दक्षिणी अफ्रीका के साथ भारत की साझेदारी
पर
सातवां भारत-अफ्रीका अकादमिक सम्मेलन
पर इवेंट रिपोर्ट
सीआरआरआईडी, चंड़ीगढ़
3-4 फरवरी, 2014
द्वित्तीय चरण की बातचीत की प्रक्रिया के तौर पर भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन-II नाम से दो दिवसीय अकादमिक सम्मेलन “दक्षिणी अफ्रीका के साथ भारत की साझेदारी” विषय पर अंतर्राष्ट्रीय मामलों की भारतीय परिषद द्वारा ग्रामीण और औद्योगिक विकास अनुसंधान केंद्र के साथ सहयोग से 3-4 फरवरी, 2014 को चड़ीगढ़ में आयोजन किया गया।
सम्मेल के मुख्य बिंदु इस प्रकार से थे
सम्मेलन का उद्घाटन अपने स्वागत भाषण के साथ माननीय श्री शिव राज पाटिल, पंजाब के गवर्नर, भारत सरकार द्वारा किया गया। प्रो. सुचा सिंह गिल, महानिदेशक, सीआरआरआईडी ने भी अपना स्वागत भाषण दिया और राजदूत (सेवानिवृत्त) परमजीत सहाय, प्रमुख कार्यक्रम सलाहकार, सीआरआरआईडी ने भी अपना परिचयात्मक भाषण दिया। माननीय राजदूत शम्मा जैन ने राजदूत (सेवानिवृत्त) राजीव के. भाटिया, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए के परिचयात्मक भाषण को पढ़ा और अपना स्वागत भाषण भी दिया। श्री वी. के. सिब्बल, आईएएस (सेवानिवृत्त) तथा सदस्य, शासी निकाय, सीआरआरआईडी ने भी अपना धन्यवाद प्रस्ताव दिया।
सम्मेलन के पांच विषयगत क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों पर रणनीतिक मामलों,परामर्श,व्यापार,नीति,शिक्षा,विदेशी संबंधों और मीडिया जैसे क्षेत्रों से आमंत्रति किए गए लगभग 20 विशेषज्ञों ने अपने लेख प्रस्तुत किए। ये पांच महत्वपूर्ण क्षेत्र (क)भारत और दक्षिणी अफ्रीका: अनुभव,उम्मीदें और धारणाएँ (ख)भारत और दक्षिणी अफ्रीका: लोगों को जोड़ना (ग)भारत और दक्षिणी अफ्रीका: आर्थिक विकास (घ)भारत और दक्षिणी अफ्रीका: कृषि क्षेत्र में सहयोग और (ङ)भारत और दक्षिणी अफ्रीका: ज्ञान हस्तांतरण और क्षमता निर्माण थे।
सम्मेलन के अलग-अलग क्षेत्रों के वक्तागण निम्नलिखित हैः
सत्र I
सत्र II
सत्र III
सत्र IV
सत्र V
2. सम्मेलन सत्र
उद्घाटन सत्र
प्रो. सुचा सिंह गिल, महानिदेशक, सीआरआरआईडी ने सभी सहभागियों और दक्षिणी अफ्रीका और मेजबान देश के सभी प्रतिनिधियों का, सम्मेलन का यह महत्व बताते हुए कि भारत और दक्षिणी अफ्रीका की चुनौतियों और मुद्दों पर स्वतंत्र और मुक्त विचार-विमर्श के लिए एक मंच के तौर पर इसकी विशेषताएं बताते हुए स्वागत किया। इस सम्मेलन में आईसीडब्ल्यूए की भूमिका और समर्थन की सराहना करते हुए उन्होंने बताया कि अफ्रीका दिवस व्याख्यान मई 2013 में सीआरआरआईडीके सहयोग से आईसीडब्ल्यूएद्वारा आयोजित किया जा रहा था। राजदूत परमजीत सहाय ने अपनी परिचयात्मक टिप्पणी में,भारत और अफ्रीकी देशों के बीच उपनिवेश विरोधी प्रतिरोध आंदोलन में एकजुटता पर प्रकाश डाला। उन्होंने वर्ष 2008 को जब भारत ने अपना पहला भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन शुरू किया था उसे ऐतिहासिक संबंधों में आमूल परिवर्तन काल के रूप में वर्णित किया है। उन्होंने कहा कि भारत-अफ्रीका सहयोग तीन स्तंभों,‘क्षमता निर्माण और कौशल हस्तांतरण,व्यापार और बुनियादी ढांचे के विकास’पर आधारित है।उन्होंने कहा कि 1970 के दशक के मध्य में अफ्रीकी स्वतंत्रता संग्राम के दिनों से एक लंबा रास्ता तय किया गया है,क्योंकि भारत और अफ्रीका विकास सहयोग के लिए एकही रास्ता अपनाते हैं। राजदूत सहाय के अनुसार उभरते वैश्विक क्रम मेंप्रमुख चुनौतियां ‘भारत की आर्थिक प्रगति और अफ्रीका के मजबूत पुनरुत्थान को सही स्थान पर लाने की होंगी।
राजदूत शम्मा जैन ने आईसीडब्ल्यूएके महानिदेशक,राजदूत राजीव के भाटिया की ओर से प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने सम्मेलन को एक विशाल, सावधानी से संरचित कार्यक्रम के तौर पर तैयार किये गये भाग जो कि भारत-अफ्रीका सहयोग को सार्वजनिक समाज, अकादमिक एवं रणनीतिक समुदाय में शामिल करता हैं से समाहित राजदूत भाटिया जी के परिचयात्मक भाषण को पढ़ा। बताया गया कि अफ्रीका कार्यक्रम को 2011 में दूसरे भारत-अफ्रीका मंच सम्मेलन के अवसर पर प्रारंभ किया गया था। राजदूत भाटिया के अनुसार, सरकार-से-सरकार, व्यवसाय-से-व्यवसाय तथा लोगों-से-लोगों की वार्ता एवं सहयोग को जोड़ने वाला एक व्यापक दृष्टिकोणभारत और अफ्रीका के बीच एक मजबूत साझेदारी बनाने और इसे बनाए रखने के लिए मुख्य बिंदु है। उनके शब्दों में,भारत-दक्षिणी अफ्रीका संबंध,जिन्हें तीन स्तरों पर प्रबंधित किया जाता है- अफ्रीकी संघ, क्षेत्रीय और द्विपक्षीय,भविष्य में विकास और विविधीकरण की काफी संभावनाएं हैं। इसके अलावा, राजदूत जैन ने उल्लिखित किया कि पुनःस्थापित होते अफ्रीका और उभरते भारत में समकालीन साझेदारी सामने आ रही है।
माननीय श्री शिव राज पाटिल, गवर्नर, पंजाब, भारत सरकार ने अपने परिचयात्मक भाषण में, सभी के द्वारा साझेदारी की भावना के साथ समावेशी विकास के लिए भारत-अफ्रीका संबंध को वैश्विक संदर्भ में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि भारत और दक्षिण अफ्रीकी देश भौगोलिकरूप से भी एक दूसरे के नजदीक हैं। ये पूर्व में उपनिवेश थे लेकिन आज स्वतंत्र हैं और अब इन्होंने शासन और शिक्षा की आधुनिक विधियों को अपनाते हुए वस्तुओं का उत्पादन करना प्रारंभ कर दिया है और अपनी जीवन यापन की स्थिति को सुधार लिया है। ये अपने आम उद्देश्यों को तीव्र एवं लागत प्रभावी तरीके से प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने प्रत्येक देश की आंतरिक राजनीतिक प्रणाली को जानने और अपने स्वंय के राजनीतिक संस्थान को विकसित किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने बताया कि चूंकि कृषि, उद्योग और घरेलू उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर ऊर्जा की आवश्यकता है। तो परमाणु और सौर ऊर्जा सहित ऊर्जा उत्पादन के नये तरीकों को अपनाये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने आनुवंशिकी, सौर ऊर्जा, समुद्र और अंतरिक्ष के विस्तार को अनुसंधान और विकास सहयोग के संभावित क्षेत्रों के रूप में चिन्हित किया। उन्होंने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में दो प्रकार की शक्तियां प्रचालित करती हैः प्रतिस्पर्धा और सहयोग और उन्होंने सहयोग पर बल दिया। उन्होंने सूचित किया कि अफ्रीकी नेताओं के साथ अपनी बातचीत के दौरान उन्हें असीम विश्वास व सद्भावना मिली। उन्होंने उल्लिखित किया कि भारत और अफ्रीका के बीच सहयोग का काफी विशाल क्षेत्र मौजूद है।
सत्र I:- भारत दक्षिणी अफ्रीकाः अनुभव, आशायें एवं धारणाएं
पैनल के सदस्यों नें भारत तथा दक्षिणी अफ्रीकी देशों में उभरती राजनीति एवं सुरक्षा वातावरण पर अपनी समझ को साझा करने की कोशिश की।
राजदूत वी. बी. सोनी ने अफ्रीका के विकास में विशेषकर मानव संसाधन विकास, ज्ञान निर्माण तथा अवसंरचना विकास में भारत के योगदान के मामले को प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि अफ्रीका के पास अनगिनत संभावनाएं है जिनका उपयोग भारत की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए किया जा सकता है। उन्होंने यह भी शामिल किया कि यह महाद्वीप न केवल आवश्यक वस्तुओं के लिए तैयार बाजार प्रदान करता है बल्कि बड़े पैमाने पर निर्यात की भी संभावना रखता है। उन्होंने आपसी लाभों के लिए ऊर्जा क्षेत्र में भारत के अनुभव, क्षमता और तकनीकी को साझा करने और कृषि-व्यापार के क्षेत्र में सहयोग करने का विचार भी सबके समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने भारतीय नेताओं की लगातार यात्राओं तथा अफ्रीका में और अधिक राजनयिकों को स्थापित करने सहित कई मूल्यवान सुझाव दिए। इसके अतिरिक्त, उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलनों का उपयोग और अधिक नवीन रास्तों का निर्माण अफ्रीका के लोगों की भागीदारों को और विस्तृत करने, उनकी जरूरतों व आशाओं को पूरा करने के लिए किया जाना चाहिए।
प्रो. वी. एल. टोंची ने उल्लेख किया कि नामीबिया-भारत के संबंध ऐतिहासिक रूप से नामीबिया की आजादी के संघर्ष के समय से राजनीति, अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक अलग-अलग स्तरों पर प्रसिद्ध हैं। उन्होंने समग्र संबंधों के राजनीतिक घटक को अपेक्षाकृत अधिक मजबूत माना। उन्होंने आजादी के संघर्ष और स्वतंत्रता के बाद के मजबूत राजनयिक और रक्षा सहयोग के दौरान भारत के सक्रिय राजनीतिक और सैन्य समर्थन के लिए इसे स्वीकार किया। प्रो. टोंची ने बताया कि इस प्रकार के राजनीतिक हाव-भाव जैसे कि नामीबिया के दक्षिणी भाग में उनके नाम पर एक अस्पताल की स्थापना कर देना और राजधानी विंडहोक में एक मुख्य सड़क को उनका नाम दे देनाइन दोनों देशों के बीच स्थायी संबंधों का द्योतक हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि गति प्राप्त करने के लिए सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों की संभावनाएं हैं।श्री. मनीष चंद ने भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन प्रक्रिया को रेखांकित करने वाली संरचना और विचारधारा से अवगत कराया।उन्होंने उल्लेख किया कि इस शिखर सम्मेलन ने महाद्वीप के 54 देशों के साथ भारत के बहुआयामी संबंधों को विकसित करने और विकसित करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया है जिसे दुनिया में विकास के एक नये स्तंभ के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने अन्य मुद्दों जैसे कि आतंकवाद, पाइरेसी और नशीले पदार्थों की तश्करी के अधिक सटीक अध्ययन पर जोर दिया। नागरिक समाज, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मीडिया संचार इस संबंध को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने ऐसे शिखर सम्मेलनों के आयोजन की आवृत्ति में वृद्धि करके आईएएफएसप्रक्रिया पर अनुवर्ती कार्रवाई की आवश्यकता का सुझाव दिया।
डॉ. एल. टी. कपांगू ने बताया कि भारत अफ्रीका के साथ महाद्वीपीय स्तर पर, दक्षिणी अफ्रीका में क्षेत्रीय स्तर पर व साथ ही साथ जिम्बाब्वे जैसे अफ्रीकी देशों के साथ वैयक्तिक स्तर पर शामिल रहा है। उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास में सभी नागरिकों को लाभान्वित करने की विशेषताएं हैं और भारत जिम्बाब्वे के विकास में सबसे महत्वपूर्ण साझेदारों में से एक है। उन्होंने कहा कि भारत और जिम्बाब्वे के बीच राजनीतिक,आर्थिक और सामाजिक सहयोग परस्पर लाभकारी हैं। दोनो देशों के बीच शैक्षणिक और छात्र आदान-प्रदान के माध्यम से, विशेष रूप से भारतीय छात्रों को अफ्रीका में भेजकर और मजबूत किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि उनका संस्थान सीपीआईएभारत और ज़िम्बाब्वे के बीच बेहतर समझ और संबंधों में योगदान देने वाली गतिविधियों के प्रचार और समर्थन की दिशा में काम करने के लिए आईसीडब्ल्यूए के साथ साझेदारी को अहमियत देता है।
विचार-विमर्श
आईएएफएसकी आवधिकता और संरचना सत्र में चर्चा के प्रमुख बिंदु बन गए। यहां बंजुल फार्मूले की मौजूदा प्रथा या महाद्वीप के सभी देशों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित करने का विचार परिलक्षित हुआ। शिखर सम्मेलन की आवधिकता के विषय में गहन बहस हुई। जहां, लगातार दो शिखर सम्मेलनों के बीच तीन साल के समय के अंतराल को कम करते हुए भारत-अफ्रीका साझेदारी को गति देने का सुझाव दिया गया वहीं यह भी स्वीकार किया गया कि आवृत्ति में वृद्धि के विचार से प्रत्येक शिखर सम्मेलन में घोषित विकास परियोजनाओं के निष्पादन में समय के हाथ से निकल जाने की अधिक समस्या उत्पन्न हो सकती है।
सत्र II: - भारत और दक्षिणी अफ्रीका लोगो को आपस में जोड़ना
पैनल के सदस्यों ने भारत एवं दक्षिणी अफ्रीका के मध्य सास्कृतिक विनिमयों के साथ-साथ जन विसर्जन के माध्यम से व्यक्ति से व्यक्ति की संपर्कता के प्रोत्साहन को प्रदर्शित करने को एक पुल के रूप में माना है।
श्री सुहास बोरकर ने अच्छे रिश्तों को बनाये रखने में मीडिया की भूमिका पर बल दिया और बताया कि भारत एवं दक्षिण अफ्रीकी देशों के मध्य संपर्कता को पश्चिमी प्रतिमानों के द्वारा नियंत्रित किया जाता था। आईएएफएस प्रक्रिया के अधीन भारत-अफ्रीकी संपादक मंचके गठन के बावजूद भी इंडिया-अफ्रीका काँलेज ऑफ जरनलिज्म एवं मीडिया में तकनीकी गठबंधनों जैसे कुछ कदम उठाये गए थे। उन्होंने भारत एवं दक्षिण अफ्रीकी देशों की मीडिया संपर्कता पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने इस तथ्य पर चुटकी ली कि भारत और दक्षिण अफ्रीकी देशों के बीच मीडिया संपर्क लंदन,पेरिस और न्यूयॉर्क में स्थित केंद्रों पर आधारित था और इसलिए पश्चिमी प्रतिमान द्वारा नियंत्रित किया गया थाऔर इसमें स्थानीय कथाओं का अभाव था। उन्होंने उन्नत समझदारी के लिए अफ्रीकी सूचनाओं को अनिवार्य माना। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत-अफ्रीका संपादक मंच के गठन के बावजूद,भारत-अफ्रीका कॉलेज ऑफ़ जर्नलिज्म,मीडिया में तकनीकी टाई-अप,आदि जैसी कई पहलें अभी भी विफल नहीं हुई थीं और इस क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ वांछित था।
उन्होनेसैटेलाइट नेटवर्कों के माध्यम से संपर्कता के महत्व तथा भारत एवं अफ्रीकी देशों के बीच अधिक पत्रकारों का विनिमय किये जाने पर प्रकाश डाला।
डा. वीना शर्मा ने दक्षिण अफ्रीकी देशों के प्रवासियों पर भारतीय दृष्टिकोण पर बात-चीत की। उन्होंने उद्धृत किया कि सिरिल रोमनिक, जिन्हें वे इस क्षेत्र में एक विवादास्पद व मूल विचारक के तौर पर उल्लिखित करती है, यह कहते हुए कि विधिपूर्वक अण्डाकार पत्थर के बनाए गए स्मारक जिम्बाब्वे में चारों ओर फैल गये तथा दक्षिण अफ्रीका के भाग शिव लिंगोंहैं जिनका निर्माण क्षेत्र में चारों ओर व्याप्त भारतीय आबादी ने किया है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि अफ्रीका के अन्य भागों के प्रवासी समुदायों के विपरीत दक्षिणी (एवं पूर्वी) अफ्रीकी क्षेत्र में भारतीयों नें अफ्रीकियों के साथ उपनिवेशकों के विरूद्ध संघर्षों में भागीदारी की और बहुत से उदाहरणों में संघर्षों को रणनीतिक बनाने में मदद की। उन्होंने कहा कि प्रवासियों की दोहरी चेतना और उनके प्रति आधिकारिक भारतीय रवैये का विकास महत्वाकांक्षा से दोहरी नागरिकता की नीतियों के माध्यम से आत्मविश्वास की पहचान में बदल गया। उन्होंने यह भी शामिल किया कि उन्हें पीआईओ कार्ड प्रदान करना उन्हें अपने मूल देश में एक प्रकार का हित प्रदान करता है।
डॉ. नंदिनी सी. सेनने भी डरबन का विशेषतौर पर विश्लेषण करते हुए दक्षिण अफ्रीका में भारतीय प्रवासियों पर भी बात की। अपने भाषण मेंउसने अपने समकालीन आधुनिक ‘अवतार’ तक पहुँचने से पहले अप्रवासी द्वारा सामना किए गए कबीले/जाति/लिंग पूर्वाग्रहों के विषय में बताने की मंशा जाहिर की। उन्होंने समकालीन बॉलीवुड द्वारा स्थानीय लोगों के साथ त्वरित संपर्क स्थापित करने में निभाई गई भूमिका को भी रेखांकित किया कि क्योंकि डरबन में भारतीय प्रवासियों के के लिए सितारे एक रोल मॉडल के रूप में उभर कर सामने आये। उन्होंने कहा कि अपनी मातृभूमि से जुड़ने के अलावा वहां पर बड़ी मात्रा में अतीत का उदासीन मनोरंजन मौजूद है। उन्होने उल्लेख किया कि समकालीन अप्रवासी व्यक्ति के लिए यह माना जाता है कि वह अपनी मातृभूमि से बॉलीवुड फिल्मों के माध्यम से ही जुड़ा हुआ महसूस करता है।
डॉ. ए. एस. यारूंइगम ने उल्लेख किया कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में कोमल शक्ति कूटनीति सबसे महत्वपूर्ण प्रभावी कूटनीति के रूप में सामने आयी है। उन्होंने अपने भाषण में यह भी शामिल किया कि यह अपने मानवतावाद के तत्व के कारण लोगों के मन और विचारों को जोड़ता है। उन्होंने संस्कृति के इस कूटनीति के एक घटक होने पर जोर दिया। उन्होंने भारत के दक्षिण अफ्रीका एवं विशाल अफ्रीकी क्षेत्र के साथ अप्रवासी संपर्क के संदर्भ में सास्कृतिक कूटनीति को प्रदर्शित किया। उन्होंने बताया कि भारतीय मूल के कई लोग दक्षिण अफ्रीका में भारतीय परंपराओं और संस्कृति में घुल चुके थे। उनका विश्वास है कि भारत और दक्षिणी अफ्रीका को दक्षिणी अफ्रीका के पीओआई की इस ‘संघर्षी’ संस्कृति के पहलू को अपने व्यापार और वाणिज्य को संवर्धित करने के लिए एक आर्थिक संपत्ति में परिवर्तित करना चाहिए।
सुश्री. जयन्थी रामास्वामी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय अप्रवासी की भूमिका के विषय में बताया। उन्होंने अप्रवास को मातृभूमि एवं मेजबान देश के बीच संबंध निर्माण के लिए एक बांध के रूप में बताया। अपने भाषण में, दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों के प्राथमिक मुद्दों एवं हितों को उन्हें भारत-दक्षिण अफ्रीका के संयुक्त संबंधों में अपने क्षेत्र के विशिष्ट लक्ष्यों के परिप्रेक्ष्य से रखते हुए उनकी समीक्षा की। उन्होंने उल्लेख किया कि दक्षिण अफ्रीकी भारतीय समुदाय एक जीवंत और आत्मविश्वासी अप्रवास के तौर पर उभर चुका है और इसने भारत को एक गौरवशाली अस्तित्व प्रदान किया है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इसने दोनों देशों के मध्य उनके आपसी हितकारी द्विपक्षीय संबंधों को पोषित करते हुए एक मजबूत बांध के रूप में कार्य किया है।
चर्चा
अफ्रीका से संबंधित स्वदेशी और गैर-पश्चिमी मीडिया रिपोर्टिंग ने प्रतिभागियों से बहुत रुचि और प्रशंसा प्राप्त की। आलोचना विशेषरूप से भारतीय समाचार पत्रों की हुई जिन्होंने अफ्रीकी मामलों पर भारती पाठकों के लिए समाचारों के प्रसार के लिए बजाय अफ्रीकी एजेन्सियों से सूचना और विचार प्राप्त करने के इसके लिए उन्होंने पश्चिमी मीडिया रिपोर्ट स्रोतों का सहारा लिया। इस संदर्भ में पश्चिमी मीडिया द्वारा जिम्बाब्वे की भूमि-सुधार के प्रस्तुतीकरण तथा इस मुद्दे पर स्थानीय दृष्टिकोण के बीच के अंतर ने चर्चा के दौरान काफी ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।
सत्र III: - भारत और दक्षिणी अफ्रीकाः आर्थिक विकास
पैनल के सदस्यों ने व्यापार, निवेश एवं विकास सहभागिता पर केंद्रित करते हुए भारत-दक्षिण अफ्रीका आर्थिक संबंधों की समीक्षा की। उन्होंने संसाधन सुरक्षा में साझेदारी संभावनाओं को भी परीक्षित किया।
प्रो. डी.के. मदान ने, पिछले कुछ वर्षों में भारत-दक्षिण अफ्रीका व्यापार संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने विशेष रूप से उच्च मूल्य वस्तुओं पर दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार के संवर्धन का पता लगाया।उनका मत है कि दोनो देशों के मध्य उच्च स्तर की आर्थिक एवं व्यापार भागीदारी निस्संदेहात्मक रूप से एक-दूसरे के साथ अधिक सद्भावपूर्ण संबंधों तक ले जाएंगे। उन्होंने उल्लेख किया कि यहां पर भारत के पास सेलुलर नेटवर्क के लिए टेलीफोन,औषधियों,ऑटोमोबाइल्स,हाइवे से बाहर के लिए डिजाइन किए गए डंप ट्रकों,चावल,अर्ध-मिल्ड या पूर्ण मिल्ड,व्हीलर ट्रैक्टर,डायमंड,आदि के निर्यात के लिए उच्च क्षमता मौजूद है। इसी प्रकार उन्होनें यह भी सूचित किया कि दक्षिण अफ्रीका के लिए निर्यात के लिए उच्च क्षमता में सोना, हीरे, कॉपर अयस्कों और स्क्रैप,हॉट रोल आयरन/स्टील कॉइल,पॉलीप्रोपाइलीन; मैंगनीज अयस्कों,लौह अयस्कों,एल्यूमीनियम,सेब शामिल हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि भारत और दक्षिण अफ्रीका नैसर्गिक व्यापार साझेदार हैं। उन्होंने, हालांकि यह भी शामिल किया कि दोनों के ही पास हिंद महासागर में सामान्य के साथ-ही-साथ प्रतिस्पर्धात्मक हित मौजूद हैं जो कि मुख्यरूप से उनके आकार व वैश्विक शक्तियां बनने की क्षमता के कारण उत्पन्न हुई हैं।
प्रो. मोहम्मद गुलरेज ने दक्षिण अफ्रीका में भूमि-सुधार की संभावनाओं व रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने सुझाव दिया कि सभी भूमि सुधारों और संबंधित समस्याओं को देश की व्यापक राजनीतिक,आर्थिक और सामाजिक दायरे में समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक काल के दौरान भूमि फैलाव और प्रवासी श्रम प्रणालियों को प्रारंभ किये जाने और रंगभेद शासन के तहत इसे परिष्कृत किये जाने के कारण, दक्षिण अफ्रीका में ग्रामीण निर्धनता मौजूद है। उन्होंने कृषि संबंधी चुनौतियों की जांच की और दक्षिण अफ्रीका में भूमि सुधारों और सतत विकास के संबंध में वर्तमान कृषि प्रथाओं को अपनाने की समीक्षा की। उन्होंने भारत में अपनाई गई स्थिरता में सुधार के लिए सिद्धांतों और प्रथाओं जैसे कि भूमि सीमांकन विनियम और भूदानकी प्रासंगिकता का आकलन दक्षिण अफ्रीकी संदर्भ में करने की कोशिश की।
डा. सुरेश कुमार ने एसएडीसी के आर्थिक उद्देश्यों जैसे कि बाजार समेकन, सूक्ष्म-आर्थिक सुविधा, पूंजी एवं वित्तीय बाजारों को मजबूत करना, गहन मौद्रिक सहयोग प्राप्त करना, निवेश के स्तरों में वृद्धि तथा क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता को चिन्हित किया। उन्होंने उल्लेख किया कि आर्थिक उन्नति और विकास के समर्थन में क्षेत्रीय एकीकरण के लिए एसएडीसी ने नीतियों और रणनीतियों का निर्माण किया है। उन्होंने एसएडीसी क्षेत्र में भारत की साझेदारी के माध्यम से आर्थिक विकास की संभावनाओं पर एक अवलोकन प्रस्तुत किया। उन्होंने भारत और एसएडीसीदेशों के बीच विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में पूरकता के बडे सौदे की संभावना की ओर इशारा किया। उन्होंने प्रत्येक एसएडीसीसदस्य देश में संभावनाओं पर एक वृहद चित्र प्रस्तुत किया। क्षेत्र में अधिमान्य व्यापार समझौते से मुक्त व्यापार समझौते में परिवर्तन के विषय पर विशेष ध्यान देते हुए उन्होंने एसएडीसीकी आर्थिक चुनौतियों के विषय में बात की।
डॉ. संदीपनी दास ने भारत-दक्षिणी अफ्रीका निकाय-संसाधन उत्पादन सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया। उसके प्रस्तुतीकरण का विवादास्पद मुद्दा उन दक्षिण अफ्रीकी देशों जिन्होंने स्वंय को विश्व के बदलते निष्कर्षित संसाधन भूगोल में स्थानांतरित किया व पिछले कुछ वर्षों में भारत का प्रमुख संसाधन खोजी अभिनेता के तौर पर उभरकर सामने आना रहा। यह भारत के लिए दक्षिणी अफ्रीकी देशों के साथ अपने व्यापार और निवेश संबंधों को,पिछले कुछ वर्षों में अपने निष्कर्षण संसाधन क्षेत्रों में ‘आयात’ और ‘इक्विटी’ परिसंपत्तियों के अधिग्रहण के साथ बढ़ाने के लिए एक क्षेत्र का निर्माण करता है।उन्होंने भू-राजनीतिक,भू-आर्थिक और भू-तकनीकी स्तरों पर भारत-दक्षिणी अफ्रीका के निष्कर्षी संसाधन उत्पादन संबंधों में समरूपता के लिए एक संचयी प्रवृत्ति का विश्लेषण किया।
चर्चा
भारत-दक्षिण अफ्रीकी आर्थिक अफ्रीका साझेदारी से संबंधित चर्चा सत्र के दौरान कुछ तत्संबंधी बिंदुओं को उजागर किया गया था। इस बात पर चर्चा की गई कि साझेदारी के दृष्टिकोण से किस प्रकार दक्षिण अफ्रीका को देखा जाना चाहिए। इस संदर्भ में तीन संभावित विकल्पों जैसे कि एसएडीसी अथवा दक्षिण अफ्रीका अथवा द्विपक्षीय आधार पर का उल्लेख किया गया था। इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, जाम्बिया के प्रतिनिधियों ने दक्षिण अफ्रीकी क्षेत्र को एकअपरिहार्य वास्तविकता जिसे वे, सुझाव देते है कि सभी हितधारको के हितों के लिये चतुराई से बदला जाना है के ऊपर प्रबलता के रूप में स्वीकार किया। नामीबियाई यूरेनियम और अन्य खनन क्षेत्रों में भारत की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता को भी सबके समक्ष प्रस्तुत किया गया।
सत्र IV: भारत दक्षिणी अफ्रीकाः कृषि क्षेत्र में सहयोग
Session IV: - India and Southern Africa: Cooperation in Agriculture Sector
पैनल के सदस्यों ने भारत और दक्षिणी अफ्रीकी देशों के बीच कृषि सहयोग की संभावनाओं का पता लगाने की कोशिश की।
जाम्बिया पर किये गये अपने अध्ययन को विशेष आधार बनाते हुए डा. एलेक्स एम. गोमा ने दक्षिणी अफ्रीका के पास मौजूद गहन कृषि संभावनाओँ की गहन समझ की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि जाम्बिया के कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है। इसे तीन आधारों पर किया जा सकता है;उसी कृषि क्षेत्र में अतिरिक्त संभावनाएं जहां भारत और जाम्बिया के बीच पहले से ही व्यापारिक संबंध मौजूद हैं, दूसरा, भारत को छोड़कर अभी भी अतिरिक्त संभावनाओं वाले जाम्बिया के उस कृषि क्षेत्र की पहचान की जा सकती है जहां अन्य गैर-अफ्रीकी देशों का एकाधिकार था और तीसरा ज़ाम्बिया के कई हिस्सों में मौजूद अप्रयुक्त कृषि भूमि का पता लगाकर उसका दोहन किया जा सकता था।
प्रो. सुचा सिंह गिल ने दक्षिणी अफ्रीका के कृषि विकास के कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की। उन्होंने भूमि सुधारों की धीमी प्रक्रिया,कृषि द्वैतवाद,विस्तार समर्थन की कमी,डेटा बेस की कमी और दक्षिणी अफ्रीकी क्षेत्र में खेती कौशल की कमी के बारे में भी बात की। उन्होंने दक्षिणी अफ्रीका में ग्रामीण जीवन पर भूमि-सुधार के प्रभाव का उल्लेख किया। उन्होंने साथ में यह भी शामिल किया कि दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे तथा नामीबिया से मिले साक्ष्य दर्शाते है कि भूमि-सुधार के हितधारकों में उनके वर्ग, लिंग और कृषि उत्पादनों के प्रकारों से अंतर स्पष्ट किया जाता है। वे बताते है कि किसानों की आजीविका के बीच भूमि के कट्टरपंथी पुनर्वितरण से किसानों की आजीविका प्रभावित हो सकती है लेकिन कृषि उत्पादन विशेषकर बाजारीकृत खाद्य उत्पादनों में गिरावट आ सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि सामूहिक कृषि-क्षेत्रों बनाम छोटे वैयक्तिक कृषि क्षेत्रों के मध्य सामूहिक खेती और ग्रामीण गैरकृषिक्षेत्रीय गतिविधियों का विकल्प मौजूद है।
राजदूत परमजीत सहाय ने राजदूत आर. दयाकर का ‘खाद्य सुरक्षाः दक्षिण अफ्रीका और भारत के लिए साझा समस्याएं – सहयोग के लिए संभावना’ विषय पर दिए गए भाषण को पढ़ा। उन्होंने वैयक्तिक एवं राष्ट्रीय संदर्भ में खाद्य सुरक्षा को प्रस्तुत किया। उन्होंने इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में भारत और दक्षिणी अफ्रीका के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करने के कई सुझाव प्रस्तुत किए। उन्होंने दक्षिणी अफ्रीकी कृषि क्षेत्र में भारतीय निवेश को दोनो के लिए फायदेमंद के रूप में वर्णित किया। हालांकि, उन्होंने यह कहते हुए थोड़ी सावधानी बरती कि उत्पादन की मार्केटिंग करते समय स्थानीय माँग को भारत पर पूर्वता बरतनी चाहिए।उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भूमि का आधुनिकीकरण नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत के दक्षिणी अफ्रीकी देशों में कॉरपोरेट घरानों के बजाय किसानों की सहकारी समितियों के स्थानांतरण को प्रोत्साहित करके इसका समाधान किया जा सकता है।
चर्चा
चीन कारक के साथ ही साथ दक्षिणी अफ्रीका में निवेश के अवसरों के विश्लेषण नें चर्चा को गंभीर बना दिया। दक्षिणी अफ्रीकी क्षेत्र और विशाल अफ्रीकी महाद्वीप में निवेश के लिए भारत और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा की अनुपस्थिति की पुष्टि की गई थी। हालांकि, यह उजागर हुआ कि दक्षिणी अफ्रीका में कृषि और अन्य आर्थिक क्षेत्रों में चीन की विशाल भागीदारी को साझेदारियों में प्रदर्शित करने संबंधी कई मापदंडों में से एक माना गया।
सत्र V: - भारत और दक्षिणी अफ्रीकाः सूचना स्थानांतरण एवं क्षमता निर्माण
पैनल के सदस्यों ने भारत एवं दक्षिणी अफ्रीका के मध्य ज्ञान और कौशल साझा करने के प्रयासों के माध्यम से मानव क्षमता सहयोग को बढ़ाने के रास्तों पर प्रकाश डाला।
सुश्री डॉली भसीन ने नवाचार, प्रतिस्पर्धात्मकता, सहयोग एवं दक्षिण अफ्रीका और भारत के बीच संबंध बनाने के लिए रणनीतिक पहलों की प्रभावशीलता को संवर्धित करने के लिए आईसीटी ज्ञान अंतरण क्रियाप्रणाली के विषय में बताया। उन्होंने कहा कि भारत और अफ्रीका के बीच अधिक प्रभावी ज्ञान हस्तांतरण के लिए,रणनीतिक स्तरों पर सूचना विनिमय को संभव करने के लिए अधिक मंच तैयार करने की आवश्यकता है। उन्होंने उस क्षेत्र के लिए जहां दक्षिण अफ्रीकी समुदाय और भारतीय व्यवसाय एक व्यवस्थित तरीके से सूचना विनिमय स्थापित करने के लिए काम करते हैं और एक साथ नवाचार करते हैं उसके लिए ‘ज्ञान के लिए एक एकल निरंतरता’ के मंच को विकसित करने का मार्ग बताया। उन्होंने कहा कि संपूर्ण महाद्वीप में सेवा प्रदान करने वाली सेवाओं के सूचना नेटवर्कों से जुड़ने के परिणामस्वरूप इसमें सुधार होगा।
सुश्री शकुंतला राय ने भारत तथा दक्षिणी अफ्रीका में बाल स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर बात की। उन्होंने बताया कि पोषक तत्वों की कमी ने विकास को अवरोधित किया है और सामान्य बीमारियों की संवेदनशीलता को बढ़ाया है। उन्होंने बच्चों में कुपोषण और संक्रमण की जटिलताओं के कारण होने वाली बीमारी और दुर्बलता को कम करने के कई निवारक उपायों को लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत और दक्षिणी अफ्रीका कई पहलुओं पर एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और हैदराबाद के भारतीय वैज्ञानिक कृषि के क्षेत्र में दक्षिणी अफ्रीकी देशों की मदद कर रहे हैं।उसने उल्लेख किया कि आवश्यकतानुरूप बाल स्वास्थ्य समाधान विकसित करने के लिए साझेदारी और सहयोग महत्वपूर्ण जिससे कि दक्षिणी अफ्रीका क्षेत्र के संदर्भ के अनुरूप अच्छा पोषण और मल्टीविटामिन पूरक प्रदान करने में सहायता मिले। उन्होंने बताया कि बच्चों और युवा वयस्कों के लिए पहले से ही कुछ दक्षिण अफ्रीकी पेटेंट फार्मूले मौजूद हैं, जिन्हें भविष्य की पीड़ियों के स्वास्थ्य और विकास के आधार के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
राजदूत परमजीत सहाय ने भारत-जाम्बिया संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हुए जाम्बिया, बोत्सवाना, मालावी और लेसोथो के साथ भारत के संबंधों की वर्तमान स्थिति के विषय में बात की। उन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष आंदोलनों जैसे जापू, स्वापो और एएनसी तथा उनके नेताओं के साथ संबंधों के लिए लुसाका का केंद्र के रूप में उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि निवेश परियोजनाओं में भारत की साझेदारी कई बिलियन डॉलरों की एलओसी के साथ स्थायी रूप से बढ़ी है। उन्होंने कहा कि अफ्रीका के हित के उत्पादों पर शुल्क मुक्त पहुंच ने व्यापार को एक सहारा दिया है। हालांकि,वे यह कहकर आगे बढ़े कि लापता क्षेत्र में जागरूकता और मीडिया में दृश्यता का अभाव है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत-अफ्रीका वालंटियर्स कोर अभी जमीनी स्तर पर प्रारंभ नही हो पाया है। उन्होंने कहा कि भारत पुनरूत्थानशील अफ्रीका के साथ मजबूत विकास साझेदारी के मार्ग पर अच्छी तरह से स्थापित है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में नये विश्वास को मात्र शामिल करने की आवश्यकता है।
प्रो. सुरिंदर शुक्ला ने भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच अकादमिक संपर्कों के प्रोत्साहन पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने शैक्षणिक आदान-प्रदान,छात्र विनिमय कार्यक्रमों और अनुसंधान केंद्रों की स्थापना में सहयोग के व्यापक संदर्भों सहित इस प्रकार के संबंधों के महत्व को रेखांकित किया।उन्होंने बताया कि भारत-दक्षिण अफ्रीका अकादमिक संपर्कों का अनुगमन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (आईजीएनओयू), दिल्ली विश्वविद्यालय, मद्रास विश्वविद्यालय, बिरला तकनीकी एवं विज्ञान संस्थान (बीआईटीएस) पिलानी सहित भारतीय संस्थानों द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सेवा अर्थव्यवस्था तैयार करने के लिए भी छात्रवृत्ति को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एक छोटे अभिजात वर्ग के शिक्षाविदों को प्रभावित करने वाले शैक्षणिक आदान-प्रदानों को कौशल विकास के प्रसार के द्वारा बढ़ाया और समर्थित किया जाना चाहिए।
चर्चा
दक्षिणी अफ्रीकी देशों और कई क्षेत्रों में व्यापक अफ्रीकी महाद्वीप के साथ भारत केबढ़ते क्षमता निर्माण सहयोग की चर्चा के दौरान सराहना की गई। प्रतिभागियों ने इन ज्ञान और कौशल साझा करने की पहल के कार्यान्वयन के क्षेत्र विशिष्ट मूल्यांकन की आवश्यकता पर भी विचार किया। आईसीटी और कृषि व्यवसाय के बीच तालमेल को बढ़ावा देने पर क्षमता निर्माण पर अधिक विस्तार से चर्चा की गई।
समापन सत्र
समापन सत्र का केंद्र भारत एवं दक्षिणी अफ्रीका के बीच भावी साझेदारी के लिए रोड मैप तैयार करने पर था। पैनल के पांच सदस्यों डॉ. सुचा सिंह गिल, प्रो. मोहम्मद गुलरेज, प्रो. एल.टी. कापांगू, राजदूत शम्मा जैन और राजदूत परमजीत सहाय मे अपने प्रारंभिक व्यक्तव्य प्रस्तुत किए।
पैनल के सदस्यों ने इक्कीसवीं सदी में भारत और दक्षिणी अफ्रीका के देशों के बीच तालमेल निर्माण के लिए समग्र चुनौतियों और संभावनाओं को अभिव्यक्त किया। सभी प्रतिभागियों को अपनी टिप्पणी व सुझाव प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया था। सबसे पहला विषय तत्काल शैक्षिक अनुसंधान के लिए आपसी और प्रासंगिक क्षेत्रों की पहचान करना था।
अनुसंधान और सहयोग के लिए प्राथमिकता के स्तर पर कृषि तथा अन्य गतिविधियों, जिसमें खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा और सूचना-साझाकरण को शामिल किया गया था। इसके साथ ही, प्रवासी, संस्कृति, मूर्त और अमूर्त लाभ, लघु और मध्यम उद्योगों,मीडिया और नागरिक समाज जैसे अन्य क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए विचार किया गया। साझेदारी के संबंध में अखिल-अफ्रीकी क्षेत्रों और द्विपक्षीय स्तरों पर ध्यान देने की आवश्यकता पर फिर से जोर दिया गया।
भारत और अफ्रीका संबंधों को और अधिक मजबूती प्रदान करने वाले व्यावहारिक विचारों और क्रियात्मक नीति के सुझावों को तैयार कर सकने वालीतीव्र और गहन अनुसंधान गतिविधियों को प्रारंभ करने पर सबके मध्य सहमति बन गई थी। इस उद्देश्य के लिए तैयार की गई विषय-वस्तु में आईएएफएस प्रक्रिया, इंडिया-एसएडीसी संबंध, कृषि क्षेत्र का एक संपर्क केंद्र के रूप में उभरना, भारत-दक्षिणी अफ्रीका आर्थिक संबंधों के लिए निर्देश, अखिल-अफ्रीकी ई-नेटवर्क, मानव संसाधन विकास के माध्यम से संबंध को मजबूती प्रदान करना, भारत और दक्षिणी अफ्रीका को जोड़ने में एलओसी की भूमिका, जागरूकता में मीडिया का एक हिस्सेदार होना, भारतीय और अफ्रीकी साहित्य के माध्यम से समझदारी को प्रोत्साहित करना, सांस्कृतिक-वाणिज्यिक संबंध का महत्वपूर्ण मूल्यांकन, अप्रवास का दक्षिणी अफ्रीका में एक बांध के रूप में उपस्थिति तथा पुराने व नये अप्रवासियों का सानिध्य शामिल है।
सम्मेलन में निम्नलिखित संस्तुतियां एवं सुझाव दिए गएः
यह रिपोर्ट डॉ. संदीपनी दास, अध्येता, अंतर्राष्ट्रीय मामलों की भारतीय परिषद द्वारा तैयार की गई है।
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