आईसीडब्ल्यूए (भारत) - आईसीडब्ल्यूए (इंडोनेशिया) विचार-गोष्ठी
में
राजदूत राजीव के. भाटिया महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए
द्वारा
प्रारंभिक वक्तव्य जकार्ता, इंडोनेशिया
21 मई, 2014
भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली और शिष्टमंडल के सदस्यों की ओर से मैं विनम्र निमंत्रण, प्रशंसनीय व्यवस्थाओं और उत्कृष्ट आतिथ्य-सत्कार के लिए इंडोनेशियाई विश्व मामले परिषद (आईसीडब्ल्यूए) के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं। इस शानदार शहर में एक बार पुन: आने के लिए हम अत्यंत प्रसन्न हैं।
- हमारे दो राष्ट्र राजनीतिक मोर्चे पर उथल-पुथल किए जाने की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। जबकि भारत ने विश्व की विशालतम लोकतांत्रिक प्रक्रिया अभी पूर्व ही की है, इंडोनेशिया में राष्ट्रपति के चुनाव अभी हाल ही में समाप्त हुए संसदीय चुनावों के बाद शीघ्र आयोजित होंगे। ये लोकतांत्रिक घटनाक्रम न केवल भारत और इंडोनेशिया के भविष्य का निर्माण करेंगे बल्कि विश्व स्तर पर इन दो देशों की भूमिका को भी दिशा देंगे। भारत और इंडोनेशिया वास्तव में जनसांख्यिकी, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से सर्वाधिक शक्तिशाली एशियाई राष्ट्रों की कतार में शामिल है।
- भारत और इंडोनेशिया को जोड़ने वाला सांस्कृतिक सेतु एक लंबे समय से विद्यमान है। यह विभिन्न स्तरों पर कार्य करता है जिनमें विचार, धर्म, कला, वास्तुकला, संगीत, लोकप्रिय नाटक, साहित्य और साझा इतिहास शामिल है।
- उपनिवेशवाद ने भारत और इंडोनेशिया को क्रमश: ब्रिटिश और डच के अधीन रखा था। भारत के स्वाधीनता संग्राम के उदय, जिसके दौरान भारतीय नेताओं ने दक्षिण-पूर्व एशियाई मामलों में सक्रिय रुचि लेनी आरंभ कर दी थी, ने संपर्कों के नए आयाम खोल दिए। उदाहरण के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 24 अक्तूबर, 1945 को लखनऊ में 'दक्षिण-पूर्व एशिया दिवस' का आयोजन किया और इंडोनेशिया के साथ एकजुटता व्यक्त की। एशियाई संबंध सम्मेलन 1947, इंडोनेशिया पर सम्मेलन 1949 तथा बानडंग सम्मेलन 1955 एशियाई एकजुटता में महत्वपूर्ण मील के पत्थर साबित हुए। इन सभी समारोहों में, भारतीय विश्व मामले परिषद ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
- पंडित जवाहरलाल नेहरू, जो भारत के भावी प्रधानमंत्री थे, ने 24 मार्च, 1947 को दिल्ली में एशियाई संबंध सम्मेलन को संबोधित करते हुए "एशिया की बुद्धिमत्ता और भावना की उस गहन इच्छा का उल्लेख किया जो यूरोप की प्रधानता के दौरान विकसित हुई है।" उन्होंने बल प्रदान किया "हमारा समूचे विश्व में शांति और प्रगति को प्रोत्साहित करने का उत्कृष्ट डिजाइन है।" नेहरू ने यह उल्लेख करते हुए समूचे दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के प्रेक्षकों का स्वागत किया : 'हमारी अनेक सांझी समस्याएं है, विशेष रूप से प्रशांत क्षेत्र और एशिया के दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में, तथा हमें इनका समाधान प्राप्त करने के लिए मिलकर सहयोग करना होगा।" हम यहां उपस्थित रहकर प्रसन्न हैं, हम सद्भावना लेकर आए हैं तथा उन सहयोगपूर्ण संबंधों पर आगे निर्माण करने के लिए प्रतिबद्धता दर्शा रहे हैं जो नेहरू के समय से हमारे दोनों देशों के बीच प्रसन्नतापूर्वक विकसित हुए हैं।
- पिछले दशकों में, विशेष रूप से साठ के दशक के प्रारंभ में भारत द्वारा लुक ईस्ट नीति प्रारंभ करने के बाद से हमारे दोनों देश अनेक रूपांतरणों से गुजरे हैं। विश्व के प्रति और विशेष रूप से एक-दूसरे के प्रति हमारी नीतियों में वैश्विक राजनीति में अनेक प्रमुख परिवर्तन आए हैं। दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र के साथ भारत के व्यापक संबंध इंडोनेशिया को पर्याप्त महत्व प्रदान करते हैं। सांस्कृतिक संपर्क, व्यापार संबंध तथा द्विपक्षीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर अभिसारितापूर्ण हितों ने हमारे पारस्परिक संबंधों के आधार का निर्माण किया है।
- भारत के लिए इंडोनेशिया एक अत्यंत महत्ववूर्ण राष्ट्र है। एक घनिष्ठ पड़ोसी होने के अलावा, इंडोनेशिया एक उभरती हुई उल्लेखनीय शक्ति भी है। अमेरिका की भांति विस्तारित होने वाला यह आपका देश विश्व में चौथा सर्वाधिक सघन जनसंख्या वाला देश है। लगभग एक-तिहाई दक्षिण-पूर्व एशियाई लोग इंडोनेशिया में रहते हैं। भारत की भांति, इंडोनेशिया भी भौगोलिक, नृजातीय, भाषायी और सामाजिक विविधताओं द्वारा निरंतर विकसित हुआ है। एक सबसे महत्वपूर्ण विशेषता जो हमारे दोनों देशों को जोड़ती है, मिनेका तुग्गत एका है जिसे हम भारत में 'अनेकता में एकता' कहते हैं। स्पष्टत: समसामयिक महत्व के अनेक क्षेत्रों में हमारे दृष्टिकोणों में उल्लेखनीय समानताएं दिखाई पड़ती है।
- मुस्लिम राष्ट्रों के समूह में लोकतंत्र के एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में, इंडोनेशिया का दर्जा हाल के वर्षों में बढ़ा है। इस्लामिक कांफ्रेसों के संगठन के भीतर, इंडोनेशिया एक सुदृढ़ हैसियत का प्रतिनिधित्व करता है जो आज के समय में अत्यंत आवश्यक है। प्रादेशिक स्तर पर इंडोनेशिया महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक नेता और संवेदनशील मध्यस्थ की भूमिका का निर्वहन कर रहा है।
- मैं, इस व्यापक संदर्भ में, भारत के विश्व के दृष्टिकोण को संक्षेप में वर्णित कर दूं जो इसकी समकालीन विदेश सुरक्षा नीति में प्रतिबिंबित हुआ है। भारत एक बहुध्रुवीय विश्व के भीतर एक बहु-ध्रुवीय एशिया का पक्षधर है जो शांतिपूर्ण, सहिष्णु और प्रगतिशील है। सुरक्षा और सतत् विकास तथा संवर्धन के बीच पारस्परिक संबंध हमारी विदेश नीति को आगे बढ़ाते हैं। भारत एक साकल्यावादी दृष्टिकोण अपनाता है तथा आसियान, एआरएफ,एडीएमएम प्लस, ईएमए, जी-20, आईओआरए, संयुक्त राष्ट्र तथा अन्य संस्थाओं के माध्यम से कार्य करते हुए द्विपक्षीय मामलों, प्रबुद्ध बहुपक्षवाद और सक्रिय रुचि के साथ उद्देश्यपूर्ण सक्रियवाद का मिश्रण करता है। "राजनीतिक स्वायत्तता" निर्णयों की स्वतंत्रता तथा प्रत्येक मुद्दे को उसकी योग्यता के साथ जांच करने के प्रति हमारी नैसर्गिक ताकत को संचालित और निर्मित करती है। हम मूल्यों और व्यवहारिकता द्वारा उत्प्रेरित होते हैं तथा राष्ट्रों का आकलन केवल आडम्बर के आधार पर करने के स्थान पर उनके कार्यों द्वारा करते हैं। उल्लेखनीय रूप से भारत की शांति तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए प्रतिबद्धता, सतर्कता तथा सभी अन्य परिस्थितियों का सामना करने की हमारी तत्परता को निवारित नहीं करती है। अंत में, हमारे विदेशी संबंध एक ऐसी नीति से प्रबंधित होते हैं जिसमे आर्थिक विकास आयामों को निरंतर ध्यान में रखा जाता है।
- आज हमारा वार्तालाप अनेक उल्लेखनीय विषयों के इर्द-गिर्द रहेगा : अंतर्राष्ट्रीय स्थिति,व्यापक एशिया-प्रशांत अथवा भारत-प्रशांत क्षेत्र के भीतर हमारे और आपके उप-क्षेत्रों में भू-राजनीतिक परिदृश्य, चुनावों के मद्देनजर हमारी विदेश नीतियों की संभावनाएं; आसियान के साथ भारत के संबंधों का आकलन; तथा अंतर्राष्ट्रीय मंच में भारत और इंडोनेशिया की भूमिका की प्रकृति और व्याप्ति, तथा आने वाले दशक में द्विपक्षीय संबंधों में हमारे सामने आने वाली चुनौतियां और अवसर। मैं यह सुझाव दूंगा कि हम विशेष रूप से भारत और इंडोनेशिया को जोड़ने वाली रणनीतिक भागीदारी की सत्यता, संभाव्यता और भावी दिशाओं की समीक्षा पर ध्यान-केन्द्रित करे। हम भाग्यशाली हैं कि हमारे पास एक प्रतिभाशाली शिष्टमंडल है, भले ही वह छोटा है, जो भारत के रणनीतिक समुदाय की समृद्धि और विविधता को प्रतिबिंबित करता है। हमारा शिष्टमंडल विचारों को सुनेगा, प्रतिबिंबित करेगा, बताएगा और साझा करेगा जो मेजबान पक्ष की सोच और विचारों को समझने के लिए अपनी सामूहिक इच्छा द्वारा तथा यह उन मैत्रीपूर्ण संबंधों और भी गहन बनाने में योगदान देगा जो हमारे दोनों राष्ट्रों को एक सूत्र में बांधते हैं।
- एक बार पुन: मैं हमारे मेजबानों को उत्कृष्ट सत्कार दर्शाने के लिए हार्दिक धन्यवाद दूंगा। मैं इस वार्ता की सफलता की कामना करता हूं।
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