दक्षिण एशिया के क्षेत्र के विकास और उन्नति के मामले में कनेक्टिविटी (जुड़ाव) एक प्रमुख बाधा रही है। यद्यपि अधिकतर देश भारत के साथ सीमा साझा करते हैं, लेकिन क्षमता अनुसार जिस मात्रा में व्यापार होना चाहिए था वह इन देशों के मध्य अन्तर्क्षेत्रीय स्तर पर काफी न्यून है।
भारत दक्षिण एशिया का बड़ा राष्ट्र है और इस क्षेत्र के सभी देशों के साथ सीमा साझा करता है, और दक्षिण एशिया को समृद्ध एवं अधिक स्थिर रखने के लिए उसे अपनी सीमाओं से पड़ौसी देशों के साथ व्यापक स्तर पर जुड़ने की जरुरत है। जब भी कोई भारत के गौरवशाली अतीत की बात करता है, वे सभी एकमत से इस बात पर अवश्य बल देते हैं कि कैसे भारत अपने पड़ोसी देशों/क्षेत्रों से जुड़ा हुआ था। भौगोलिक जुड़ाव भारत और इसके पड़ोसी देशों के मध्य लोगों और सामान की आवाजाही में सुगमता, सस्ता और जल्दी पहुँचने में सहायता प्रदान करेगा। विश्व में दक्षिण एशिया सबसे कम जुड़ा/एकीकृत क्षेत्र है।1 भारत और पकिस्तान में दक्षिण एशिया का ९२ प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद होता है, दक्षिण एशिया की ८५ प्रतिशत जनसँख्या इन्हीं दो देशों में रहती है और ८० प्रतिशत भूभाग भी ये ही दो देश घेरते हैं, फिर भी क्षेत्रीय व्यापार का २० प्रतिशत व्यापार ही इन दोनों देशों के मध्य हो रहा है।2
दो राष्ट्रों भारत और पकिस्तान के परिप्रेक्ष्य में यदि देखें तो इन दोनों के मध्य उपस्थित अविश्वास और संदेह के कारण मधुर सम्बन्ध नहीं बन पाए हैं, जो कि विभाजन के समय से चला आ रहा है। जिसके कारण दोनों के नेतृत्व के मध्य वैमनस्य पैदा हो गया है। यद्यपि दोनों देश समझते हैं कि केवल कनेक्टिविटी/जुड़ाव को मजबूत करने से ही उनके आर्थिक सम्बन्धों को मजबूत किया जा सकता है और पूरे क्षेत्र पर इस पहल का सकारात्मक असर भी पड़ेगा।
ब्रितानी भारत में सम्पूर्ण क्षेत्र में भारत और पकिस्तान के विभाजन से पूर्व काफी सड़क और रेल संपर्क फैला हुआ था. लेकिन विभाजन और १९४७ के युद्ध के बाद ये टूट गया। वर्ष १९७२ में शिमला समझौते के तहत वर्ष १९७६ में दिल्ली से लाहौर तक संपर्क हेतु रेल सेवा को पुनः शुरू किया गया। इसे सप्ताह में दो बार चलाने का प्रावधान था, इस सेवा को दिसम्बर २००१ में भारतीय संसद पर हमला होने के बाद अस्थायी तौर पर बंद कर दिया गया था और जनवरी २००४ में इसे पुनः शुरू किया गया। फरवरी १९९९ में दोनों देशों ने दिल्ली और लाहौर के मध्य एक बस सेवा प्रारंभ की जो कि आंशिक रूप से वर्ष २००१ के हमले के बाद बंद कर दी गई। जारी द्विपक्षीय शांति प्रक्रिया के हिस्से के रूप में दो बस सेवाएं वर्ष २००५ और वर्ष २००६ में जम्मू और कश्मीर के भागों के मध्य शुरू की गयीं, एक श्रीनगर और मुज़फ्फराबाद के मध्य और दूसरी पूंछ और रावलकोट के मध्य। यह सेवा केवल दोनों क्षेत्रों के विभाजित परिवारों के लिए शुरू की गयी। वर्ष २००६ में एक रेल सेवा भारत के राजस्थान प्रांत और पकिस्तान के सिंध प्रांत के मध्य शुरू की गयी और साथ ही सीमा के आर पार दोनों पंजाबों के मध्य बस सेवा शुरू की गयी। अक्टूबर २००७ में दोनों देशों ने १९४७ के बाद से ट्रकों से माल की आवाजाही की अनुमति दी. यद्यपि इस प्रकार की शुरुआत नियंत्रण रेखा (लाईन ऑफ़ कंट्रोल) के महत्व को कम करती है लेकिन भारत ने नियंत्रण रेखा पर एक रक्षात्मक तौर पर तारबंदी को जारी रखा।3
विरोधी मानसिकता, खासतौर से नौकरशाही के मध्य जो कि पकिस्तान की ओर से भी स्पष्ट झलकती है, जहाँ मिश्रित संवाद होने के बावजूद, दोनों देशों के मध्य भौगोलिक संपर्क को उन्नत करने की प्रक्रिया निरंतर धीमी पड़ती रही है। सम्पूर्ण नियंत्रण रेखा पर सीमा पार आतंकवाद की वजह से भारत ने जम्मू, राजौरी, पूंछ और कश्मीर में पड़ोसी देश के साथ भौगोलिक रूप से संपर्क/जोड़ने की प्रक्रिया में एक सतर्कता की नीति का अनुसरण किया। वही लद्दाख में पाकिस्तान ने धीमे चलने की नीति का पालन किया, यह उदासीनता कारगिल स्कार्दू मार्ग के खोलने में साफ़ तौर पर झलकती है, जो कि संभवतया इसके नतीजन उत्तरी क्षेत्र में भय को परिलक्षित करता है।4
सार्क की स्थापना के एक दशक के बाद वर्ष १९९५ में दक्षिण एशियाई वरीयता व्यापार समझौता (साप्टा) नामक एक क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग अस्तित्व में आया। इस समझौते को सदस्य देशों के मध्य आर्थिक सहयोग और पार क्षेत्रीय व्यापार उदारीकरण की दिशा में उच्च स्तर की ओर ले जाने वाला मील का पत्थर माना गया। साप्टा का मुख्य उद्देश्य पार क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करके क्षेत्र के लोगों के लाभ हेतु आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना था।5 क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को आगे सुद्रढ़ करने की दिशा में एक नया समझौता दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौता (साफ्टा) वर्ष २००६ में आधिकारिक रूप से अस्तित्व में आया। साफ्टा के समझौते पर हस्ताक्षर द्वारा दक्षिणी एशियाई देशों में क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के लिए उल्लेखनीय रूचि में वृद्धि हुई। साफ्टा दक्षिणी एशियाई देशों की बहुपक्षीय व्यापार उदारीकरण प्रतिबद्दता के लिए एक समकक्ष पहल बन गया है। यद्यपि साफ्टा की प्रगति से क्षेत्र में कुछ हद तक लाभ दिखे, कुछ मामलों में साफ्टा की उपयोगिता अधिक उदार द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के प्रकाश में हाल ही के वर्षों में बढ़ी है साथ ही साथ वरीयताओं की पहुँच सार्क देशों के मध्य आसानी से वैकल्पिक व्यापारिक व्यवस्थाओं के जरिये प्रदान की जा सकती है।6
तालिका १: सार्क सदस्य देशों का अंतर-क्षेत्रीय व्यापार, १९९०-२०१०
देश |
१९९० |
१९९५ |
२००० |
२००५ |
२०१० |
अफगानिस्तान |
|||||
सार्क के साथ व्यापार में साझेदारी (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
८८.२३५३७८५९ (१४.४) |
६१.३०११६१९५ १(१.०७) |
२२९.७७६३००४ (३०.१) |
१४३९.९६७९१ (४३.६) |
२६१०.५९४२०४ (२९.२) |
विश्व (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
६१०.३६६८९२३ |
५५३.४१०४४७८ |
७६३.०७६५६५५ |
३२९९.८२१०९६ |
८९२२.१४६५८६ |
बांग्लादेश |
|||||
सार्क के साथ व्यापार में साझेदारी (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
३१८.६४८८९३ (५.९) |
१२३५.५४४३१५ (१२.८) |
११५२.४५८२१६ (७.८) |
२३०९.२२२३२९ (१०.३) |
४७९७.७९७५९१ (१०.८) |
विश्व (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
५३२६.५९६२०३ |
९६२५.२४५९७२ |
१४५९०.३५३६७ |
२२३४५.३२४६ |
४४३०९.७९८६६ |
भूटान |
|||||
सार्क के साथ व्यापार में साझेदारी (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
विश्व (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
भारत |
|||||
सार्क के साथ व्यापार में साझेदारी (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
६५६.५००८४७५ (१.५) |
१७६६.२१ (२.७) |
२२९६.६५ (२.४) |
६६२१.५५०९९६ (२.७) |
१३२१७.५८३४१ (२.३) |
विश्व (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
४१८०४.५१४०२ |
६५०२८.२२ |
९२९६३.७ |
२३८१००.१५ |
५७३७०९.१८ |
मालदीव |
|||||
सार्क के साथ व्यापार में साझेदारी (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
२४.०४६ (१२.६) |
५८.३१०८७५११ (१४.३) |
१०३.३९२२४७२ (२२.७) |
१४६.४८५२३४१ (१७.३) |
२०५.२८७९५ (१५.२) |
विश्व (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
१८९.९८५ |
४०६.४६४२११९ |
४६५.१६१६२१८ |
८४३.६२०११६२ |
१३४२.०९२३८२ |
नेपाल |
|||||
सार्क के साथ व्यापार में साझेदारी (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
९४.८००४६०९१ (११.८) |
१६१.९६१८५७ (१४.८) |
८९५.८ (३९.१) |
१७८३.७ (६१.८) |
२६२६.९९६२५८ (५८.९) |
विश्व (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
७९७.९४३११८ |
१०९०.८९३८१ |
२२९१ |
२८८२.६ |
४४५७.०६१६६६ |
पकिस्तान |
|||||
सार्क के साथ व्यापार में साझेदारी (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
३५२.६८७२३३६ (२.७) |
४५६.१९५७८९६ (२.३) |
६९५.६००८२६१ (३.५) |
२५६२.७६०२५६ (६.१) |
५४३२.९०५८९६ (८.३) |
विश्व (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
१२९७०.४६३३८ |
१९४५३.०४४०८ |
१९६०५.३७९६७ |
४१४६८.८७३१९ |
६५१७३.१३२५८ |
श्रीलंका |
|||||
सार्क के साथ व्यापार में साझेदारी (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
२५५.७२६६४२६ (५.६) |
६४७ (७.८) |
८९७.२१५९८ (७.३) |
२६३६.७१००७४ (१७.२) |
३४९३.०५४३४ (१५.६) |
विश्व (अमेरिकी डॉलर मिलियन में) |
४५३१.६९४३१६ |
८२८२ |
१२१४६.७७९५ |
१५२४६.८२९०६ |
२२२९३.७५२८९ |
Source: Bishnu Pant, Sushmita Pradhan and Santosh Gartaula, “Regional Cooperation and Intergration in South Asia: Nepal Perspective”, 15th Annual GDN Conference, Accra, Ghana, June 18-20, 2014
अटारी वाघा सड़क मार्ग को वर्ष २००५ में शुरू करना एक एतिहासिक कदम था। वर्ष २००७ में इसी क्रम में अन्य व्यापार सुगमतायें और स्थापित हुईं; दोनों देशों के ट्रकों को एक दूसरे की धरती पर सामान खाली करने की अनुमति भी दी गयी। भारत के सड़क मार्ग व्यापार संपर्क के मामले में ऐसा नेपाल और बांग्लादेश के साथ भी नहीं हुआ था, विभाजन के बाद यह पहली बार हुआ था। सैद्धांतिक रूप से, भारत नेपाल सीमा पर परिवहन प्रोटोकोल के अनुसार दोनों देशों के ट्रक एक दूसरे देश की भूमि में आ जा सकते हैं। यद्यपि व्यवहारिक रूप से एक देश के ट्रक का सामान दूसरे देश के ट्रक में भरे जाने का काम सीमा पर होता है। यह इसलिए क्योंकि कमजोर सीमा संस्थाएं नीतियों के प्रभावी लागूकरण में बाधाएं पहुँचाती हैं। वही दूसरी तरफ कठोर सीमा प्रबंधन ने, जो कि भारत और पकिस्तान के मध्य है और काफी दशकों तक व्यापार के लिए बंद रहा, परिवर्तन के लिए सक्षम बनाया। संभवतया, दोनों देशों के मध्य व्यापार को समर्थन देने वाला संस्थागत ढांचा इसका विरोध कर रहे हित समूह और लॉबी के समक्ष काफी मजबूत था। इससे आगे व्यापार सुगमता मापकों के लागूकरण की सफलता के लिए जबरदस्त आशायें जगीं।7 दुर्भाग्यवश सड़क परिवहन इसकी क्षमता अनुसार विकसित नहीं हो पाया। केवल १४ वस्तुओं को सड़क मार्ग के जरिये व्यापार की अनुमति मिली। अटारी वाघा मार्ग भारत पकिस्तान के लिए मात्र व्यवस्था वैकल्पिक के तौर पर खुला रहा, यद्यपि भारत ने भारत और पाकिस्तान के मध्य व्यापार के लिए १६ भू-मार्गों को अधिसूचित किया। भू-सीमाओं पर कमजोर आधारभूत ढांचा तत्कालीन समय तक चिंता का विषय रहा है जिसमें माल-गोदाम, पार्किंग, स्केनर, वजन यंत्र, प्रयोगशाला एवं सीमा पर अन्य सुविधाएँ प्रमुख बिंदु थे। आयात, निर्यात, स्वचालित सीढ़ी और यात्रियों की एक गेट से आवाजाही के कारण सीमा पर अत्यधिक संकुलन (भीड-भाड़) होता है। संकुलन होने का एक मुख्य कारण भारत के संवेदनशील भू-सीमा पर सुरक्षा के मुद्दे के कारण ट्रकों की अत्यधिक चेकिंग है, विशेष रूप से पाकिस्तानी सीमा की तरफ। पर्यटकों के लिए वाघा बॉर्डर पर होने वाले अनुष्ठान का समय परिवर्तित करने की जरुरत है क्यों कि इससे सीमा पार व्यापार पर दबाव पड़ता है। एक मुख्य समस्या जिससे माल की निर्बाध आवाजाही बाधित होती है, वह है सीमा पर माल ढ़ोने की प्रक्रिया, ट्रकों की निर्बाध आवाजाही के लिए सड़क परिवहन समझौतों का अभाव है। इससे न केवल समय और लागत लगती है वरन यह क्षति और चोरी को भी बढ़ाता है। ट्रकों के आकार पर निगरानी/प्रतिबन्ध होने के कारण कंटेनर ट्रकों को सीमा पर माल खाली करने में अड़चने आती हैं। इससे सीमा पार सामानों के फलोत्पादक लागत गतिविधि पर एक नियंत्रण लग गया। यद्यपि सुरक्षा के मद्देनजर यह जरुरी भी है किन्तु कुछ उपाय करने की आवश्यकता है। सौभाग्यवश हाल ही के वर्षों में इन समस्याओं के समाधान हेतु बहुत से मापकों की स्थापना की गयी। भारत सरकार ने पहल करते हुए अपनी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर चिन्हित किये गये नाकों पर १३ एकीकृत चेक पोस्ट स्थापित किये। अटारी वाघा बॉर्डर पर एकीकृत चेक पोस्ट सुचारुगत अप्रैल २०१२ में हुई। एकीकृत चेक पोस्ट एक समर्पित यात्री और पर्याप्त सीमाशुल्क और अप्रवास काउंटर के साथ एक कार्गो टर्मिनल, एक्स रे स्केनर, यात्रियों की सुविधाएँ और अन्य सुविधाएँ मुहैया कराता है।8
भारत पकिस्तान के मध्य व्यापार में रेल मार्ग एक प्रभुत्वशाली विकल्प है। यद्यपि यह रीति इसकी पहुँच से काफी कम है, दोनों ही देशों में रेल द्वारा सामान की आवाजाही मात्र ३० किमी अमृतसर से लाहौर है। प्रारम्भ और गंतव्य स्थल के मध्य की दूरी के लिए सामानों को ट्रकों में लादा जाता है और फिर आगे बढ़ाया जाता है। यदि किसी माल को दिल्ली से पहुँचाया जायेगा तो पहले उसे सड़क मार्ग द्वारा अमृतसर ले जाया जायेगा फिर उसे अटारी सीमा पर रेल में लाद कर लाहौर पहुँचाया जायेगा। परिवहन द्वारा इस प्रकार से सामान को ले जाने में लागत और समय अतिरिक्त लगता है। अटारी वाघा बॉर्डर पर एकीकृत चेक पोस्ट स्थापित करने से ढांचा गत तरीके से उल्लेखनीय विकास हुआ है, लेकिन अभी काफी अड़चने बची हुई हैं। अटारी वाघा बॉर्डर पर एकमात्र रेलमार्ग, अपर्याप्त आधारभूत ढांचा और स्टॉक की खराब गुणवत्ता आदि समस्याओं को व्यापारी काफी लम्बे समय से झेल रहे हैं और यह अभी भी जारी है। मालवाहक डिब्बों की कमी और उनके मिलने में आने वाली परेशानी के कारण एजेंट व्यापारियों से डिब्बों की उपलब्धता के लिए ज्यादा किराया लेने लगे हैं। यह भी देखा गया कि कोलकाता का व्यापारी जो कि पूर्वोत्तर भारत में अवस्थित है, उसके लिए अटारी वाघा बॉर्डर से व्यापार करना मुश्किल है, उसे रेल मार्ग द्वारा व्यापार की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिए इस प्रकार के माल को कोलम्बो से करांची जलमार्ग के द्वारा ले जाना होगा।9 एक अन्य समस्या यह भी है कि वर्तमान समझौते भारत और पाकिस्तान के मध्य केवल विशेष प्रकार के माल वाहक डिब्बों को ही अनुमति देते है।10
अभी तक भारत और पकिस्तान एक अनुशासित प्रोटोकोल का अनुसरण करते आये हैं। यह प्रोटोकोल भारत और पकिस्तान के माल पोतों को ही इन दोनों देशो के मध्य गुजरने की अनुमति देते हैं और साथ ही ये देश अपने माल पोतों को एक दूसरे के बंदरगाह से तीसरे देश नहीं भेजते हैं। इस व्यवस्था ने विदेशी जहाजों को प्रतिबंधित किया जिसके फलस्वरूप दोनों देशों के मध्य जहाजों में माल वाहक डिब्बों की आवाजाही की सामुद्रिक परिवहन की कीमत बढ़ गयी। हालांकि एक मालवाहक डिब्बे को ढ़ोने पर प्रतिबन्ध नहीं था। इसीलिये, भारत और पाकिस्तान में अनेक व्यापारिक प्रतिष्ठान अपने मालों को कोलम्बो के जरिये भेजने लगे। यद्यपि इस प्रोटोकॉल में वर्ष २००५ में संशोधन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप अब दोनों देशों के मध्य सामुद्रिक व्यापार वैश्विक सामुद्रिक व्यवस्थाओं एवं प्रावधानों के अनुसार होता है। अतः अब ये देश अपने मालपोतों को विदेशी जहाजों और अन्य देश के बंदरगाह से भेज सकते हैं। इस संशोधन ने प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ा दिया जिसके कारण मुंबई और कराची के बीच समुद्री व्यापार की कीमतों में गिरावट आई है।11
वर्ष २०११ तक पकिस्तान ने भारत से आयातित १९४६ वस्तुओं की एक सीमित ‘सकारात्मक सूची’ की ही अनुमति दी।12 नवम्बर २०११ में पकिस्तान ने भारत को सर्वाधिक वरीयता प्राप्त राष्ट्र का दर्जा दिया और मार्च २०१२ में अपने दृष्टिकोण को बदलते हुए भारत से पकिस्तान को आयातित होने वाली वस्तुओं की एक ‘नकारात्मक सूची’ बनाई। वर्तमान में १२०९ वस्तुओं की ‘नकारात्मक सूची’ है, तथा भारत से अन्य शेष आयातित वस्तुओं को अनुमति दे दी गयी है।13 पाकिस्तान ने भारत से सड़क मार्ग से आयातित होने वाली १३७ वस्तुओं को अनुमति प्रदान की और १२०० वस्तुओं की सूची बनाई जिनका आयात नहीं हो सकता।14 भारत और पाकिस्तान ने नियंत्रक सीमा पार व्यापार के लिए २१ प्राथमिक उत्पादों की सूची को अनुमति दी है। दोनों तरफ से कश्मीर से उत्पन्न वस्तुओं को ही इस सड़क मार्ग से व्यापार की अनुमति है, और उनका व्यापार भी वस्तु विनिमय द्वारा होगा।15
पकिस्तान की तरफ से आधारभूत संरचना को उन्नत नहीं किया गया है, इसलिए उन्नत आधारभूत संरचना के बिना पूर्ण रूप से फल प्राप्त नहीं हो सकते हैं। सड़क मार्ग से सकारात्मक सूची की वस्तुओं को दूर करने से व्यापार के दरों में उल्लेखनीय कमी आएगी।16 अभी तत्काल एक ऐसे समझौते को स्वीकृति देने की आवश्यकता है जो भारत और पकिस्तान के जहाजों के माल पोतों को ढ़ोने के लिए तीसरे देश के बंदरगाह को उपलब्ध करा सके। तीसरे देश के बंदरगाह पर प्रतिबन्ध से कम गुणवत्ता के सामान और उनकी भारी मात्रा पर प्रभाव पड़ता है, इसमें मुख्यतया कोयला, तार और सीमेंट का परिवहन वाणिज्य के तौर पर सहज रूप से नहीं हो पाता है। मुंबई कराची रास्ते के आलावा अन्य रास्तों को भी समुद्री परिवहन में जोड़े जाने के प्रयास किये जाने चाहिए।17 पारस्परिक व्यवस्थाओं को कम करने की आवश्यकता है जिसमें विशेषतः रेल डिब्बे, जो सीमा पार से माल छोड़ने के बाद खाली आते हैं, रेल ट्रैफिक का बढ़ाना और रेलवे प्राधिकारों के मध्य समन्वय में वृद्धि है। दोनों तरफ के व्यापारियों का सुझाव है कि पुराने सिंध राजस्थान रेलवे लिंक को फिर से शुरू किया जाये।18
ऊपर वर्णित संस्तुतियों के अतिरिक्त, कुछ अतिरिक्त प्रयास किये जाने चाहिए जैसे, सीमा पर अतिरिक्त क्रोसिंग हो, वाघा बॉर्डर के जरिये सड़क मार्ग पर ट्रैफिक की बारंबारता बढ़नी चाहिए (अमृतसर और लाहौर जैसे शहरों को जोड़ना) और खोखरपार मुनाबाओ को जोड़ना और श्रीनगर मुजफ्फराबाद रस्ते पर यातायात को बढ़ाना, जो कि अभी तक चार ट्रकों तक ही सीमित है जो कि सप्ताह में एक तरफ से गुजरते हैं तथा अतिरिक्त बस मार्गों को खोलना। पिछले नेतृत्व की बैठक के दौरान यह प्रतिबद्दता सामने आई थी कि कश्मीर पार से श्रीनगर मुजफ्फराबाद बस सेवा को बढाया जाएगा, उसे सकल आकार दिए जाने की जरुरत है। यद्यपि, यह बस सेवा साप्ताहिक है और सीमा के आर पार के रिश्तेदार ही यात्रा कर सकते हैं। वर्तमान में हवाई संपर्क के स्तर पर लाहौर-नई दिल्ली, कराची-नई दिल्ली और कराची-मुंबई रास्तों पर ही सहमति बनी है। दोनों देशों की राजधानियों (दिल्ली-इस्लामाबाद) के मध्य सीधा हवाई संपर्क नहीं है। प्रशुल्क नाकों की संख्या को बढ़ाने की जरुरत है जहाँ से ‘संवेदनशील’ वस्तुओं को निकाला जा सके तथा १०० प्रतिशत जांच को घटाया जा सके।19
यूरोप और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के व्यापार संघों की तर्ज पर भारत और पाकिस्तान के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय नियंत्रक और अन्तर्राष्ट्रीय प्रबंधन के नेतृत्व में संयुक्त परिवहन व्यापार संघ का निर्माण हो सकता है। इसमें राजनीतिक नेतृत्व के हस्तक्षेप का स्थान भी कम रहेगा, जिसके फलस्वरूप दोनों देशों के मध्य व्यापार सुगमता और निर्बाध रूप से होगा।
जब तक भारत और पकिस्तान के मध्य सम्बन्धों के अन्य आधार मजबूत और सुरक्षित हो, कुछ ऐसे भी कारक हैं जो दोनों देशों के नेतृत्व द्वारा सामरिक और राजनीतिक समझ में एकमत होने वाले संवादों की पहल के प्रयासों को दिशा से भटकाने का निरंतर प्रयास करते रहते हैं, जिससे दोनों राजनीतिक नेतृत्व को बचने की जरुरत है।
***
* लेखक, शोध अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद्, सप्रू हाउस, नई दिल्ली
EndNotes
1 “Connecting India: A Road Map for New Roads,” IPCS Issue Brief, No. 58, January 2008, http://www.ipcs.org/pdf_file/issue/1864780096IPCS-IssueBrief-No58.pdf
2 Selim Raihan and Prabir De, “India-Pakistan Economic Cooperation: Implications for Regional Integration in South Asia,” Commonwealth Secretariat, April 2013, p. 2, http://ris.org.in/images/RIS_images/pdf/South%20Asia%20meeting%202-3%20may%2020013%20PPT/Selim%20Raihan%20&%20Prabir%20De_paper.pdf.
3 D Suba Chandran, N Manoharan, Vibhanshu Shekhar, PG Rajamohan and Jabin Jacob, “Connecting India: A Road Map for New Roads,” IPCS Issue Brief, Institute of Peace and Conflict Studies, No. 58, January 2008, http://www.ipcs.org/pdf_file/issue/1864780096IPCS-IssueBrief-No58.pdf.
4 Ibid.
5 Bishnu Pant, Sushmita Pradhan and Santosh Gartaula, “Regional Cooperation and Integration in South Asia: Nepal Perspective,” 15th Annual GDN Conference, Accra, Ghana, 18-20 June 2014, http://www.gdn.int/admin/uploads/editor/files/Parallel%20Session%2022-%20Day%20III-Bishnu%20Dev.pdf.
6 Ibid.
7 Nisha Taneja, “Additional Trade Challenges: Transport, Transit and Non-Tariff Barriers,” in Michael Kugelman and Robert M Hathaway (eds.), Pakistan-India Trade: What Needs to be Done? What does it Matter? (Washington: Wilson Center, 2013), p. 86.
8 Nisha Taneja, “Additional Trade Challenges: Transport, Transit and Non-Tariff Barriers,” in Michael Kugelman and Robert M Hathaway (eds.), Pakistan-India Trade: What Needs to be Done? What does it Matter? (Washington: Wilson Center, 2013), pp. 86-87.
9 Nisha Taneja, “Trade Possibilities and Non-Tariff Barriers to Indo-Pak Trade.” Working Paper No. 200, Indian Council for Research on International Economic Relations, New Delhi, 2007, http://www.icrier.org/pdf/Working%20Paper%20200.pdf.
10 Nisha Taneja, “Additional Trade Challenges: Transport, Transit and Non-Tariff Barriers,” in Michael Kugelman and Robert M Hathaway (eds.), Pakistan-India Trade: What Needs to be Done? What does it Matter? Washington: Wilson Center, 2013, p. 88.
11 Nisha Taneja, “Additional Trade Challenges: Transport, Transit and Non-Tariff Barriers”, in Michael Kugelman and Robert M Hathaway (eds.), Pakistan-India Trade: What Needs to be Done? What Does it Matter?, Washington: Wilson Center, 2013, pp.88-89
12 Order S.R.O. 766 (I) 2009, Ministry of Commerce, Government of Pakistan, September 04, 2009, http://www.indiapakistantrade.org/policy/Trade%20Policy/Pakistan/Import%20policy%20order/SRO766(1)2009.pdf
13 Order S.R.O. No. 280 (I) /2012, Ministry of Commerce, Government of Pakistan, March 20, 2012, http://www.indiapakistantrade.org/policy/Trade%20Policy/Pakistan/Import%20policy%20order/IPO%202009-Amendment%20March%202012.pdf
14 The entire list of importable items and non-importable items can be found in http://www.tdap.gov.pk/pdf/SRO-280-I-2012.pdf
15 Trade Policy, India Pakistan Trade, ICRIER, http://indiapakistantrade.org/FAQs.html
16 Nisha Taneja, “Additional Trade Challenges: Transport, Transit and Non-Tariff Barriers”, in Michael Kugelman and Robert M Hathaway (eds.), Pakistan-India Trade: What Needs to be Done? What Does it Matter?, Washington: Wilson Center, 2013, p.95
17 Mohsin Khan, “India-Pakistan Trade: A Roadmap for Enhancing Economic Relations”, Policy Brief, Peterson Institute for International Economics, July 2009, https://www.piie.com/publications/pb/pb09-15.pdf
18 Mohsin Khan, “India-Pakistan Trade: A Roadmap for Enhancing Economic Relations,” Policy Brief, Peterson Institute for International Economics, July 2009, https://www.piie.com/publications/pb/pb09-15.pdf.
19 Ibid.