परिचय
प्रधानमंत्री थेरेसा मे की विदेश नीति में गल्फ देशों के साथ युनाइटेड किंगडम के सहयोग का नया अध्याय अवतरित होता दिख रहा है। 7 दिसम्बर 2016 को प्रधानमंत्री मे ने गल्फ कोओपरेशन काउंसिल (GCC) की सालाना बैठक को सम्बोधन किया और क्षेत्र में युनाइटेड किंगडम के साथ सहयोग बढ़ाने पर बल दिया। युनाइटेड किंगडम की विदेश नीति सुरक्षा के अलावा आर्थिक क्षेत्र में बेहतर सहयोग चाहती है। प्रधानमंत्री मे ने स्पष्ट रूप से कहा, “गल्फ की सुरक्षा हमारी सुरक्षा है” और ‘आपकी (गल्फ की) सम्पन्नता हमारी (युनाइटेड किंगडम की) सम्पन्नता है’। उन्होंने विश्वास दिलाने की कोशिश की, कि उनकी यात्रा से युनाइटेड किंगडम-गल्फ के बीच सहयोग का एक ‘नया अध्याय’ शुरु होगा। युनाइटेड किंगडम और GCC देशों में वर्तमान अंदरूनी और बाहरी स्थितियों को देखते हुए आपसी सहयोग की सम्भावनाएं हो सकती हैं। यूरोप के सामाजिक कल्याण पर वित्तीय संकट के बादल मंडरा रहे हैं। गल्फ क्षेत्र की वर्तमान सामरिक गतिविधियां काफी पेचीदगी भरी हैं। राजनीतिक तौर पर मध्य-पूर्व क्षेत्र के हिस्सों में भारी उथल-पुथल है। इराक में एक तरह की अराजकता का माहौल है। सीरियाई संकट भी लम्बे समय तक बने रहने की आशंका है। क्षेत्र में ना सिर्फ स्थानीय ताकतों की भूमिका बदल रही है, बल्कि वैश्विक ताकतों की नीतियों में भी परिवर्तन आ रहा है। सीरियाई संकट के साथ रूस ने अपना प्रभाव बढ़ाया है। सीरिया की असद सरकार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के ज़रिये पश्चिम के प्रस्तावों को खारिज करने में रूस सफल रहा है। परमाणु संधि से ईरान का प्रभाव बढ़ रहा है। परमाणु संधि के बाद यूरोप के देश ईरान के साथ आर्थिक सम्बंध बढ़ाना चाह रहे हैं। मध्य-पूर्व में राजनीतिक अस्थिरता और युद्ध से यूरोप के देशों की सुरक्षा पर खतरा बढ़ रहा है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का खतरा भी बढ़ रहा है। यूरोप के शहरों पर आतंकी हमलों से न सिर्फ भय का वातावरण है, बल्कि कई सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियां भी सामने आई हैं। शरणार्थियों के प्रति अपराधों में वृद्धि हुई है और दक्षिणपंथियों का चुनावी आधार मजबूत हुआ है। मध्य-पूर्व में अव्यवस्था, शरणार्थियों की बढ़ती संख्या और सामाजिक ध्रुवीकरण ने यूरोपीय सरकारों को परेशानी में डाल रखा है।
प्रधानमंत्री मे से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरुन भी गल्फ क्षेत्र के साथ सुरक्षा और वाणिज्यिक सम्बंध बढ़ाने को इच्छुक थे। 2010 में ‘गल्फ इनिशियेटिव’शुरु करने का स्पष्ट लक्ष्य था - गल्फ देशों के साथ सम्बंधों को प्रमुखता देना। अरब में राजनीतिक अव्यवस्था के बाद से युनाइटेड किंगडम में भी राजनीतिक और सामाजिक बदलाव आए हैं। ओबामा प्रशासन यहां भारी सैन्य बल की तैनाती से बचता रहा। नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी क्षेत्र में भारी सैन्य तैनाती नहीं करना चाह रहे। गल्फ में ब्रिटिश सहयोगी सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए उनका समर्थन चाहते हैं। ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने गल्फ क्षेत्र में ब्रिटेन की भूमिका स्पष्ट कर दी है। ब्रिटिश सरकार ने दिसम्बर 2016 में राष्ट्रीय सुरक्षा नीति और रणनीतिक रक्षा और सुरक्षा समीक्षा 2015 पर अपना पहला सालाना रिपोर्ट जारी किया। सालाना रिपोर्ट में स्पष्ट है कि ब्रिटिश सरकार गल्फ और पूर्वी यूरोप में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती है। इस भौगोलिक-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में इस आलेख का लक्ष्य गल्फ क्षेत्र के प्रति युनाइटेड किंगडम की नीतियों और संभावनाओं का मूल्यांकन करना है।
युनाइटेड किंगडम-गल्फ के रिश्तों का संक्षिप्त ऐतिहासिक विवरण
गल्फ में युनाइटेड किंगडम के सामरिक सम्बंधों का लम्बा इतिहास है। साम्राज्यवाद के समय गल्फ क्षेत्र युनाइटेड किंगडम को संभावित दुश्मनों से बचाने में दीवार का काम करता था। वाणिज्यिक और व्यापारिक हितों के संरक्षण के साथ ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार में इस क्षेत्र का अहम योगदान रहा है। भौगोलिक-सामरिक और भौगोलिक-आर्थिक महत्त्व को देखते हुए 19वीं और 20वीं सदी में सभी GCC देश ब्रिटेन के संरक्षण में आ गए। इन देशों ने अपनी सुरक्षा के बदले अपनी विदेश नीतियां ब्रिटेन को सौंप दीं। लगभग डेढ़ सौ सालों (1820-1971) तक क्षेत्र में ब्रिटेन का प्रभाव बना रहा। ये प्रभाव आर्थिक से लेकर राजनीतिक क्षेत्र तक फैला रहा। ब्रिटेन का प्रभाव मुख्य रूप से गल्फ के अरब हिस्से की तरफ था।
ईस्ट इंडिया कम्पनी के गठन के साथ भारत पर ब्रिटेन का प्रभाव गया, जिससे क्षेत्र में साम्राज्य की सुरक्षा व्यवस्था भी मजबूत हुई। भारत से व्यापारिक आवागमन को देखते हुए साम्राज्य के लिए गल्फ की सुरक्षा महत्त्वपूर्ण होती गई, जिसके फलस्वरूप गल्फ में युनाइटेड किंगडम का प्रभाव भी बढ़ता गया। आरम्भ में ब्रिटिश प्रभाव क्षेत्र मुख्य रूप से आर्थिक क्षेत्रों में थी। बाद में सेना के बल पर क्षेत्र में राजनीतिक पकड़ भी मजबूत की गई, ताकि प्रतिस्पर्धी साम्राज्यवादी ताकतों को रोका जा सके। क्षेत्र में अपनी प्रभाव मजबूत बनाने के लिए ब्रिटिश नौसेना को कई बार स्थानीयों के साथ युद्ध करना पड़ा। इन स्थानीय लोगों को वो पिरेट्स (समुद्री डाकू) कहते थे। आखिरकार 1820 में अरब जनजातीयों के साथ उन्होंने “जनरल मेरीटाइम ट्रीटी” के नाम से मशहूर संधि की, जिसमें अबु धाबी, शारजाह, अजमान और उम्म अल-कुवैन समेत कई जनजातीयों के शेख शामिल थे।
संधि के संरक्षण के लिए उन्होंने स्थानीय शासकों के साथ अच्छे सम्बंध विकसित किये, जिनसे भविष्य में क्षेत्र के साथ करीबी रिश्ता बनने का आधार तैयार हुआ। 1820 की संधि और उसके बाद कई संधियों से गल्फ क्षेत्र में युनाइटेड किंगडम का प्रभाव बढ़ा। इससे गल्फ के शासकों की सुरक्षा और विदेशी रिश्तों से जुड़े लगभग सभी मामले ब्रिटिश शासन के अधीन हो गए तथा ‘पैक्स ब्रिटैनिका’ युग की शुरुआत हुई। क्षेत्र में अपना प्रभाव मजबूता करना सिर्फ ब्रिटेन के हित में ही नहीं था, बल्कि स्थानीय शेख और शासकों की भी उसकी सामरिक मौजूदगी में दिलचस्पी थी। दरअसल उन्हें अपनी सत्ता के संरक्षण और अपने क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए भारी सैन्य बल की आवश्यकता थी। 20वीं सदी के प्रारम्भ में तेल की खोज ने क्षेत्र के भौगोलिक-सामरिक महत्त्व को अपने बल पर बढ़ा लिया और युनाइटेड किंगडम के लिए क्षेत्र की अहमियत सिर्फ भारत के करीब होने की वजह से भारतीय साम्राज्य में अपने हितों की सुरक्षा के लिए नहीं रही। तेल की खोज के तुरंत बाद ब्रिटेन ने गल्फ के शासकों से भरोसा लिया कि वो रियायती कीमत पर तेल उसकी मर्जी की कम्पनियों को ही देंगे। बाद में सिर्फ ब्रिटिश कम्पनियों को ही रियायती कीमत पर तेल दिया जाने लगा। आर्थिक विकास और गल्फ के शासकों की सम्पन्नता से समीकरण बदलने लगे और युनाइटेड किंगडम क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने का इच्छुक हो गया।
20वीं सदी के शुरु तक युनाइटेड किंगडम का पूरे गल्फ क्षेत्र पर एक तरह से एकछत्र आधिपत्य हो गया था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक परिदृश्य बदला और ब्रिटिश साम्राज्य की कमजोरियां दिखने लगीं। दुनिया के दूसरे हिस्सों की तरह गल्फ क्षेत्रों से भी ब्रिटेन का प्रभाव कम होने लगा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका की ताकत बढ़ने से सुरक्षा प्रदान करनेवाली ताकत के रूप में युनाइटेड किंगडम पूरी तरह नाकाम हो गया। अमेरिका ने ना सिर्फ शासकों की, बल्कि तेल और प्राकृतिक सम्पदा को भी सुरक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी ले ली।
युनाइटेड किंगडम के लिए गल्फ क्षेत्र हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है, जो बहरीन में स्पष्ट रूप से दिखता है। बहरीन को युनाइटेड किंगडम 1971 तक संरक्षण देता आया। यहां तक कि आज भी बहरीन पर ब्रिटेन का भारी प्रभाव है। क्षेत्र से निकलने के बाद भी सऊदी अरब और बहरीन के लिए सुरक्षा के क्षेत्र में ब्रिटेन महत्त्वपूर्ण सलाहकार बना रहा। उनके बीच रिश्ते सिर्फ ऐतिहासिक रूप से नहीं जुड़े थे, बल्कि उनके बीच मजबूत आर्थिक और सामरिक सम्बंध भी हैं। ये दलील दी जाती थी कि 1971 में सेना के जाने के बाद भी क्षेत्र से युनाइटेड किंगडम का प्रभाव कभी खत्म नहीं हुआ। उन देशों में युनाइटेड किंगडम प्रमुख हथियार निर्यातक था। रक्षा समझौतों के साथ प्रशिक्षण और सैनिक अभ्यास के ज़रिये युनाइटेड किंगडम ने क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखा। GCC के साथ युनाइटेड किंगडम की रक्षा संधि है। यही वजह है कि ब्रिटिश रॉयल नौसेना और रॉयल वायुसेना हमेशा गल्फ में तैनात रहते हैं।
GCC में वर्तमान रणनीतिक समीकरण
GCC और युनाइटेड किंगडम दोनों के लिए क्षेत्र में सभी साधनों पर काबू रखने और क्षेत्र में अपने हितों के संरक्षण का मजबूत इतिहास है। आज सामाजिक-राजनीतिक अव्यवस्था के बाद नए खतरों और नए उभरते सामरिक सरोकारों को देखते हुए GCC देश युनाइटेड किंगडम को अपने क्षेत्र में कई तरह से शामिल करना चाहते हैं। अव्यवस्था ने क्षेत्र की राजनीतिक और सामरिक स्थिति को पूरी तरह अस्तव्यस्त कर दिया है। ईरान के परमाणु समझौते के बाद वर्चस्व की नई उम्मीदों के खतरे से निपटने के लिए GCC अब युनाइटेड किंगडम से बड़े स्तर पर दखल देने की अपेक्षा रखता है। GCC देश अपने अंदरूनी मसलों में ईरान के बढ़ते दखल से परेशान हैं। क्षेत्र में रूस की आक्रामक भूमिका ने गल्फ के देशों की परेशानियां और बढ़ा दी हैं। रूस ने ईरान के साथ मिलकर क्षेत्र की राजनीति को एक नया मोड़ दे दिया है। GCC देश ईरान-रूस की बढ़ती नजदीकियों से चिन्तित हैं। उनका मानना है कि ये नजदीकियां फिलहाल ही नहीं, बल्कि दीर्घकालीन स्थायित्व के लिए भी मुश्किलें पैदा कर सकती हैं।
तुर्की और मिस्र जैसी बड़ी ताकतों के अलावा कई ग़ैर देशीय ताकतों की भी आपस में तकरार चल रही है। क्षेत्रीय ताकतों के समर्थन से ये ग़ैर देशीय ताकतें GCC सरकारों के लिए खतरा उत्पन्न कर रही हैं। युनाइटेड किंगडम और GCC देश आतंकवाद से निपटने और सीमा सुरक्षा मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए कार्य समिति की निर्माण प्रक्रिया फिर से शुरु करने की वार्ता चल रही है। दोनों पक्ष आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद निरोध जैसे मुद्दों पर भी बातचीत कर रहे हैं।
युनाइटेड किंगडम के साथ सामरिक रिश्ते मजबूत करने के पीछे GCC का लक्ष्य ये भी है कि वो ईरान को क्षेत्र में आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में अगुवा नहीं बनने देना चाहता। GCC की सरकारें और विशेषकर सऊदी अरब आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध में ईरान को वर्चस्व हासिल नहीं करने देना चाहेगा। ISIS के बाद इराक में और शायद असद सरकार के बाद सीरिया में GCC - युनाइटेड किंगडम के साथ पूरा सहयोग करना चाहेगा, क्योंकि इस दिशा में कोई भी कोताही नए राजनीतिक और रणनीतिक समीकरणों का फायदा ईरान को दे सकती है। GCC देश येमन और लीबिया में चल रहे संकट से निपटने में भी युनाइटेड किंगडम का समर्थन चाहते हैं, जहां दोनों पक्ष कई पेचीदे मुद्दों पर पहले ही एकमत हो चुके हैं।
युनाइटेड किंगडम: विस्तृत सुरक्षा सरोकार
वर्तमान पेचीदे सुरक्षा और राजनीतिक परिदृश्य ने गल्फ में युनाइटेड किंगडम की भूमिका बढ़ा दी है। हालांकि युनाइटेड किंगडम पहले से गल्फ की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाता आया है, लेकिन हाल में इसकी भूमिका के आयाम और विस्तृत हो गए हैं। 2010 में इसके ‘गल्फ इनिशियेटिव’ कार्यक्रम में युनाइटेड किंगडम ने GCC देशों के साथ अपने सैनिक और वाणिज्यिक रिश्तों को मजबूत करने की कोशिश की। उसने रक्षा, प्रशिक्षण, हथियार बेचने जैसी कई संधियां कीं। गल्फ के देशों पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगते रहे, लेकिन प्रधानमंत्री कैमरुन ने रक्षा सौदों के पक्ष में खुलकर दलीलें दीं। कैमरुन के सत्ता में आने से काफी पहले, 1996 में संयुक्त अरब अमीरात और युनाइटेड किंगडम के बीच रक्षा संधि पर दस्तखत हो चुके थे, जिसने सुरक्षा बंदोबस्त की रूपरेखा तैयार की। ये रक्षा संधि नेटो के बाहर ब्रिटेन की सबसे बड़ी रक्षा संधि थी। लेकिन अब ये दलील दी जा रही है कि टोनी ब्लेयर सरकार और फिर गॉर्डन ब्राउन सरकार ने युनाइटेड अरब अमीरात के साथ रक्षा सौदों को अनदेखा कर दिया। दोनों देशों ने 2009 में भी आपसी समझौते पर दस्तखत किये, जिसके अनुसार युनाइटेड किंगडम को संयुक्त अरब अमीरात में एयर बेस के इस्तेमाल की अनुमति मिल गई। इनमें अफगानिस्तान के लिए राहत कार्यों से जुड़ी कुछ उड़ानें भी शामिल हैं। ये बात गौर करनेवाली है कि संयुक्त अरब अमीरात क्षेत्र का इकलौता देश था, जिसने नेटो ऑपरेशन के दौरान अफगानिस्तान में पूरा सैनिक सहयोग दिया था।
हाल में युनाइटेड किंगडम और गल्फ देशों के बीच हुए रक्षा समझौतों का रणनीतिक महत्त्व है। उदाहरण के लिए युनाइटेड किंगडम ने बहरीन के साथ 2014 में रक्षा संधि की, जिसके बाद बहरीन के मीना सलमान बंदरगाह के तटवर्ती साधनों का विकास किया जाएगा। यहां युनाइटेड किंगडम के सुरंग तलाशने वाले चार नौसैनिक जहाज स्थाई रूप से तैनात रहेंगे। गल्फ में ब्रिटिश डिस्ट्रॉयर्स और फ्रिगेट्स की तैनाती में भी ये सहायक रहेगा। युनाइटेड किंगडम की योजना इस बंदरगाह को अपनी नौसेना के लिहाज से मजबूत और विकसित करना है, जिसमें एक अग्रिम क्रियात्मक बेस, विमानों के लिए जगह, नौसैनिक कार्रवाईयों के लिए उपकरण रखने की जगह और नौसैनिकों के रहने की जगहों का निर्माण शामिल हैं। सैनिक बेस का उद्घाटन नवम्बर 2016 में हो गया। रॉयल नौसेना के पास युनाइटेड किंगडम के 600 सैनिकों को रखने की क्षमता है। अफगानिस्तान आने-जाने के लिए अल-मिनहाद एयरबेस का इस्तेमाल किया जा रहा है।
युनाइटेड किंगडम ने ओमान के साथ मार्च 2016 में सुरक्षा संधि की। इस संधि का लक्ष्य ओमान में संयुक्त सैनिक अभ्यास की बारम्बारिता और सैनिक प्रशिक्षण बढ़ाना है। युनाइटेड किंगडम ने क़तर के साथ भी सुरक्षा सम्बंध मजबूत किये हैं। ब्रिटेन के रक्षा मंत्री माइकल फैलोन ने जुलाई 2016 में क़तर के रक्षा मंत्री खालिद बिन मोहम्मद अल अतियाह से लंदन मंक मुलाकात की और उन्हें आतंकवाद से लड़ने तथा दोनों देशों के बीच संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम का भरोसा दिया।
सऊदी अरब के साथ रक्षा सहयोग, ख़ासकर रक्षा और सुरक्षा उपकरणों की बिक्री ‘महत्त्वपूर्ण’, लेकिन ‘विवादास्पद’ मानी जा रही है। ब्रिटेन के हथियार उद्योग का एक बड़ा बाज़ार सऊदी अरब है। यही वजह है कि ब्रिटेन अपने सामरिक और वाणिज्यिक हितों को देखते हुए मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों को अनदेखा करता आया है।
2009 में प्रकाशित राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतिक रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को युनाइटेड किंगडम की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा मानता है। राष्ट्रीय रणनीति तय करने में पाया गया कि शीत युद्ध खत्म होने के बाद अंतरराष्ट्रीय वातावरण में परिवर्तन हुआ है और अपारम्परिक खतरों में वृद्धि हुई है। दिसम्बर 2016 में जारी किये गए राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और रणनीतिक रक्षा तथा सुरक्षा समीक्षा रिपोर्ट 2015 में मध्य-पूर्व से पैदा होनेवाले अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देशों पर आधारित पारम्परिक सुरक्षा व्यवस्था भी खतरनाक है। राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और रणनीतिक रक्षा और सुरक्षा रिपोर्ट 2015 में युनाइटेड किंगडम को गल्फ में अधिक स्थाई और अधिक सैनिक मौजूदगी सुनिश्चित करने को कहा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वो ढांचागत सुविधाओं में निवेश कर रहा है, जिनमें बहरीन का मीना-सलमान नौसैनिक अड्डा, संयुक्त अरब अमीरात का अल-मिनहाद हवाई अड्डा और ओमान के दुक्मा बंदरगाह शामिल हैं। पूरे क्षेत्र में अल्पकालीन प्रशिक्षण मिशन में वृद्धि हुई है। 2016 में युनाइटेड किंगडम में 30 से अधिक द्विपक्षीय या बहुपक्षीय प्रशिक्षण अभ्यास हुए हैं जिनसे क्षेत्र और युनाइटेड किंगडम के बीच आपसी समन्वय में वृद्धि हुई है। इसके अलावा 2016 में युनाइटेड किंगडम में करीब 400 सुरक्षाकर्मियों को प्रशिक्षण दिया गया है।
GCC सम्मेलन में प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने कहा कि ब्रिटेन ‘गल्फ की दीर्घकालीन सुरक्षा के लिए एक स्थाई और अधिक प्रभावशाली व्यवस्था बनाना चाहता है’। उन्होंने कहा कि युनाइटेड किंगडम रक्षा खर्च में वृद्धि करेगा और क्षेत्र में तीन बिलियन पौंड से अधिक रक्षा व्यय तथा निवेश करेगा। क्षेत्र में मे के दौरे के तुरंत बाद ऐलान किया गया कि गल्फ, एशिया पैसिफिक और पश्चिमी अफ्रीका में नया क्षेत्रीय ब्रिटिश डिफेंस स्टाफ (BDS) स्थापित किया जाएगा। इसके ज़रिये युनाइटेड किंगडम इन क्षेत्रों की रक्षा पर प्रभावशाली तरीके से ध्यान दे सकेगा। युनाइटेड किंगडम के हितों की सुरक्षा और उन्हें मजबूत बनाने के लिए BDS अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मिलकर द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय रक्षा तथा सुरक्षा रिश्ते बेहतर बनाने पर काम करेगा। सामान्य रूप से BDS की तैनाती गल्फ में, जबकि विशेष रूप से दुबई में होगी। ये गल्फ में स्थाई मौजूदगी सुनिश्चित करेगा और GCC देशों के साथ सम्बंध मजबूत करेगा।
ईरान पर नियंत्रण
जुलाई 2015 में ईरान के साथ परमाणु समझौते में युनाइटेड किंगडम ने अहम भूमिका निभाई। उसने परमाणु कार्यक्रम के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। समझौते के बाद युनाइटेड किंगडम और ईरान ने आपसी रिश्ते बेहतर बनाने की कोशिशें शुरु कीं। युनाइटेड किंगडम ने तेहरान में अपना दूतावास फिर से शुरु किया, जो 2011 से बंद था। इसके अलावा युनाइटेड किंगडम - ईरान के साथ व्यापारिक सम्बंध भी बढ़ा रहा है। ईरान के ख़िलाफ़ लगे कई प्रतिबंध हटा लिये गए हैं, हालांकि मानवाधिकार हनन, परमाणु प्रसार और आतंकवाद को ईरान के समर्थन से जुड़े प्रतिबंध अभी लागू हैं। फिर भी क्षेत्र में ईरान की भूमिका GCC देशों के लिए चिन्ता का विषय है। अपने भाषण मं। प्रधानमंत्री मे ने कहा, “मैं आपको भरोसा दिलाना चाहती हूं और ये बात मेरे दिमाग में बिलकुल स्पष्ट है कि गल्फ और मध्य-पूर्व के लिए ईरान एक खतरा है। गल्फ के साथ अपने सामरिक सहयोग के लिए युनाइटेड किंगडम पूरी तरह प्रतिबद्ध है और आपके साथ मिलकर उस खतरे को दूर करने की दिशा में प्रयासरत है”। प्रधानमंत्री मे के वक्तव्य पर ईरान ने तुरंत अपनी प्रतिक्रिया दी। ईरान के सुप्रीम गाइड और आध्यात्मिक नेता अली खमैनी ने कहा कि युनाइटेड किंगडम इस क्षेत्र को अस्थिर बनाने की योजना बना रहा है, और उसका क्रियाकलाप ईरान की सुरक्षा के लिए खतरा है। उन्होंने ब्रिटेन को एक साम्राज्यवादी ताकत और ईरान का पारम्परिक दुश्मन बताया। अली खमैनी का मानना है कि ब्रिटेन गल्फ की वजह से क्षेत्र में अपना वजूद बनाए हुए है और बिला कारण इसे अस्थिर बनाने की कोशिश कर रहा है।
उधर प्रधानमंत्री मे ने ईरान पर आरोप लगाया कि वो असद सरकार को समर्थन देने के लिए अपने लड़ाके सीरिया भेज रहा है, येमन में हाउथी विद्रोही आंदोलनकारियों को समर्थन दे रहा है एवं लेबनान तथा इराक में अस्थिरता पैदा कर रहा है। ईरान पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वो इज़राइल का विरोध करनेवाले किसी भी देश को समर्थन देने के लिए तैयार है। अल्पसंख्यक मामलों में ईरानी राष्ट्रपति के सलाहकार अली युनुसी ने कहा कि ईरान किसी भी देश को सभी तरह का समर्थन देने के लिए तैयार है, जो इज़राइल के ख़िलाफ़ हैं, और कोई भी देश जिसके पास उस देश को तबाह करने की योजना है।
ईरान का सऊदी अरब के साथ आध्यात्मिक मतभेद है और क्षेत्र में वर्चस्व के लिए प्रतिस्पर्धा है। ईरान और सऊदी अरब के बीच नस्लीय-राष्ट्रीय और धार्मिक होड़ में वर्चस्व स्थापित करने के लिए संघर्ष है। दूसरी वजह है कि दोनों फारस की खाड़ी और मध्य-पूर्व पर अपनी पकड़ का दावा करते हैं। ईरान का मानना है कि वो एक ‘प्राकृतिक देश’ है और उसके दावे इतिहास से जुड़े हुए हैं। जबकि मध्य-पूर्व के दूसरे देश साम्राज्यवादी ताकतों के बनाए हुए हैं। ईरान - सीरिया में असद सरकार को, लेबनान में हिज़बुल्ला को, इराक, बहरीन और सऊदी अरब में शिया संगठनों को समर्थन देता है। दोनों देश धार्मिक मामलों और झगड़ों में एक-दूसरे के विरुद्ध रहते हैं। हालांकि सऊदी अरब के साथ ईरान के सम्बंध हमेशा से तनावपूर्ण और दुश्मनागत भरे नहीं थे। लेकिन अरब आंदोलन के बाद ईरान और सऊदी अरब के बीच क्षेत्रीय राजनीतिक वर्चस्व के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। ईरान के साथ परमाणु समझौते पर क्षेत्रीय स्तर पर मिली-जुली प्रतिक्रिया रही है। इज़राइल ने इस समझौते की निन्दा की है। हालांकि सऊदी अरब समझौते का समर्थन करता दिखा है। फिर भी परमाणु संधि के संभावित नतीजों और ईरान की क्षेत्रीय गतिविधियों को लेकर चिन्तित है। ओबामा प्रशासन का विश्वास था कि परमाणु संधि वापस लेने जैसे किसी भी कदम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हंगामा होगा और अमेरिका अपने मित्रों से अलग-थलग हो जाएगा। फ्रांस, जर्मनी और युनाइटेड किंगडम समेत अमेरिका के कई मित्र देश परमाणु संधि वापस लेने के पक्ष में नहीं हैं। इस बाबत फ्रांस, जर्मनी और युनाइटेड किंगडम को राजी करना अमेरिका के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा। इस संधि को सऊदी अरब की बुझे मन से मंजूरी सिर्फ पश्चिमी देशों के दबाव की वजह से है।
GCC देशों के युनाइटेड किंगडम के साथ रक्षा सहयोग ईरान की क्षेत्रीय गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए हैं। युनाइटेड किंगडम का मानना है कि ईरान के साथ परमाणु संधि महत्त्वपूर्ण है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री मे ने दलील दी कि इस संधि ने ईरान के परमाणु हथियारों की संभावना को ‘खारिज’ कर दिया है। हालांकि ईरान की आक्रामक क्षेत्रीय गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए GCC देशों के साथ युनाइटेड किंगडम काम करता रहेगा। युनाइटेड किंगडम ने सीरियाई संकट के लिए रूस की भी आलोचना की। युनाइटेड किंगडम के विदेश मंत्री एलेन डंकन ने कहा कि सीरिया में शांति बहाली की प्रक्रिया में ईरान तथा तुर्की को शामिल कर रूस ने “बेहद गंदी भूमिका” निभाई है। उन्होंने कहा कि वो इस बात से सहमत नहीं हैं कि मॉस्को संकट का समाधान चाहता है। ईरान तथा तुर्की के साथ मिलकर रूस विद्रोहियों और असद सरकार के बीच मध्यस्थता करने की कूटनीतिक कोशिश कर रहा है। लिहाजा युनाइटेड किंगडम समेत पश्चिमी देश रूस के शांति बहाली के प्रयासों को समर्थन नहीं दे रहे हैं।
आर्थिक सम्बंधों को बेहतर बनाना
ब्रेक्सिट के बाद यूरोपीय संघ के साथ समझौता करने में युनाइटेड किंगडम को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ये स्पष्ट नहीं है कि शरणार्थी मुद्दे पर सख्त रुख के साथ थेरेसा मे सरकार किस तरह यूरोपीय संघ के साथ समझौता कर पाएगी। यूरोप के नेता हमेशा कहते रहे हैं कि मुक्त आवाजाही यूरोपीय संघ के नागरिकों का बुनियादी अधिकार है और एकल बाज़ार की परिकल्पना नागरिकों की मुक्त आवाजाही पर आधारित है। उधर युनाइटेड किंगडम का मानना है कि शरणार्थी समस्या अब अस्थिरता फैलाने की स्थिति तक पहुंच चुकी है। लिहाजा वो लाखों लोगों का प्रवास रोकेगा। जो भी हो, दो सालों में प्रवास रोकना उसके लिए मुमकिन नहीं हो पाया है। शरणार्थी समस्या पर सख्त रुख रखनेवाली प्रधानमंत्री मे को यूरोप में अपने समकक्षों से समझौता करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। यूरोपीय संघ में धीमा विकास हुआ है और वो अब भी वित्तीय संकट से उबरने की प्रक्रिया में हैं। कुछ सदस्य देशों की आर्थिक स्थिति अब भी खराब है और वहां बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। यूरोप उनका सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है तथा आपसी आर्थिक सम्बंधों से ही रोजगार के अवसर पैदा होते हैं। यूरोप के मोर्चे पर अनिश्चितता और परेशानियों को देखते हुए व्यवहारिक विकल्प की दलीलों पर ध्यान दिया जा रहा है। युनाइटेड किंगडम नए उभरते बाज़ारों में विस्तार और सहयोग के लिए तथा पारम्परिक आर्थिक मित्रों से सहयोग मजबूत करने की गंभीर कोशिशें कर रहा है। प्रधानमंत्री मे ने गल्फ क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने पर हमेशा जोर दिया है। ब्रेक्सिट के बाद उनकी इच्छा ‘महत्त्वाकांक्षी व्यापारिक सम्बंधों का विकास करने की है’।
गल्फ क्षेत्र व्यापारिक अवसरों को मजबूत करने की संभावना प्रदान कर रहा है। GCC देशों के साथ मौजूदा सम्बंधों का आकलन बताता है कि युनाइटेड किंगडम व्यापारिक सम्बंध मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। युनाइटेड किंगडम का पहले से ही इस क्षेत्र में मजबूत व्यापारिक सम्बंध और निवेश है। फिलहाल क्षेत्र में युनाइटेड किंगडम का सबसे बड़ा नागरिक सामग्रियों का निर्यात बाज़ार संयुक्त अरब अमीरात है। 2013 में उसे दुनिया का 12वां सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार आंका गया था। 2013 में सामानों और सेवाओं का कुल द्विपक्षीय व्यापार 12.4 बिलियन पौंड था। 2020 तक दोनों देशों ने वार्षिक 25 बिलियन पौंड व्यापार का लक्ष्य निर्धारित किया है। दूसरी ओर सऊदी अरब गल्फ के व्यापार में युनाइटेड किंगडम का सबसे बड़ा सहयोगी है। युनाइटेड किंगडम ने उसे 2015 में 7.34 बिलियन पौंड के सामान और सेवाएं निर्यात कीं। गल्फ के दूसरे देश युनाइटेड किंगडम के पहले 25 व्यापारिक सहयोगियों की सूची में शामिल नहीं हैं। क़तर में युनाइटेड किंगडम का निर्यात 2015 में 2.6 बिलियन पौंड था। 2014 में युनाइटेड किंगडम-बहरीन का कुल व्यापार 419 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जिसमें युनाइटेड किंगडम का निर्यात 340 मिलियन अमेरिकी डॉलर और बहरीन का निर्यात 79 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। गल्फ के देश ब्रिटेन में अचल सम्पत्ति के कारोबार में ज़ोरशोर से लगे हुए हैं। ब्रेक्सिट के कारण उनमें अस्थिरता की भावना घर कर गई थी। ये आकलन लगाया गया था कि ब्रेक्सिट के बाद अचल सम्पत्ति की कीमत गिर सकती है। क़तर, सऊदी अरब, कुवैत तथा संयुक्त अरब अमीरात के स्वायत्त और निजी निवेशक सम्पत्ति के खरीदारों में शामिल हैं। वो लंदन में अचल सम्पत्ति के कारोबार में गहराई से जुड़े हुए हैं।
युनाइटेड किंगडम तथा गल्फ देश अब ब्रेक्सिट के बाद की गतिविधियों और विस्तृत आर्थिक सहयोग पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। बताया गया है कि युनाइटेड किंगडम विदेश विभाग ने इस क्षेत्र में अगले पांच सालों में 30 बिलियन पौंड के ब्रिटिश कारोबार से जुड़े क्षेत्रों की पहचान की है। क़तर और कुवैत ने विशाल ढांचागत परियोजनाएं शुरु की हैं। युनाइटेड किंगडम के व्यापारिक गुट ढांचागत निर्माण और परियोजनाओं के आधुनिकीकरण में दिलचस्प हो सकते हैं। क़तर नेशनल विज़न 2030 का लक्ष्य एक आधुनिक समाज का गठन करना है, जो अपना विकास खुद कर सके और सभी को उच्च जीवन स्तर दे सके। यहां 2022 में फीफा वर्ल्ड कप का आयोजन होना है। लिहाजा ये अपने पहले भूमिगत और हल्की रेल व्यवस्था, एक अंतर-गल्फ रेल नेटवर्क, विशाल स्तर पर सड़क निर्माण और हज़ारों अतिरिक्त होटल के कमरों के निर्माण समेत ढांचागत सुविधाओं का विकास करेगा। इनके अलावा फीफा के अनुरूप आठ स्टेडियम और 70 सम्बंधित प्रशिक्षण मैदान तथा सुविधाओं का विकास भी किया जाएगा। युनाइटेड किंगडम खेल आयोजनों में विस्तृत अनुभव रखने का दावा करता है और क़तर के साथ अपने अनुभव साझा करने में दिलचस्पी रखता है। सऊदी अरब ने नई यातायात व्यवस्था, सामाजिक और भौतिक ढांचे में, ख़ासकर स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में विशाल स्तर पर निवेश किया है। आर्थिक और ढांचागत परियोजनाएं युनाइटेड किंगडम को व्यापार और निवेश के अवसर देंगी। GCC देशों में विशाल स्वायत्त वित्तीय फंड है, जो पूंजी का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। क़तर ने युनाइटेड किंगडम में अचल सम्पत्ति में भारी निवेश किया है। इसके अलावा उसने सम्पत्ति और वित्तीय संस्थान खरीदने में भी भारी निवेश किया है। 100 बिलियन डॉलर से अधिक सम्पत्ति के साथ क़तर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (QIA) निवेश के दूसरे अवसर खोज रही है।
उपसंहार
गल्फ क्षेत्र युनाइटेड किंगडम के लिए सुरक्षा तथा व्यापार के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण है। क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता तथा अव्यवस्था यूरोप की सुरक्षा पर खतरा है। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मे गल्फ देशों को भरोसा दिला पाएंगी कि आतंकवाद से लड़ने तथा क्षेत्र की सुरक्षा में युनाइटेड किंगडम अधिक सक्रिय भूमिका निभाएगा। क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए ईरान के साथ परमाणु संधि को समर्थन देते हुए उन्होंने तेहरान को क्षेत्रीय गतिविधियों के लिए चेतावनी भी दी है। GCC के साथ युनाइटेड किंगडम का लम्बे समय से रक्षा सहयोग बना रहा है और नीतियां बताती हैं कि यदि अमेरिका यहां अपनी सुरक्षा व्यवस्था कम करता है तो भविष्य में इस क्षेत्र में ब्रिटेन की भूमिका और महत्त्वपूर्ण हो जाएगी। युनाइटेड किंगडम ने क्षेत्र में रक्षा मदों में खर्च बढ़ाने का वादा किया है। क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा जारी रहेगी और ईरान तथा सऊदी अरब क्षेत्रीय वर्चस्व की लड़ाई लड़ते रहेंगे। परमाणु संधि ने ईरान को मजबूती प्रदान की है, लेकिन युनाइटेड किंगडम ने क्षेत्र में वर्चस्व पाने की ईरान की कोशिशों को नाकाम करने की गतिविधियां तेज कर दी हैं। अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्फ परमाणु संधि के पक्ष में नहीं है। फिर भी युनाइटेड किंगडम समेत यूरोप के दूसरे देश परमाणु संधि वापस लेने पर सहमत नहीं हैं। फिर भी अमेरिका और युनाइटेड किंगडम साथ मिलकर ईरान को अलग-थलग करने के कूटनीतिक प्रयास कर सकते हैं।
गल्फ के साथ आर्थिक सम्बंध युनाइटेड किंगडम के लिए उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। युनाइटेड किंगडम धनी देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ नए आर्थिक सहयोग के क्षेत्र तलाश रहा है। गल्फ क्षेत्र में ऊर्जा संसाधन, पूंजी और नई मांगों की भरमार है। युनाइटेड किंगडम के साथ पहले से ही व्यापार और निवेश के रूप में उसके व्यापारिक तथा आर्थिक सम्बंध हैं। प्रधानमंत्री मे ने व्यापार और निवेश के अवसर बढ़ाने का वादा किया है। व्यापारिक क्षेत्र के अगुवा निश्चित रूप से महत्त्वाकांक्षी ढांचागत परियोजनाओं, विशाल खेल आयोजनों और राष्ट्रीय विकास कार्यक्रमों पर नज़र गड़ाए बैठे होंगे। उनमें आर्थिक सम्बंध बेहतर बनाने की भरपूर संभावनाएं हैं।
उभरते वैश्विक परिप्रेक्ष्य में विस्तृत सुरक्षा व्यवस्था और आर्थिक गतिविधियां पक्ष में साबित हो सकती हैं। अगर अमेरिका मध्य-पूर्व में अपनी सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने में अनिच्छुक होता है और दूसरी ओर ईरान के साथ मिलकर रूस अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करता है, तो क्षेत्र में पश्चिमी असर कम होगा। ऐसी स्थिति में युनाइटेड किंगडम अपनी भागीदारी अधिकतम बढ़ाने की कोशिश करेगा।
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* लेखक विश्व मामलों की भारतीय परिषद, सप्रू हाउस, नई दिल्ली में शोधकर्ता हैं।
डिस्क्लेमर: आलेख में व्यक्त किये गए विचार लेखकों के निजी विचार हैं और परिषद के विचारों को प्रतिबिम्बित नहीं करते।