“उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत:
राजनैतिक,रणनीतिक और आर्थिक गतिशीलता”
पर
आईसीडब्लूए-एसआईएस संवाद
पर
राजदूत राजीव के. भाटिया
महानिदेशक आईसीडब्लूए
द्वारा
उद्घाटन वक्तव्य
सप्रु हाउस, नई दिल्ली
10.11.2014
देवियों और सज्जनों
- पिछले वर्ष की गयी पहल के दूसरे चरण के अवसर पर आपका स्वागत करते हुए मुझे अत्यधिक प्रसन्ता हो रही है । अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन केन्द्र विश्वविख्यात विश्वविद्यालय जेएनयू का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो विदेश नीति और अन्तर्राष्ट्रीय मामलो पर भारतीय विश्व कार्य परिषद के साथ अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों और अध्ययन के क्षेत्र में कार्य कर रहा है । उसने शैक्षणिक और नीतिगत मामलो पर वार्षिक सम्मेलन आयोजित करने के प्रयोजनार्थ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे । यह अपने आप में एक अभिनव प्रयास था जो दोनों संस्थानों के इतिहास में बेहतर भविष्य का मार्ग प्रशस्तकरेगा । वर्ष 2013 में आईसीडब्लूए-एसआईएस संवाद पर परिचर्चा की गयी जिसका शीर्षक भारत की विदेश नीति: राजनयिक सफलताएँ और महत्वपूर्ण अन्तराल था । इस अवसर पर भारी संख्या में पदाधिकारियों ने भाग लेकर उच्च स्तरीय परिचर्चा की । इस वर्ष उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत: राजनैतिक, रणनीतिक और आर्थिक गतिशीलता पर आईसीडब्लूए और जेएनयू अन्यर्राष्ट्रीय अध्ययन स्कूल (एसआईएस) द्वारा संयुक्त रुप से दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया है । इस अवसर पर श्रेष्ठ राजनयिक और अनुसंधान संस्थान जो विभिन्न संस्थानों से आये थे एक स्थान पर एकत्र हुए ।मुझे विश्वास है कि यह स्थान बोद्धिक चिंतन और परिचर्चा का केन्द्र होगा जिससे दोनों दुनियाओं के लिये बेहतरी का मार्ग प्रशस्त होगा ।
- अब मैं इस सम्मेलन के और अधिक सारगर्भित भाग की ओर आपका ध्यान आकृषित करना चाहूंगा । 11-12 नवम्बर 2014 के दौरान एक दो दिवसीय सम्मेलन होगा जिसमें सेवानिवृत राजनयिक, शिक्षाविद और विद्वान भाग लेगें । ये लोग जेएनयू,एनआईएस,टीईआरई, मनीपाल विश्वविद्यालय, आईसीडब्लूए और आईडीएसए से आयेंगे । इस अवसर पर यह लोग उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत की भूमिका के महत्वपूर्ण अंशो पर बात करेगें । मुझे विश्वस है कि पिछले 6 दशकों से नीतिगतमामलों की सुचारू रूप से छान बीन होगी और इस मामले में पड़ोसियों, एवं बड़ी शक्तियों के साथ भारत के सम्बन्धों के बारे में महत्वपूर्ण सुझाव प्राप्त होगें । इस अनुक्रम में इसकी बहुपक्षीय संस्थानों में निभाये जाने वाले भूमिका और नई वैश्विक व्यवस्था में उसकी स्थिति पर भी परिचर्चा होगी ।
- देवीयों और सज्जनों, नई उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था पर गहन रुप से परिचर्चा किये जाने की आवश्यकता है । इससे हमे नए आयाम और विकल्पों का पता चलेगा । इस प्रक्रिया का प्रारम्भ ऐशियाई मोद्रिक कोष के प्रारम्भ, संयुक्त राष्ट्र संघ के विस्तारण और ब्रिक्स से सम्बन्धित वृद्धिशील विकास क्रम के जरिये हो चुका है । वर्तमान संदर्भ में विकास क्रमिक वैश्विक व्यवस्था से नई उभरती हुई शक्तियों और पाश्चात्य शक्तियों के वर्चस्व सम्बन्धी आकाक्षाओं के बीच होने वाला संघर्ष स्पष्ट रुप से परिलक्षिप्त है । आर्थिक उपलब्धियों की दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर उन्मुख होने के कारण यह परिचर्चा और अधिक वांछित हो गयी है । इसके अलावा एक ध्रुवीय वैश्विक अवधारणा समाप्त हो रही है, जबकि बहुध्रुवीय व्यवस्था सामने उभर कर सामने आ रही है । भारत के लिये बहुध्रुवीय गतिशीलता एक ध्रुवीय व्यवस्था की अपेक्षा कहीं अधिक सुसाध्य होगी । इस बहुध्रुवीय गतीशीलता से गठबन्धन बनाने के साथ साथ संधारणीय भौगोलिक राजनैतिक संतुलन स्थापित करने के प्रयोजनार्थ एक प्राकृतिक उर्जा का सृजन हुआ है । तथापि इस संक्रमणीय चरण में नई वैश्विक व्यवस्था बहुत स्पष्ट नहीं है । इसके बावजूद शक्ति पर आधारित शून्य-अंकीय क्रीड़ा भी कोई विकल्प नहीं मानी जा सकती । इस तर्क को इस तथ्य के आधार पर प्रस्तुत किया जा सकता है कि सन-1990 तक महत्वपूर्ण कारक के रुप में नदारद गैर पारम्परिक सुरक्षा जोखिम अत्यधिक शक्तिशाली कारक बन गये हैं जिनसे सभी राष्ट्रो के साथ अन्तर्राज्य सम्बन्ध भी प्रभावित हो रहे है ।
- वैश्विक मामलो में गैर पारम्पारिक सुरक्षा जोखिम (एनटीएस) यथा जल , उर्जा , आतंकवाद , समुद्री डकैती , अन्तराष्ट्रीय अपराध , महामारियां , खाद्य सुरक्षा आदि ने बड़ी शक्तियों को सहयोग करने और सर्व सम्मति बनाने के लिये मजबूर कर दिया । सहयोग करने की यह मजबूरी मलेशिया के एमएच-370 वायुयान के गायब होने सम्बन्धि दुर्भाग्य पूर्ण घटना से परिलक्षित हुई है । इस दुर्घटना के जरिये वैश्विक स्तर पर चिंतन और मनन का एक नया आयाम भी शुरू हुआ और विश्व के राष्ट्रों ने इस वायुयान को ढूंढने और बचाव अभियान शुरू करने का कार्य क्रम शुरू किया । भारत ने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ और डब्ल्यू टीओ जैसे मंचो पर उठाया । इस मामले पर विकसीत और विकास शील देशों के बीच सर्वसम्मति बनाने पर भी परिचर्चा हुई ।
- अब मैं आपसे वैश्विक और भारत के राष्ट्रीय स्तर पर हो रही महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में बात करने की इजाजत चाहूंगा । मैं इस अनुक्रम में पड़ोसियों और बड़ी शक्तियों के साथ भारत के द्विपक्षीय सम्बन्धो और बहुपक्षीय संस्थानों में उसकी सक्रय भूमि पर भी बात करूंगा । भारत की पूर्ववर्ती सरकारों और मौजूदा सरकार के अधीन भारत हमेशा ही यह प्रयास करता रहा है कि उसके पड़ोसियों के साथ बेहतर सम्बन्ध स्थापित हो, जिसके नतीजे में हमारे पड़ोसियों के साथ बेहतर सम्बन्ध हैं । इस सम्बन्ध में हमारे प्रधानमंत्री महोदय ने सार्वजनिक प्रयास किये हैं । सार्क देशों के साथ भारत के सम्बन्ध बहुत सफल और कामयाब रहे हैं । इस महीने के अन्त में आयोजित होने वाला सार्क शिखर सम्मेलन परस्पर सहयोग के नए आयाम खोलेगा । मुझे विश्वास है कि नई सरकार के नेतृत्व में भारत वैश्विक स्तर पर संसार का मार्गदर्शन करेगा कुछ महीनों के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर भारत द्वारा किये गये प्रयासों से यह स्पष्ट हो चुका है । कि विश्व भारत की और अग्रसर हो रहा है । इससे भारत को वैश्वविक मामलो में एक मजबूत स्थिति प्राप्त होगी ।
- बहुपक्षीय संस्थानों के मामले में वैश्विक गतिशीलता के कारण विशेष संस्थान अपनी सदस्यता को विस्तारित करने के लिये बाध्य हुए हैं जबकि इसके साथ साथ नए चयनात्मक संस्थान यथा ब्रिक्स और जी 20 ने अन्तर्राष्ट्रीय मामलो में विशेष संकर्षण प्राप्त किया है । विशेष रुप से संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों के और अधिक मजबूत होने की जरूरत है ताकि एक पक्षीय निर्णयों और आर्थिक पाबंदियों को उदार बनाया जा सके । भारत क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है । जिन संगठनों का भारत सदस्य है वहां पर भी उसकी भूमिका भी सक्रिय है तथापि आम आलोचको का कहना है कि भारत इन संगठनों में निष्क्रिय भूमि का अदा करता है । तथापि इस पृष्ठभूमिं में अपने निहित हितों को नही भूलता । मेरा वैयक्तिक विश्वास है कि भारत किसी भी परिस्थिति में अपनी भूमिका को नियंत्रित एवं संतुलित रखता है । भारत अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है । तथापि भारत अपनी सीमाओं की रक्षा को सर्वाधिक प्राथमिकता देता है ।
- भारत ने विश्व की बडी शक्तियों के साथ निकट मैत्रिक पूर्ण सम्बन्ध बनाये हैं जिसके कारण अब उसे वहां निवेश और रक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त हो रही है । इसके साथ साथ भारत के व्यापार में भी पर्याप्त वृद्धि हुई है । मेरा विचार है कि भारत वैश्विक मंच पर सर्वाधिक स्वीकार्य देश है । वह एक ऐसा देश है जो नए प्रजातान्त्रिक देशो और सत्ताधारियों के लिये एक अभिनव उदहारण बन गया है । भारत के युवा और उनका ज्ञान सर्वत्र स्वीकार्य है और यही वे कारक हैं जो वैश्विक स्तर पर भारत को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं । भारत अन्तर्राष्ट्रीय मामलो में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है । अब समय आ गया है कि भारत उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में और अधिक प्रखर भूमि का अदा करे ।
- अब हम यहां भारत की प्राथमिकताओं का उल्लेख करना चाहेंगे । हमे इसके प्रारम्भिक क्षेत्र में तीन प्रख्यात पैनलिस्ट और एक वैज्ञानिक को आमंत्रित किया है जो अपने सारगर्भित विचारों से श्रोताओ को मार्ग दर्शन प्रदान करेगें । इन अगरणीय व्यक्तियों ने जेएनयू के उप कुलपति प्रोफेसर एसके सपोरी , श्री सीताव राम यचूरी, परिषद के उपाध्यक्ष और राज्य सभा सांसद श्री बीपी सिंह,एक प्रख्यात विचारक एंव सिक्किम के पूर्व राज्यपाल और प्रोफेसर सी राजमोहन शामिल हैं । उदघाटन सत्र के लिये हम इससे बेहतर पैनल नहीं बना सकते थे । ये प्रख्यात हस्तियां और विद्वान इस महत्वपूर्ण विषय पर अपना मंतव्य प्रस्तुत करेंगी ।
- मुझे आशा है कि आईसीडब्ल्यूए –एसआईएस संवाद मंच से सारगर्भित नतीजे निकलने के साथ साथ बेहतरी का मार्ग प्रशस्त होगा । मैं इस बाबत भी सकारात्मक धारणा रखता हूँ कि इन मूल्यवान आदानों के जरिये युवकों, शिक्षाविदों, और राजनयिको की प्राथमिकताओ पर भी प्रकाश पड़ेगा । यह अवसर बुद्धि जीवियों का एक अभिनव संगम है जिससे बात चीत के असंख्य आयाम खुलने के साथ साथ मौजूदा समस्याओ का भी निदान होगा । इन युक्तियों को हम नीतिगत मामलो में शामिल करेगें ।
- मैं इस महत्वपूर्म संवाद को धैर्यपूर्वक सुनने के लिये मैं आपका धन्यवाद करता हूं ।