingtonpost.com/business/why-european-parliament-elections-suddenly-matter/2019/04/12/a74ec7b8-5d23-11e9-98d4-844088d135f2_story.html, Accessed on 28 May 2019
3 The New York Times, 27 May 2019, https://www.nytimes.com/2019/05/27/world/europe/eu-election-takeaways.html, Accessed on 28 May 2019
4 The Economist, 26 May 2019, https://www.economist.com/charlemagnes-notebook/2019/05/26/populists-fall-short-of-expectations-in-the-european-elections, Accessed on 29 May 2019
5 Politico, 29 May 2019, https://www.politico.eu/article/eu-election-results-2019-country-by-country/, Accessed on 30 May 2019
6 4 Takeaways From The European Parliament Election Results, NPR, 27 May, 2019, https://www.npr.org/2019/05/27/727293356/4-takeaways-from-the-european-parliament-election-results,
Accessed on 29 May 2019
7 The New York Times, 27 May 2019, https://www.nytimes.com/2019/05/27/world/europe/eu-election-takeaways.html, Accessed on 29 May 2019
8 Europe's Populist Storm Rattles the Windows of the E.U. But Fails to Move the Foundations, Time Magazine, 28 May 2019, http://time.com/5596855/europe-populist-marine-le-pen-matteo-salvini-nigel-farage/, Accessed on 30 May 2019
9 4 Takeaways From The European Parliament Election Results, NPR, 27 May, 2019, https://www.npr.org/2019/05/27/727293356/4-takeaways-from-the-european-parliament-election-results,
Accessed on 30 May 2019
10 The “Green wave” and 4 other takeaways from the European parliamentary elections, Vox, 28 May 2019, https://www.vox.com/2019/5/28/18642498/european-parliament-elections-2019-takeaways-greens-salvini-brexit-eu, Accessed on 30 May 2019
11 Rashmee Roshan Lall, Europe just got less predictable, First Post, https://www.firstpost.com/world/europe-just-got-less-predictable-6734131.html, Accessed on 31 May 2019
12 The “Green wave” and 4 other takeaways from the European parliamentary elections, Vox, 28 May 2019, https://www.vox.com/2019/5/28/18642498/european-parliament-elections-2019-takeaways-greens-salvini-brexit-eu, Accessed on 31 May 2019