सारांश: ट्रंप 2.0 में यूक्रेन के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के समर्थन में बदलाव के बाद, यूक्रेन के लिए यूरोपीय समर्थन के समन्वय हेतु फरवरी 2025 में वाइमर+ की स्थापना की गई थी। यह नज़रिया वाइमर+ की उत्पत्ति और उद्देश्यों को रेखांकित करता है एवं इस गठबंधन की प्रासंगिकता की पड़ताल करता है क्योंकि यूरोप जारी रूस– यूक्रेन युद्ध के बीच सुरक्षा के प्रति अपने दृष्टिकोण को पुनःनिर्धारित कर रहा है।
पोलैंड, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन, यूनाइटेड किंग्डम (यूके) के विदेश मंत्रियों एवं यूरोपीय संघ (ईयू) के विदेश मामलों एवं सुरक्षा नीति के उच्च प्रतिनिधियों ने 12 फरवरी 2025 को रूस– यूक्रेन युद्ध की स्थिति में यूक्रेन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए "वाइमर+" नाम से संयुक्त बयान जारी किया था। ऐसा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई फोन पर हुई आधिकारिक बातचीत, जिसमें उन्होंने रूस– यूक्रेन युद्ध और युद्ध विराम पर चर्चा की थी, के बाद हुआ।[1]
इस आह्वान की वजह से तत्काल अमेरिका– रूस युद्धविराम वार्ता शुरू हुई जिसकी शुरुआत रियाद में मंत्रीस्तरीय वार्ता से हुई। वार्ता में यूरोपीय भागीदारी को विशेष रूप से शामिल नहीं किया गया था।[14] इस पृष्ठभूमि में, यह नज़रिया वाइमर+ गठबंधन की उत्तपत्ति, उद्देश्यों और चुनौतियों की पड़ताल करता है।
पृष्ठभूमि
वाइमर+ यूरोप में सुरक्षा और नीतिगत सहयोग को बेहतर बनाने के लिए बनाया गया गठबंधन है।[2] यह अमेरिका की यूक्रेन नीति की अनिश्चितताओं के उत्तर में अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को मज़बूत करने के यूरोप के प्रयास को दर्शाता है। यह जर्मनी, पोलैंड, फ्रांस, इटली, स्पेन, ब्रिटेन और यूरोपीय आयोग से मिलकर बना एक समन्वय ढांचा है। औपचारिक संस्थागत संस्थानों की बाधाओं के बिना कार्य करते हुए, यह साझा वक्तव्य एवं घोषणाएं तैयार करता है जो जी7(G7), नाटो (NATO) और यूरोपीय संघ (EU) की पहलों के अनुरूप हैं।[7][8]
इन बैठकों में सदस्य देशों के विदेश मंत्री शामिल होते हैं और यूक्रेन भी अक्सर इसमें शामिल होता है। इसका प्रारूप अनुकूलनीय रहता है, जिससे सैन्य सहायता, पुनर्निर्माण प्रयासों और रणनीतिक संचार पर सहयोग को बढ़ावा मिलता है।[8]
वाइमर+ कोई बिल्कुल नया गठबंधन नहीं है बल्कि यह वाइमर ट्रायंगल का ही विस्तार है। वाइमर ट्रायंगल फ्रांस, जर्मनी और पोलैंड का एक गठबंधन है जिसकी स्थापना 28 अगस्त 1991 को यूरोप के भविष्य से संबंधित साझा मौलिक हितों की पहचान करने, सीमा पार सहयोग बढ़ाने और पोलैंड के साम्यवादी शासन से मुक्ति के प्रयासों में सहयोग देने के लिए की गई थी।[3] पोलैंड के एकीकरण को सुविधाजनक बनाने के अपने प्राथमिक उद्देश्य को प्राप्त करने के बाद, गठबंधन बाद में पीछे हट गया और व्यापक यूरोपीय मामलों में अपेक्षाकृत सीमित भूमिका निभाई।[4]
लेकिन लंबे समय से जारी रूस– यूक्रेन युद्ध से पैदा हुए दबावों ने यूरोप के लिए व्यापक और अधिक एकीकृत रणनीतिक समन्वय की आवश्यकता को उजागर किया। इसी के मद्देनज़र 19 नवंबर 2024 को वारसॉ में “वाइमर ट्रायंगल प्लस फॉर्मेट” में बैठक हुई जिसमें जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड, इटली, स्पेन औऱ यूके के विदेश मंत्रियों ने भाग लिया और यूक्रेन के प्रति समर्थन जताया।[6]
ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में अमेरिकी यूक्रेन नीति के पुनर्मूल्यांकन ने यूरोप की एकीकृत रणनीतिक रूपरेखा की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।[5] इस साल की शुरुआत में ट्रम्प के सत्ता में आने से पहले, यूरोपीय नेताओं का मानना था कि समन्वित प्रतिबंध, निरंतर सैन्य मदद और राष्ट्रपति बाइडेन के कार्यकाल में मजबूत ट्रांसअटलांटिक एकता द्वारा समर्थित यूक्रेनी युद्धक्षेत्र लचीलापन रूस को युद्ध की तीव्रता में कमी लाने को विवश करेगा।[5]
हालाँकि फरवरी 2025 में अमेरिका और रूस ने यूरोप को छोड़कर प्रत्यक्ष युद्धविराम वार्ता शुरू की जिसकी शुरुआत 18 फरवरी को रियाद में हुई। उनकी पहली बैठक आंशिक युद्धविराम की शर्तों और काला सागर अनाज गलियारे को फिर से खोलने पर केंद्रित थी। मार्च में, ट्रंप और पुतिन के बीच फिर से उच्च– स्तरीय वार्ता हुई जिसमें पुतिन यूक्रेन की ऊर्जा अवसंरचनाओं पर हमले रोकने पर सहमत हो गए लेकिन पूर्ण युद्धविराम से इनकार कर दिया। इन सभी वार्ताओं के दौरान, यूरोपीय साझेदारों को सीधी बातचीत से बाहर रखा गया।
इस प्रकार, यूरोपीय साझीदार को छोड़कर रूस के साथ द्विपक्षीय वार्ता की ओर ट्रम्प प्रशासन के कदम ने वाइमर गठबंधन के पुनरुत्थान और दूसरे यूरोपीय प्रमुख पक्षों को इसमें शामिल करने का मार्ग प्रशस्त किया है।[10][11] इस गठबंधन का पहला संयुक्त वक्तव्य 12 फरवरी 2025 को पेरिस में आयोजित बैठक में जारी किया गया था। तब से वाइमर+ की दो बैठकें हो चुकी हैं: पहली, 12 मई को लंदन में और दूसरी 12 जून को रोम में।
उद्देश्य
पहले की परिस्थितियों को देखते हुए, वाइमर+ ने स्पष्ट उद्देश्य निर्धारित किए हैं। इस गठबंधन का एक मुख्य उद्देश्य सुरक्षा, रक्षा और विदेश नीति में स्वतंत्र रूप से काम करने की अपनी क्षमता को बेहतर बना कर अमेरिका पर यूरोप की निर्भरता को कम करना है। ऐसा करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यूरोप की नाटो में अमेरिकी सैन्य एवं निवारक क्षमताओं पर ऐतिहासिक निर्भरता रही है। साथ ही यूक्रेन के प्रति अमेरिकी नीति में उपरोक्त बदलावों ने रणनीतिक स्वायत्तता की जरूरत को और बढ़ा दिया है।[12]
इसके साथ ही, वाइमर+ यूरोप के तात्कालिक सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी राजनयिक परिणाम यूरोपीय मानदंडों एवं मूल्यों को बनाए रखे, यूक्रेन– संबंधी वार्ताओं पर अपना प्रभाव बनाए रखने की प्राथमिकता देता है। इस प्रकार की भागीदारी के बिना, यह जोखिम है कि वार्ता के परिणाम, जैसे कि रूस को संभावित क्षेत्रीय रियायतें, पूर्वी यूरोप को अस्थिर कर सकती हैं और संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, लोकतंत्र एवं यूरोप की वैश्विक स्थिति के सिद्धांतों को कमजोर बना सकती हैं। इसके अलावा, गठबंधन यूक्रेन को “जब तक जरूरी हो” निरंतर समर्थन प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक मदद शामिल है।[9][10]
इन उद्देश्यों का आधार यूरोपीय समन्वय को बढ़ाने की व्यापक मंशा है, यह सुनिश्चित करते हुए कि सदस्य देश जिम्मेदारी बांटें और उभरती सुरक्षा चुनौतियों का सामूहिक एवं सुसंगत तरीके से सामना कर सकें। फिर भी, इन महत्वाकांक्षाओं के बावजूद, कुछ महत्वपूर्ण बाधाएं बनी हुई हैं जो वाइमर+ को अपने लक्ष्यों को प्रभावी तरीके से परिणामों में बदलने से रोकती हैं।
चुनौतियां
वाइमर+ को गंभीर चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है जो इसकी प्रभावशीलता को सीमित करती हैं। गठबंधन के औपचारिक संस्थागतकरण के अभाव में, कोई भी नीति कार्यान्वयन या समन्वित रक्षा उत्पादन संभव नहीं हो पाया है। व्यावहारिक कार्यान्वयन यूरोपीय संघ के ढांचों पर निर्भर करता है जो अक्सर नौकरशाही बाधाओं के कारण धीमा पड़ जाता है। इसका मतलब है कि कानूनी अधिकार, स्थायी सचिवालय या अपने बजट के बिना रक्षा पहलों को लागू करने की इसकी क्षमता सीमित रही है।
इसलिए, सभी पहल पूरी तरह से राष्ट्रीय सरकारों की प्रतिबद्धता पर निर्भर करती हैं और इसके सदस्यों के बीच अलग– अलग राष्ट्रीय हितों के कारण आम समहति बन पाना मुश्किल रहा है। उदाहरण के लिए, फ्रांस यूरोपीय संघ की रणनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देता है, पोलैंड अमेरिका के साथ मजबूत संबंधों पर ज़ोर देता है और ब्रिक्सिट के बाद ब्रिटेन यूरोपीय संघ की रक्षा पहल से आंशिक रूप से अलग रहता है।[13]
इसके अलावा, रणनीतिक स्वायत्तता को आगे बढ़ाने के प्रयास नाटो के साथ पूरकता सुनिश्चित करने की जरूरत के कारण जटिल हो जाते हैं क्योंकि सदस्य देश स्वतंत्र यूरोपीय क्षमताओं को प्राप्त करने के प्रयास में ट्रांसअटलांटिक सुरक्षा गारंटियों को कमज़ोर न करने के प्रति सतर्क रहते हैं। कुल मिलाकर, ये कारक यही सुझाव देते हैं कि यद्यपि वाइमर+ राजनयिक संरेखण हेतु मंच प्रदान करता है लेकिन भविष्य में इसका प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि प्रतिबद्धताओं को किस सीमा तक सतत, सहयोगात्मक पहलों में परिवर्तित किया जाता है।
निष्कर्ष
फरवरी 2025 में वाइमर+ की स्थापना रूस– यूक्रेन युद्ध और ट्रम्प 2.0 के तहत बदलती ट्रान्सअटलांटिक गतिशीलता के कारण यूरोप द्वारा अपनी रणनीतिक कमियों की पहचान को दर्शाती है। यद्यपि यह यूरोप के लिए एजेंसी का दावा करने और यूक्रेन के लिए सैन्य, आर्थिक एवं राजनीतिक समर्थन का समन्वय करने हेतु एक मंच के रूप में उभरा है लेकिन इन उद्देश्यों को कार्यान्वित करने की इसकी क्षमता संस्थागत सीमाओं और अलग– अलग राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के कारण बाधित बनी हुई है।
फिर भी वाइमर+ यूरोप की रणनीतिक स्वायत्तता की तलाश में एक महत्वपूर्ण विकास का प्रतिनिधित्व करता है जो भू– राजनीतिक अनिश्चितताओं के अनुकूल हो सकने वाला चुस्त, लचीला प्रारूप तैयार करता है। फिर इसकी प्रासंगिकता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह यूरोप में नीति समन्वय को किस सीमा तक बढ़ावा दे सकता है और क्या यह राजनीतिक घोषणाओं को समन्वित रक्षा उत्पादन, यूक्रेन के लिए निरंतर सहायता और विश्वसनीय निवारक क्षमताओं में परिवर्तित कर सकता है।
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*स्नेहल सिंह, भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली में शोध प्रशिक्षु हैं।
अस्वीकरण : यहां व्यक्त किए गए विचार निजी हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
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