नेपाल की पूर्व प्रधानमंत्री
महामहिमपुष्प कमल दहल 'प्रचंड'
द्वारा
"भारत-नेपाल संबंध: आगामी दशक का दृष्टिीकोण"
पर
तीसरा सप्रू हाउस व्याख्यान
पर इवेंट रिपोर्ट
सप्रू हाउस, नई दिल्ली
29 अप्रैल 2013
विश्व मामलों की भारतीय परिषद ने 29 अप्रैल 2013 को नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री श्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' द्वारा तीसरे सप्रू हाउस व्याख्यान का आयोजन किया, जिसका शीर्षक था "भारत-नेपाल संबंध: अगामीदशक का दृष्टिकोण"। पूर्व विदेश सचिव, राजदूत श्याम सरन ने व्याख्यान की अध्यक्षता की। इसमें अनेक राजनयिक राजदूत, अकादमिक समुदाय, मीडिया और विश्वविद्यालय के छात्रों ने भाग लिया।
आईसीडब्ल्यूए के महानिदेशक राजदूत राजीव के भाटिया ने वक्ता और अध्यक्ष का परिचय दिया और सभी का औपचारिक स्वागत किया। अपने उद्घाटन भाषण में राजदूत भाटिया ने भारत की विदेश नीति में नेपाल के महत्व पर प्रकाश डाला और विदेश नीति के अध्ययन में आईसीडब्ल्यूए के 'कोर ग्रुप ऑन नेपाल' द्वारा किए गए मौलिक योगदान का उल्लेख किया।
भारत, चीन और नेपाल के बीच त्रिपक्षीय सहयोग के अपने दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए श्री प्रचंड ने कहा कि नेपाल का आर्थिक विकास भारत और चीन के व्यापक हितों में है । उन्होंने दलील दी कि त्रिपक्षीय सहयोग न तो भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंधों को कमजोर करेगा और न ही प्रतिस्थापित करेगा; इसके बजाय यह नेपाल को गरीबी उन्मूलन और अपने पिछड़े क्षेत्रों को विकसित करने में मदद करेगा । इसके अलावा, भारत और नेपाल के बीच बेहतर राजनीतिक और आर्थिक सहयोग से क्षेत्र में शांति और स्थिरता में योगदान मिलेगा। नेपाल के विकास में भारत की आर्थिक मदद को स्वीकार करते हुए श्री प्रचंड ने बुनियादी ढांचे, पनबिजली, विनिर्माण उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि विकास और पर्यटन संवर्धन जैसेकि बुद्धसर्किट जैसी पहलके अनेक क्षेत्रों में निवेश की मांग की।
श्री प्रचंड ने श्रोताओं को बताया कि उनकेपार्टी अधिवेशन में यूसीपीएन (एम) ने अपनी विचारधारा में तीन मूलभूत परिवर्तनको प्रभावित किया था, अर्थात् 'शांतिपूर्ण बहुदलीय लोकतंत्र', 'आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित' और 'प्रगतिशील राष्ट्रवाद' जो भारतके साथ घनिष्ट संबंध आश्वस्त करता है। उन्होंने पार्टी के इस निर्णयको 'टर्निंग प्वाइंट' करार दिया और आशा व्यक्त कि इससे भारत-नेपाल संबंधों के लिए 'नया आधार' सृजित होगा।
श्री प्रचंड ने सात दलीय गठबंधन (एसपीए) और माओवादियों के बीच दिल्ली (2005) में हुई 12 सूत्री समझौतेमें भारत के योगदान का स्मरण किया और ऐतिहासिक व्यापक शांति समझौते (2006) में भी नेपाल में शांतिपूर्ण सुलह और समावेशी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से राजनीतिक स्थिरीकरण का कारण बना। भारत की सुरक्षा चिंताओं को समझते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नेपाल ने अपनी धरती से अपने पड़ोसी मित्र के विरूद्धकिसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं देने की दृढ़ नीति अपनाई है। श्री प्रचंड ने इस बात पर जोर दिया कि उनकी पार्टी का अतिवादी गुटों से वैचारिक मतभेद है।
श्री प्रचंड ने नेपाल को भारत और चीन के समर्थन से चिह्नित इस क्षेत्र में अधिक एकीकरण के पूर्वानुमान के साथ आशावादी होनेपर चर्चा का समापन किया। उन्होंने आगे कहा कि उनकी पार्टी यूसीपीएन (एम) शांतिपूर्ण लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्ध है और नेपाल कोएक स्थिर और समृद्ध बनानेके लिए सक्रिय आर्थिक और राजनीतिक समर्थन के लिए भारत की ओर देख रही है ।
चर्चा के दौरान अलग-अलग पहलुओं से संबंधित अनेक प्रश्न पूछे गए। भारत-नेपाल संबंधों, आर्थिक सहयोग, नेपाल की संविधान सभा और नेपाल में संघवाद, चीनीकारक और भावीघटनाक्रमोंसे लेकर अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई। चर्चा अंत:संवादीऔर जानकारीपूर्ण थी। राजदूत श्याम सरन ने अपने अंतिम भाषण में कहा कि भारत की तरह नेपाल भी बहुजातीय और बहुधार्मिक समाज है और राजशाही से लोकतंत्र में राजनीतिक परिवर्तनके बाद यह देखना होगा कि नेपाल का नूतन राष्ट्र किस आकार का होगा।
रिपोर्ट: डॉ स्मिता तिवारी, अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद