जापान ने अपने सुरक्षा बलों की भूमिका में विस्तार करने तथा क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति में हो रहे परिवर्तनों की पूर्ति करने के लिए अपने 'शांति संविधान' की पुनर्व्याख्या करने का निर्णय लिया है। इस निर्णय का अमेरिका सहित जापान के सुरक्षा भागीदारों द्वारा स्वागत किया गया है परंतु चीन और दक्षिण कोरिया द्वारा इसका विरोध किया गया है। रुचिकर बात है कि इस निर्णय के जापानी घरेलू संघटकों द्वारा आलोचना की गई है।
जापान की सरकार ने 1972 से यह दृढ़ धारणा रखी है कि संयुक्त राष्ट्र का सदस्य होने के नाते जापान 'सामूहिक आत्मरक्षा' अथवा आक्रमण का सामना करने के लिए किसी देश को सैन्य सहायता प्रदान करने का अधिकार रखता है परंतु यह जापानी संविधान के युद्ध का परित्याग करने की सीमा अर्थात् अनुच्छेद 9 की सीमा को देखते हुए उस अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता है जो वर्णन करता है कि जापान अंतरराष्ट्रीय विवादों का निवारण करने के लिए बल का प्रयोग नहीं कर सकता है तथा यह अपनी सैन्य टुकड़ियों को विदेश नहीं भेज सकता है। क्रमिक जापानी सरकारों ने इस निर्वचन का पालन किया है।
लंबे समय से, जापानी स्थापना के एक वर्ग ने यह जापानी आत्म-रक्षा बल (एसडीएफ) की कार्यवाहियों के क्षेत्र में विस्तार करने के लिए शांतिवादी खंड का संशोधन करने के लिए प्रयास किया है, परंतु यह संसद के दोनों सभाओं में दो-तिहाई बहुमत जुटाने में असफल रहा जो संविधान संशोधन को प्रारंभ करने के लिए एक पूर्वापेक्षा है। संविधान का अनुच्छेद 96 भी एक कड़ी शर्त निर्धारित करता है, संविधान का संशोधन जनमत-संग्रह के माध्यम से जनता द्वारा बहुमत से अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 2012 के आम चुनावों के अभियान के दौरान संविधान का संशोधन करने का आह्वान किया था। परंतु निम्न सदन में भारी विजय के बावजूद शासक गठबंधन जापानी डिएट में दो-तिहाई बहुमत से कम रहा। सरकार के परिवर्तन के उपरांत विभिन्न मीडिया एजेंसियों द्वारा संचालित किए गए जनमत के अनुसार अधिकांश जापानी लोग संविधान के आबे के निर्वचन के प्रति सतर्क बने रहे जिसने राज्य को 'आत्म-रक्षा' से परे जाने की अनुमति दी थी। विद्यमान घरेलू परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए, आबे के पास मंत्रिमंडल के निर्णय का प्रयोग करने तथा उनकी राजनीतिक आकांक्षा की प्राप्ति करने के लिए विधान लाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। विचार-विमर्श के अनेक चक्रों के उपरांत जुलाई, 2014 को जापानी मंत्रिमंडल ने यह निर्णय लिया कि जापान को 'सामूहिक आत्मरक्षा' के अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए जब निम्नलिखित तीन शर्तों की पूर्ति होती हो:
जापान की सरकार द्वारा अपनाए गए तीन सिद्धांत निश्चित रूप से जापान की रक्षा क्षमता को प्रोत्साहित करेंगे तथा इसे अमेरिका पर लगे "निष्कृष्ट सुरक्षा राइडर" के लेबल को हटाने में सहायता मिलेगी। चीन ने जापान की उसके 'घरेलू राजनीतिक प्रयोजन' की पूर्ति करने के लिए 'चीन की धमकी के सिद्धांत का जान-बूझकर निर्माण करने' के लिए जापान की आलोचना की है। चीन के विदेश मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि शांति संविधान के पुनर्निर्वचन द्वारा जापान को 'न तो चीन की संप्रभुत्ता और राष्ट्रीय सुरक्षा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए और न ही क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को कम करके नहीं आंकना चाहिए।' इसी प्रकार, दक्षिण कोरिया ने जापान से कहा है कि वह सर्वोच्च विधि दस्तावेज को पुननिर्वचन करने के बावजूद इसके संविधान की भावना को अनुरक्षित करे। इसने जापान से अनुरोध किया है कि वह अपने 'प्रयासों में पारदर्शिता' बरते तथा 'क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व' को हल्के में न लें।
जापान के लोगों के एक वर्ग ने इस वर्ग का विरोध किया। जिस दिन आबे ने अपने निर्णय की घोषणा की थी, देश के विभिन्न भागों में विरोध प्रारंभ हो गए। विभिन्न राष्ट्रीय मीडिया द्वारा नियमित रूप से संचालित सार्वजनिक राय सर्वेक्षणों ने यह सुझाव दिया कि 50 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने 'सामूहिक आत्मरक्षा' संबंधी कार्यवाही पर प्रतिबंध उठाने का विरोध किया। उन्होंने संदेह व्यक्त किया कि संवैधानिक पुनर्निर्वचन के फलस्वरूप जापान को अंतत: युद्ध करने की अनुमति मिल जाएगी तथा वह युद्ध-पूर्व सैन्य कार्यवाहियों की दशा में वापस आ जाएंगे जिसके फलस्वरूप उनका आर्थिक विध्वंस हुआ था।
निर्णय पर जनता द्वारा किए जाने वाले हो-हल्ले के अलावा अधिकांश जापानी समाचार-पत्रों ने, जिन्होंने राय तैयार करने में सहायता प्रदान की थी, सरकार के कदम की आलोचना की। दि जापान टाइम्स ने लिखा कि "अपने नीतिगत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संविधान के निर्वचन को परिवर्तित करके आबे प्रशासन राष्ट्र के सर्वोच्च कानून के रूप में संविधान की स्थिति का उल्लंघन कर रहा है जिसका अन्य सभी कानूनों तथा सरकारी निर्णयों द्वारा अनुपालन किया जाना चाहिए। इसने आगे कहा कि "यह कदम जापान के लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक उदाहरण के रूप में कार्य करेगा जो संविधान के अंतर्गत विधि के नियम पर आधारित होना चाहिए।" दि आशी शिम्बन ने इसे 'खतरनाक उदाहरण' की संज्ञा देते हुए कहा कि 'यह बात समझ से परे है कि शांतिवाद की जड़ों को, जो संविधान के आधारभूत सिद्धांतों में से एक है, कुछ राजनीतिज्ञों के हाथों से विकृत कर दिया गया है।' दि मैनिची डेली ने लोगों को 'सामूहिक आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने की जापान की कार्यवाही पर रोक लगाने क लिए कहा।' इसने जापानी लोगों को यह स्मरण भी कराया कि 'देश की उत्तरजीविता और आत्मरक्षा' के समान संदर्भ का प्रयोग युद्ध-पूर्व सरकारों द्वारा युद्ध में भाग लेने के लिए टुकड़ियां भेजने के लिए किया गया था जिसके परिणामस्वरूप 'भंयकर पराजय' झेलनी पड़ी। योमियुरी शिम्बन राष्ट्रीय मीडिया में एकमात्र ऐसा पत्र था जिसने सरकार के कदम का समर्थन किया तथा इसे 'ऐतिहासिक निर्णय' बताया जिसने 'जापान की शांति और सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने में योगदान दिया।'
प्रधानमंत्री आबे इस कदम के प्रति लोगों के विरोध के बारे में पूरी तरह अवगत थे परंतु उन्होंने इसे दोहरे लक्ष्यों की प्राप्ति के रूप में लिया: पहला, क्षेत्रीय देशों को ऐसा संकेत भेजना कि वे चीन के प्रादेशिक गतिरोध को ध्यान में रखते हुए जापान की भय-निवारण शक्ति में वृद्धि करने तथा चीन के पूर्व और दक्षिण सागर पर दावे का विरोध करने के लिए प्रतिबद्ध है, तथा दूसरा आबे अमेरिका-जापान के सुरक्षा गठबंधन को सुदृढ़ बनाना चाहते थे और उसके द्वारा क्षेत्र में अमेरिका के प्रमुख मित्र-राष्ट्र के रूप में अपनी स्थिति को बनाए रखना चाहते थे।
जब से अमेरिका ने एशिया का अपना केन्द्र बिंदु अथवा पुनर्संतुलन घोषित किया है, जापान इस नीति में एक अति सक्रिय भूमिका का निर्वहन करने के लिए सर्वाधिक क्रियाशील रहा है। जापान और अमेरिका 1997 की अमेरिका-जापान रक्षा दिशा-निर्देशों की समीक्षा के लिए सहमत हुए हैं। दोनों देश, जिन्होंने नियमित संपर्कों के माध्यम से प्रादेशिक सुरक्षा स्थिति का आकलन किया है, इस वर्ष की समाप्ति तक संशोधन को अंतिम रूप प्रदान करना चाहते हैं ताकि आने वाले दिशा-निर्देशों में उभरती हुई सुरक्षा स्थिति की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित किया जा सके। आबे जापानी एसडीएफ को पूर्व एशिया में अमेरिका-जापान सुरक्षा ढांचे में एक बड़ी भूमिका प्रदान करने के लिए इच्छुक है। 'सामूहिक आत्मरक्षा' क्रियान्वित करने के निर्णय के उपरांत जापानी सैन्य टुकड़ियों जापानी समुद्र के निकट अमेरिकी युद्धपोतों का बचाव कर सकती थी, 'अमेरिका पर लक्षित मिसाइलों को अवरोधित कर सकती थीं, विदेश में शांति स्थापकों की सुरक्षा कर सकती थीं तथा बारूदी सुरंगों को साफ करने के क्रियाकलाप संचालित कर सकती थीं। अमेरिका-जापान सुरक्षा गठबंधन में जापानी एसडीएफ के कर्त्तव्यों को विस्तारित करते हुए आबे अमेरिका की आलोचना को समाप्त करना चाहते थे कि जापान क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए अपनी सम्यक भूमिका का निर्वहन नहीं कर रहा है। अमेरिका आबे के निर्णय से प्रसन्न है, जो अमेरिकी रक्षा सचिव चक हेगल के इस वक्तव्य से स्पष्ट होता है कि यह निर्णय "आत्मरक्षा बलों को अभियानों की व्यापक परिधि में व्यस्त रहने में समर्थ बनाएगा और अमेरिका-जापान को अधिक प्रभावी बनाएगा।"
इसमें कोई संदेह नहीं कि आबे अमेरिका को यह सूचित करने में सफल रहे हैं कि जापान इसका विश्वसनीय मित्र है तथा यह उन उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए तैयार है जिनकी 'एशिया में महत्वपूर्ण' के रूप में उसके द्वारा परिकल्पना की गई है। तथापि, इस प्रक्रिया में आबे ने अपने लोगों के विशाल खंड को नाराज किया है। यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिए कि जापान की सुरक्षा नीति की शांतिप्रिय प्रकृति को बदलने के निर्णय का सदैव ही लोगों द्वारा विरोध किया गया है तथा सरकार द्वारा शांतिप्रिय नीतियों में छेड़छाड़ अपने ही देश में अलोकप्रिय रही है। जापानी लोग उस समय सड़कों पर उतर आए थे जब जापान ने 1960 में अमेरिका-जापान सुरक्षा संधि को संशोधित किया था; उन्होंने शांति स्थापना अभियानों के लिए सैन्य टुकड़ियां भेजने का विरोध किया तथा विदेश को हथियारों और हथियारों से संबंधित प्रौद्योगिकियां बेचने पर प्रतिबंधों में ढील देने के हाल के कदम का विरोध किया। परंतु उन्होंने पूर्व में सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों के साथ धीरे-धीरे स्वयं को व्यवस्थित कर लिया है। अत: यह आश्चर्यजनक नहीं है कि वे समय के साथ इस निर्णय को भी स्वीकार कर लेंगे। तथापि, निकट भविष्य में लोगों और जापानी स्थापना के बीच टकराव द्वारा 'सामूहिक आत्मरक्षा' पर निर्णय सुनिश्चित करने की संभावना है।
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* शमशाद ए खान, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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