चीनी क्षेत्र के प्रशान्त महासागरीय द्वीपों का महत्त्व तथा चीन के बेल्ट एवं रोड पहल (बीआरआई) तथा दक्षिणी प्रशान्त के छोटे द्वीपीय राष्ट्रों को चीनी सहायता और सहयोग में बढ़ोत्तरी के कारण हाल के वर्षों में दक्षिणी प्रशान्त क्षेत्र में चीन का प्रभुत्व तेजी से बढ़ता रहा है। इस क्षेत्र में अपने आर्थिक आधार तथा राजनयिक गतिविधियों के कारण चीन दक्षिणी प्रशान्त में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरा है जिससे क्षेत्रीय भूराजनीतिक परिवेश में पर्याप्त परिवर्तन आया है।
भारतीय-प्रशान्त क्षेत्र की ओर वैश्विक आकर्षण के कारण विशाल ईईजे सहित छोटे द्वीपीय राष्ट्रों से निर्मित रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण व्यापारिक जल मार्ग के चौराहे पर स्थित दक्षिणी प्रशान्त उपक्षेत्र जिसमें प्राकृतिक संसाधनों की विपुलता तथा अपेक्षाकृत अल्प विकसित अर्थव्यवस्था है, क्षेत्रीय तथा परिक्षेत्रीय शक्तियों को भी आकर्षित कर रहा है। हाल ही तक इस क्षेत्र को 1951 की आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैण्ड-अमेरिका (एएनजेडयूएस) समझौते द्वारा त्रिपक्षीय सैन्य गुट के अधीन प्रबन्धित अमेरिकी प्रभाव का व्यापक क्षेत्र माना जाता था। इस क्षेत्र में चीन की नवीन रुचि आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड के परम्परागत प्रभाव को चुनौती देती हुई प्रतीत होती है। बाद में दोनों ने इस क्षेत्र में चीन की भूमिका तथा इसके वृहत्तर निहितार्थ के प्रति अपनी चिन्ताएँ व्यक्त कीं।
दक्षिणी प्रशान्त क्षेत्र में चीन के दखल की हालिया अभिवृत्ति
अधिकतर प्रशान्तद्वीपीय देशों (पीआईसी) में बड़े देशों से सहायता प्राप्त करने की अवधारणा ने उनके सम्बन्धों का निर्धारण किया है। दक्षिणी प्रशान्त क्षेत्र विश्व के सहायता पर निर्भर रहने वाले अधिकतर क्षेत्रों में से एक है। यद्यपि गत कुछ वर्षों से आस्ट्रेलिया सबसे बड़ा सहायता प्रदान करने वाला तथा विकास में सहयोग करने वाला देश रहा है किन्तु चीन धीरे-धीरे पीआईसी को अनुदान देने वाला सबसे बड़ा देश बन गया जिससे इस क्षेत्र में सबसे बड़े परम्परागत प्रभावी प्रदाता के रूप में आस्ट्रेलिया की स्थिति को चुनौती मिल रही है। चीन द्वारा गत दशक के दौरान दी गयी समेकित सहायता पहले ही न्यूजीलैण्ड से अधिक हो चुकी है और यह आस्ट्रेलिया के बाद दूसरा सबसे बड़ा प्रदाता बन गया है। चीन ने 2011-18 के दौरान पीआईसी को रियायती ऋण सहित लगभग 1.26 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रदान की है।1 चीन प्रशान्त द्वीपीय मंच (पीआईएफ) सदस्य राष्ट्रों का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है।
चीन अब इस क्षेत्र में सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है।2 पपुआ न्यू गिनिया के ऊपर लगभग 590 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण है जो इसके कुल बाह्य ऋण का लगभग एक-चौथाई है।3 अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार चीन का ऋण टोंगा4 के बकाया बाहरी ऋण का लगभग 60 प्रतिशत और वनुआतू के लिए यह 70 प्रतिशत से अधिक है।5 ऋण-आधारित अवसंरचना कार्यक्रम पर केन्द्रित विश्व के किसी भी अन्य छोटे देश को चीनी सहायता तथा सहयोग की अभिवृत्ति की भाँति दक्षिणी प्रशान्त के इन द्वीपीय राष्ट्रों को दिया जाने वाला ऋण उन्हें कर्ज के जाल में डूबने के खतरे की ओर धकेल रहा है।
इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती रुचि की महत्त्वपूर्ण दिशा चीन के बीआरआई में इन द्वीपीय राष्ट्रों की भूमिका के सन्दर्भ में रही है। प्रशान्त द्वीप चीन के 'वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर)' पहल में मुख्यत: "21वीं शताब्दी का समुद्री सिल्क रोड एक महतत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है जो चीन के तटीय पत्तनों को एक मार्ग से दक्षिणी चीन सागर तथा हिन्द महासागर के माध्यम से यूरोप को और दूसरे मार्ग से दक्षिणी चीन सागर को दक्षिणी प्रशान्त क्षेत्र से जोड़ता है" के रूप में महत्त्वपूर्ण है।6 फिजी के प्रधानमन्त्री जोसैया वोरेक बैनिमारमा मई, 2017 में बीजिंग में अन्तर्राष्ट्रीय बेल्ट एवं रोड फोरम सहयोग में उपस्थित अन्य राष्ट्र प्रमुखों में से एक थे। पपुआ न्यू गिनिया, फिजी तथा नियू ने 2018 में बेल्ट एवं रोड सहयोग हेतु चीन के साथ समझौता-पत्र पर हस्ताक्षर किए।
नवम्बर 2018 में एपीईसी सम्मेलन के बाद चीनी प्रधानमन्त्री शी जिनपिंग ने आठ छोटे द्वीपीय देशों के नेताओं जिनके चीन के साथ राजनयिक सम्बन्ध थे, पोर्ट मोरेसबाई, पपुआ न्यू गिनिया में सहयोग और विशेष रूप से बीआरई के क्षेत्र में परिचर्चा के लिए एक विशेष सम्मेलन आयोजित किया। इसमें कुक द्वीप, फिजी, माइक्रोनेसिया, नियू, समोआ, टोंगा, वनुआतू तथा पपुआ न्यू गिनिया के नेता सम्मिलित थे। बैठक में राष्ट्रपति जिनपिंग ने अन्य बातों के साथ-साथ यह प्रस्ताव भी रखा कि चीन 2019 के द्वितीयार्ध में द्वीपीय राष्ट्रों के साथ संयुक्त चीन-प्रशान्त द्वीपीय राष्ट्र आर्थिक विकास एवं सहयोग फोरम की मेजबानी करने के लिए तैयार है।7 यह ध्यान देने योग्य है कि चीन ने फिजी में 22 नवम्बर, 2014 को ऐसा ही एक सम्मेलन आयोजित किया था जब भारत ने 19 नवम्बर, 2014 को भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के फिजी दौरे के समय बहुराष्ट्रीय भारत-प्रशान्त द्वीप सहयोग मंच (एफआईपीआईसी) प्रारम्भ किया था।
इस क्षेत्र में हाल में व्यापक पैमाने पर चीनी निवेश के साथ द्वीपीय राष्ट्रों ने अपने उत्तर स्थित देश से और अधिक सहायता की अपेक्षा की। चीन की पपुआ न्यू गिनियाके मानुस द्वीप में एक बहुउद्देशीय पत्तन का निर्माण, वानुआतू के लुगानविले रैफ के पुनर्विकास तथा ऐसी अन्य पहलों जैसी वित्तपोषित अवसंरचनात्मक परियोजनाओं ने रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण पड़ोसी देशों में चीन की सशक्त दखलंदाजी के कारण खौफ पैदा कर दिया।
क्षेत्रीय भूराजनीतिक निहितार्थ
इन हालिया विकासों के आलोक में न्यूजीलैण्ड तथा आस्ट्रेलिया दोनों इस क्षेत्र में चीन की रणनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के प्रति अपनी चिन्ताओं के विषय में मुखर हो उठे और वे अपने पड़ोसी प्रशान्त क्षेत्र में अपनी भूमिका बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। बीजिंग की 'कोमल शक्ति' कूटनीति के प्रयासों ने अन्य महत्त्वपूर्ण देशों के मध्य ग्वादर (पाकिस्तान) तथा हम्बन्टोटा (श्रीलंका) और जिबूती के मिलिटरी बेस जैसे विगत उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र में चीन की सक्रिय उपस्थिति की भावी सम्भावनाओं के विषय में चिन्ताओं को बढ़ा दिया।
आस्ट्रेलियाई अन्तर्राष्ट्रीय विकास एवं प्रशान्त क्षेत्र के मन्त्री कंसेटा फिएरावंती-वेल्स ने आस्ट्रेलियाई मीडिया को बताया कि पीआईसी में प्रतिकूल शर्तों पर दिये जा रहे चीनी सहायता कार्यक्रम तथा ऋण "सफेद हाथी" सिद्ध हो रहे हैं जो बिना कोई लाभ पहुँचाये आर्थिक स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं।8 इस वक्तव्य का चीन ने सशक्त विरोध किया। चीनी विदेश मन्त्रालय के प्रवक्ता लू कैंग ने कहा कि "आस्ट्रेलियाई अधिकारी की टिप्पणियों से तथ्यों की तुच्छता का बोध होता है और वे गैर-जिम्मेदाराना हैं।" और कहा कि चीन ने आस्ट्रेलियाई सरकार के सम्मुख आधिकारिक शिकायत दर्ज की है।9
वैनुआतू में सम्भावित चीनी बेस के विषय में मीडिया की हालिया रिपोर्ट ने आस्ट्रेलिया में बड़े पैमाने पर भय का वातावरण उत्पन्न कर दिया। 2015-17 के बीच वैनुआतू को दी गयी कुल चीनी सहायता में से चीन ने लुगानविले वार्फ के पुनर्विकास पर 80.56 मिलियन अमेरिकी डॉलर व्यय किया जिससे वैनुआतू में चीनी नौसेनिक अड्डे की स्थापना का खतरा बढ़ गया। आस्ट्रेलियाई मीडिया की रिपोर्ट में बताया गया कि चीनी तथा वैनुआतू के अधिकारियों के बीच लुगानविले वार्फ में चीन सरकार के स्वामित्व वाले उपक्रम शंघाई कंस्ट्रक्शन ग्रुप द्वारा वित्तपोषित सम्भावित चीनी सैन्य अड्डे से सम्बन्धित प्रारम्भिक वार्ता सम्पन्न हुई। यद्यपि चीनी तथा वैनुआतू सरकारों ने ऐसी कोई वार्ता होने से इनकार किया है। किन्तु इस पूरे प्रकरण ने आस्ट्रेलियाई रणनीतिक परिक्षेत्र को चिन्तित कर दिया है। तत्कालीन आस्ट्रेलियाई प्रधानमन्त्री मैल्कम टर्नबुल ने कहा कि आस्ट्रेलिया प्रशान्त द्वीपों में किसी विदेशी सैनिक अड्डे की उपस्थिति को "बड़ी चिन्ता" के रूप में देखेगा।
हाल ही में एक अन्य घटनाक्रम में आस्ट्रेलिया पपुआ न्यू गिनिया और सोलोमन द्वीपों तक समुद्र के भीतर से उच्चगति की दूरसंचार केबल के निर्माण हेतु चीन को प्रतिस्थापित करने के लिए तत्पर था। आस्ट्रेलियाई विदेश मामले एवं व्यापार विभाग ने औपचारिक तौर पर घोषणा की कि सरकार वोकस कम्पनी के साथ दूरसंचार में साझेदारी करेगी जिसे कोरल सी केबल सिस्टम की भौतिक स्थापना प्रारम्भ करने के लिए 136.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ठेका दिया गया था। मूलत: चीनी कम्पनी हुवाई द्वारा 4,000 किलोमीटर लम्बे केबल नेटवर्क का कार्य निर्धारित किया गया जिसका ठेका 2016 में सोलोमन ने दिया था। इन विवादों ने इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव की संवेदनशीलता को उजागर कर दिया।
इस पृष्ठभूमि में आस्ट्रेलिया ने अपनी प्रशान्त नीति के सहारे इस क्षेत्र में अपनी भूमिका बढ़ाने की घोषणा की। इस नीति को अपनी विदेश नीति श्वेत पत्र 2017 में देश की सबसे बड़ी प्राथमिकताओं में से एक माना गया। जैसा कि विदेश मन्त्री मैराइज पेन ने कहा, "प्रशान्त क्षेत्र में अपनी पहुँच बनाना आस्ट्रेलियाई विदेश नीति का एक विकल्प नहीं है, यह आवश्यक है।" इस क्षेत्र में सुरक्षा सम्बन्धी, आर्थिक, राजनयिक और जनता से जनता के सहयोग को बढ़ाने के उपायों पर बल देने के विषय में 8 नवम्बर, 2018 को आस्ट्रेलियाई प्रधानमन्त्री स्कॉट मॉरिसन, विदेश मामले मन्त्री मैराइज पेन तथा रक्षा मन्त्री क्रिस्टोफर पेन ने संयुक्त वक्तव्य जारी किया। अन्य पहलों में प्रशान्त क्षेत्रीय देशों में अवसंरचनात्मक विकास के लिए आस्ट्रेलिया के सहयोग में वृद्धि के लिए प्रशान्त क्षेत्र हेतु 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आस्ट्रेलियाई अवसंरचनात्मक वित्तीय सुविधा स्थापित करना भी शामिल है। यह 2018-19 में प्रशान्त क्षेत्र को दी जाने वाली 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आस्ट्रेलियाई सहायता के अतिरिक्त है। प्रधानमन्त्री मॉरिसन ने यह भी घोषणा की कि आस्ट्रेलिया प्रत्येक प्रशान्त द्वीपीय संगठन सदस्य तक अपनी पहुँच में विस्तार करते हुए पाँच नये राजनयिक मिन स्थापित करेगा। जनवरी, 2019 में अपने फिजी तथा वैनुआतू के दौरे के समय आस्ट्रेलियाई प्रधानमन्त्री ने विभिन्न क्षेत्रों में अतिरिक्त वित्तीय सहायता प्रदान करने की घोषणा की। उन्होंने प्रशान्त क्षेत्र में मुक्त व्यापार के लिए पेसर प्लस (पैसिफिक एग्रीमेंट ऑन क्लोजर इकोनॉमिक रिलेशन्स प्लस) योजना नवीकृत की जिस पर अब तक फिजी तथा पीएनजी ने हस्ताक्षर नहीं किए। अन्य नौ प्रशान्त क्षेत्रीय देशों के साथ न्यूजीलैण्ड तथा आस्ट्रेलिया ने क्षेत्रीय विकास केन्द्रित व्यापार समझौते की पुष्टि की।
इसी प्रकार न्यूजीलैण्ड के स्ट्रेटेजिक डिफेंस पॉलिसी स्टेटमेंट 2018 ने भी विकासपरक सहयोग तथा आर्थिक सहायता के माध्यम से इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के विषय में चिन्ता व्यक्त की। इसने "अवसंरचनात्मक परियोजनाओं सहित ऋण के बढ़ते बोझ से प्रभुत्व, पहुँच तथा प्रशासन के लिए सम्भावित जटिलता" के रूप में इस क्षेत्र को विनाशोन्मुख करार दिया।8 फरवरी, 2018 में न्यूजीलैण्ड के विदेश मन्त्री विंस्टन पीटर्स ने "प्रशान्त पुन: नियोजन" नीति के साथ प्रशान्त द्वीपीय क्षेत्र तक एक नवीन उपागम की घोषणा की। इस क्षेत्र में न्यूजीलैण्ड की भूमिका बढ़ाने के अंग के रूप में सरकार ने पीआईसी के साथ अपने राजनयिक तथा विकासात्मक उपस्थिति को बढ़ाने के साथ-साथ घनिष्ठतर तथा अधिक परिपक्व साझेदारी निर्मित करने के लिए नवीकृत ध्यान केन्द्रित करने की घोषणा की। 'प्रशान्त पुन: नियोजन' में आस्ट्रेलिया और प्रशान्त क्षेत्र के प्रमुख साझेदारों के साथ घनिष्ठ सहयोग स्थापित करना भी शामिल है।9 इस क्षेत्र को न्यूजीलैण्ड द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता का लगभग 60 प्रतिशत पहले ही दिया जाता रहा है। प्रशान्त क्षेत्र की समृद्धि के लिए न्यूजीलैण्ड की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने के लिए सरकार ने विभिन्न गतिविधियों21 हेतु 10 मिलियन डॉलर की पैसिफिक एनेबलिंग फण्ड की संस्थापना सहित न्यूजीलैण्ड के आर्थिक सहायता कार्यक्रम20 के तहत 2018 में इस क्षेत्र के लिए अतिरिक्त वित्तीय सहायता प्रदान करने की घोषणा की। न्यूजीलैण्ड तथा आस्ट्रेलिया ने सामूहिक साइबर लोच बढ़ाने जैसे क्षेत्रों में साझेदारी बढ़ाने की घोषणा की। दोनों देशों के विदेश मन्त्रियों ने पीआईसी के साथ कार्य करने के लिए ऐसे खुले, मुक्त तथा सुरक्षित इंटरनेट हेतु सहयोग करने की संयुक्त प्रतिबद्धता की घोषणा की जो आर्थिक विकास, में वृद्धि करे, राष्ट्रीय सुरक्षा को संरक्षित करे और अन्तर्राष्ट्रीय स्थिरता को प्रोत्साहित करे। इससे 2022 तक इस क्षेत्र के क्षेत्रीय साइबर सहयोग में आस्ट्रेलिया का कुल निवेश 38.4 मिलियन हो जायेगा।
इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भागीदारी करने वाला एक अन्य देश फ्रांस है और वह इस क्षेत्र में रणनीतिक सन्तुलन तेजी से बिगड़ने के विषय में चिन्तित रहा है। फ्रांस के न्यू कैलेडोनिया तथा फ्रेंच पॉलीनेसिया सहित दक्षिणी प्रशान्त क्षेत्र से लगते हुए अपने विदेशी क्षेत्र हैं और यह इस क्षेत्र को पर्याप्त आर्थिक मदद प्रदान करता है। इस क्षेत्र में 2011 से 2018 तक कुल 121.05 मिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक अनुदान फ्रांस दे चुका है जिसका अधिकांश भाग कृषि, वन, मत्स्य पालन तथा शिक्षा के क्षेत्रों में व्यय किया गया। अपने विशाल ईईजेड के कारण इस क्षेत्र में सुरक्षा तथा स्थिरता बनाये रखने और प्रशान्त क्षेत्रीय निर्भरता पर फ्रांसीसी प्रभुत्व सुनिश्चित करने में फ्रांस की रुचि है। फ्रांसीसी रणनीतिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा समीक्षा 2017 के अनुसार फ्रांस इस क्षेत्र के प्रमुख लोकतान्त्रिक देशों के साथ अपने सम्बन्धों को मजबूत करने का इच्छुक है। इसमें कहा गया है कि चीन की महत्वाकांक्षी रणनीति और गतिविधियों की प्रवृत्ति "पूरे क्षेत्र के सुरक्षा आयामों को बदल सकती है।"24 फ्रांस, आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड के मध्य 1992 के त्रिपक्षीय फ्रैंज समझौते के तहत प्रशान्त क्षेत्रीय द्वीप में अपनी सहायता का समन्वयन के प्रति पहले से ही घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। हाल के वर्षों में आस्ट्रेलिया तथा फ्रांस ने इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते हुए प्रभाव के सम्मुख अपने द्विपक्षीय सम्बन्धों को और अधिक दृढ़ करने में रुचि दिखाई है।
हाल के वर्षों में भारत ने भी वर्धित भौगोलिक पहुँच तथा रणनीतिक तथ्य के साथ अपनी नवीन 'एक्ट ईस्ट नीति' के आलोक में पीआईसी पर ध्यान केन्द्रित करना प्रारम्भ किया है। भारत ने पीआईसी को 200,000 डॉलर वार्षिक अनुदान सहायता राशि की घोषणा की है। 2017-18 में पीआईसी के साथ भारत का कुल वार्षिक व्यापार लगभग 23.9 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया। किन्तु इस क्षेत्र में भारत की उपस्थिति चीन की तुलना में अत्यन्त भिन्न है अत: इस क्षेत्र के देशों द्वारा भारत के इस कदम का स्वागत किया गया। भारत की दृष्टि फिजी जैसे देशों के साथ अपने ऐतिहासिक सम्बन्धों को अधिक पारदर्शी और समावेशी बनाने पर लगी हुई है। यह प्रयास 2014 में एफआईपीआईसी के निर्माण में दिखाई दिया जिसमें व्यापारिक सम्बन्धों को बढ़ाने जैसे मुद्दों पर सामूहिक चर्चा की गयी और न केवल अनुदान और सहायता कार्यक्रम पर बल्कि जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार, ऊर्जा, सुरक्षा तथा समुद्री सुरक्षा आदि विषयों पर भी चर्चा की गयी। अब तक दो एफआईपीआईसी सम्मेलन आयोजित किये जा चुके हैं जिनमें से एक 2014 में फिजी में तथा दूसरा 22015 में एफआईपीआईसी-II सम्मेलन जयपुर, भारत में आयोजित किया गया। नीली अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन हेतु अनुकूलन-न्यूनीकरण संक्रियाएँ तथा आपदा तैयारी जैसे मुद्दों पर परिचर्चा करने के लिए एफआईपीआईसी के तत्वावधान में नवीनतम कार्यक्रम मई, 2017 में फिजी के सुवा नगर में 'भारत-प्रशान्त द्वीप सतत विकास सम्मेलन' के तहत आयोजित किया गया। इसमें एफआईपीआईसी का अगले सम्मेलन आयोजित करने के विषय में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गयी। किन्तु यह कहना समीचीन होगा कि अपनी स्थापना से ही एफआईपीआईसी ने सहयोग के साझा क्षेत्रों तथा बहुआयामी सहयोग वृद्धि पर परिचर्चा के लिए एक मंच प्रदान करके भारत था पीआईसी के सम्बन्धों को और घनिष्ठ किया है। हाल के वर्षों में विशाल भारतीय-प्रशान्त क्षेत्र में अपनी रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं के अंग के रूप में इस क्षेत्र के प्रति भारत के रुख में परिवर्तन हुआ है, यदि चीन बीआरआई के तहत दक्षिणी प्रशान्त क्षेत्र में अपनी सक्रिय उपस्थिति के द्वारा अपना सैनिक अड्डा स्थापित करता है तो यह एक चिन्ता का विषय होगा।
आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड के अतिरिक्त अमेरिका ने भी इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते निवेश तथा इसकी गतिविधियों में पारदर्शिता की कमी के प्रति अपनी चिन्ताएँ व्यक्त की हैं। अमेरिकी राष्ट्रीय रक्षा नीति पत्र 2018 ने चेतावनी दी है कि चीन अपनी अन्तर्राष्ट्रीय दादागिरी बढ़ाने के लिए 'अपहरणकारी अर्थव्यवस्था' का उपयोग कर रहा है। जून 2018 में चीन प्रशान्त द्वीपों में संलिप्तता : अमेरिका के लिए चिन्ता शीर्षक वाली अमेरिकी-चीनी आर्थिक मूल्यांकन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि "चीन हाल के वर्षों में प्रशान्त क्षेत्रीय द्वीपों में अपना दखल बढ़ाया है जो इसकी सीमा कूटनीति तथा रणनीतिक हितों से प्रेरित है, इससे वह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ताइवान के महत्त्व कम करेगा और कच्चे माल तथा प्राकृतिक संसाधनों पर नियन्त्रण कर लेगा।"27 इसमें बताया गया कि यदि इस क्षेत्र में सैनिक अड्डा बनाया जायेगा तो इससे अमेरिका के रक्षा हितों के साथ-साथ इस क्षेत्र में अमेरिका के प्रमुख सहयोगियों आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड के हितों को भी खतरा होगा।
अत: भारत-प्रशान्त क्षेत्र के वैश्विक आकर्षण का केन्द्र होने के कारण दक्षिण प्रशान्त उपक्षेत्र भी आर्थिक, राजनीतिक तथा रणनीतिक तौर पर महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है। भू-आर्थिक प्रतिस्पर्धा इस क्षेत्र की भू-राजनीति को भी निर्धारित कर रही है। चीन की 'चेकबुक कूटनीति' के भय के कारण आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड अपनी नीतियाँ बनाने में लगे हैं। अपने पड़ोस में चीन की बीआरआई योजना के प्रति नई दिल्ली की चिन्ताओं की भाँति अपने पड़ोस में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं के विषय में अब कैनबरा तथा वेलिंगटन की भी अपनी चिन्ताएँ हैं। चीन के बढ़ते राजनीतिक तथा आर्थिक प्रभाव के कारण आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड दोनों को इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाये रखना कठिन हो रहा है। इस प्रकार दक्षिण प्रशान्त क्षेत्र लगातार क्षेत्रीय तथा बाहरी देशों की बढ़ती रुचियों के कारण प्रतिस्पर्धा का एक रणनीतिक मैदान बनता जा रहा है। गत समय में इस क्षेत्र को उपेक्षित रखने वाले भारत तथा चीन अब इस क्षेत्र में अपनी भूमिका का आगम बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं और साथ ही साथ आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा अमेरिका अपने प्रभाव को बनाये रखने का प्रयास कर रहे हैं। इन विभिन्न देशों का शक्ति प्रदर्शन भविष्य में भी जारी रहने की सम्भावना है जिससे इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक स्थिति जटिल हो जायेगी और इससे क्षेत्रीय शक्ति सन्तुलन परिवर्तित हो सकता है।
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* लेखिका, शोधार्थी, विश्व मामलों की भारतीय परिषद्, नई दिल्ली
अस्वीकरण : इसमें व्यक्त किये गये विचार शोधार्थी के हैं न कि परिषद के।
अन्त्य टिप्पणी :
1द मैपिंग फॉरेन असिस्टेंट इन द पैसिफिक प्रोजेक्ट, लोवी इंस्टीट्यूट फॉर इण्टरनेशनल पॉलिसी, https://chineseaidmap.lowyinstitute.org/
2द मैपिंग फॉरेन असिस्टेंट इन द पैसिफिक प्रोजेक्ट, लोवी इंस्टीट्यूट फॉर इण्टरनेशनल पॉलिसी, https://chineseaidmap.lowyinstitute.org/
3आरपीटी-इनसाइट-पेमेंट ड्यू : पैसिफिक आइलैण्ड्स इन दे रेड ऐज डैट्स दू चाइना माउण्ट, 13 जुलाई, 2018 https://www.reuters.com/article/pacific-debt-china/rpt-insight-payment-due-pacific-islands-in-the-red-asdebts-to-china-mount-idUSL4MUQ6GA
4टोंगा स्टाफ रिपोर्ट ऑफ द 2015 आर्टिकल IV कंसल्टेशन-डैट सस्टेनेबिलिटी एनलिसिस अपडेट, अप्रैल, 2015, https://www.imf.org/external/pubs/ft/dsa/pdf/2015/dsacn51o7.pdf
5वेनुआतू स्टाफ रिपोर्ट फॉर द 2018 आर्टिकल IV कंसल्टेशन-डैट सस्टेनेबिलिटी एनलिसिस, मार्च-अप्रैल, 2018 https://www.imf.org/external/pubs/ft/dsa/pdf/2015/dsacn51o7.pdf
6आर्टिकल बाइ एम्बेसडर जैंग पिंग एनटाइटल्ड "क्लोजर को-ऑपरेशन अण्डर बेल्ट एण्ड रोड विन-विन फॉर फिजी, चाइना," चाइनीज एम्बेसी इन फिजी, 17 मई, https://www.fmprc.gov.cn/mfa_eng/wjb_663304/zwjg_665342/zwbd_66537841.462445.shtml
7चाइना पैसिफिक आइलैण्ड कंट्रीज लिफ्ट टाइज टु कम्प्रीहेन्सिव स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप, https://www.fmprc.gov.cn/mfa_eng/topics_665678/xjpcxytjhzz/b.61.5484.shtml
8आस्ट्रेलिया डिटेल्स इन्वेस्टमेंट इन द पैसिफिक ऐज चाइना क्लाउट ग्रोज, 8 नवम्बर, 2018
9फॉरेन मिनिस्ट्री स्पोक्सपर्सन लू कैंग्स रेगुलर प्रेस कांफ्रेंस ऑन जनवरी 10, 2018, http://om.chineseembassy.org/eng/fyrth/t1524766.htm
10पैसिफिक एड मैप, लोवी इंस्टीट्यूट, https://pacificaidmap.lowyinstitute.org/
11चाइना आईज वैनुआतू मिलिटरी बेस इन प्लान विद ग्लोबल रैमिफिकेशन, 9 अप्रैल, 2018, https://www.smh.com.au/politics/federal/china-eyes-vanuatu-military-base-in-plan-with-globalramifications-201.80409-p4z8j9.html
12'ग्रेट कंसर्न' : मैल्कम टर्नबुल ड्राज ए लाइन इन द सैण्ड ऑन मिलिटरी बेसेस नियर आस्ट्रेलिया, सिडनी मॉर्निंग हेरल्ड, 10 अप्रैल, 2018, https://www.smh.com.au/politics/federal/great-concern-malcolm-turnbulldraws-a-line-in-the-sand-on-military-bases-near-australia-201.80410-p4z8t3.html
13आस्ट्रेलियन डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेन अफेयर्स एण्ड ट्रेड, मीडिया रिलीज, 19 जून, 2018, https://foreignminister.gov.au/releases/Pages/2018/jb_mr _180619.aspx
14आस्ट्रेलिया सप्लान्ट्स चाइना टु बिल्ड अण्डरसी केबल फॉर सोलोमन आइलैण्ड्स, 13 जून, 2018, https://www.theguardian.com/world/201.8/junh3/australia-supplants-china-to-build-undersea-cable-forsolomon-islands
15स्टेपिंग-अप आस्ट्रेलियाज पैसिफिक एंगेजमेंट, https://dfat.gov.au/geo/pacific/engagement/Pages/steppingup-australias-pacific-engagement.aspx
16स्ट्रेंदेनिंग आस्ट्रेलियाज कमिटमेंट टु द पैसिफिक, 8 नवम्बर, 2018, https://foreignminister.gov.au/releases/Pages/2018/mp_mr j.81.1.08.aspx?w=E6pq%2FUhz0s%2BE7V9FFYiix Q%3D%3D
17पेसर प्लस एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) है जिसमें माल, सेवाएँ तथा निवेश शामिल हैं। इस समझौते पर बातचीत 2009 में प्रारम्भ हुई और यह 20 अप्रैल, 2017 को ब्रिस्बेन में प्रभावी हुआ। विववरण के लिए देखें : https://dfat.gov.au/trade/agreements/not-yet-in-force/pacer/Pages/pacific-agreement-on-closereconomic-relations-pacer-plus.aspx
18स्ट्रैटेजिक डिफेंस पॉलिसी स्टेटमेंट, 2018, पृ. 22 तथा 24, http://www.nzdf.mil.nz/downloads/pdf/publicdocs/2018/strategic-defence-policy-statement-201.8.pdf
19प्रशान्त क्षेत्र के साथ हमारे सम्बन्ध, न्यूजीलैण्ड विदेश मामले तथा व्यापार विभाग, https://www.mfat.govt.nz/en/countries-and-regions/pacific/
20प्रशान्त क्षेत्र में हमारे अनुदान साझेदार, https://www.mfat.govt.nz/en/aid-and-development/our-work-in-thepacific/
21पैसिफिक रीसेट ने गति पकड़ी, 8 नवम्बर, 2018, https://www.beehive.govt.nz/release/pacific-reset-pickspace
22आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड ने संयुक्त प्रशान्त साइबर सहयोग की घोषणा की, 16 नवम्बर, 2018 https://www.beehive.govt.nz/release/australia-and-new-zealand-announce-joint-pacific-cyber-cooperation
23निक मैकलेनन, फ्रांस तथा नीला प्रशान्त, 30 अप्रैल, 2018, एशिया तथा प्रशान्त नीति अध्यय, वाल्यूम 5, नं. 3, पृ. 428.
24फ्रांसीसी रक्षा तथा राष्ट्रीय सुरक्षा समीक्षा, 2017, पृ. 44, file:///C:/Users/GEM/Desktop/DEFENCE+AND+NATIONAL+SECURITY+STRATEGIC+REVIEW+2017.pdf
25वाणिज्य विभाग, निर्यात आयात डाटा बैंक, वाणिज्य एवं उद्योग मन्त्रालय, http://commerce-app.gov.in/eidb/
26यूएस नेशनल डिफेंस स्ट्रैटेजी पेपर, 2018, पृ. 2, https://dod.defense.gov/Portals/i/Documents/pubs/2018-National-Defense-Strategy-Summary.pdf
27चाइनाज एंगेजमेंट इन द पैसिफिक आइलैण्ड्स : इम्प्लिकेशन्स फॉर द यूनाइटेड स्टेट्स, जनवरी, 2018, https://www.uscc.gov/sites/default/files/Research/China-Pacific%20Islands%20Staff%20Report.pdf