वर्ष २००१ के बाद अफगानिस्तान की उपलब्धिया काफी महत्वपूर्ण रही हैं। यह अभी एक विधिक सरकार वाला संप्रभु राष्ट्र है। यहाँ का संविधान एक गतिशील और नवजात लोकतंत्र के साथ आगे बढ़ रहा है। अफगानिस्तान को निरंतर विकास और स्थायित्व के मार्ग पर चलना होगा, जिससे यहाँ आर्थिक उन्नति का अच्छा माहौल बनेगा। यदि इस देश से आतंकवाद और नशीले पदार्थो का साया खत्म हो जाये, तो निश्चित रूप से यह अपने लक्ष्य को पा लेगा। आज अफगानिस्तान एक संक्रमण काल से गुजर रहा है जहाँ उसे आर्थिक और सैन्य सहायता कि आवश्यकता है। ऐसे में पड़ोसी राष्ट्रों की मदद इस देश के भविष्य का निर्धारण करने में काफी महत्वपूर्ण है। भारत भी अफगानिस्तान के पड़ोसी देशो में से एक है। भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि भारत को गर्व है कि वह अफगानिस्तान का पहला सामरिक सहयोगी है और वह अफगानिस्तान को स्वतंत्रता, शान्ति और समृद्धि वाला देश बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। दक्षिणी एशिया में अफगानिस्तान एकमात्र राष्ट्र है जिसके साथ भारत का सामरिक समझौता है। यह समझौता वर्ष २०११ में लागू किया गया था।
ऐतिहासिक रूप से देखें तो दोनों देशों के मध्य व्यापार और सांस्कृतिक संबंध काफी पुराने समय से हैं। १९४७ से पूर्व तक अफगानिस्तान के साथ हमारी भू सीमा भी छूती थी। अफगानिस्तान की नजरों में भारत कि छवि अच्छी रही है जिसके चलते हजारो अफ़गानी छात्र यहाँ पढ़ने आते हैं। यहाँ भारतीय संस्कृति का प्रभाव महसूस होता है क्योंकि भारतीय सिनेमा और टीवी का प्रचलन यहाँ काफी है। दक्षिणी और केंद्रीय एशिया के मध्य में इस देश का होना सामरिक द्रष्टिकोण से काफी महत्वपूर्णं है। भारत के साथ इस देश के पुराने सम्बन्ध रहे हैं, इसलिए भारत चाहता है कि यहाँ स्थिर सरकार बने और बाहरी ताकतों का हस्तक्षेप न हो। दोनों देश आतंकवाद से पीड़ित रहे हैं, अफगानिस्तान में तालिबान और भारत में सीमा पार, जम्मू और कश्मीर एवं विभिन्न भागों में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों ने बहुत घटनाओं को अंजाम दिया है। अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास और भारतीय इंजिनियर पर हमला होने के बाद भी भारतीय लोग अफगानिस्तान के विकास में संलग्न हैं।
अमरिकी सैनिकों द्वारा अफगानिस्तान निर्गम के बाद भारत को इस परिवर्तन के काल में एक सहयोगी के रूप में मदद करनी होगी। भारत भी चाहता है कि यहाँ स्थिर और शांतिपूर्ण परिवर्तन हो। यह भारत के लिए अफगानिस्तान से जुड़ने और सदिच्छा कायम करने का सही अवसर है। हालॉकि पाकिस्तान मध्य में है और दोनों देशो की सीमाऐं मिलती नहीं हैं; कठिनाई है, लेकिन भारत वचनों के प्रति प्रतिबद्ध है। २००१ में तालिबान शासन के गिरने के बाद भारत ने यहाँ निवेश और पुनर्निर्माण की तरफ ध्यान दिया, जिसके चलते भारत अफगानिस्तान के लिए क्षेत्रीय स्तर पर सबसे बड़ा आर्थिक सहायक/दाता बन गया है। ४ अक्टूबर २०११ को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने भारत यात्रा के दौरान सामरिक साझेदारी पर हस्ताक्षर किये, जो कि इस दिशा में मील का पत्थर है। भारत ने इस दिशा में सहकारी सुरक्षा के दृष्टिकोण को अपनाया, जिसमें आतंकवाद, मानव सुरक्षा, निवेश आदि पर ध्यान दिया गया है।
सुरक्षा के आयामों के अतिरिक्त साझेदारी प्रबंधन व्यापार, आर्थिक सहयोग, क्षमता विकास और शिक्षा, नागरिक समाज, लोगों से लोगों का जुड़ना पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया है। भारत अफगानिस्तान को क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा को मजबूत करने वाले सहयोगी के रूप में देखता है और निरंतर कोशिश करता है कि यहाँ एक अच्छी सरकार बने तथा बेहतर सुरक्षा बनी रहे। यह तभी संभव है जब यहाँ सामाजिक-आर्थिक विकास सतत प्रक्रिया से चलती रहे और भारत जैसे गत दस वर्षो से मदद कर रहा है वैसे ही करे। भारत की चिंता का विषय यह है कि जब से यहाँ अमरिकी मौजूदगी कम हुई है, यहाँ की सरज़मी पर आतंकवादी समूह सक्रिय हो गए हैं। इस सम्भावना की सूचना भारत और अमेरिका दोनों की ख़ुफ़िया एजेंसियों और सेना को है।
अफगानिस्तान असंख्य चुनौतियों का सामना कर रहा है जैसे, अपरिपक्व राजनीति और प्रशासनिक ढांचा, सीमित मानव संसाधन, अपरिपक्व तंत्र तथा अर्थव्यवस्था। फिर भी, एक राष्ट्र के तौर पर हम यह विश्वास करते हैं कि अफगानी जनता राष्ट्र निर्माण के लिए प्रतिबद्ध और संकल्पित है जिससे कि अफ़ग़ान पुनः फल, खाद्यान और त्यौहारों की भूमि के रूप में उभर कर सामने आएगा। क्रिकेट विश्व कप में अफगानिस्तान की टीम के प्रदर्शन को भारत द्वारा सराहा गया था।
अफगानिस्तान में मादक पदार्थोँ की तस्करी और इससे जुड़े अपराधी संगठनों ने राष्ट्र की शांति और स्थिरता को खोखला कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय मादक नियंत्रण बोर्ड के अनुसार विश्व के औसत से ज्यादा हेरोइन की तस्करी अफगानिस्तान से पूर्वी यूरोपीय देशो में बढ़ी है। अफगानिस्तान दुनिया में अफ़ीम की खेती करने वाला सबसे बड़ा देश बन चुका है। अमरिका के मादक निषेध अभियान और अफगानिस्तान में उसकी उपस्थिति (वर्ष २००१ तक) के बावजूद यहाँ अफ़ीम का उत्पादन बढ़ा है, जो कि आज एक विकराल समस्या का रूप ले चुका है। हांलाकि अमेरिका का कहना है कि वर्ष २००१ के बाद उसने अफगानिस्तान में मादक द्रव्यों को रोकने हेतु $ ७.६ बिलियन खर्च किये हैं। वर्तमान राष्ट्रपति अशरफ़ घनी का कहना है कि इस मामले पर उन्होंने व्यापक मसौदा तैयार किया है जिसके तहत किसानों को जागरूक किया जायेगा कि वे वैकल्पिक खेती करें और तस्करों के खिलाफ अभियोग चलाया जायेगा।
विगत दो दशकों में पड़ोसी देशों के प्रति भारत के नजरिये में काफ़ी परिवर्तन आया है। नब्बे के दशक में ‘कोई प्रतिफल नहीं’ की नीति, ‘गुजराल सिद्धांत’, आया जो कि इस बात को मुखर करता है कि भारत एक प्रभुत्वशाली क्षेत्रीय शक्ति है और उसका दायित्व है कि वह बिना किसी सहज प्रतिफलों के लाभों की उम्मीद के अपने पड़ोसी देशों की सहायता करे और उनके साथ अनुकूलता बनाये रखे।
भारतीय सहायता व्यापक रूप में तीन श्रेणियों में बाँटी जा सकती है। मानवीय सहायता (जैसे खाद्य सहायता), ढाँचागत प्रोजेक्ट और क्षमता निर्माण। लागत के रूप में छः प्रोजेक्ट विशिष्ट हैं: प्राथमिक स्कूल के बच्चों को खाद्य सहायता और स्कूलों का निर्माण तथा पुनर्वास ($ ३२१ मिलियन प्रदान किये), २५०,०० टन गेहूं उपलब्ध कराना, पुल-ई-ख़ुमारी से काबुल तक विद्युत लाइन का निर्माण ($ १२० मिलियन), सलमा बाँध ऊर्जा प्रोजेक्ट का निर्माण ($ १३० मिलियन) संसद भवन का निर्माण ($ २७ मिलियन प्रदान किये; बजट १७८ मिलियन) और देलाराम-ज़रांज सड़क पुनर्वास ($ १५० मिलियन)।
वर्ष २००८ में अफगानिस्तान में एक ऑपरेशन शुरू हुआ, स्वरोजगार महिला संघ (सेवा)। गैर सरकारी संस्थाओं पर भारत और अमरिका के मध्य हुए सहयोग का मुख्य जोर कृषि विकास और महिला सशक्तिकरण पर रहा। अमरिका स्वरोजगार महिला संघ को $ १ मिलियन तक की राशि व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए मुहैया करवा रहा है। भारत और अफगानिस्तान की सरकारों के मध्य हुए वर्ष २००७ के समझौते के तहत काबुल में (सेवा) एक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना कर चुका है। इसका नाम है, बाग़-ए-जनाना (अर्थात महिलाओं का बाग़) तथा इसके अतिरिक्त एक और प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया गया, बाग़-ए-खज़ाना (अर्थात् महिलाओं का पैसा)। इन कार्यक्रमों के जरिये महिलाओं को सिलाई व कढ़ाई का काम, समग्र कौशल सीखना, प्रबंध में दक्षता इत्यादि हुनर सिखाये जाते हैं। मुंबई, अहमदाबाद और बेंगलुरु में इस तरह के प्रशिक्षण लेने काफी अफगानी महिलाएं भारत आती हैं। कई भारतीय गैर सरकारी संस्थायें अफगानिस्तान के लोगों के साथ काफी निकटता से काम कर रही हैं।
जैसा कि वर्ष २०१४-१५ के लिए बामियान को सार्क की सांस्कृतिक राजधानी घोषित किया गया है, अतः सार्क को एक ऐसी क्रियाकलापों की सूची बनानी चाहिए जो कि यहाँ राष्ट्र निर्माण क्षमताओं और साथ ही साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था को विकसित करे। भारत के अफगानिस्तान के साथ बहु-स्तरीय सम्बन्ध हैं; सेना और सुरक्षा का दृष्टिकोण, जिसके तहत भारत चाहता है कि अफगानिस्तान में स्थिरता बनी रहे। अधिक सकारात्मक रूप में देखें तो एक सामाजिक और आर्थिक जुड़ाव, जिसके अंतर्गत भारत सरकार के व्यवसायिक प्रतिष्ठानों तथा विकासमान प्रोजेक्टों का निवेश शामिल है। क्षेत्रीय वचनबद्धता के इस्तांबुल प्रक्रिया के तहत भारत की मुख्य भूमिका अफगानिस्तान को पूरे क्षेत्र में सामान्य और मानकीय दिखलाने के प्रयास को बताती है।
अफगानिस्तान को लेकर भारत के तीन मुख्य सामरिक हित हैं, जो कि विगत दशक से सफलता या असफलता के विभिन्न स्तरों पर इसकी नीतियों का निर्धारण करते रहे हैं, वे निम्न प्रकार हैं:
अफगानिस्तान के साथ भारत के सम्बन्ध घनिष्ठ रहे हैं क्योंकि ये साझा हितों, साझी सुरक्षा समस्या, क्षेत्रीय विज़न और पारस्परिक लाभ पर आधारित रहे हैं।
अफगानिस्तान में अलगाववादी समूह, कट्टरपंथी समूह और संजातीय समूहों के टकराव ने लोकतंत्र को काफी ठेस पहुँचाई है। इसके चलते यहाँ हजारा समुदाय की समस्या पनपने लगी। हजारा समुदाय के साथ शताब्दियों से अन्याय होता रहा है। अभी तक यह समुदाय अफ़गानी राजनीति तथा समाज में एक उचित स्थान नहीं बना पाया है और साथ ही तालिबान एवं अल-कायदा जैसे संगठन के हाथों इनका शोषण भी हुआ है। ऐतिहासिक रूप से देखें तो हजारा समुदाय अफगानिस्तान में सबसे उपेक्षित संजातीय समूह रहा है। आधुनिक अफगानिस्तान के निर्माण के बाद इनकी परस्थितियों में आंशिक सकारात्मक परिवर्तन आये। काफी सालों से चल रही राजनीतिक अशांति के कारण कुछ हजारा लोग ईरान की ओर भी प्रवास कर गए।
ईरान में भी उनके साथ भेदभाव का बर्ताव किया गया। मार्च, २०११ के यूरेशिया डेली मॉनिटर में कहा गया कि ईरान के हजारा समुदाय के प्रतिनिधियों ने मंगोलिया से सहायता मांगी है कि वे इस मामले पर ईरानी सरकार से बात करें तथा जबरदस्ती अफगानिस्तान में देश प्रत्यावर्तन कराने वाली ईरानी ताकतों को रोकें।
भारत के अतिरिक्त ईरान और पाकिस्तान की भूमिका भी अफगानिस्तान के इस संक्रमणकाल के दौर में काफी निर्णायक है। दोनों ही देशों के साथ अफगानिस्तान न केवल सीमायें साझा करता है बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत भी साझी हैं। ईरान तथा अफगानिस्तान के संबंधों में काफी उतार चढ़ाव के दौर आये हैं। पड़ोसी देश होने के बावजूद भी इनके मध्य दीर्घकालीन मैत्री सम्बन्ध नहीं बन पाये हैं। इसके मुख्य कारण हैं घरेलू राजनीति, बाह्य सामरिक दृष्टिकोण में अंतर तथा महाशक्तियों की राजनीति का प्रभाव। ईरान द्वारा अफगानिस्तान की स्थानीय राजनीति और सेना प्रमुखों के मध्य दखल ने दशकों से यहाँ अशांति का माहौल बना रखा है। ईरान का यहाँ के शिया समुदाय पर खास प्रभाव है जो कि अफगानिस्तान की कुल जनसंख्या का २० फीसदी हैं। अफगानिस्तान भू आबद्ध राष्ट्र है जो कि लगभग ९०० किमी. की सीमा ईरान के साथ साझा करता है तथा ईरान ही वह जरिया है जिसके माध्यम से व्यापार और सीमापार जलमार्ग की सुविधा मिल सकती है। पाकिस्तान के साथ भी अफगानिस्तान का रिश्ता ईरान जैसा ही है। तालिबानी घुसपैठ को पकिस्तान का समर्थन अफगानिस्तान के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मैत्रीपूर्ण रिश्ते इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता ला सकते हैं। दोनों देशों के प्रमुखों ने माना है कि सेनाओं के मध्य सैन्य अभ्यास हो जिससे अफ़गानी सेना मजबूत हो सके। नवम्बर, २०१४ को अफ़गानी राष्ट्रपति अशरफ़ घनी ने पकिस्तान की यात्रा की, जिसका उद्देश्य क्षेत्र को आतंकवाद से मुक्त करना और शांति बहाल करना था।
हाल ही में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ घनी ने भारत की यात्रा की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अफगानिस्तान को विभिन्न सेक्टरों में सहायता देने का प्रस्ताव रखा। जिसमें व्यापार, निवेश, आधारभूत ढाँचा, ईरान की चाहबहार बंदरगाह परियोजना आदि शामिल थे। राष्ट्रपति घनी ने आतंकवाद से साझा रूप में लड़ने की बात कही और कहा कि आतंकवाद को अच्छे या बुरे रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए, इसका मुकाबला करके इसे समूल खत्म करना चाहिए। भारत की तरफ से अफगानिस्तान को दी जा रही सहायता योजनाओ में एक प्रोजेक्ट की और घोषणा की गई जिसमें अफ़गानी बच्चों के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसके तहत काबुल की हबीबिया स्कूल, इंदिरा गाँधी शिशु स्वास्थ्य केन्द्र और रेड क्रिसेंट सोसाइटी (जहॉ शिशुओं के ह्रदय रोग का निदान होता है) को विशेष आर्थिक सहायता देने की बात कही गई।
अफगानिस्तान क्षेत्र में ईरान, पाकिस्तान और भारत की सक्रिय भागीदारी की सख्त जरुरत है। यदि पड़ोसी राष्ट्र इसमें असफल रहते हैं, तो यहाँ महाशक्तियों को सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर आसानी से मिल जायेगा।
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* लेखक, अनुसंधान अध्येता, आई. सी. डब्लू. ए., सप्रू हाउस, नई दिल्ली